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बीजेपी के होंगे बाबूलाल मरांडी! दोनों के पास नहीं है ऑप्शन

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Published : Jan 13, 2020, 9:37 AM IST

Updated : Jan 13, 2020, 10:22 AM IST

बीजेपी में बाबूलाल मरांडी शामिल होंगे या फिर अपनी पार्टी का विलय करेंगे, इसकी कयास राजनीतिक गलियारों में तेज हो गई है. इस बात की चर्चा है कि बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व और बाबूलाल के बीच बातचीत लगभग फाइनल है, सिर्फ खरमास खत्म होने का इंतजार किया जा रहा है.

Babulal Marandi set to join BJP
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रांची: झारखंड विधानसभा चुनाव में जेवीएम को आशातीत सफलता नहीं मिलने के बाद अब राज्य में नए सियासी परिदृश्य की संभावना तेज हो गई है. बदलते सियासी समीकरण में जेवीएम का बीजेपी में विलय होना लगभग तय माना जा रहा है, क्योंकि जेवीएम सुप्रीमो बाबूलाल मरांडी के पास अब कोई विकल्प नजर नहीं आ रहा है.

उम्मीद के मुताबिक सफलता नहीं मिलने पर कयास तेज

राज्य के पहले सीएम और 5 बार सांसद रह चुके झारखंड विकास मोर्चा के सुप्रीमो बाबूलाल मरांडी के झारखंड चुनाव परिणाम के बाद उनकी राजनीतिक प्रभाव कम होते दिख रही है. जेवीएम गठन के बाद से ही सत्ता में जगह बनाने को लेकर पार्टी संघर्ष कर रही है, लेकिन अब तक झारखंड कैबिनेट में जगह नहीं बना पाई है. अब पार्टी सुप्रीमो बाबूलाल मरांडी अपनी सियासी चमक बरकरार रखने के लिए बीजेपी का दामन थाम सकते हैं, झारखंड के सियासी फिजाओं में यह बात तैर रही है.

आदिवासी चेहरे की तलाश में BJP

झारखंड में बीजेपी 5 साल शासन करने के बाद अब विपक्ष की भूमिका में है, लेकिन उसके पास हेमंत सोरेन के सामने मुकाबला के लिए कोई आदिवासी चेहरा नहीं है. यही वजह है कि बीजेपी अभी तक अपने विधायक दल का नेता नहीं चुन पाई है. वहीं, बेजीपी प्रवक्ताओं ने भी इस बात को स्वीकार किया है कि पार्टी झारखंड में आदिवासी चेहरे की तलाश में है. अगर बीजेपी के टिकट पर चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचे विधायकों की बात करें तो खूंटी से नीलकंठ सिंह मुंडा एक आदिवासी चेहरे के रुप में बीजेपी के पास जरुर हैं, लेकिन राज्यस्तर पर उनकी लोकप्रियता और काबीलियत पार्टी के अनुसार नहीं है. पार्टी अब ऐसे चेहरे की खोज में है जिनकी पकड़ संथाल के साथ-साथ पूरे झारखंड में अच्छी हो. इसमें बाबूलाल मरांडी फीट बैठते हैं.

बाबूलाल के पास अब कोई ऑप्शन नहीं

झारखंड के पहले मुख्यमंत्री रह चुके बाबूलाल मरांडी फिलहाल, अपने राजनीतिक करियर के सबसे निचले पड़ाव पर हैं. पुराने राजनीतिक कैरियर को देखें तो संघ से गहरा जुड़ाव रखने वाले बाबूलाल बीजेपी से मुख्यमंत्री और सांसद रह चुके हैं. लेकिन सियासी जमीन पर अपनी राह अलग अपनाने वाले बाबूलाल 2006 में जेवीएम गठन के बाद से ही सत्ता के लिए संघर्ष कर रहे हैं. लेकिन पार्टी गठन के 14 साल बाद भी उनकी पार्टी कैबिनेट में जगह नहीं बना पाई है. वहीं, अपने जीते हुए विधायकों को भी पार्टी एकजूट रखने में नाकाम रही है. जिसके कारण अब उनके पास कोई ऑप्शन बनते नहीं दिख रहा है. अगर बाबूलाल मौजूदा सरकार के साथ चलते हैं तो ये माना जाएगा कि बाबूलाल ने हेमंत का नेतृत्व स्वीकार कल लिया है, जो उनके भविष्य के घातक साबित हो सकता है.

इसे भी पढ़ें- रांची में 3 साल की मासूम से दुष्कर्म की कोशिश, आरोपी की जमकर हुई धुनाई

बाबूलाल के लिए BJP के अलावा और क्या है विकल्प?

दरअसल, झारखंड की राजनीति का मौजूदा स्थिति देखें तो राज्य मे दो राजनीतिक खेमा नजर आता है. पहला प्रचंड़ बहुमत के साथ सत्ता में आई महागठबंधन की सरकार और दूसरा सत्ता गवां चुकी बीजेपी. अब इस मौजूदा हालात में बाबूलाल इन दोनों खेमें से बाहर हैं और उनकी पार्टी जेवीएम विलुप्त होते नजर आ रही है. ऐसे में बाबूलाल अपना राजनीति करियर को बचाए रखने के लिए किसी एक दल में शामिल हो सकते हैं. अगर वे महागठबंधन में शामिल होते हैं तो यह लगभग तय है कि बाबूलाल को कैबिनेट में जगह नहीं मिलेगी. जिसके कारण उनकी राजनीतिक छवि महागठबंधन में जाने से छिप जाएगी. अब दूसरा ऑप्शन बीजेपी में शामिल होना हो सकता है. यह बाबूलाल के लिए एक बेहतर विकल्प भी है. क्योंकि बीजेपी भी अपने विधायकों के लिए एक बड़े चेहरे की तलाश में है.

मरांडी ने खूब झेला है राजनीतिक झटका

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से अपने गैर राजनीतिक करियर की शुरुआत करने वाले मरांडी भाजपा में आए और सांसद, विधायक मुख्यमंत्री और केंद्रीय मंत्री भी रहे, लेकिन 2006 में बीजेपी से रास्ता अलग करने के बाद उनके पॉलीटिकल करियर में कई दफे ऐसे मौके आए जब उन्हें राजनीतिक झंझावतों से होकर गुजरना पड़ा. आंकड़ों पर गौर करें तो 2009 के विधानसभा चुनाव में 11 सीटें झाविमो की झोली में आई थी. 2009 में झाविमो का कांग्रेस के साथ पैक्ट हुआ था, जिनमें से 25 सीटों पर जेवीएम ने अपने उम्मीदवार दिए, जबकि 5 पर फ्रेंडली फाइट हुई. जेवीएम को 11 सीटें मिली थी. 2014 में जहां झाविमो के सात विधायकों ने पाला बदला. वहीं, 2009 के चुनाव के बाद भी पार्टी को दलबदल की मार झेलनी पड़ी थी.

इसे भी पढ़ें- पतरातू लेक रिसोर्ट के नवनिर्मित छठ घाट पर गंगा आरती के तर्ज पर हुई आरती, सैकड़ों लोगों ने लिया हिस्सा

दरअसल, विधानसभा चुनाव में खराब प्रदर्शन के बाद पार्टी को एक कुशल संगठनकर्ता की जरूरत समझ आई है. प्रदेश स्तर पर बीजेपी में वैसे नेता के ऊपर मंथन चल रहा है जो एक तरफ जहां संगठन मजबूत करने में भूमिका निभाए. वहीं, दूसरी तरफ उसके कंधे से ट्राईबल वोट बैंक भी बचाया जा सके. ऐसे में बीजेपी की नजर मरांडी के ऊपर टिकी हुई है. लगातार सेटबैक झेलने के बाद मरांडी के पास यह बेहतर विकल्प माना जा रहा है.

रांची: झारखंड विधानसभा चुनाव में जेवीएम को आशातीत सफलता नहीं मिलने के बाद अब राज्य में नए सियासी परिदृश्य की संभावना तेज हो गई है. बदलते सियासी समीकरण में जेवीएम का बीजेपी में विलय होना लगभग तय माना जा रहा है, क्योंकि जेवीएम सुप्रीमो बाबूलाल मरांडी के पास अब कोई विकल्प नजर नहीं आ रहा है.

उम्मीद के मुताबिक सफलता नहीं मिलने पर कयास तेज

राज्य के पहले सीएम और 5 बार सांसद रह चुके झारखंड विकास मोर्चा के सुप्रीमो बाबूलाल मरांडी के झारखंड चुनाव परिणाम के बाद उनकी राजनीतिक प्रभाव कम होते दिख रही है. जेवीएम गठन के बाद से ही सत्ता में जगह बनाने को लेकर पार्टी संघर्ष कर रही है, लेकिन अब तक झारखंड कैबिनेट में जगह नहीं बना पाई है. अब पार्टी सुप्रीमो बाबूलाल मरांडी अपनी सियासी चमक बरकरार रखने के लिए बीजेपी का दामन थाम सकते हैं, झारखंड के सियासी फिजाओं में यह बात तैर रही है.

आदिवासी चेहरे की तलाश में BJP

झारखंड में बीजेपी 5 साल शासन करने के बाद अब विपक्ष की भूमिका में है, लेकिन उसके पास हेमंत सोरेन के सामने मुकाबला के लिए कोई आदिवासी चेहरा नहीं है. यही वजह है कि बीजेपी अभी तक अपने विधायक दल का नेता नहीं चुन पाई है. वहीं, बेजीपी प्रवक्ताओं ने भी इस बात को स्वीकार किया है कि पार्टी झारखंड में आदिवासी चेहरे की तलाश में है. अगर बीजेपी के टिकट पर चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचे विधायकों की बात करें तो खूंटी से नीलकंठ सिंह मुंडा एक आदिवासी चेहरे के रुप में बीजेपी के पास जरुर हैं, लेकिन राज्यस्तर पर उनकी लोकप्रियता और काबीलियत पार्टी के अनुसार नहीं है. पार्टी अब ऐसे चेहरे की खोज में है जिनकी पकड़ संथाल के साथ-साथ पूरे झारखंड में अच्छी हो. इसमें बाबूलाल मरांडी फीट बैठते हैं.

बाबूलाल के पास अब कोई ऑप्शन नहीं

झारखंड के पहले मुख्यमंत्री रह चुके बाबूलाल मरांडी फिलहाल, अपने राजनीतिक करियर के सबसे निचले पड़ाव पर हैं. पुराने राजनीतिक कैरियर को देखें तो संघ से गहरा जुड़ाव रखने वाले बाबूलाल बीजेपी से मुख्यमंत्री और सांसद रह चुके हैं. लेकिन सियासी जमीन पर अपनी राह अलग अपनाने वाले बाबूलाल 2006 में जेवीएम गठन के बाद से ही सत्ता के लिए संघर्ष कर रहे हैं. लेकिन पार्टी गठन के 14 साल बाद भी उनकी पार्टी कैबिनेट में जगह नहीं बना पाई है. वहीं, अपने जीते हुए विधायकों को भी पार्टी एकजूट रखने में नाकाम रही है. जिसके कारण अब उनके पास कोई ऑप्शन बनते नहीं दिख रहा है. अगर बाबूलाल मौजूदा सरकार के साथ चलते हैं तो ये माना जाएगा कि बाबूलाल ने हेमंत का नेतृत्व स्वीकार कल लिया है, जो उनके भविष्य के घातक साबित हो सकता है.

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बाबूलाल के लिए BJP के अलावा और क्या है विकल्प?

दरअसल, झारखंड की राजनीति का मौजूदा स्थिति देखें तो राज्य मे दो राजनीतिक खेमा नजर आता है. पहला प्रचंड़ बहुमत के साथ सत्ता में आई महागठबंधन की सरकार और दूसरा सत्ता गवां चुकी बीजेपी. अब इस मौजूदा हालात में बाबूलाल इन दोनों खेमें से बाहर हैं और उनकी पार्टी जेवीएम विलुप्त होते नजर आ रही है. ऐसे में बाबूलाल अपना राजनीति करियर को बचाए रखने के लिए किसी एक दल में शामिल हो सकते हैं. अगर वे महागठबंधन में शामिल होते हैं तो यह लगभग तय है कि बाबूलाल को कैबिनेट में जगह नहीं मिलेगी. जिसके कारण उनकी राजनीतिक छवि महागठबंधन में जाने से छिप जाएगी. अब दूसरा ऑप्शन बीजेपी में शामिल होना हो सकता है. यह बाबूलाल के लिए एक बेहतर विकल्प भी है. क्योंकि बीजेपी भी अपने विधायकों के लिए एक बड़े चेहरे की तलाश में है.

मरांडी ने खूब झेला है राजनीतिक झटका

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से अपने गैर राजनीतिक करियर की शुरुआत करने वाले मरांडी भाजपा में आए और सांसद, विधायक मुख्यमंत्री और केंद्रीय मंत्री भी रहे, लेकिन 2006 में बीजेपी से रास्ता अलग करने के बाद उनके पॉलीटिकल करियर में कई दफे ऐसे मौके आए जब उन्हें राजनीतिक झंझावतों से होकर गुजरना पड़ा. आंकड़ों पर गौर करें तो 2009 के विधानसभा चुनाव में 11 सीटें झाविमो की झोली में आई थी. 2009 में झाविमो का कांग्रेस के साथ पैक्ट हुआ था, जिनमें से 25 सीटों पर जेवीएम ने अपने उम्मीदवार दिए, जबकि 5 पर फ्रेंडली फाइट हुई. जेवीएम को 11 सीटें मिली थी. 2014 में जहां झाविमो के सात विधायकों ने पाला बदला. वहीं, 2009 के चुनाव के बाद भी पार्टी को दलबदल की मार झेलनी पड़ी थी.

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दरअसल, विधानसभा चुनाव में खराब प्रदर्शन के बाद पार्टी को एक कुशल संगठनकर्ता की जरूरत समझ आई है. प्रदेश स्तर पर बीजेपी में वैसे नेता के ऊपर मंथन चल रहा है जो एक तरफ जहां संगठन मजबूत करने में भूमिका निभाए. वहीं, दूसरी तरफ उसके कंधे से ट्राईबल वोट बैंक भी बचाया जा सके. ऐसे में बीजेपी की नजर मरांडी के ऊपर टिकी हुई है. लगातार सेटबैक झेलने के बाद मरांडी के पास यह बेहतर विकल्प माना जा रहा है.

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Babulal Marandi set to join BJP


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Last Updated : Jan 13, 2020, 10:22 AM IST
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