नई दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने फैसला दिया है कि आरक्षित श्रेणी का व्यक्ति बिहार या झारखंड किसी भी राज्य में लाभ का दावा कर सकता है लेकिन नवंबर 2000 में पुनर्गठन के बाद दोनों राज्यों में एक साथ लाभ का दावा नहीं कर सकता है.
उच्चतम न्यायालय ने कहा कि बिहार के निवासी आरक्षित श्रेणी के सदस्यों के साथ झारखंड में सभी वर्गों के लिए आयोजित चयन प्रक्रिया में प्रवासी के तौर पर व्यवहार किया जाएगा और वे आरक्षण के लाभ का दावा किए बगैर उसमें शामिल हो सकते हैं.
न्यायमूर्ति यू. यू. ललित और न्यायमूर्ति अजय रस्तोगी की पीठ ने यह निर्णय दिया जब झारखंड निवासी पंकज कुमार ने उच्च न्यायालय द्वारा 2:1 के बहुमत से दिए गए फैसले को चुनौती दी. अनुसूचित जाति के सदस्य पंकज कुमार को उच्च न्यायालय ने राज्य सिविल सेवा परीक्षा 2007 में उन्हें इस आधार पर नियुक्ति देने से इंकार कर दिया कि उनका पता दिखाता है कि वह बिहार के पटना के स्थायी निवासी हैं.
पीठ ने कहा, 'यह स्पष्ट किया जाता है कि व्यक्ति बिहार या झारखंड में किसी एक राज्य में आरक्षण का दावा करने का हकदार है लेकिन दोनों राज्यों में एक साथ आरक्षण के लाभ का दावा नहीं कर सकता है. साथ ही जो लोग बिहार के निवासी हैं उनसे झारखंड में खुली श्रेणी की चयन प्रक्रिया में प्रवासी के तौर पर व्यवहार होगा और आरक्षण का दावा किए बगैर वे सामान्य श्रेणी में हिस्सा ले सकते हैं..
उच्चतम न्यायालय ने कहा कि 24 फरवरी 2020 का उच्च न्यायालय का बहुमत से दिया गया फैसला कानून में अव्यावहारिक है और इसलिए इसे खारिज किया जाता है.
पीठ ने कहा, 'सिद्धांत के आधार पर हम अल्पमत फैसले से भी सहमत नहीं हैं और स्पष्ट किया कि व्यक्ति बिहार या झारखंड दोनों में से किसी एक राज्य में आरक्षण के लाभ का हकदार है लेकिन दोनों राज्यों में एक साथ आरक्षण का लाभ नहीं ले सकता है और अगर इसे अनुमति दी जाती है तो इससे संविधान के अनुच्छेद 341 (1) और 342 (1) के प्रावधानों का उल्लंघन होगा.'
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इसने निर्देश दिया कि पंकज कुमार को छह हफ्ते के अंदर 2007 के विज्ञापन संख्या 11 के आधार पर चयन के परिप्रेक्ष्य में नियुक्त किया जा सकता है और कहा कि वह वेतन एवं भत्तों के साथ ही वरीयता के भी हकदार हैं.