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झारखंड के गवर्नमेंट इंस्टीट्यूट में भी कभी बनती थी वैक्सीन, अब करोड़ों रुपये खर्च करने के बाद भी परिणाम शून्य

झारखंड की राजधानी रांची स्थित गवर्नमेंट वैक्सीन इंस्टीट्यूट( Government Vaccine Institute) में एंटी रेबीज वैक्सीन(Anti rabies vaccine) बनता था. लेकिन वर्ष 1993 से वैक्सीन बनने का काम बंद है. इसके बावजूद सरकार वेतन मद में करोड़ों रुपये खर्च कर रही है.

Government Vaccine Institute
झारखंड के गवर्नमेंट वैक्सीन इंस्टीट्यूट में बनता था वैक्सीन
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Published : Nov 21, 2021, 1:17 PM IST

Updated : Nov 21, 2021, 5:16 PM IST

रांचीः कोरोना काल में वैक्सीन शब्द लोगों की जुबान छा गया. प्रत्येक लोग कोवैक्सीन और कोविशिल्ड से परिचित हो गए, लेकिन बहुत कम लोग जानते होंगे कि झारखंड की राजधानी रांची के गवर्नमेंट वैक्सीन इंस्टीट्यूट( Government Vaccine Institute) में वैक्सीन बनता था. इस इंस्टीट्यूट में ऐसा वैक्सीन बनता था, जिसे हर अस्पताल में रखना अनिवार्य है. लेकिन, समय के साथ इंस्टीट्यूट को अपग्रेड नहीं किया गया. परिणाम यह हुआ कि वैक्सीन बनाने का काम बंद हो गया. अब स्थिति यह है कि इंस्टीट्यूट पर प्रत्येक वर्ष कोरोड़ों रुपये वेतन मद में खर्च करने के बावजूद रिजल्ट शून्य है.

यह भी पढ़ेंःरांचीः रिम्स इमरजेंसी में नो बेड, स्ट्रेचर पर मरीजों का इलाज

रांची के नामकुम में जिस जगह पर राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन, आरसीएच और स्वास्थ्य मुख्यालय है. वहीं वर्ष 1993 से पहले 121 एकड़ के परिसर से तत्कालीन बिहार सरकार का गवर्नमेंट वैक्सीन इंस्टिट्यूट ( GVI) हुआ करता था. यह इंस्टीट्यूट पूर्वी भारत का एक मात्र वैक्सीन इंस्टिट्यूट था, जहां एंटी रेबीज वैक्सीन(Anti rabies vaccine) बना करता था और बिहार के साथ साथ पश्चित बंगाल, ओडिशा, सिक्किम, मेघालय, अरुणाचल प्रदेश आदि राज्यों के अलावा नेपाल में सप्लाई की जाती थी, ताकि कुत्ते और जंगली जानवरों के काटने पर होने वाली संक्रमण से लोगों को बचाया जा सके.

देखें स्पेशल रिपोर्ट

बंद है इंस्टीट्यूट में वैक्सीन बनना

गवर्नमेंट वैक्सीन इंस्टीट्यूट ने 1993 से एंटी रेबीज वैक्सीन बनाना बंद कर दिया है. इंस्टीट्यूट में 1986 से सेवा दे रहे तोबियस रूंदा कहते हैं कि 1993 तक इंस्टीट्यूट में वैक्सीन बन रही थी. 300 से ज्यादा भेड़ हुआ करते थे, जिनके ब्रेन में वायरस देकर परीक्षण किया जाता था और फिर वैक्सीन तैयार होता था. तैयार वैक्सीन की जांच चूहे पर की जाती थी. इसके बाद राज्यों को सप्लाई की जाती थी. उन्होंने कहा कि वर्ष 1993 में ही तत्कालीन बिहार सरकार ने इंस्टीट्यूट को आवंटन देना बंद कर दिया. इससे भेड़ की कमी होने लगी. उन्होंने कहा कि वैक्सीन तैयार करने में भेड़ एक महत्वपूर्ण एलिमेंट था. जब भेड़ की सप्लाई बंद हो गई तो वैक्सीन बनना भी बंद हो गई.

वेतन मद में करोड़ों रुपये खर्च

सरकार की फाइलों में गवर्नमेंट वैक्सीन इंस्टीट्यूट चल रहा है, जो 1993 के बाद से अब तक एक डोज वैक्सीन नहीं बना सका है. इस वैक्सीन इंस्टीट्यूट में करीब 35 स्टाफ हैं, जिसपर सलाना करीब 3 करोड़ रुपये वेतन मद में खर्च हो रहा है. इंस्टीट्यूट के अधिकारी बताते हैं कि इंस्टीट्यूट में 105 स्टाफ के पद सृजित है. इंस्टीट्यूट में वैक्सीन बनने का काम बंद हुआ, तो नए स्टाफ की नियुक्ति नहीं हुई. हालांकि, अब भी 35-36 स्टाफ कार्यरत हैं.

रांची
इंस्टीट्यूट से संबंधित जानकारी

योजना बनाकर काम करने की जरूरत

वरीय चिकित्सक और सदर अस्पताल के पूर्व उपाधीक्षक डॉ. एके झा करते हैं कि गवर्नमेंट वैक्सीन इंस्टीट्यूट के बंद होने की तत्कालीन कारण चाहे जो भी रहा है, लेकिन नये तकनीक की मदद लेकर इंस्टीट्यूट संचालित किया जा सकता है. इसको लेकर सरकार को नीति और योजना बनाकर काम करना होगा.

रांचीः कोरोना काल में वैक्सीन शब्द लोगों की जुबान छा गया. प्रत्येक लोग कोवैक्सीन और कोविशिल्ड से परिचित हो गए, लेकिन बहुत कम लोग जानते होंगे कि झारखंड की राजधानी रांची के गवर्नमेंट वैक्सीन इंस्टीट्यूट( Government Vaccine Institute) में वैक्सीन बनता था. इस इंस्टीट्यूट में ऐसा वैक्सीन बनता था, जिसे हर अस्पताल में रखना अनिवार्य है. लेकिन, समय के साथ इंस्टीट्यूट को अपग्रेड नहीं किया गया. परिणाम यह हुआ कि वैक्सीन बनाने का काम बंद हो गया. अब स्थिति यह है कि इंस्टीट्यूट पर प्रत्येक वर्ष कोरोड़ों रुपये वेतन मद में खर्च करने के बावजूद रिजल्ट शून्य है.

यह भी पढ़ेंःरांचीः रिम्स इमरजेंसी में नो बेड, स्ट्रेचर पर मरीजों का इलाज

रांची के नामकुम में जिस जगह पर राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन, आरसीएच और स्वास्थ्य मुख्यालय है. वहीं वर्ष 1993 से पहले 121 एकड़ के परिसर से तत्कालीन बिहार सरकार का गवर्नमेंट वैक्सीन इंस्टिट्यूट ( GVI) हुआ करता था. यह इंस्टीट्यूट पूर्वी भारत का एक मात्र वैक्सीन इंस्टिट्यूट था, जहां एंटी रेबीज वैक्सीन(Anti rabies vaccine) बना करता था और बिहार के साथ साथ पश्चित बंगाल, ओडिशा, सिक्किम, मेघालय, अरुणाचल प्रदेश आदि राज्यों के अलावा नेपाल में सप्लाई की जाती थी, ताकि कुत्ते और जंगली जानवरों के काटने पर होने वाली संक्रमण से लोगों को बचाया जा सके.

देखें स्पेशल रिपोर्ट

बंद है इंस्टीट्यूट में वैक्सीन बनना

गवर्नमेंट वैक्सीन इंस्टीट्यूट ने 1993 से एंटी रेबीज वैक्सीन बनाना बंद कर दिया है. इंस्टीट्यूट में 1986 से सेवा दे रहे तोबियस रूंदा कहते हैं कि 1993 तक इंस्टीट्यूट में वैक्सीन बन रही थी. 300 से ज्यादा भेड़ हुआ करते थे, जिनके ब्रेन में वायरस देकर परीक्षण किया जाता था और फिर वैक्सीन तैयार होता था. तैयार वैक्सीन की जांच चूहे पर की जाती थी. इसके बाद राज्यों को सप्लाई की जाती थी. उन्होंने कहा कि वर्ष 1993 में ही तत्कालीन बिहार सरकार ने इंस्टीट्यूट को आवंटन देना बंद कर दिया. इससे भेड़ की कमी होने लगी. उन्होंने कहा कि वैक्सीन तैयार करने में भेड़ एक महत्वपूर्ण एलिमेंट था. जब भेड़ की सप्लाई बंद हो गई तो वैक्सीन बनना भी बंद हो गई.

वेतन मद में करोड़ों रुपये खर्च

सरकार की फाइलों में गवर्नमेंट वैक्सीन इंस्टीट्यूट चल रहा है, जो 1993 के बाद से अब तक एक डोज वैक्सीन नहीं बना सका है. इस वैक्सीन इंस्टीट्यूट में करीब 35 स्टाफ हैं, जिसपर सलाना करीब 3 करोड़ रुपये वेतन मद में खर्च हो रहा है. इंस्टीट्यूट के अधिकारी बताते हैं कि इंस्टीट्यूट में 105 स्टाफ के पद सृजित है. इंस्टीट्यूट में वैक्सीन बनने का काम बंद हुआ, तो नए स्टाफ की नियुक्ति नहीं हुई. हालांकि, अब भी 35-36 स्टाफ कार्यरत हैं.

रांची
इंस्टीट्यूट से संबंधित जानकारी

योजना बनाकर काम करने की जरूरत

वरीय चिकित्सक और सदर अस्पताल के पूर्व उपाधीक्षक डॉ. एके झा करते हैं कि गवर्नमेंट वैक्सीन इंस्टीट्यूट के बंद होने की तत्कालीन कारण चाहे जो भी रहा है, लेकिन नये तकनीक की मदद लेकर इंस्टीट्यूट संचालित किया जा सकता है. इसको लेकर सरकार को नीति और योजना बनाकर काम करना होगा.

Last Updated : Nov 21, 2021, 5:16 PM IST
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