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जानिए, कहां दशहरे पर नहीं किया जाता पुतला दहन

भले ही रावण देश-दुनिया के लिए विलेन है, लेकिन मध्यप्रदेश के लोगों का रावण प्रेम किसी से छिपा नहीं है. वक्त के साथ यहां राम नहीं बल्कि रावण भक्तों की संख्या बढ़ रही है. कई जिलों में मंदिर बनाकर पूजा की जा रही है, इंदौर में तो पुतला दहन को कोर्ट में चुनौती भी दी गई है. कहीं रावण प्रथम पूज्य है तो कहीं जय लंकेश ही अभिवादन का तरीका है.

दशहरे पर नहीं किया जाता पुतला दहन
दशहरे पर नहीं किया जाता पुतला दहन
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Published : Oct 15, 2021, 1:56 PM IST

भोपाल : मध्य प्रदेश में पिछले कुछ सालों में रावण प्रेम का चलन तेजी से बढ़ा है और अब बढ़ता ही जा रहा है. विदिशा, छिंदवाड़ा, इंदौर, मंदसौर, जबलपुर सहित कई जिलों में दशहरे पर रावण दहन की परंपरा खत्म होती जा रही है.

प्रदेश की आर्थिक राजधानी में कुछ भक्त ऐसे भी रावण भक्त हैं, जो सालों से रावण के पुतला दहन का विरोध करते आ रहे हैं. इसके खिलाफ जिला कोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की गई है. जिस पर कोर्ट में हाल ही में सुनवाई हुई है. यह याचिका इंदौर के रावण भक्त मंडल की ओर से लगाई गई है, जिसमें दलील दी गई है कि रावण प्रकांड पंडित थे. उनके कथानक को रामायण में गलत तरीके से दर्शाया गया है. रावण दहन के कारण देश भर में हर साल दशहरे पर प्रदूषण का स्तर बढ़ जाता है. लिहाजा इस पर रोक लगाई जाए. रावण के पक्ष में विद्वानों के मत एवं इतिहास और दस्तावेज प्रस्तुत किए जा रहे हैं. अगली सुनवाई 23 अक्टूबर को होगी.

इंदौर का लंकेश्वर महादेव मंदिर

रावण दहन आदिवासियों का अपमान

वहीं, दशहरा के दूसरे दिन छिंदवाड़ा के बिछुआ विकास खंड के जामुन टोला गांव में बड़ा जलसा होता है, जलसे में आदिवासी समाज भगवान रावण को अपना पूर्वज मानते हुए राजा रावण की पूजा करते हैं, स्थानीय लोगों का कहना है कि रावण उनके पूर्वज ही नहीं बल्कि भगवान भी थे, इसलिए भी उनकी पूजा करते हैं. दशहरे पर रावण का पुतला दहन किया जाता है, जो आदिवासी समाज का अपमान है, 4 साल पहले छोटे से कार्यक्रम से रावण पूजा की शुरुआत हुई थी, जो अब बड़ा रूप ले चुकी है.

घोर तप से यहीं पर रावण ने शिव को किया था खुश

छिंदवाड़ा के ही रावनवाड़ा गांव में त्रेता युग में रावण ने भगवान शिव की आराधना की थी. उसके बाद से ही इस गांव का नाम रावनवाड़ा पड़ा. कहा जाता है कि पहले यहां घनघोर जंगल हुआ करता था, जिसके मध्य रावण ने भगवान शिव की आराधना की थी, भोलेनाथ ने दर्शन देकर यहीं पर रावण को वरदान दिया था. गांव के आदिवासी रावण को आराध्य के रूप में पूजते हैं. रावनवाड़ा के राजेश धुर्वे बताते हैं कि उनके ही खेत में रावण देव का मंदिर है, उनकी कई पीढ़ियां रावण की पूजा करती आ रही हैं. स्थानीय लोग रावण को आराध्य मानते हैं, यही वजह है कि दशहरा-दिवाली के बाद यहां मेला लगता है. दूर-दूर से लोग यहां पूजा करने आते हैं, मंदिर में मुर्गों-बकरों की बलि भी दी जाती है.

रावण को पूर्वज मानकर यहां के लोग करते हैं पूजा

नवरात्रि में यहां पंडाल में विराजते हैं रावण

जबलपुर शहर से 25 किमी दूर पाटन नगर में रावण की पूजा खूब चर्चा में है, लंकेश नामदेव रावण के चरित्र से इतने प्रभावित हैं कि वो रावण को ही अपना आराध्य मानने लगे हैं, सालों से रावण की पूजा-पाठ करते हैं, नवरात्रि के मौके पर जब लोग देवी माता के पण्डाल लगाकर पूजा करते हैं, वहीं लंकेश नामदेव पाटन नगर चौराहे पर पंडाल बनाकर रावण की प्रतिमा स्थापित करते हैं, साथ ही शिवलिंग भी रावण की प्रतिमा के आगे स्थापित करते हैं. रावण के नाम से जयघोष भी करते हैं.

पढ़ें : मध्य प्रदेश: मुफ्त में चाहिए माननीयों को फ्लैट! एजेंसी को बनाया कर्जदार

यहां मुस्लिम भी करते हैं रावण की पूजा

बाबा महाकाल की नगरी उज्जैन से करीब 20 किमी दूर चिकली गांव में रावण का मंदिर है, जहां उनकी पूजा भी की जाती है, खास बात ये है कि गांव में रहने वाले मुस्लिम भी रावण की पूजा में शिरकत करते हैं. अब ग्रामीण 5 लाख रुपए जुटाकर रावण मंदिर का जीर्णोद्वार करवाने जा रहे हैं. चैत्र की नवमी-दशमी पर यहां मेला भी लगता है. वीरेंद्र बताते हैं कि अपने पूर्वजों को रावण की पूजा करते देखा था, अब उसी परंपरा को आगे बढ़ा रहे हैं. ग्रामीण बताते हैं कि दूसरे गांव के लोग भी अपनी मुराद लेकर रावण के दरबार में हाजिरी लगाते हैं.

रावनवाड़ा गांव में रावण ने की थी घोर तपस्या

रावण मंदिर में रोजाना होती है पूजा-आरती

विदिशा में एक ऐसा गांव है, जंहा लोग रावण को ही अपना आराध्य मानते हुए पूजा करते हैं, वहां अभिवादन में भी जय लंकेश ही कहा जाता है, लोग अपने शरीर पर जय लंकेश गुदवाते हैं, यही वजह है कि यहां प्रथम पूज्य भगवान गणेश नहीं बल्कि प्रथम पूज्यनीय रावण हैं. भले ही देश भर में दशहरे पर रावण दहन किया जाता है, यहां रावण बाबा के मंदिर में रावण की पूजा होती है और भंडारा होता है. विदिशा से 42 किमी दूर रावण गांव हैं, जहां के लोग खुद को रावण का वंशज मानते हैं. जहां मंदिर में रोजाना पूजा-पाठ और आरती होती है.

रावण को पूर्वज मानकर यहां के लोग करते हैं पूजा

रावण के सामने घूंघट करती हैं महिलाएं

मंदसौर में भी रावण की पूजा की जाती है, यहां रावण को जमाई का दर्जा मिला है क्योंकि यहीं पर मंदोदरी का मायका माना जाता है, यहां दशहरे पर रावण वध न कर पूजा जाता है. नामदेव समाज रावण को दामाद मानता है और विजयादशमी पर खानपुरा में सीमेंट से बनी रावण की 41 फीट की प्रतिमा की पूजा करता है. ऐसा माना जाता है कि रावण की पत्नी मंदोदरी नामदेव समाज की बेटी थी, जो मंदसौर की रहने वाली थीं, विजयदशमी पर नामदेव समाज रावण की प्रतिमा के सामने ढोल-नगाड़े के साथ पहुंचता है और रावण के दाहिने पैर में लच्छा बांधकर पूजा करते हैं. मालवा में दामाद को विशेष महत्व दिया जाता है, मान्यता है कि समाज की हर महिला रावण के सामने घूंघट करके ही गुजरती है.

भोपाल : मध्य प्रदेश में पिछले कुछ सालों में रावण प्रेम का चलन तेजी से बढ़ा है और अब बढ़ता ही जा रहा है. विदिशा, छिंदवाड़ा, इंदौर, मंदसौर, जबलपुर सहित कई जिलों में दशहरे पर रावण दहन की परंपरा खत्म होती जा रही है.

प्रदेश की आर्थिक राजधानी में कुछ भक्त ऐसे भी रावण भक्त हैं, जो सालों से रावण के पुतला दहन का विरोध करते आ रहे हैं. इसके खिलाफ जिला कोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की गई है. जिस पर कोर्ट में हाल ही में सुनवाई हुई है. यह याचिका इंदौर के रावण भक्त मंडल की ओर से लगाई गई है, जिसमें दलील दी गई है कि रावण प्रकांड पंडित थे. उनके कथानक को रामायण में गलत तरीके से दर्शाया गया है. रावण दहन के कारण देश भर में हर साल दशहरे पर प्रदूषण का स्तर बढ़ जाता है. लिहाजा इस पर रोक लगाई जाए. रावण के पक्ष में विद्वानों के मत एवं इतिहास और दस्तावेज प्रस्तुत किए जा रहे हैं. अगली सुनवाई 23 अक्टूबर को होगी.

इंदौर का लंकेश्वर महादेव मंदिर

रावण दहन आदिवासियों का अपमान

वहीं, दशहरा के दूसरे दिन छिंदवाड़ा के बिछुआ विकास खंड के जामुन टोला गांव में बड़ा जलसा होता है, जलसे में आदिवासी समाज भगवान रावण को अपना पूर्वज मानते हुए राजा रावण की पूजा करते हैं, स्थानीय लोगों का कहना है कि रावण उनके पूर्वज ही नहीं बल्कि भगवान भी थे, इसलिए भी उनकी पूजा करते हैं. दशहरे पर रावण का पुतला दहन किया जाता है, जो आदिवासी समाज का अपमान है, 4 साल पहले छोटे से कार्यक्रम से रावण पूजा की शुरुआत हुई थी, जो अब बड़ा रूप ले चुकी है.

घोर तप से यहीं पर रावण ने शिव को किया था खुश

छिंदवाड़ा के ही रावनवाड़ा गांव में त्रेता युग में रावण ने भगवान शिव की आराधना की थी. उसके बाद से ही इस गांव का नाम रावनवाड़ा पड़ा. कहा जाता है कि पहले यहां घनघोर जंगल हुआ करता था, जिसके मध्य रावण ने भगवान शिव की आराधना की थी, भोलेनाथ ने दर्शन देकर यहीं पर रावण को वरदान दिया था. गांव के आदिवासी रावण को आराध्य के रूप में पूजते हैं. रावनवाड़ा के राजेश धुर्वे बताते हैं कि उनके ही खेत में रावण देव का मंदिर है, उनकी कई पीढ़ियां रावण की पूजा करती आ रही हैं. स्थानीय लोग रावण को आराध्य मानते हैं, यही वजह है कि दशहरा-दिवाली के बाद यहां मेला लगता है. दूर-दूर से लोग यहां पूजा करने आते हैं, मंदिर में मुर्गों-बकरों की बलि भी दी जाती है.

रावण को पूर्वज मानकर यहां के लोग करते हैं पूजा

नवरात्रि में यहां पंडाल में विराजते हैं रावण

जबलपुर शहर से 25 किमी दूर पाटन नगर में रावण की पूजा खूब चर्चा में है, लंकेश नामदेव रावण के चरित्र से इतने प्रभावित हैं कि वो रावण को ही अपना आराध्य मानने लगे हैं, सालों से रावण की पूजा-पाठ करते हैं, नवरात्रि के मौके पर जब लोग देवी माता के पण्डाल लगाकर पूजा करते हैं, वहीं लंकेश नामदेव पाटन नगर चौराहे पर पंडाल बनाकर रावण की प्रतिमा स्थापित करते हैं, साथ ही शिवलिंग भी रावण की प्रतिमा के आगे स्थापित करते हैं. रावण के नाम से जयघोष भी करते हैं.

पढ़ें : मध्य प्रदेश: मुफ्त में चाहिए माननीयों को फ्लैट! एजेंसी को बनाया कर्जदार

यहां मुस्लिम भी करते हैं रावण की पूजा

बाबा महाकाल की नगरी उज्जैन से करीब 20 किमी दूर चिकली गांव में रावण का मंदिर है, जहां उनकी पूजा भी की जाती है, खास बात ये है कि गांव में रहने वाले मुस्लिम भी रावण की पूजा में शिरकत करते हैं. अब ग्रामीण 5 लाख रुपए जुटाकर रावण मंदिर का जीर्णोद्वार करवाने जा रहे हैं. चैत्र की नवमी-दशमी पर यहां मेला भी लगता है. वीरेंद्र बताते हैं कि अपने पूर्वजों को रावण की पूजा करते देखा था, अब उसी परंपरा को आगे बढ़ा रहे हैं. ग्रामीण बताते हैं कि दूसरे गांव के लोग भी अपनी मुराद लेकर रावण के दरबार में हाजिरी लगाते हैं.

रावनवाड़ा गांव में रावण ने की थी घोर तपस्या

रावण मंदिर में रोजाना होती है पूजा-आरती

विदिशा में एक ऐसा गांव है, जंहा लोग रावण को ही अपना आराध्य मानते हुए पूजा करते हैं, वहां अभिवादन में भी जय लंकेश ही कहा जाता है, लोग अपने शरीर पर जय लंकेश गुदवाते हैं, यही वजह है कि यहां प्रथम पूज्य भगवान गणेश नहीं बल्कि प्रथम पूज्यनीय रावण हैं. भले ही देश भर में दशहरे पर रावण दहन किया जाता है, यहां रावण बाबा के मंदिर में रावण की पूजा होती है और भंडारा होता है. विदिशा से 42 किमी दूर रावण गांव हैं, जहां के लोग खुद को रावण का वंशज मानते हैं. जहां मंदिर में रोजाना पूजा-पाठ और आरती होती है.

रावण को पूर्वज मानकर यहां के लोग करते हैं पूजा

रावण के सामने घूंघट करती हैं महिलाएं

मंदसौर में भी रावण की पूजा की जाती है, यहां रावण को जमाई का दर्जा मिला है क्योंकि यहीं पर मंदोदरी का मायका माना जाता है, यहां दशहरे पर रावण वध न कर पूजा जाता है. नामदेव समाज रावण को दामाद मानता है और विजयादशमी पर खानपुरा में सीमेंट से बनी रावण की 41 फीट की प्रतिमा की पूजा करता है. ऐसा माना जाता है कि रावण की पत्नी मंदोदरी नामदेव समाज की बेटी थी, जो मंदसौर की रहने वाली थीं, विजयदशमी पर नामदेव समाज रावण की प्रतिमा के सामने ढोल-नगाड़े के साथ पहुंचता है और रावण के दाहिने पैर में लच्छा बांधकर पूजा करते हैं. मालवा में दामाद को विशेष महत्व दिया जाता है, मान्यता है कि समाज की हर महिला रावण के सामने घूंघट करके ही गुजरती है.

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