रांची: पूरे देश में दुर्गोत्सव की धूम देखी है. पारंपरिक रीति-रिवाजों के अलावा अन्य देशों के रीति रिवाजों से भी रांची में मां दुर्गा की आराधना की जा रही है. रांची में एक ऐसा परिवार है जो पिछले 175 सालों से बांग्लादेशी परंपरा के तहत मां दुर्गे की आराधना करता आ रहा है.
बांग्लादेश से जब यह परिवार भारत आया था, तभी अपने साथ वहां की मिट्टी लाकर मां दुर्गा की प्रतिमा रांची में स्थापित कर दुर्गा पूजा की शुरुआत की थी. महानवमी के मौके पर यहां विशेष अनुष्ठान का भी आयोजन किया जाता है.
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यहां भगवान कार्तिक और गणेश का स्थान है उल्टा
देश भर के सभी दुर्गा प्रतिमाओं के साथ गणेश जी और कार्तिक भगवान भी विराजमान रहते हैं, लेकिन सभी जगहों के मंदिरों में मां दुर्गे की दाईं तरफ गणेश जी बैठे रहते हैं और बाएं तरफ कार्तिक जी विराजते हैं, लेकिन यहां पर भगवान कार्तिक दाएं तरफ तो गणेश भगवान बाएं तरफ विराजमान होते हैं. जो एक प्रमुख विशेषता है.
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क्या कहते हैं मजूमदार परिवार
मजूमदार परिवार बताते हैं कि यहां पूजा के लिए चंदा नहीं लिया जाता है. घर के सदस्यों के कंट्रीब्यूशन से ही बांग्लादेशी परंपरा के तहत यहां पूजा संपन्न कराई जाती है. सुबीर मजूमदार के दादाजी ने बांग्लादेश से मिट्टी लाकर यहां मां दुर्गे की प्रतिमा की स्थापना की थी. तब से यहां पूजा होता आया है. पहले यहां बकरे की बलि दी जाती थी, लेकिन अब यह परंपरा भी बदल दी गयी है, अब यहां कद्दू, भतुवा, खीरा, केतारी की बलि दी जाती है.