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हिमाचल की ये जेल थी 'कालापानी', महात्मा गांधी यहां यात्री बनकर आए थे...गोडसे था अंतिम कैदी

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Published : Oct 1, 2019, 5:50 PM IST

Updated : Oct 2, 2019, 7:21 AM IST

सोलन शहर से 15 किलोमीटर दूर अंग्रेजों ने अपने समय में डगशाई पहाड़ी पर एक जेल बनाई थी, जिसे हिमाचल का कालापानी कहते हैं. इस जेल की महात्मा गांधी ने एक बार यात्रा कर आयरिश कैदियों का हाल जाना था. नाथू राम गोडसे इस जेल के अंतिम कैदी थे.

डिजाइन फोटो

सोलन: ब्रिटिश काल के दौरान हिमाचल में बने कई भवन अपनी नक्काशी के लिए जाने जाते हैं. सोलन जिला के डगशाई स्थित जेल को हिमाचल की कालापानी की जेल के नाम से जाना जाता है. यहां महात्मा गांधी के अलावा नाथूराम गोडसे भी आ चुके हैं. खास बात ये है कि महात्मा गांधी इस जेल में एक यात्री के रूप में आए थे. वहीं, राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का हत्यारा नाथू राम गोडसे इस जेल का अंतिम कैदी था.

ब्रिटिशकाल के दौरान हिमाचल में बने कई भवन अपनी भव्यता के लिए पहचान रखते हैं, लेकिन कुछ भवन ऐसे भी हैं जिनके बारे में जानने पर रूह कांप जाती है. इन भवनों में अंग्रेजों के किए गए जुल्मों से आज भी दिल सहम उठता है और मन भगवान का शुक्रिया अदा करता है कि हम उस गुलामी की जंजीरों की बजाए आजाद भारत में सांस ले रहे हैं.

वीडियो

हम बात कर रहे हैं सोलन जिले में स्थित देश की सबसे पुरानी ब्रिटिश छावनियों में से एक डगशाई छावनी के बारे में ब्रिटिशकाल में बनी सेंट्रल जेल डगशाई में भारतीयों पर हुए जुल्मों की कहानी सुनकर आज भी लोग सिहर उठते हैं.

आइए जानें कालापानी के नाम से मशहूर डगशाई जेल के बारे में कुछ रोचक तथ्य:

हिमाचल प्रदेश के प्रवेश द्वार पर स्थित पर्यटन नगरी कसौली से 15 किलोमीटर दूर डगशाई कैंट है, जहां ये जेल स्थित है. जेल को अब एक संग्रहालय में बदला जा चुका है. इस जेल की सबसे दिलचस्प बात है कि इसमें राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने भी एक दिन बिताया था, हालांकि सजा के तौर पर नहीं बल्कि वे कैदियों से मिलने यहां आए थे.

पहाड़ी पर स्थित डगशाई गांव को महाराजा पटियाला ने अंग्रेजों को उपहार में दिया था और अंग्रेजों ने इसे अपनी छावनी के रूप में स्थापित किया. अंग्रेजों ने छावनी के साथ-साथ यहां बागियों को रखने के लिए एक केंद्रीय कारागार का भी निर्माण करवाया था.

डगशाई जेल में प्रवेश करते ही काल कोठरियों में घने अंधेरे के कारण दिन में ही रात का आभास होता है. अंधेरी कोठरियों की दीवारों से आज भी कैदियों के दम घुटने की सिसकियां कानों में गूंजती प्रतीत होती हैं. डगशाई जेल आज भी ब्रिटिश शासकों के मनमाने आदेश थोपने के प्रमाणों को उजागर करती है.

जेल में बनी कोठरिया इस बात को बताती हैं कि जो कैदी अंग्रेजों का फरमान नहीं मानते थे उन्हें उन्हें एकात कैदखाने में डाल दिया जाता था, जिसमें हवा व रोशनी का कोई भी प्रबंध नहीं होता था. जेल में कुल 54 कैद कक्ष हैं, जिनमें से 16 को एकांत कैद कक्ष कहा जाता है. इनका उपयोग कठोर दंड देने के लिए किया जाता था. इन कैदखानों में सिर्फ कैदी के मात्र खड़े होने की जगह होती थी. हिलने-डुलने के लिए कोई स्थान नहीं था.

एक सेल खास तौर पर उच्च कठोर दंड देने के लिए अलग से बनाया गया था. इस सेल के तीन दरवाजे हैं. एक बार अगर किसी कैदी को वहां के एक दरवाजे से अंदर डाला गया तो बाकी के दरवाजे भी बंद कर दिए जाते थे, जिससे उस कैदी की हलचल पर प्रतिबंध लग जाए. जेलखाने में जगह बहुत कम होने की वजह से कैदी एक ही जगह खड़े होने के लिए बाध्य हो जाता था. इन जेलखानों में मुश्किल से हवा अंदर आ पाती है और किसी भी जगह से रोशनी के अंदर आने का कोई स्त्रोत नहीं है. ये सजा अंग्रेजी शासन को चुनौती देने पर सबसे कठोर सजा हुआ करती थी.

1849 में किया था जेल का निर्माण

यह जेल टी आकार की है, जिसमें ऊंची छत व लकड़ी का फर्श है. ऐसे निर्माण के पीछे ये उद्देश्य रहा होगा की कैदी की किसी भी गतिविधियों की आवाज को चौकसी दस्ते आसानी से सुन सके. केंद्रीय जेल का निर्माण सन 1849 में 72875 रुपये की लागत से किया गया था, जिसमें 54 कैदकक्ष हैं. हर कैदकक्ष का क्षेत्रफल 812 फीट और छत 20 फीट ऊंची है. भूमिगत पाइपलाइन से भी अंदर हवा आने की सुविधा है, जो बाहर की दीवारों में जाकर खुलती है. इसका फर्श व द्वार दीमक प्रतिरोधी सागौन की लकड़ी से बने हैं जो आज भी उसी स्वरूप में हैं.

खास लोहे से बने कैदकक्ष यहां जेल में बने हर कैदकक्ष के द्वारों का निर्माण लोहे से किया गया है. इन्हें किसी हथियार के बिना नहीं काटा जा सकता है. जेल एक मजबूत किले की तरह है, जिसका मुख्य द्वार बंद होने के बाद न तो फांदकर बाहर जाया जा सकता है और न ही अंदर प्रवेश किया जा सकता है. अंग्रेजों ने इस जेल का इस्तेमाल बागी आयरिश कैदियों को रखने के लिए भी किया था.

डगशाई जेल के इतिहास को देखें तो पता चलता है कि 1920 में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी भी यहा आ चुके हैं. उस समय जिस सेल में वह आए थे उसके बाहर महात्मा गांधी की तस्वीर लगाई हुई है. स्वतंत्रता सेनानियों की गिरफ्तारी ने महात्मा गांधी को जल्द ही डगशाई आने के लिए प्रेरित किया, ताकि वे यहां आकर एकाएक इसका आंकलन कर सकें. इस जेल में बागी आयरिश सैनिकों सहित हिंदुस्तान के स्वतंत्रता सेनानियों को भी रखा जाता था.

सोलन: ब्रिटिश काल के दौरान हिमाचल में बने कई भवन अपनी नक्काशी के लिए जाने जाते हैं. सोलन जिला के डगशाई स्थित जेल को हिमाचल की कालापानी की जेल के नाम से जाना जाता है. यहां महात्मा गांधी के अलावा नाथूराम गोडसे भी आ चुके हैं. खास बात ये है कि महात्मा गांधी इस जेल में एक यात्री के रूप में आए थे. वहीं, राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का हत्यारा नाथू राम गोडसे इस जेल का अंतिम कैदी था.

ब्रिटिशकाल के दौरान हिमाचल में बने कई भवन अपनी भव्यता के लिए पहचान रखते हैं, लेकिन कुछ भवन ऐसे भी हैं जिनके बारे में जानने पर रूह कांप जाती है. इन भवनों में अंग्रेजों के किए गए जुल्मों से आज भी दिल सहम उठता है और मन भगवान का शुक्रिया अदा करता है कि हम उस गुलामी की जंजीरों की बजाए आजाद भारत में सांस ले रहे हैं.

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हम बात कर रहे हैं सोलन जिले में स्थित देश की सबसे पुरानी ब्रिटिश छावनियों में से एक डगशाई छावनी के बारे में ब्रिटिशकाल में बनी सेंट्रल जेल डगशाई में भारतीयों पर हुए जुल्मों की कहानी सुनकर आज भी लोग सिहर उठते हैं.

आइए जानें कालापानी के नाम से मशहूर डगशाई जेल के बारे में कुछ रोचक तथ्य:

हिमाचल प्रदेश के प्रवेश द्वार पर स्थित पर्यटन नगरी कसौली से 15 किलोमीटर दूर डगशाई कैंट है, जहां ये जेल स्थित है. जेल को अब एक संग्रहालय में बदला जा चुका है. इस जेल की सबसे दिलचस्प बात है कि इसमें राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने भी एक दिन बिताया था, हालांकि सजा के तौर पर नहीं बल्कि वे कैदियों से मिलने यहां आए थे.

पहाड़ी पर स्थित डगशाई गांव को महाराजा पटियाला ने अंग्रेजों को उपहार में दिया था और अंग्रेजों ने इसे अपनी छावनी के रूप में स्थापित किया. अंग्रेजों ने छावनी के साथ-साथ यहां बागियों को रखने के लिए एक केंद्रीय कारागार का भी निर्माण करवाया था.

डगशाई जेल में प्रवेश करते ही काल कोठरियों में घने अंधेरे के कारण दिन में ही रात का आभास होता है. अंधेरी कोठरियों की दीवारों से आज भी कैदियों के दम घुटने की सिसकियां कानों में गूंजती प्रतीत होती हैं. डगशाई जेल आज भी ब्रिटिश शासकों के मनमाने आदेश थोपने के प्रमाणों को उजागर करती है.

जेल में बनी कोठरिया इस बात को बताती हैं कि जो कैदी अंग्रेजों का फरमान नहीं मानते थे उन्हें उन्हें एकात कैदखाने में डाल दिया जाता था, जिसमें हवा व रोशनी का कोई भी प्रबंध नहीं होता था. जेल में कुल 54 कैद कक्ष हैं, जिनमें से 16 को एकांत कैद कक्ष कहा जाता है. इनका उपयोग कठोर दंड देने के लिए किया जाता था. इन कैदखानों में सिर्फ कैदी के मात्र खड़े होने की जगह होती थी. हिलने-डुलने के लिए कोई स्थान नहीं था.

एक सेल खास तौर पर उच्च कठोर दंड देने के लिए अलग से बनाया गया था. इस सेल के तीन दरवाजे हैं. एक बार अगर किसी कैदी को वहां के एक दरवाजे से अंदर डाला गया तो बाकी के दरवाजे भी बंद कर दिए जाते थे, जिससे उस कैदी की हलचल पर प्रतिबंध लग जाए. जेलखाने में जगह बहुत कम होने की वजह से कैदी एक ही जगह खड़े होने के लिए बाध्य हो जाता था. इन जेलखानों में मुश्किल से हवा अंदर आ पाती है और किसी भी जगह से रोशनी के अंदर आने का कोई स्त्रोत नहीं है. ये सजा अंग्रेजी शासन को चुनौती देने पर सबसे कठोर सजा हुआ करती थी.

1849 में किया था जेल का निर्माण

यह जेल टी आकार की है, जिसमें ऊंची छत व लकड़ी का फर्श है. ऐसे निर्माण के पीछे ये उद्देश्य रहा होगा की कैदी की किसी भी गतिविधियों की आवाज को चौकसी दस्ते आसानी से सुन सके. केंद्रीय जेल का निर्माण सन 1849 में 72875 रुपये की लागत से किया गया था, जिसमें 54 कैदकक्ष हैं. हर कैदकक्ष का क्षेत्रफल 812 फीट और छत 20 फीट ऊंची है. भूमिगत पाइपलाइन से भी अंदर हवा आने की सुविधा है, जो बाहर की दीवारों में जाकर खुलती है. इसका फर्श व द्वार दीमक प्रतिरोधी सागौन की लकड़ी से बने हैं जो आज भी उसी स्वरूप में हैं.

खास लोहे से बने कैदकक्ष यहां जेल में बने हर कैदकक्ष के द्वारों का निर्माण लोहे से किया गया है. इन्हें किसी हथियार के बिना नहीं काटा जा सकता है. जेल एक मजबूत किले की तरह है, जिसका मुख्य द्वार बंद होने के बाद न तो फांदकर बाहर जाया जा सकता है और न ही अंदर प्रवेश किया जा सकता है. अंग्रेजों ने इस जेल का इस्तेमाल बागी आयरिश कैदियों को रखने के लिए भी किया था.

डगशाई जेल के इतिहास को देखें तो पता चलता है कि 1920 में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी भी यहा आ चुके हैं. उस समय जिस सेल में वह आए थे उसके बाहर महात्मा गांधी की तस्वीर लगाई हुई है. स्वतंत्रता सेनानियों की गिरफ्तारी ने महात्मा गांधी को जल्द ही डगशाई आने के लिए प्रेरित किया, ताकि वे यहां आकर एकाएक इसका आंकलन कर सकें. इस जेल में बागी आयरिश सैनिकों सहित हिंदुस्तान के स्वतंत्रता सेनानियों को भी रखा जाता था.

Intro:हिमाचल का कालापानी डगशाई जेल,जहां महात्मा गांधी थे यात्री,वहीं उनके हत्यारे नाथू राम गोडसे रहे इस जेल के अंतिम कैदी

:-एक ऐसी जेल जहां जाने से आज भी कांपती है रूह
:-1849 में ब्रिटिशकाल के समय में बनी सेंट्रल जेल डगशाई में भारतीयों पर हुए जुल्मों की कहानी सुनकर आज भी लोग सिहर उठते हैं।

:-आज जेल तब्दील हो चुकी है म्यूजियम में,बन रही पर्यटकों की आर्कषण का केंद्र


ब्रिटिशकाल के दौरान हिमाचल में बने कई भवन अपनी नक्काशी के लिए जाने जाते हैं। सोलन जिले के डगशाई स्थित जेल को हिमाचल की कालापानी की जेल के नाम से जाना जाता है। यहां महात्मा गांधी के अलावा नाथूराम गोड़से भी आ चुके हैं।...खास बात यह है कि महात्मा गांधी इस जेल में एक यात्री के रूप में आये थे, वहीं राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के हत्यारे नाथू राम गोडसे इस जेल के अंतिम कैदी रहे है।


ब्रिटिशकाल के दौरान हिमाचल में बने कई भवन अपनी भव्यता के लिए पहचान रखते हैं, लेकिन कुछ भवन ऐसे भी हैं जिनके बारे में जानने पर रूह भी काप जाती है। इन भवनों में अंग्र्रेजों द्वारा किए गए जुल्मों से आज भी दिल सहम उठता है और मन भगवान का यही शुक्रिया अदा करता है की हम उस गुलामी की जंजीरों की बजाए आजाद खुली हवा में सास ले रहे हैं।
आज हम बात कर रहे हैं सोलन जिले में स्थित देश की सबसे पुरानी ब्रिटिश छावनियों में से एक डगशाई छावनी के बारे में। ब्रिटिशकाल में बनी सेंट्रल जेल डगशाई में भारतीयों पर हुए जुल्मों की कहानी सुनकर आज भी लोग सिहर उठते हैं।


Body:आइए जानें कालापानी के नाम से मशहूर डगशाई जेल के बारे में कुछ रोचक तथ्य.. .................................हिमाचल प्रदेश के प्रवेश द्वार पर स्थित पर्यटन नगरी कसौली से 15 किलोमीटर दूर डगशाई कैंट है जहा यह जेल स्थित है। जेल को अब एक संग्रहालय में बदला जा चुका है। इस जेल की सबसे दिलचस्प बात यह है कि इसमें राष्ट्रपिता महात्मा गाधी ने भी एक दिन बिताया था, हालाकि सजा के तौर पर नहीं बल्कि वह कैदियों से मिलने यहा आए थे। पहाड़ी पर स्थित डगशाई गाव को महाराजा पटियाला ने अंग्रेजों को दान में दिया था और अंग्रेजों ने इसको अपनी छावनी के रूप में स्थापित किया था। अंग्रेजों ने छावनी के साथ साथ यहा बागियों को रखने के लिए एक केंद्रीय कारागार का भी निर्माण करवाया था। डगशाई जेल में प्रवेश करते ही काल कोठरियों में घने अंधेरे के कारण दिन में ही रात का आभास होता है। अंधेरी कोठरियों की दीवारों से आज भी कैदियों के दम घुटने की सिसकिया कानों में गूंजती प्रतीत होती हैं।


टी आकार की किले नुमा है जेल डगशाई जेल आज भी ब्रिटिश शासकों के मनमाने आदेश थोपने के प्रमाणों को उजागर करती है। जेल में बनी कोठरिया इस बात को बताती हैं कि जो कैदी अति अनुशासनहीन होते थे उन्हें एकात कैद कक्ष में डाल दिया जाता था जिसमे हवा व रोशनी का कोई भी प्रबंध नहीं होता था। जेल में कुल 54 कैद कक्ष हैं, जिनमें से 16 को एकांत कैद कक्ष कहा जाता है, इनका उपयोग कठोर दंड देने के लिए किया जाता था।

इन जेलखानों में बहुत मुश्किल से हवा अंदर आ पाती है और किसी भी जगह से प्रकाश के अंदर आने का कोई स्नोत नहीं है। एक सेल खास तौर पर उच्च कठोर दंड देने के लिए अलग से बनाया गया है। इस सेल के तीन दरवाजे हैं। एक बार अगर किसी कैदी को वहा के एक दरवाजे से अंदर डाला गया तो बाकी के दरवाजे भी बंद कर दिए जाते थे, जिससे उस कैदी की हलचल पर प्रतिबंध लग जाए। जेलखाने में जगह बहुत कम होने की वजह से कैदी एक ही जगह खड़े होने के लिए बाध्य हो जाता था। यह सजा अंग्रेजी शासन को चुनौती देने पर सबसे कठोर सज़ा हुआ करती थी।


Conclusion:1849 में किया था जेल का निर्माण यह जेल टी आकार की है, जिसमे ऊंची छत व लकड़ी का फर्श है। ऐसे निर्माण के पीछे यह उद्देश्य रहा होगा की कैदी की किसी भी गतिविधियों की आवाज को चौकसी दस्ते आसानी से सुन सके। केंद्रीय जेल का निर्माण सन 1849 में 72875 रुपये की लागत से किया गया था, जिसमें 54 कैदकक्ष हैं। हर कैदकक्ष का भूतल क्षेत्रफल 8श्12 फीट है, जिसकी छत 20 फीट ऊंची है। भूमिगत पाइपलाइन से भी अंदर हवा आने की सुविधा है, जो बाहर की दीवारों में जाकर खुलती है। इसका फर्श व द्वार दीमक प्रतिरोधी सागौन की लकड़ी से बने हैं जो आज भी भी उसी स्वरूप में है।


खास लोहे से बने कैदकक्ष यहा जेल में बने हर कैदकक्ष के द्वारों का निर्माण ढलवें के लोहे से किया गया है। इन्हें किसी हथियार के बिना नहीं काटा जा सकता है। जेल एक मजबूत किले की तरह है जिसका मुख्य द्वार बंद होने के बाद न तो फादकर बाहर जाया जा सकता है और न ही अंदर प्रवेश किया जा सकता है। अंग्रेजों ने इस जेल का इस्तेमाल बागी आयरिश कैदियों को रखने के लिए किया था।



महात्मा गाधी भी आए थे यहा डगशाई जेल के इतिहास को देखें तो पता चलता है कि 1920 में राष्ट्रपिता महात्मा गाधी भी यहा आ चुके हैं। उस समय जिस सेल में वह आए थे उसके बाहर महात्मा गाधी की तस्वीर लगाई हुई है। आयरिश सैनिकों की होती गिरफ्तारी ने महात्मा गाधी को शीघ्र ही डगशाई आने के लिए प्रेरित किया, ताकि वे यहा आकर एकाएक इसका आकलन कर सकें। इस जेल में बागी आयरिश सैनिकों सहित हिंदुस्तान के स्वतंत्रता सेनानियों को भी रखा जाता था।

Last Updated : Oct 2, 2019, 7:21 AM IST
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