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लूण लोटे का डर: देवभूमि में सभी कसमों से बढ़कर है ये कसम, खा ली तो समझो वोट पक्का

लूण लोटे की कसम दिलाकर हिमाचल में प्रत्याशी चुनाव में अपने वोट करते हैं पक्के. देवभूमि में सदियों से चली आ रही है ये परंपरा.

हिमाचल में लूण लोटा प्रथा
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Published : May 17, 2019, 9:51 AM IST

Updated : May 17, 2019, 10:50 PM IST

नाहन: हिमाचल में लोकसभा चुनाव के लिए वोटिंग का काउंटडाउन शुरू हो गया है. रविवार को प्रदेश में सातवें चरण में चुनाव होगा. ऐसे में निर्वाचन आयोग ने निष्पक्ष और शांतिपूर्ण चुनाव करवाने के लिए सारी तैयारियां पूरी कर ली हैं.

देवभूमि में सदियों से कई परंपराएं चली आ रही हैं. आज भी लोगों में इन परंपाराओं को लेकर विश्वास है. इन्हीं में से एक परंपरा है 'लूण का लोटा'. प्रदेश के अति दुर्गम क्षेत्रों में इसे सच्चाई की कसम के तौर पर लिया जाता है. चुनाव के समय इस प्रथा का दुरुपयोग भी खूब होता रहा है. पार्टी कार्यकर्ता लूण के लोटे से कसम खिलाकर अपने वोट पक्के करते हैं.
सिरमौर के गिरीपार क्षेत्र विशेषकर शिलाई विधानसभा क्षेत्र में लूण-लोटे की ये प्रथा काफी सालों से चली आ रही है.

हिमाचल में लूण लोटा प्रथा

इस प्रथा से पार्टी कार्यकर्ता और प्रत्याशी अपने समर्थन के लिए मतदाताओं से लोटे में नमक डालकर वोट पक्का करने की कसमें दिलाते हैं. यदि वोटर ने लोटे में पानी भरकर कसम खाली तो समझो वोट पक्का हो गया. इसके बाद वोटर को उसी प्रत्याशी को वोट करना होता है, जिसके लिए वोट देने की कसम ली हो. लोगों की मान्यता है कि लूण लोटे से बढ़कर कोई कसम नहीं होती. हालांकि ये कसम गुपचुप तरीके से दिलवाई जाती है.

बुजुर्गों की मानें तो पहले ये प्रथा आपसी मतभेदों, जमीनी विवादों और अन्य झगड़ों को सुलझाने के लिए चलाई गई थी. इसमें भी उन लोगों को ये कसम दिलवाई जाती थी, जिन पर बिल्कुल भी भरोसा नहीं होता था. मान्यता है कि जो लोग इस कसम को खाकर लिया गया वचन नहीं निभाते हैं तो उनका भारी नुकसान होता है साथ ही उनकी आने वाली पीढ़ी को इसका दुष्परिणाम भोगना पड़ता है.

समय के साथ-साथ इस प्रथा का दुरुपयोग होने लगा. लोगों की प्रथा में आस्था को देखते हुए पार्टी कार्यकर्ताओं और प्रत्याशियों ने इसे राजनीतिक रंग देना शुरू कर दिया या यूं कहें कि इस प्रथा का दुरुपयोग होना शुरू हो गया. लूण लोटा प्रथा का दुरुपयोग पंचायत चुनावों में ज्यादा होता रहा है, लेकिन थोड़े समय से विधानसभा चुनाव में भी इसका दुरुपयोग हो रहा है.

सिरमौर के साथ कुल्लू, शिमला, मंडी के दुर्गम इलाकों में देवता का डर दिखाकर आज भी ऐसी प्रथाएं प्रचलित हैं. छोटा सा पहाड़ी राज्य हिमाचल आज देशभर में साक्षरता दर को लेकर अग्रिम बना हुआ है. ऐसे में प्रदेश में इस तरह की प्रथाएं चौंकाने वाली हैं. 21वीं सदी में प्रदेश का नौजवान पढ़ा-लिखा है. ऐसे में अब ऐसी प्रथाओं को नौजवान नहीं मान रहे, लेकिन बुजुर्गों का इन प्रथाओं पर अब भी पूरा विश्वास है.

नाहन: हिमाचल में लोकसभा चुनाव के लिए वोटिंग का काउंटडाउन शुरू हो गया है. रविवार को प्रदेश में सातवें चरण में चुनाव होगा. ऐसे में निर्वाचन आयोग ने निष्पक्ष और शांतिपूर्ण चुनाव करवाने के लिए सारी तैयारियां पूरी कर ली हैं.

देवभूमि में सदियों से कई परंपराएं चली आ रही हैं. आज भी लोगों में इन परंपाराओं को लेकर विश्वास है. इन्हीं में से एक परंपरा है 'लूण का लोटा'. प्रदेश के अति दुर्गम क्षेत्रों में इसे सच्चाई की कसम के तौर पर लिया जाता है. चुनाव के समय इस प्रथा का दुरुपयोग भी खूब होता रहा है. पार्टी कार्यकर्ता लूण के लोटे से कसम खिलाकर अपने वोट पक्के करते हैं.
सिरमौर के गिरीपार क्षेत्र विशेषकर शिलाई विधानसभा क्षेत्र में लूण-लोटे की ये प्रथा काफी सालों से चली आ रही है.

हिमाचल में लूण लोटा प्रथा

इस प्रथा से पार्टी कार्यकर्ता और प्रत्याशी अपने समर्थन के लिए मतदाताओं से लोटे में नमक डालकर वोट पक्का करने की कसमें दिलाते हैं. यदि वोटर ने लोटे में पानी भरकर कसम खाली तो समझो वोट पक्का हो गया. इसके बाद वोटर को उसी प्रत्याशी को वोट करना होता है, जिसके लिए वोट देने की कसम ली हो. लोगों की मान्यता है कि लूण लोटे से बढ़कर कोई कसम नहीं होती. हालांकि ये कसम गुपचुप तरीके से दिलवाई जाती है.

बुजुर्गों की मानें तो पहले ये प्रथा आपसी मतभेदों, जमीनी विवादों और अन्य झगड़ों को सुलझाने के लिए चलाई गई थी. इसमें भी उन लोगों को ये कसम दिलवाई जाती थी, जिन पर बिल्कुल भी भरोसा नहीं होता था. मान्यता है कि जो लोग इस कसम को खाकर लिया गया वचन नहीं निभाते हैं तो उनका भारी नुकसान होता है साथ ही उनकी आने वाली पीढ़ी को इसका दुष्परिणाम भोगना पड़ता है.

समय के साथ-साथ इस प्रथा का दुरुपयोग होने लगा. लोगों की प्रथा में आस्था को देखते हुए पार्टी कार्यकर्ताओं और प्रत्याशियों ने इसे राजनीतिक रंग देना शुरू कर दिया या यूं कहें कि इस प्रथा का दुरुपयोग होना शुरू हो गया. लूण लोटा प्रथा का दुरुपयोग पंचायत चुनावों में ज्यादा होता रहा है, लेकिन थोड़े समय से विधानसभा चुनाव में भी इसका दुरुपयोग हो रहा है.

सिरमौर के साथ कुल्लू, शिमला, मंडी के दुर्गम इलाकों में देवता का डर दिखाकर आज भी ऐसी प्रथाएं प्रचलित हैं. छोटा सा पहाड़ी राज्य हिमाचल आज देशभर में साक्षरता दर को लेकर अग्रिम बना हुआ है. ऐसे में प्रदेश में इस तरह की प्रथाएं चौंकाने वाली हैं. 21वीं सदी में प्रदेश का नौजवान पढ़ा-लिखा है. ऐसे में अब ऐसी प्रथाओं को नौजवान नहीं मान रहे, लेकिन बुजुर्गों का इन प्रथाओं पर अब भी पूरा विश्वास है.

Intro:नोट : संबंधित खबर के फ़ाइल शॉट व बाइटस मेल की गई है। कृपया वहां से उठा लें

नाहन। हिमाचल में लोकसभा चुनाव में वोटिंग का काउंटडाउन शुरू हो गया है। रविवार को हिमाचल के चुनावी दंगल के लिए वोटिंग शुरू होगी। सिरमौर जिला के दुर्गम क्षेत्रों की बात करें तो यहां चुनाव के दौरान बरसों से एक प्रथा चली आ रही है। इस प्रथा के अनुसार वोटिंग से पहले अंतिम क्षणों में सिरमौर के दुर्गम क्षेत्रों में लोटा लूण का खेल खेला जाता है। पार्टी के कार्यकर्ता लोटा-लूण से वोट पक्का करने के लिए डट जाते हैं। 






Body:दरअसल सिरमौर का गिरीपार क्षेत्र विशेषकर शिलाई विधानसभा क्षेत्र में लोटा लूण की यह प्रथा पिछले काफी सालों से चली आ रही है। इस प्रथा से पार्टी कार्यकर्ता यहां तक कि कई बार प्रत्याशी भी अपने लिए समर्थन मांगने के लिए मतदाताओं से लोटे में नमक डालकर वोट पक्का करने की कसमें दिलाता है। यदि वोटर ने अपनी लोटे में पानी भरकर उसमें नमक डालकर कसम खा ली तो समझो वोट पक्का हो गया। इसके बाद वोटर को उसी प्रत्याशी को वोट करना होता है, जिसके लिए वोट देने की उसने कसम ली हो। माना जाता है कि क्षेत्र में इस कसम से बढ़कर और कोई भी कसम नहीं है।
हालांकि यह कसम गुपचुप तरीके से ही करवाई जाती है। इसकी जानकारी बस दो आदमी के बीच में रहती है। एक लोटा लूूण डलवाने वाला और दूसरा लोटे में नमक डालने वाले के बीच में। बुजुर्गों ने यह प्रथा आपस में मतभेद व जमीनी विवादों के लिए चलाई थी। पर अब इसका इस्तेमाल चुनाव में भी किया जा रहा है।
स्थानीय लोगों की मानें तो बरसों पहली बार इस प्रथा का अब दुरूपयोग भी हो रहा है। जैसे आदमी दोगले हो रहे हैं। जिस व्यक्ति के उपर कोई विश्वास नहीं है, उन्हीं से लोटा लूण के तहत कसम करवाई जाती है। पहले यह प्रथा चोरी या अन्य आपत्ति वाली घटनाओं में होती थी, लेकिन अब इसका इस्तेमाल राजैतिक तौर पर भी किया जा रहा है। 
बाइट-1: स्थानीय व्यक्ति
उधर गिरीपार क्षेत्र के एक अन्य बुद्धिजीवी का भी कहना है कि लोग बोलते कुछ है और करते कुछ ओर है, क्योंकि अब ईमानदारी नहीं रही है। इसी लिए ऐसा किया जाता है। 
बाइट-2: स्थानीय व्यक्ति 
वहीं अन्य लोग भी आज इस प्रथा को लेकर उपरोक्त बातें ही कहते हैं। लोगों का कहना है कि चुनाव के समय में भी अब यह प्रथा चल पड़ी है। 
बाइट-3 व 4: स्थानीय व्यक्ति 


Conclusion:
Last Updated : May 17, 2019, 10:50 PM IST
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