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क्या है एमपी के इन 6 रीजन के सियासी समीकरण, मालवा निमाड़ को क्यों कहा जाता है प्रदेश की सत्ता का द्वार? सुनें पॉडकास्ट में पूरा राजनीतिक गणित

MP Assembly Election Podcast: एमपी में सियासी गणित के लिए प्रदेश के उन 6 इलाकों पर नजर डालना जरूरी है, यहां से सत्ता का द्वार खुलता है. एमपी में चुनावी दौर के बीच, 17 नवंबर को चुनावी मतदान एक चरण में किया जाना है. प्रदेश के 6 रीजन निमाड़- मालवा, मध्यभारत, बुंदेलखंड , विंध्य , महाकौशल और ग्वालियर- चंबल की सभी सीटों पर मतदान होगा. सुनें, ईटीवी भारत का पॉडकास्ट...

MP Six Region Political Equation
मध्यप्रदेश के चुनाव में सियासी खेल
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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Nov 17, 2023, 6:07 AM IST

Updated : Nov 17, 2023, 6:20 AM IST

मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव पॉडकास्ट

सिंहासन खाली करो, कि जनता आती है... राष्ट्रीय कवि रामधारी सिंह दिनकर की ये लाइनें आज एमपी सियासत पर सही बैठ रही हैं. ऊंट किस तरफ बैठेगा ये तो 17 नवंबर को प्रदेश भर में होने वाले एक चरण के मतदान के बाद 3 दिसंबर को पता चलेगा. लेकिन आज बात एमपी की सियासत के 6 ध्रुव की. जिन्हें एमपी रीजन के नाम से जाना जाता है. अगर प्रदेश की राजनीति में बन रहे सियासी समीकरणों को समझना है. तो इन इलाकों के राजनीतिक खेल को समझना जरूरी है.

आइए समझते हैं. प्रदेश के 6 रीजन, निमाड़- मालवा, मध्यभारत, बुंदेलखंड , विंध्य , महाकौशल और ग्वालियर- चंबल के इलाको के इस चुनाव में बनते बिगड़ते सियासी समीकरण.

मालवा निमाड़ में सियासी समीकरण: सबसे पहले मालवा-निमाड़ क्षेत्र का सियासी समीकरण की बात कर लेते हैं. इन इलाकों में 66 सीटें आती है. ये प्रदेश की कुल सीटों का 28.7 प्रतिशत है. इनमें इंदौर 9, उज्जैन की 7, रतलाम की पांच, मंदसौर की चार, नीमच की 3, धार की 7, झाबुआ की तीन, अलीराजपुर की दो, बड़वानी की चार, खरगोन की 6, बुरहानपुर की दो, खंडवा की चार, देवास की पांच, शाजापुर की तीन और आगर मालवा की दो सीटें शामिल हैं.

यूं तो मालवा निमाड़ को एमपी के सत्ता का द्वार कहा जाता है. इसकी वजह भी है, क्योंकि प्रदेश की आर्थिक राजधानी का केंद्र बिंदु मालवा और निमाड़ ही है. यहां से प्रदेश की राजनीति ने 6 मुख्यमंत्री दिए. यहां की चर्चित सीटों में इंदौर की 1 सीट है. जहां से बीजेपी के कद्दावर नेता कैलाश विजयवर्गीय चुनावी मैदान में हैं. इनके अलावा, पूर्व केंद्रीय मंत्री कांतिलाल भूरिया के बेटे विक्रांत भूरिया झाबुआ से कांग्रेस के बैनर तले चुनावी मैदान में हैं. अगर 2018 के चुनाव की बात करें, तो कांग्रेस ने यहां से 35 सीटें जीती थीं. तो इधर 28 सीटों पर भाजपा ने अपना परचम फहराया था. इसके अलावा बची तीन सीटों पर अन्य उम्मीदवार चुनाव जीते थे.

मध्यभारत में सियासी समीकरण: अब बात कर लेते हैं. मध्यभारत के इलाकों की. यहां प्रदेश की कुल 36 सीटें आती है. इनमें भोपाल, नर्मदापुरम संभाग आता है. दोनों संभाग में आठ जिले आते हैं. जिनमें भोपाल, सीहोर, राजगढ़, रायसेन, विदिशा, नर्मदापुरम, हरदा और बैतूल जिले शामिल हैं. यहां की सीहोर की बुधनी विधानसभा से शिवराज सिंह चौहान विधायक हैं. इस इलाके की 36 सीटों में से बीजेपी के पास 24 सीट हैं, और 12 सीट कांग्रेस के पास है. जिलेवार आंकड़ो पर नजर डाले तो भोपाल में 7 सीटें हैं. सीहोर में 4 सीटें हैं. राजगढ़ में 5 सीटें हैं. रायसेन में 5 सीटें हैं. विदिशा की 5 सीटें हैं. नर्मदापुरम में 4 सीटें हैं. हरदा की 2 सीटें हैं और बैतूल की 5 सीट शामिल है.

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महाकौशल में सियासी समीकरण: अब बात कर लेते हैं महाकौशल के इलाको कीं. इनमें 38 सीटें शामिल हैं. साल 2018 में यहां से बीजेपी को काफी नुकसान झेलना पड़ा था. इनमें आठ सीटें जबलपुर संभाग की है. जहां आदिवासियों की नारजगी देखने को मिल सकती है. इसके अलावा इन जगहों पर कांग्रेस के खाते में सबसे ज्यादा सीटें गईं थी. साल 2018 के चुनाव में यहां की 38 सीटों में से 24 कांग्रेस और 13 सीट बीजेपी के खाते में आई थी और एक सीट निर्दलीय उम्मीदवार के खाते में गई थी. इसके अलावा इन सीटों पर बसपा, गोंगपा, आप और जयस से राजनीतिक संगठन काफी एक्टिव हैं.

इनके अलावा अगर जिलेवार सीटों की बात की जाए तो, यहां जबलपुर की 8 सीट हैं, छिंदवाड़ा की 7 सीटे हैं. यहां से छिंदवाड़ा की मुख्य सीट से कमलनाथ चुनावी मैदान में हैं. वहीं, डिंडौरी की दो, बालाघाट में 6, कटनी मे 4, नरसिंहपुर में 4 सीवनी में 4 और मंडला में 3 सीटें हैं.

विंध्य में सियासी समीकरण: अब बात कर लेते हैं. विंध्य के इलाकों की, ये इलाका इसलिए भी सियासी मायने रखता है. क्योंकि इस इलाके को अलग प्रदेश बनाने की मांग उठ चुकी है. यहां की मैहर सीट से बीजेपी विधायक नारायण त्रिपाठी ने पार्टी से अलग होकर अपनी पार्टी बना ली है. बघेलखंड के नाम से चर्चित विंध्य के इलाको में प्रदेश की करीबन 30 सीट आती हैं. यहां कांग्रेस के पास 6 सीटें हैं और 24 सीटें बीजेपी के खाते में है. जिलेवार सीटों पर नजर डाली जाए तो रीवा में 8, सतना में 7, सीधी में 4, सिंगरौली में 3, शहडोल में 3, अनूपपुर में 3 और उमरिया में 2 सीटें हैं.

बुंदेलखंड में सियासी समीकरण: अब आखिर में सबसे महत्वपूर्ण इलाकों की बात की जाएगी. ये इलाका है बुंदेलखंड का, यहां से 26 सीटें प्रदेश की सियासी समीकरण बदलने और बिगाड़ने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है. यहां इलाका प्रदेश में पिछड़ा हुआ बताया जाता है. यहां पानी, पलायन और रोजगार बड़ी समस्या है. यूपी से लगा होने की वजह से यहां बसपा और सपा की प्रभाव दिखता है. हालांकि, केंद्र सरकार की तरफ से बुंदेलखंड पैकेज, बुंदेलखंड एक्सप्रेस वे और केन बेतवा लिंक परियोजना की सौगात देकर मोदी सरकार बड़ा दांव खेला है. इनमें 6 जिले आते हैं. जिनमें सागर, दमोह, टीकमगढ़, छतरपुर, पन्ना और निवाड़ी शामिल है. इनके अलावा 26 में 17 सीटें बीजेपी के पास हैं और 7 सीटें कांग्रेस के पास है, जब दो अन्य दल के विधायक हैं.

मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव पॉडकास्ट

सिंहासन खाली करो, कि जनता आती है... राष्ट्रीय कवि रामधारी सिंह दिनकर की ये लाइनें आज एमपी सियासत पर सही बैठ रही हैं. ऊंट किस तरफ बैठेगा ये तो 17 नवंबर को प्रदेश भर में होने वाले एक चरण के मतदान के बाद 3 दिसंबर को पता चलेगा. लेकिन आज बात एमपी की सियासत के 6 ध्रुव की. जिन्हें एमपी रीजन के नाम से जाना जाता है. अगर प्रदेश की राजनीति में बन रहे सियासी समीकरणों को समझना है. तो इन इलाकों के राजनीतिक खेल को समझना जरूरी है.

आइए समझते हैं. प्रदेश के 6 रीजन, निमाड़- मालवा, मध्यभारत, बुंदेलखंड , विंध्य , महाकौशल और ग्वालियर- चंबल के इलाको के इस चुनाव में बनते बिगड़ते सियासी समीकरण.

मालवा निमाड़ में सियासी समीकरण: सबसे पहले मालवा-निमाड़ क्षेत्र का सियासी समीकरण की बात कर लेते हैं. इन इलाकों में 66 सीटें आती है. ये प्रदेश की कुल सीटों का 28.7 प्रतिशत है. इनमें इंदौर 9, उज्जैन की 7, रतलाम की पांच, मंदसौर की चार, नीमच की 3, धार की 7, झाबुआ की तीन, अलीराजपुर की दो, बड़वानी की चार, खरगोन की 6, बुरहानपुर की दो, खंडवा की चार, देवास की पांच, शाजापुर की तीन और आगर मालवा की दो सीटें शामिल हैं.

यूं तो मालवा निमाड़ को एमपी के सत्ता का द्वार कहा जाता है. इसकी वजह भी है, क्योंकि प्रदेश की आर्थिक राजधानी का केंद्र बिंदु मालवा और निमाड़ ही है. यहां से प्रदेश की राजनीति ने 6 मुख्यमंत्री दिए. यहां की चर्चित सीटों में इंदौर की 1 सीट है. जहां से बीजेपी के कद्दावर नेता कैलाश विजयवर्गीय चुनावी मैदान में हैं. इनके अलावा, पूर्व केंद्रीय मंत्री कांतिलाल भूरिया के बेटे विक्रांत भूरिया झाबुआ से कांग्रेस के बैनर तले चुनावी मैदान में हैं. अगर 2018 के चुनाव की बात करें, तो कांग्रेस ने यहां से 35 सीटें जीती थीं. तो इधर 28 सीटों पर भाजपा ने अपना परचम फहराया था. इसके अलावा बची तीन सीटों पर अन्य उम्मीदवार चुनाव जीते थे.

मध्यभारत में सियासी समीकरण: अब बात कर लेते हैं. मध्यभारत के इलाकों की. यहां प्रदेश की कुल 36 सीटें आती है. इनमें भोपाल, नर्मदापुरम संभाग आता है. दोनों संभाग में आठ जिले आते हैं. जिनमें भोपाल, सीहोर, राजगढ़, रायसेन, विदिशा, नर्मदापुरम, हरदा और बैतूल जिले शामिल हैं. यहां की सीहोर की बुधनी विधानसभा से शिवराज सिंह चौहान विधायक हैं. इस इलाके की 36 सीटों में से बीजेपी के पास 24 सीट हैं, और 12 सीट कांग्रेस के पास है. जिलेवार आंकड़ो पर नजर डाले तो भोपाल में 7 सीटें हैं. सीहोर में 4 सीटें हैं. राजगढ़ में 5 सीटें हैं. रायसेन में 5 सीटें हैं. विदिशा की 5 सीटें हैं. नर्मदापुरम में 4 सीटें हैं. हरदा की 2 सीटें हैं और बैतूल की 5 सीट शामिल है.

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महाकौशल में सियासी समीकरण: अब बात कर लेते हैं महाकौशल के इलाको कीं. इनमें 38 सीटें शामिल हैं. साल 2018 में यहां से बीजेपी को काफी नुकसान झेलना पड़ा था. इनमें आठ सीटें जबलपुर संभाग की है. जहां आदिवासियों की नारजगी देखने को मिल सकती है. इसके अलावा इन जगहों पर कांग्रेस के खाते में सबसे ज्यादा सीटें गईं थी. साल 2018 के चुनाव में यहां की 38 सीटों में से 24 कांग्रेस और 13 सीट बीजेपी के खाते में आई थी और एक सीट निर्दलीय उम्मीदवार के खाते में गई थी. इसके अलावा इन सीटों पर बसपा, गोंगपा, आप और जयस से राजनीतिक संगठन काफी एक्टिव हैं.

इनके अलावा अगर जिलेवार सीटों की बात की जाए तो, यहां जबलपुर की 8 सीट हैं, छिंदवाड़ा की 7 सीटे हैं. यहां से छिंदवाड़ा की मुख्य सीट से कमलनाथ चुनावी मैदान में हैं. वहीं, डिंडौरी की दो, बालाघाट में 6, कटनी मे 4, नरसिंहपुर में 4 सीवनी में 4 और मंडला में 3 सीटें हैं.

विंध्य में सियासी समीकरण: अब बात कर लेते हैं. विंध्य के इलाकों की, ये इलाका इसलिए भी सियासी मायने रखता है. क्योंकि इस इलाके को अलग प्रदेश बनाने की मांग उठ चुकी है. यहां की मैहर सीट से बीजेपी विधायक नारायण त्रिपाठी ने पार्टी से अलग होकर अपनी पार्टी बना ली है. बघेलखंड के नाम से चर्चित विंध्य के इलाको में प्रदेश की करीबन 30 सीट आती हैं. यहां कांग्रेस के पास 6 सीटें हैं और 24 सीटें बीजेपी के खाते में है. जिलेवार सीटों पर नजर डाली जाए तो रीवा में 8, सतना में 7, सीधी में 4, सिंगरौली में 3, शहडोल में 3, अनूपपुर में 3 और उमरिया में 2 सीटें हैं.

बुंदेलखंड में सियासी समीकरण: अब आखिर में सबसे महत्वपूर्ण इलाकों की बात की जाएगी. ये इलाका है बुंदेलखंड का, यहां से 26 सीटें प्रदेश की सियासी समीकरण बदलने और बिगाड़ने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है. यहां इलाका प्रदेश में पिछड़ा हुआ बताया जाता है. यहां पानी, पलायन और रोजगार बड़ी समस्या है. यूपी से लगा होने की वजह से यहां बसपा और सपा की प्रभाव दिखता है. हालांकि, केंद्र सरकार की तरफ से बुंदेलखंड पैकेज, बुंदेलखंड एक्सप्रेस वे और केन बेतवा लिंक परियोजना की सौगात देकर मोदी सरकार बड़ा दांव खेला है. इनमें 6 जिले आते हैं. जिनमें सागर, दमोह, टीकमगढ़, छतरपुर, पन्ना और निवाड़ी शामिल है. इनके अलावा 26 में 17 सीटें बीजेपी के पास हैं और 7 सीटें कांग्रेस के पास है, जब दो अन्य दल के विधायक हैं.

Last Updated : Nov 17, 2023, 6:20 AM IST
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