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आस्था के अलग-अलग रंगः झारखंड में यहां होती है बांग्लादेशी परंपरा से मां दुर्गा की पूजा - रांची में बांग्लादेशी परंपरा की दुर्गा पूजा

देश में कई जगहों पर दुर्गा पूजा धूमधाम से मनाई जा रही है. राजधानी रांची में जगह-जगह मां दुर्गा की प्रतिमा बड़े-बड़े पंडालों में स्थापित कर पूजा की जा रही है. रांची में एक बांग्लादेशी परिवार है जो सालों से बांग्लादेशी रीति रिवाज से पूजा करता आ रहा है. उनकी अपनी अलग मान्यताएं हैं.

बांग्लादेशी परंपरा से होती है यहां मां दुर्गा की आराधना
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Published : Oct 7, 2019, 2:39 PM IST

रांची: पूरे देश में दुर्गोत्सव की धूम देखी है. पारंपरिक रीति-रिवाजों के अलावा अन्य देशों के रीति रिवाजों से भी रांची में मां दुर्गा की आराधना की जा रही है. रांची में एक ऐसा परिवार है जो पिछले 175 सालों से बांग्लादेशी परंपरा के तहत मां दुर्गे की आराधना करता आ रहा है.

देखें पूरी खबर

बांग्लादेश से जब यह परिवार भारत आया था, तभी अपने साथ वहां की मिट्टी लाकर मां दुर्गा की प्रतिमा रांची में स्थापित कर दुर्गा पूजा की शुरुआत की थी. महानवमी के मौके पर यहां विशेष अनुष्ठान का भी आयोजन किया जाता है.

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यहां भगवान कार्तिक और गणेश का स्थान है उल्टा
देश भर के सभी दुर्गा प्रतिमाओं के साथ गणेश जी और कार्तिक भगवान भी विराजमान रहते हैं, लेकिन सभी जगहों के मंदिरों में मां दुर्गे की दाईं तरफ गणेश जी बैठे रहते हैं और बाएं तरफ कार्तिक जी विराजते हैं, लेकिन यहां पर भगवान कार्तिक दाएं तरफ तो गणेश भगवान बाएं तरफ विराजमान होते हैं. जो एक प्रमुख विशेषता है.

इसे भी पढ़ें:- आनाकानी के बाद प्रशासन ने दी कोकर पूजा पंडाल को अनुमति, कहा- किसी भी हादसे के लिए समिति होगी जिम्मेदार

क्या कहते हैं मजूमदार परिवार
मजूमदार परिवार बताते हैं कि यहां पूजा के लिए चंदा नहीं लिया जाता है. घर के सदस्यों के कंट्रीब्यूशन से ही बांग्लादेशी परंपरा के तहत यहां पूजा संपन्न कराई जाती है. सुबीर मजूमदार के दादाजी ने बांग्लादेश से मिट्टी लाकर यहां मां दुर्गे की प्रतिमा की स्थापना की थी. तब से यहां पूजा होता आया है. पहले यहां बकरे की बलि दी जाती थी, लेकिन अब यह परंपरा भी बदल दी गयी है, अब यहां कद्दू, भतुवा, खीरा, केतारी की बलि दी जाती है.

रांची: पूरे देश में दुर्गोत्सव की धूम देखी है. पारंपरिक रीति-रिवाजों के अलावा अन्य देशों के रीति रिवाजों से भी रांची में मां दुर्गा की आराधना की जा रही है. रांची में एक ऐसा परिवार है जो पिछले 175 सालों से बांग्लादेशी परंपरा के तहत मां दुर्गे की आराधना करता आ रहा है.

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बांग्लादेश से जब यह परिवार भारत आया था, तभी अपने साथ वहां की मिट्टी लाकर मां दुर्गा की प्रतिमा रांची में स्थापित कर दुर्गा पूजा की शुरुआत की थी. महानवमी के मौके पर यहां विशेष अनुष्ठान का भी आयोजन किया जाता है.

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यहां भगवान कार्तिक और गणेश का स्थान है उल्टा
देश भर के सभी दुर्गा प्रतिमाओं के साथ गणेश जी और कार्तिक भगवान भी विराजमान रहते हैं, लेकिन सभी जगहों के मंदिरों में मां दुर्गे की दाईं तरफ गणेश जी बैठे रहते हैं और बाएं तरफ कार्तिक जी विराजते हैं, लेकिन यहां पर भगवान कार्तिक दाएं तरफ तो गणेश भगवान बाएं तरफ विराजमान होते हैं. जो एक प्रमुख विशेषता है.

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क्या कहते हैं मजूमदार परिवार
मजूमदार परिवार बताते हैं कि यहां पूजा के लिए चंदा नहीं लिया जाता है. घर के सदस्यों के कंट्रीब्यूशन से ही बांग्लादेशी परंपरा के तहत यहां पूजा संपन्न कराई जाती है. सुबीर मजूमदार के दादाजी ने बांग्लादेश से मिट्टी लाकर यहां मां दुर्गे की प्रतिमा की स्थापना की थी. तब से यहां पूजा होता आया है. पहले यहां बकरे की बलि दी जाती थी, लेकिन अब यह परंपरा भी बदल दी गयी है, अब यहां कद्दू, भतुवा, खीरा, केतारी की बलि दी जाती है.

Intro:दुर्गोत्सव स्पेशल


रांची।


पूरे देश भर में दुर्गोत्सव की धूम देखी जा रही है .पारंपरिक रीति-रिवाजों के अलावे अन्य देशों के रीति रिवाज से भी रांची में मां अंबे की आराधना की जा रही है .दरअसल रांची में एक ऐसा परिवार है जो पिछले 175 वर्षों से बांग्लादेशी परंपरा के तहत मां दुर्गे की आराधना करते आ रहे है.यह परिवार जब बांग्लादेश से भारत आया था .उस दौरान इन्होंने वहां की मिट्टी लाकर रांची में स्थापित कर दुर्गा पूजा की शुरुआत की थी और महानवमी के मौके पर यहां विशेष अनुष्ठान का आयोजन होता है.


Body:वैसे तो राजधानी रांची में हर जगह मां दुर्गे की आराधना हो रही है. कहीं पारंपरिक रीति रिवाज से पूजा हो रही है तो कहीं बड़े-बड़े पंडालों का निर्माण कर मां की प्रतिमा स्थापित कर मां दुर्गे की आराधना की जा रही है. जबकि रांची में एक ऐसा भी परिवार है जो बांग्लादेश से आकर रांची में बसा है और 175 वर्षों से यहां बांग्लादेशी परंपरा से मां अंबे की आराधना में लीन है. प्रत्येक नवरात्रा के दौरान इस घर में मां दुर्गे की प्रतिमा स्थापित कर बांग्लादेशी विधि विधान के साथ पूजा-अर्चना की जाती है.

यहां भगवान कार्तिक और गणेश भगवान का स्थान है उल्टा :

देश भर के तमाम दुर्गा प्रतिमाओं के साथ गणेश जी और कार्तिक भगवान भी विराजमान रहते हैं .लेकिन तमाम पूजा पंडालों और मंदिरों में मां दुर्गे के दाएं तरफ गणेश जी बैठे रहते हैं और बाएं तरफ कार्तिक जी बैठते हैं लेकिन यहां पर भगवान कार्तिक दाएं तरफ तो गणेश भगवान बाएं तरफ विराजमान रहते हैं .यही विशेषता है यहां की पूजा की .मजूमदार परिवार कहते हैं इसमें किसी से भी चंदा नहीं लिया जाता है .घर के सदस्यों के कंट्रीब्यूशन से ही बांग्लादेशी परंपरा के तहत यहां पूजा संपन्न कराई जाती है .सुबीर मजूमदार के दादाजी ने बांग्लादेश से मां दुर्गे की मिट्टी लाकर यहां स्थापित किया था .तब से यहां पूजा होता आया है .पहले यहां बकरे की बलि दी जाती थी लेकिन अब यह परंपरा भी बदल दिया गया है .अब यहां कद्दू ,भतुवा,खीरा, कातारी की बलि दी जाती है।


Conclusion:बांग्लादेश के परंपरा के तहत यहां होने वाली पूजा को देखने के लिए बाहर से भी लोग आते हैं और मां देवी की आराधना करते हैं वाकई में यहां के पूजा पाठ के तौर तरीके भारत के तौर तरीकों से बिल्कुल ही अलग है.


बाइट- सुबीर मजूमदार.

बाइट- रूपक मजूमदार.



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