बगोदर/ गिरिडीहः एकीकृत बिहार के समय बगोदर के अटका में हुए नरसंहार की घटना में मारे गए लोगों के परिजनों को 20 साल बाद भी नौकरी नहीं मिल पाई है. तत्कालीन सीएम रावड़ी देवी ने आश्रितों को नौकरी दिए जाने की घोषणा की थी. 7 जुलाई 1998 को पुलिस वर्दीधारी नक्सलियों ने एक साथ 10 लोगों की गोली मारकर हत्या कर दी.
घटना के बाद तत्कालीन सीएम रावड़ी देवी, पूर्व सीएम लालू यादव ने पीड़ित परीजनों को सांत्वना देते हुए मौके का जाएजा लिया था. घटना के 2 साल बाद अलग राज्य झारखंड का निर्माण हुआ. इसके साथ ही आश्रितों की नौकरी का मामला ठंडे बस्ते में चला गया.
दरअसल, तत्कालीन बिहार अटका के पड़ाव मैदान में एक मामले को लेकर पंचायत हो रही थी. पंचायत में मुखिया मथुरा प्रसाद मंडल सहित बड़ी संख्या में प्रबुद्ध व्यक्ति और ग्रामीण उपस्थित थे. पंचायत का दौर चल रहा था, इसी बीच पुलिस की वर्दी पहने 7 नक्सली वहां आ पहुंचे और पंचायत में बैठे लोगों पर ताबड़तोड़ फायरिंग शुरु कर दी. इसमें मुखिया सहित 10 लोगों की मौत हो गई. घटना के बाद नक्सली नारेबाजी करते हुए पैदल निकल गए.
ये लोग मारे गए थे
इस घटना में अटका के तत्कालीन मुखिया मथुरा प्रसाद मंडल, बिहारी महतो, धुपाली महतो, जगरनाथ महतो, सरयू महतो, दशरथ महतो, सीताराम महतो, रघुनाथ प्रसाद, मीरन प्रसाद व तुलसी महतो की मौत हो गई थी. बताया जा रहा है कि इलाके में उस समय नक्सलियों का उदय हुआ था. घटना में मारे गए तत्कालीन मुखिया मथुरा प्रसाद मंडल के पुत्र सह भाजपा नेता दीपू मंडल ने बताया कि तत्कालीन सीएम के द्वारा घटना में मारे गए लोगों के आश्रित परिवार के 1 सदस्य को नौकरी, 1 लाख रूपए, इंदिरा आवास आदि दिए जाने की घोषणा की गई थी.
विधानसभा में भी उठा मुद्दा
घोषणा के मुताबिक रूपए और इंदिरा आवास तो सभी आश्रितों को मिल गए, मगर नौकरी किसी को नहीं मिली. गौरतलब है कि बगोदर के तत्कालीन विधायक विनोद कुमार सिंह और वर्तमान विधायक नागेंद्र महतो के द्वारा भी विधान सभा में अटका नरसंहार की घटना को उठाते हुए आश्रित परिवार को नौकरी दिए जाने की मांग की गई, मगर नतीजा कुछ नहीं निकला. विधायक ने कहा कि आश्रितों को नौकरी मिले इसके लिए प्रयास जारी है और फिर विधानसभा में इस मामले को रखूंगा.