ऊना: हिमाचल की सब्जी मंडी में मिल रहे आलू के कम दामों से आज प्रदेश का अन्नदाता काफी परेशान हैं. बात जिला ऊना की करें तो यहां पर भी आलू की खेती करने वाले किसानों के लिए आलू के लगातार गिर रहे दाम चिंता का विषय बने हुए हैं. खेतों में खड़ी आलू की फसल को निकालने में महज 1 सप्ताह से 10 दिन तक का समय बचा है. लेकिन आलू की दयनीय हालत यह है कि प्रति 1 किलो 6 रुपये तक का भाव किसानों को मिल रहा है. किसानों की चिंता का बड़ा कारण यह भी है कि फसल को खेतों से निकालने में जो खर्च होने वाला है वह वर्तमान कीमत में कभी भी पूरा नहीं हो सकेगा.
आलू के दामों ने किसानों की बढ़ाई चिंता- दरअसल जिला ऊना में रबी के सीजन में करीब एक हजार हैक्टेयर भूमि पर आलू की बिजाई की जाती है. इस दफा जहां पहले ही किसान मौसम की मार से परेशान थे. वहीं, अब आलू की फसल को खेतों से निकालने के समय मंडियों में औंधे मुंह गिर रहे आलू के दामों ने किसानों की चिंताएं और अधिक बढ़ा दी है. जिला मुख्यालय से सटे लालसिंगी के निवासी किसान हितेश रायजादा का कहना है कि सरकार को इस मामले की तरफ ध्यान देना चाहिए और किसानों की लगातार बिगड़ती हालत को ध्यान में रखते हुए उन्हें राहत प्रदान करनी चाहिए.
खेती कारोबार को जारी रखना बेहद मुश्किल- किसान बताते हैं कि अभी फसलें खेतों से निकालना बाकी है, लेकिन दाम के मामले में जिस तरह से किसानों को नुकसान दिखाई दे रहा है. ऐसे में खेती कारोबार को जारी रखना बेहद मुश्किल होगा. किसान मलकियत सिंह का कहना है कि लगातार गिर रहे दामों के चलते किसानों को इस कारोबार को जारी रखना मुश्किल हो रहा है. उन्होंने कहा कि कृषि कारोबार की लागत भी पूरी करना मुश्किल है. ऐसे में किसान को सरकार से मदद की काफी उम्मीद है.
आने वाले दिनों में दाम में वृद्धि की उम्मीद- एक अन्य किसान युसूफ अली का कहना है कि 10 दिन के बाद आलू की नई फसल चलने वाली है, लेकिन मौजूदा दाम लागत को भी पूरा नहीं कर पाएंगे. मार्केट में मिल रहे रेट से कृषि का कारोबार करने वाले लोगों को आने वाले समय में भारी भरकम नुकसान उठाना पड़ सकता है. वहीं, सब्जी मंडी के आढ़ती भी मानते हैं कि मौजूदा समय में आलू के दामों में भारी गिरावट आई है. लेकिन इसके साथ ही आढ़ती आने वाले दिनों में आलू के दाम में वृद्धि की उम्मीद जता रहे हैं.
क्या कहते हैं कृषि विभाग के अधिकारी- वहीं, कृषि विभाग के उपनिदेशक डॉ. कुलभूषण धीमान का कहना है कि परंपरागत फसलों की तरह आलू की भी दो फसलें आती है, जिन्हें खरीफ और रबी के नाम से जाना जाता है. उन्होंने कहा कि खरीफ फसलों के समय बाहर का आलू प्रदेश में नहीं आता जिसके चलते इसकी लागत स्थानीय स्तर पर पूरी हो जाती है. लेकिन रबी फसलों के मौसम में एक तरफ जहां आलू की पैदावार खरीफ फसलों के मुकाबले कहीं ज्यादा होती है. वहीं, दूसरी तरफ इस मौसम में बाहर का आलू भी आसानी से उपलब्ध होने के चलते किसानों को कई बार दिक्कतों का सामना करना पड़ता है. लेकिन इस मौसम का आलू हमेशा नुकसान का सौदा नहीं होता है. कई बार किसानों को अच्छे दाम भी मिलते हैं. अभी भी एक अच्छे दाम को लेकर उम्मीद की जा सकती है.
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