साहिबगंज: झारखंड के साहिबगंज जिले के डिहारी गांव के लोग पानी में आर्सेनिक और फ्लोराइड होने की वजह से कैंसर जैसी जानलेवा बीमारियों के शिकार बन रहे हैं. कई सालों से पीने की पानी की समस्या जूझ रहे ग्रामीण अब शादी-विवाह को लेकर भी परेशान हैं. गंभीर बीमारियों के खतरे की वजह से कोई लड़की इस गांव में दुल्हन बनकर नहीं आना चाहती. गंभीर बीमारियों की वजह से जब लोगों की मौत होने लगी तो ग्रामीणों ने शासन-प्रशासन से गुहार लगाई. इसके बाद जांच-पड़ताल तो हुई लेकिन समस्या जस की तस रह गई. कोई ठोस उपाय नहीं निकला तो लोग गांव छोड़कर पलायन करने लगे.
गांव नहीं आती दुल्हन
अब लोग डिहारी गांव में अपनी बेटी की शादी करने से डरने लगे हैं. बीमारियों के खतरे की वजह से आस पास के गांव और दूसरे जिले के लोग डिहारी के लड़के से शादी करने में कतराने लगे हैं. गांव के एक युवक ने बताया कि जो भी मेहमान आते हैं वो आर्सेनिक से होने वाली बीमारी के डर से बहाना बना देते हैं. ग्रामीण नंदजी ओझा ने कहा कि जब तक इस डिहारी में आर्सेनिक युक्त पानी का निदान नहीं हो जाता तब तक शादी-विवाह की समस्या बनी रहेगी. शादी नही होने से परेशान लोग भागलपुर और पाकुड़ बसने लगे हैं.
डॉक्टरों की राय
डॉक्टर मोहन पासवान ने कहा कि डिहारी में जमीन के अंदर आर्सेनिक और फ्लोराइड की मात्रा अधिक है. इससे स्किन कैंसर जैसी घातक बीमारी हो सकती है. वहीं फ्लोराइड जैसी बीमारी खासकर बच्चों और बूढ़ों में अधिक देखने को मिलती है. दांतों का पीला हो जाना, हड्डियां कमजोर हो जाना जैसी कई समस्याएं शुरू हो जाती है.
क्या कहते हैं अधिकारी
गांव के लोगों का कहना है कि यहां के लोगों के पास इतना पैसा नहीं है कि वो पानी खरीद कर पी सकें. रक्सी स्थान से पीने के पानी की व्यवस्था हो रही थी लेकिन आधी दूरी तय करने के बाद काम ठप हो गया. गांव में तीन फिल्टर युक्त टंकी भी बनाई जा रही है लेकिन फिलहाल उसके शुरू होने में वक्त लगेगा. पेयजल एवं स्वछता विभाग के कार्यपालक अभियंता विजय एडमिन ने ईटीवी भारत को बताया कि फिल्टर युक्त टंकी से पानी की सप्लाई चुनाव के बाद शुरू हो जाएगी.
संसद तक समस्या की गूंज
साल 2017 में वित्त मंत्री अरुण जेटली ने आम बजट पेश करते हुए कहा था कि साल 2018 तक देश के 28 हजार गांवों को आर्सेनिक और फ्लोराइड मुक्त कर दिया जायेगा. लेकिन अब तक हालात नहीं सुधरे हैं. झारखंड के पलामू प्रमंडल और संताल परगना के सैकड़ों गांवों का भूजल आर्सेनिक और फ्लोराइड से प्रदूषित है. ऐसे में ग्रामीण पलायन को बेबस हैं और जो लोग गांव नहीं छोड़ सकते, उन्हें बीमारियां अपना शिकार बना रही हैं.
क्या होता है आर्सेनिक
आर्सेनिक एक प्राकृतिक तत्व है. इसे देखकर, सूंघकर या चखकर पता नहीं कर सकते. शून्य दशमलव 05 मिली ग्राम प्रति लीटर से ज्यादा मात्रा में आर्सेनिक शरीर के अंदर पहुंच जाए तो ये बेहद खरतनाक होता है. बड़ी नदियों के बहाव क्षेत्र की मिट्टी में आर्सेनिक पाया जाता है जो हैंडपंप जैसे जलस्त्रोतों के जरिए हमें नुकसान पहुंचा सकता है. झारखंड सहित बिहार, यूपी, छत्तीसगढ़, पश्चिम बंगाल, असम और मणिपुर में भी आर्सेनिक युक्त भूजल परेशानी का बड़ा कारण है. लंबे अरसे तक आर्सेनिक युक्त पानी पीने से गुर्दे, अमाशय और स्किन कैंसर हो सकता है. शुरुआती समय में आर्सेनिक की पहचान हो जाने पर ऐसे पानी का उपयोग नहीं करना चाहिए नहीं तो बीमारी की चपेट में आ जाने के बाद इसका इलाज असंभव हो जाता है.