नाहन : हिमाचल का इतिहास उतना ही पुराना है, जितना मानव सभ्यता का वजूद. वहीं मान्यताओं के मुताबिक हिमाचल को भगवान परशुराम से भी जोड़ कर देखा जाता है. आज पूरा देश परशुराम जंयती मना रहा है. देश के अलग-अलग कोनों में भगवान परशुराम की पूजा अर्चना की जा रही है.
इस खास मौके पर ईटीवी भारत भी आपकों आज एक ऐसे ही स्थान पर ले चलेगा, जिसे लोक मान्यताओं के मुताबिक भगवान परशुराम की तपोस्थली भी कहा जाता है. इस स्थान से कई कथाएं जुड़ी हुई हैं. ये वहीं पवित्र भूमि हैं, जहां हर साल कार्तिक महीने में रेणुका माता और भगवान परशुराम का देव मिलन होता है.
रेणुका मंदिर नाहन से लगभग 40 किलोमीटर की दूरी पर है यहां नारी देह के आकार की प्राकृतिक झील जिसे मां रेणुका जी की प्रतिछाया भी माना जाता है.
भगवान परशुराम के पिता महर्षि जमदग्नि ने किसी कारण वश उन्हे अपनी माता रेणुका का वध करने की आज्ञा दी. जिसपर परशुराम ने अपने फरसे से अपनी माता का वध कर दिया.
भगवान परशुराम और उनकी माता रेणुका से जुड़ी दंत कथा
मान्यता है कि भगवान परशुराम के पिता महर्षि जमदग्नि तपस्या में लीन रहते थे. ऋषि पत्नी रेणुका पतिव्रता रहते हुए धर्म कर्म मे लीन रहती थी. वह प्रतिदिन गिरि गंगा का जल पीते थे और उससे ही स्नान करते थे. उनकी पतिव्रता पत्नी रेणुका कच्चे घड़े में नदी से पानी लाती थी.
एक दिन ऋषि जमदग्नि अपनी पत्नी रेणुका के सतीत्व के प्रति आशंकित हो गए और उन्होंने एक-एक करके अपने 100 पुत्रों को माता का वध करने का आदेश दिया, लेकिन केवल परशुराम ने ही पिता की आज्ञा का पालन करते हुए माता का वध कर दिया.
अपने पुत्र से प्रसन्न होकर ऋषि जमदग्नि ने परशुराम को वरदान मांगने की बात कही, जिसपर भगवान परशुराम ने अपने पिता से माता को जीवित करने का वरदान मांगा.
कहा जाता है कि उस वक्त माता रेणुका को ने भगवान परशुराम को वचन दिया कि वह हर साल अपने पुत्र भगवान परशुराम से मिला करेगीं. तब से हर साल कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की दशमी को भगवान परशुराम अपनी माता रेणुका से मिलने आते हैं. मां-बेटे के इस पावन मिलन के अवसर से रेणुका मेला भी आयोजित होता है.