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ऐसे पढ़ेगा इंडिया, तो कैसे बढ़ेगा इंडिया: इस गांव में नहीं है कोई स्कूल भवन, कुटिया में तालीम लेते हैं मासूम

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Published : Jul 26, 2019, 11:53 PM IST

मध्यप्रदेश सरकार में शिक्षा व्यवस्था कितनी दुरूस्त है इसका अंदाजा इस लगाया जा सकता है कि बुरहानपुर जिला मुख्यालय से 50 किलोमीटर दूर ग्राम गढ़ताल के भुरपनी फाल्या में शासकीय प्राथमिक शाला घासफूस की कुटिया में लग रही है. जहां कुटिया में ही नौनिहाल तालीम लेने को मजबूर है.

कुटिया में लग रही पाठशाला

बुरहानपुर। सब पढ़े सब बढ़े, पढ़ेगा तभी तो बढ़ेगा इंडिया जैसे नारे जहां भी नजर घुमाएंगे वहीं आपको देखने को मिल जायेंगे. लेकिन शिक्षा के स्तर को सुधारने के लिए इन नारों से कही ज्यादा मूलभूत सुविधाओं में सुधार की जरूरत है. बुरहानपुर जिले के गढ़ाताल गांव में सरकारी स्कूल नहीं होने की वजह से बच्चों को कुटिया में पढ़ाई करनी पड़ रही है. नौनिहालों को पढ़ाई के लिए एक अदद इमारत तक मुअस्सर नहीं हो पा रही है.

कुटिया में लग रही पाठशाला

प्रदेश में शिक्षा व्यवस्था कितनी दुरूस्त है, इसकी तस्दीक ये तस्वीर कर रही है. बुरहानपुर जिले से 50 किलोमिटर दूर ग्राम गढ़ताल के भुरपनी फाल्या में शासकीय स्कूल तो है लेकिन स्कूल के पास बिल्डिंग नहीं है, लिहाजा बच्चों को मजबूरन घासफूस की कुटिया में तालीम लेनी पड़ रही है.

अधिकारियों का गैरजिम्मेदाराना रवैया मासूम बच्चों के भविष्य से तो खिलवाड़ कर रही रहा है, जिंदगी को भी जोखिम में डाल रहा है. लेकिन प्रशासन अपनी नाकामी पर पर्दा डालने की कोशिश कर रहा है. हैरानी की बात ये है कि आजादी के सात दशक गुजर जाने के बाद भी लोग बुनियादी सुविधाओं के लिए तरस रहे हैं, शासन- प्रशासन की ओर से दावे तो खूब किए गए लेकिन अगर कुछ मिला है, तो है सरकार का ठेंगा.

प्रदेश सरकार शिक्षा के स्तर को सुधारने के लिए भले ही बड़े- बड़े दावे कर ले, लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही कहानी बयां कर रही है. कहीं स्कूल भवन नहीं होने से कहीं बच्चे पेड़ के नीचे तो कहीं जर्जर मकान और कहीं कुटिया में पढ़ने को मजबूर हैं. शिक्षा के लिए तमाम मुसीबतों से जद्दोजहद करते हुए ये बच्चे इस कुटिया में पहुंचते हैं. लेकिन इन 55 बच्चों के भविष्य की चिंता ना तो प्रशासन को है और न ही शिक्षा विभाग को है. लिहाजा प्रशासन ने यहां एक भवन बनवाना भी मुनासिब नहीं समझा.

बुरहानपुर। सब पढ़े सब बढ़े, पढ़ेगा तभी तो बढ़ेगा इंडिया जैसे नारे जहां भी नजर घुमाएंगे वहीं आपको देखने को मिल जायेंगे. लेकिन शिक्षा के स्तर को सुधारने के लिए इन नारों से कही ज्यादा मूलभूत सुविधाओं में सुधार की जरूरत है. बुरहानपुर जिले के गढ़ाताल गांव में सरकारी स्कूल नहीं होने की वजह से बच्चों को कुटिया में पढ़ाई करनी पड़ रही है. नौनिहालों को पढ़ाई के लिए एक अदद इमारत तक मुअस्सर नहीं हो पा रही है.

कुटिया में लग रही पाठशाला

प्रदेश में शिक्षा व्यवस्था कितनी दुरूस्त है, इसकी तस्दीक ये तस्वीर कर रही है. बुरहानपुर जिले से 50 किलोमिटर दूर ग्राम गढ़ताल के भुरपनी फाल्या में शासकीय स्कूल तो है लेकिन स्कूल के पास बिल्डिंग नहीं है, लिहाजा बच्चों को मजबूरन घासफूस की कुटिया में तालीम लेनी पड़ रही है.

अधिकारियों का गैरजिम्मेदाराना रवैया मासूम बच्चों के भविष्य से तो खिलवाड़ कर रही रहा है, जिंदगी को भी जोखिम में डाल रहा है. लेकिन प्रशासन अपनी नाकामी पर पर्दा डालने की कोशिश कर रहा है. हैरानी की बात ये है कि आजादी के सात दशक गुजर जाने के बाद भी लोग बुनियादी सुविधाओं के लिए तरस रहे हैं, शासन- प्रशासन की ओर से दावे तो खूब किए गए लेकिन अगर कुछ मिला है, तो है सरकार का ठेंगा.

प्रदेश सरकार शिक्षा के स्तर को सुधारने के लिए भले ही बड़े- बड़े दावे कर ले, लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही कहानी बयां कर रही है. कहीं स्कूल भवन नहीं होने से कहीं बच्चे पेड़ के नीचे तो कहीं जर्जर मकान और कहीं कुटिया में पढ़ने को मजबूर हैं. शिक्षा के लिए तमाम मुसीबतों से जद्दोजहद करते हुए ये बच्चे इस कुटिया में पहुंचते हैं. लेकिन इन 55 बच्चों के भविष्य की चिंता ना तो प्रशासन को है और न ही शिक्षा विभाग को है. लिहाजा प्रशासन ने यहां एक भवन बनवाना भी मुनासिब नहीं समझा.

Intro:बुरहानपुर जिला मुख्यालय से 50 किलोमीटर दूर ग्राम गढ़ताल के भुरपनी फाल्या में शासकीय प्राथमिक शाला घासफूस की कुटिया में लग रही है, बता दे कि यहां 55 बच्चे दर्ज है, बावजूद इसके शिक्षा विभाग ने यहां भवन तक मुहैया नहीं कराया है, जिसके चलते यहां के बच्चों को घासफूस की कुटिया में शिक्षा हासिल करना पड़ रही है, वही कलेक्टर राजेश कुमार कौल ने बताया की मामला मेरे संज्ञान में आया है, वन विभाग से बातचीत करके भूमि आवंटित की जाएंगी साथ ही शासन से भवन बनाने की मांग की जाएंगी।Body:बुरहानपुर जिला मुख्यालय से 50 कि.मी. दूर ग्राम पंचायत गढ़ताल के अन्तर्गत आने वाला आदिवासी फाल्या भूरपानी आजादी के 7 दशक बाद भी गुलामी की जंजीरों मे बंधा हुआ है, यहां के रहवासी पिछले चार दशकों से गुमनामी की जिंदगी जीने को मजबूर हैं, बता दें कि आज भी भूरपानी फाल्या के ग्रामीण बिजली, पानी, सड़क, शिक्षा ,जैसी मूलभूत सुविधाओं से जूझ रहे है, बावजूद इसके इस ओर न तो कोई जनप्रतिनिधि ध्यान दे रहे है और नहीं प्रशासन, ग्रामीण आज भी वनवासी का जीवन जीने को मजबूर है, भूरपानी फाल्या के नौनिहाल बच्चे आज भी घासफूस के झोपड़े मे बैठकर तालीम हासिल कर रहे है, जबकि प्रदेश सरकार द्वारा शिक्षा विभाग को प्रतिवर्ष अपने आम बजट मे से करोड़ों रूपये खर्च करती हैं, ताकी स्कूल आने वाले विद्यार्थियों को अच्छी तालीम मिल पाए।
Conclusion:बाईट 01:- शिक्षक।
बाईट 02:- ग्रामीण।
बाईट 03:- राजेश कुमार कौल, कलेक्टर।
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