रांची: झारखंड कर्मचारी चयन आयोग (Jharkhand Staff Selection Commission JSSC) की ओर से होने वाली नियुक्ति के लिए संशोधित नियामवली के खिलाफ दायर याचिका पर हाईकोर्ट की डबल बेंच में सुनवाई हुई. अदालत ने मामले में सख्त रुख अख्तियार करते हुए सरकार की अधिवक्ता को एक बार फिर से समय देते हुए जवाब पेश करने का निर्देश दिया है. सरकार के अधिवक्ता के बीमार होने के कारण अदालत ने उन्हें फिर से 2 सप्ताह का समय दिया है. अगली सुनवाई 11 मई को होगी.
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अदालत ने इन विषयों पर मांगा है जवाब: झारखंड हाईकोर्ट के मुख्य नयायाधीश डॉ. रवि रंजन और न्ययाधीश सुजीत नारायण प्रसाद की अदालत में इस मामले पर सुनवाई हुई. सरकार का पक्ष रख रहे सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता बीमार होने के कारण सुनवाई के दौरान पक्ष रखने में असमर्थ थे, इसलिए समय की मांग की गई और अदालत ने उन्हें समय दिया. इससे पहले अदालत ने सरकार से यह जानना चाहा था कि राज्य में कर्मचारी चयन आयोग की ओर से होने वाली नियुक्ति नियमावली जो संशोधित की गई है, उसमें अंग्रेजी और हिंदी को हटाकर उर्दू रखा गया. इसके लिए सरकार ने क्या कुछ डाटाबेस तैयार किया गया है. इसके लिए क्या कुछ कमेटी का गठन किया गया. क्या तैयारी की गई, कब कब बैठक हुई. अब फिर से अदालत ने इससे संबंधित सभी रिकॉर्ड सहित अदालत में बिंदुवार अद्यतन जानकारी पेश करने को कहा है. अदालत ने उन्हें समय देते हुए सुनवाई तत्काल स्थगित कर दी है. सरकार का जवब आने के बाद मामले पर आगे सुनवाई की जाएगी.
क्या है मामला: दरअसल, प्रार्थी रमेश हांसदा की ओर से दायर याचिका में संशोधित नियमावली को चुनौती दी गयी है. याचिका में कहा गया है कि नयी नियमावली में राज्य के संस्थानों से ही दसवीं और प्लस टू की परीक्षा पास करना अनिवार्य किया गया है, जो संविधान की मूल भावना और समानता के अधिकार का उल्लंघन है. वैसे उम्मीदवार जो राज्य के निवासी हैं फिर भी उन्होंने राज्य के बाहर से पढ़ाई की है तो उन्हें नियुक्ति परीक्षा से नहीं रोका जा सकता है. नयी नियमावली में संशोधन कर क्षेत्रीय एवं जनजातीय भाषाओं की श्रेणी से हिंदी और अंग्रेजी को बाहर कर दिया गया है. जबकि उर्दू, बांग्ला और उड़िया को रखा गया है. उर्दू को जनजातीय भाषा की श्रेणी में रखा जाना राजनीतिक फायदे के लिए है. राज्य के सरकारी विद्यालयों में पढ़ाई का माध्यम भी हिंदी है. उर्दू की पढ़ाई एक खास वर्ग के लोग करते हैं. ऐसे में किसी खास वर्ग को सरकारी नौकरी में अधिक अवसर देना और हिंदी भाषी बहुल अभ्यर्थियों के अवसर में कटौती करना संविधान की भावना के अनुरूप नहीं है. इसलिए नई नियमावली में निहित दोनों प्रावधानों को निरस्त किये जाने की मांग है.