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खंडहर बन चुकी है ऐतिहासिक नाहन फाउंडरी, सही इस्तेमाल नहीं कर पाई कोई भी सरकार

साल 1964 में नाहन फाउंड्री भारत सरकार से हिमाचल सरकार के अधीन आई. इसमें बना सामान देश के अन्य हिस्सों के साथ-साथ विदेशों में भी जाता था. यहां लोहे की ग्रिल, लोहे के बेंच, लोहे की मजबूत टंकियां, लोहे की रेलिंग, हमामजस्ते, गन्ने का रस निकालने की मशीन मोटरें, कृषि के उपकरण अन्य दर्जनों लोहे का सामान यहां बनता था, जिसकी भारी डिमांड रहती थी.

ऐतिहासिक नाहन फाउंडरी
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Published : Apr 21, 2019, 11:39 PM IST

नाहनः हर बार चुनाव में चुनावी मुद्दा बनती रही नाहन फाउंडरी इस बार किसी भी पार्टी के चुनावी मुद्दे में नहीं है. नाहन फाउंडरी को लेकर सियासी रोटियां सेकते रहे राजनीतिक दल भी अब इस मुद्दे पर चर्चा करने से परहेज कर रहे हैं. ऐतिहासिक शहर नाहन के लोग भी अब बखूबी परिचित हो गए हैं कि 3 दशकों से अधिक समय से नेता इस मामले में केवल वादे ही कर रहे हैं. नेताओं की अनदेखी ने इसे नेस्तनाबूद कर दिया है.

Historical Nahaan Foundry
ऐतिहासिक नाहन फाउंडरी
खास बात ये है कि भारत के सभी राज्यों के साथ-साथ ये फाउंडरी विदेशों में भी जानी जाती थी. अब ये कामधेनु मां खंडहर में तब्दील होकर आखिरी सांसें गिन रही है. कभी गरीब के घर की रोजी-रोटी रही ये ऐश्वर्य की भूमि अब एक प्लॉट बन चुकी है. इस पर छिटपुट सरकारी दफ्तर बसाए जा रहे हैं. एक दफ्तर तो एनएच का यहां बस भी गया है. किसी जमाने में रोजगार देने वाली ये एक मां थी, जिसकी पनाह में हजारों घरों के चूल्हे जलते थे.
जानकारी देते स्थानीय

साल 1964 में नाहन फाउंड्री भारत सरकार से हिमाचल सरकार के अधीन आई. इसमें बना सामान देश के अन्य हिस्सों के साथ-साथ विदेशों में भी जाता था. यहां लोहे की ग्रिल, लोहे के बेंच, लोहे की मजबूत टंकियां, लोहे की रेलिंग, हमामजस्ते, गन्ने का रस निकालने की मशीन मोटरें, कृषि के उपकरण अन्य दर्जनों लोहे का सामान यहां बनता था, जिसकी भारी डिमांड रहती थी.

महाराजा ने की थी इसकी स्थापना
नाहन फाउंडरी की स्थापना 1875 में महाराजा शमशेर प्रकाश ने की थी. उस समय यहां लोहे का सामान बनता था. 1945 में फाउंडरी लिमिटेड के नाम से एक कंपनी बनी, जबकि 1964 में भारत सरकार ने यह हिमाचल सरकार के अधीन आई. इसमें बना सामान देश के अन्य हिस्सों के साथ-साथ विदेशों में भी जाता था. यहां लोहे की ग्रिल, लोहे के बेंच, लोहे की मजबूत टंकियां, लोहे की रेलिंग, मॉम जस्ते, गन्ने का रस निकालने की मशीन मोटरें, कृषि के उपकरण अन्य दर्जनों लोहे का सामान यहां बनता था. फाउंडरी का ऐश्वर्य राजनेताओं को नहीं भाया और 1988 में यह बंद हो गई. इसके बाद केवल इस मुद्दे पर राजनीतिक रोटियां ही सेकी गई.

गौरतलब है कि धूमल सरकार में फाउंडरी परिसर में डिग्री कॉलेज खोलने का ऐलान किया गया था, इसका शिलान्यास भी उस वक्त के मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल ने कर दिया था. ऐसे में 27 हजार स्क्वेयर यार्ड के बेशकीमती परिसर को टुकड़ों में बांटने की कवायद शुरू हो गई थी. सत्ता परिवर्तन होते ही वीरभद्र सरकार ने धूमल सरकार का यह फैसला बदल दिया. नाहन के विधायक डॉ. राजीव बिंदल ने भी फाउंडरी परिसर में क्राफ्ट उद्योग तक का सपना लोगों को दिखाया, लेकिन अब तक कुछ नहीं बना.

1988 में फाउंडरी की थम गई थी सांसें
फाउंडरी की सांसे अक्टूबर 1988 में उस वक्त ही थम गई थी, जब परिसर में पीडब्ल्यूडी व आईपीएस की राज्य कार्यशाला को इसमें तब्दील कर दिया गया.


सारी उम्मीदें हो चुकी हैं धराशायी, जानिए क्या कहते हैं लोग
इस मुद्दे पर भाजपा और कांग्रेस दोनों ही दल लोगों से बड़े-बड़े वादे करते रहे, लेकिन करीब 3 दशकों में फाउंडरी के उचित इस्तेमाल के लेकर कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया. शहरवासी तो अब यह बात समझ चुके हैं कि फाउंडरी का जीर्णोद्धार ही अब संभव नहीं है, लेकिन यह उम्मीद की जा रही है कि इस परिसर का इस्तेमाल उचित तरीके से होगा. लोगों का कहना है कि अब यह नाहन फाउंडरी नेताओं के लिए कोई मुद्दा नहीं रही है. किसी जमाने में यह हजारों लोगों को रोजगार देती थी, लेकिन आज खंडहर में तब्दील हो रही है. अब नेता इसकी बात तक भी नहीं करते. यहां से लोहे का सामान कई बार चोरी तक भी हो चुका है. बड़े-बड़े सपने दिखाए जाते हैं, लेकिन अब तक कुछ नहीं बन पाया है. क्राफ्ट विलेज का वायदा भी केवल वादा ही बनकर रह गया है. लोगों का कहना है कि यदि इस परिसर में कोई उद्योग चलाया जाए तो निसंदेह यहां के युवाओं को रोजगार के अवसर भी खुलेंगे. इस परिसर का सही तरीके से इस्तेमाल किए जाने की आवश्यकता है.


वहीं, नाहन फाउंडरी में कार्य कर चुके वरिष्ठ पत्रकार एसपी जैरथ बताते हैं कि वह उस वक्त कर्मचारी यूनियन के महासचिव भी रहे थे. इस फाउंडरी में कई तरह का सामान तैयार होता था. यही नहीं, यहां हजारों कर्मचारी कार्यरत थे, जिनकी रोजी रोटी का एकमात्र साधन नाहन फाउंडरी ही थी, लेकिन नेताओं की इस दिशा में लगातार अनदेखी ने इसे खंडहर में तब्दील होने के लिए छोड़ दिया है. यहां पर कोई उद्योग स्थापित हो तो निसंदेह यहां के लोगों को रोजगार मिलेगा. कुल मिलाकर अब नाहन फाउंडरी नेताओं के लिए बीते जमाने की बातें हो चली है, लेकिन शहर वासी आज भी टकटकी लगाए बैठे हैं कि कोई तो महाराजा शमशेर प्रकाश बनकर आए, जो इसके जीर्णोद्धार की दिशा में काम करें.

नाहनः हर बार चुनाव में चुनावी मुद्दा बनती रही नाहन फाउंडरी इस बार किसी भी पार्टी के चुनावी मुद्दे में नहीं है. नाहन फाउंडरी को लेकर सियासी रोटियां सेकते रहे राजनीतिक दल भी अब इस मुद्दे पर चर्चा करने से परहेज कर रहे हैं. ऐतिहासिक शहर नाहन के लोग भी अब बखूबी परिचित हो गए हैं कि 3 दशकों से अधिक समय से नेता इस मामले में केवल वादे ही कर रहे हैं. नेताओं की अनदेखी ने इसे नेस्तनाबूद कर दिया है.

Historical Nahaan Foundry
ऐतिहासिक नाहन फाउंडरी
खास बात ये है कि भारत के सभी राज्यों के साथ-साथ ये फाउंडरी विदेशों में भी जानी जाती थी. अब ये कामधेनु मां खंडहर में तब्दील होकर आखिरी सांसें गिन रही है. कभी गरीब के घर की रोजी-रोटी रही ये ऐश्वर्य की भूमि अब एक प्लॉट बन चुकी है. इस पर छिटपुट सरकारी दफ्तर बसाए जा रहे हैं. एक दफ्तर तो एनएच का यहां बस भी गया है. किसी जमाने में रोजगार देने वाली ये एक मां थी, जिसकी पनाह में हजारों घरों के चूल्हे जलते थे.
जानकारी देते स्थानीय

साल 1964 में नाहन फाउंड्री भारत सरकार से हिमाचल सरकार के अधीन आई. इसमें बना सामान देश के अन्य हिस्सों के साथ-साथ विदेशों में भी जाता था. यहां लोहे की ग्रिल, लोहे के बेंच, लोहे की मजबूत टंकियां, लोहे की रेलिंग, हमामजस्ते, गन्ने का रस निकालने की मशीन मोटरें, कृषि के उपकरण अन्य दर्जनों लोहे का सामान यहां बनता था, जिसकी भारी डिमांड रहती थी.

महाराजा ने की थी इसकी स्थापना
नाहन फाउंडरी की स्थापना 1875 में महाराजा शमशेर प्रकाश ने की थी. उस समय यहां लोहे का सामान बनता था. 1945 में फाउंडरी लिमिटेड के नाम से एक कंपनी बनी, जबकि 1964 में भारत सरकार ने यह हिमाचल सरकार के अधीन आई. इसमें बना सामान देश के अन्य हिस्सों के साथ-साथ विदेशों में भी जाता था. यहां लोहे की ग्रिल, लोहे के बेंच, लोहे की मजबूत टंकियां, लोहे की रेलिंग, मॉम जस्ते, गन्ने का रस निकालने की मशीन मोटरें, कृषि के उपकरण अन्य दर्जनों लोहे का सामान यहां बनता था. फाउंडरी का ऐश्वर्य राजनेताओं को नहीं भाया और 1988 में यह बंद हो गई. इसके बाद केवल इस मुद्दे पर राजनीतिक रोटियां ही सेकी गई.

गौरतलब है कि धूमल सरकार में फाउंडरी परिसर में डिग्री कॉलेज खोलने का ऐलान किया गया था, इसका शिलान्यास भी उस वक्त के मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल ने कर दिया था. ऐसे में 27 हजार स्क्वेयर यार्ड के बेशकीमती परिसर को टुकड़ों में बांटने की कवायद शुरू हो गई थी. सत्ता परिवर्तन होते ही वीरभद्र सरकार ने धूमल सरकार का यह फैसला बदल दिया. नाहन के विधायक डॉ. राजीव बिंदल ने भी फाउंडरी परिसर में क्राफ्ट उद्योग तक का सपना लोगों को दिखाया, लेकिन अब तक कुछ नहीं बना.

1988 में फाउंडरी की थम गई थी सांसें
फाउंडरी की सांसे अक्टूबर 1988 में उस वक्त ही थम गई थी, जब परिसर में पीडब्ल्यूडी व आईपीएस की राज्य कार्यशाला को इसमें तब्दील कर दिया गया.


सारी उम्मीदें हो चुकी हैं धराशायी, जानिए क्या कहते हैं लोग
इस मुद्दे पर भाजपा और कांग्रेस दोनों ही दल लोगों से बड़े-बड़े वादे करते रहे, लेकिन करीब 3 दशकों में फाउंडरी के उचित इस्तेमाल के लेकर कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया. शहरवासी तो अब यह बात समझ चुके हैं कि फाउंडरी का जीर्णोद्धार ही अब संभव नहीं है, लेकिन यह उम्मीद की जा रही है कि इस परिसर का इस्तेमाल उचित तरीके से होगा. लोगों का कहना है कि अब यह नाहन फाउंडरी नेताओं के लिए कोई मुद्दा नहीं रही है. किसी जमाने में यह हजारों लोगों को रोजगार देती थी, लेकिन आज खंडहर में तब्दील हो रही है. अब नेता इसकी बात तक भी नहीं करते. यहां से लोहे का सामान कई बार चोरी तक भी हो चुका है. बड़े-बड़े सपने दिखाए जाते हैं, लेकिन अब तक कुछ नहीं बन पाया है. क्राफ्ट विलेज का वायदा भी केवल वादा ही बनकर रह गया है. लोगों का कहना है कि यदि इस परिसर में कोई उद्योग चलाया जाए तो निसंदेह यहां के युवाओं को रोजगार के अवसर भी खुलेंगे. इस परिसर का सही तरीके से इस्तेमाल किए जाने की आवश्यकता है.


वहीं, नाहन फाउंडरी में कार्य कर चुके वरिष्ठ पत्रकार एसपी जैरथ बताते हैं कि वह उस वक्त कर्मचारी यूनियन के महासचिव भी रहे थे. इस फाउंडरी में कई तरह का सामान तैयार होता था. यही नहीं, यहां हजारों कर्मचारी कार्यरत थे, जिनकी रोजी रोटी का एकमात्र साधन नाहन फाउंडरी ही थी, लेकिन नेताओं की इस दिशा में लगातार अनदेखी ने इसे खंडहर में तब्दील होने के लिए छोड़ दिया है. यहां पर कोई उद्योग स्थापित हो तो निसंदेह यहां के लोगों को रोजगार मिलेगा. कुल मिलाकर अब नाहन फाउंडरी नेताओं के लिए बीते जमाने की बातें हो चली है, लेकिन शहर वासी आज भी टकटकी लगाए बैठे हैं कि कोई तो महाराजा शमशेर प्रकाश बनकर आए, जो इसके जीर्णोद्धार की दिशा में काम करें.

Intro:- नेताओं ने नेस्तानाबूत कर दी फाउंडरी, कौन बनकर आएगा महाराजा शमशेर प्रकाश
- सिरमौर रियासत के महाराजा ने किया था इस जीवनदायिनी कामधेनु मां को स्थापित
- तीन दशक से हर चुनाव में कांग्रेस के नाम पर राजनेताओं ने बटोरे वोट, पर अब गए भूल
नाहन। हर बार चुनाव में चुनावी मुद्दा बनती रही नाहन फाउंडरी इस बार मुद्दे में नहीं है। नाहन फाउंडरी को लेकर सियासी रोटियां सेकते रहे राजनीतिक दल भी अब इस मुद्दे पर चर्चा करने में शर्म महसूस करते हैं। ऐतिहासिक शहर नाहन के लोग भी अब बखूबी परिचित हो गए हैं कि 3 दशकों से अधिक समय से नेता इस मामले में केवल वादे ही कर रहे हैं। नेताओं की अनदेखी ने इसे नेस्तनाबूद कर दिया। खास बात यह है कि भारत के सभी राज्यों के साथ यह विदेशों में भी जानी जाती थी। अब यह कामधेनु मां खंडहर में तब्दील होकर आखरी सांसे गिन रही है। कभी गरीब के घर की रोजी रोटी रही ये ऐश्वर्या की भूमि अब एक प्लाट बन चुकी है। इस पर छिटपुट सरकारी दफ्तर बसाए जा रहे है। एक दफ्तर तो एनएच का यहां बस भी गया है। किसी जमाने में रोजगार देने वाली यह एक मां थी, जिसकी पनाह में हजारों घरों के चूल्हे जलते थे।


Body:आज भी वे लोग जो फाउंडरी में काम करते थे, वे इसे देखते हैं तो रो पड़ते हैं। उनके पिता ने भी, दादा ने भी। चार पीढ़ियों को पालने वाली यह फाउंडरी आज भी सब का पालन पोषण कर सकती थी, लेकिन राजनीतिक आकाओं ने इसे नेस्तनाबूद कर दिया। आज कोई भी इसे पहली वाली हालत में लाने के लिए नहीं सोचता। यह वही है, जिसकी वजह से नाहन संपन्न हुआ व नाहन के लोग नाहन में रहे ओर यहां से बाहर नहीं गए। यह नाहन को बसाने वाली एक मां थी, जिसने सबको अपने आंचल में पाला, लेकिन आज उसके आंचल में पड़े उसके बच्चे उसे तिल- तिल खत्म होता देख रहे हैं।

महाराजा ने की थी इसकी स्थापना
नाहन फाउंडरी की स्थापना 1875 में महाराजा शमशेर प्रकाश ने की थी। उस समय यहां लोहे का सामान बनता था। 1945 में फाउंडरी लिमिटेड के नाम से एक कंपनी बनी। जबकि 1964 में भारत सरकार ने यह हिमाचल सरकार के अधीन आई। इसमें बना सामान देश के अन्य हिस्सों के साथ साथ विदेशों में भी जाता था। यहां लोहे की ग्रिल, लोहे के बेंच, लोहे की मजबूत टंकियां, लोहे की रेलिंग, मॉम जस्ते, गन्ने का रस निकालने की मशीन मोटरें, कृषि के उपकरण अन्य दर्जनों लोहे का सामान यहां बनता। मगर फाउंडरी का ऐश्वर्या राजनेताओं को नहीं भाया ओर 1988 में यह बंद हो गई। इसके बात केवल इस मुद्दे पर राजनीतिक रोटियां ही से की गई।

गौरतलब है कि धूमल सरकार में फाउंडरी परिसर में डिग्री कॉलेज खोलने का ऐलान किया गया था, इसका शिलान्यास भी उस वक्त के मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल ने कर दिया था। ऐसे में 27 हज़ार स्क्वेयर यार्ड के बेशकीमती परिसर को टुकड़ों में बांटने की कवायद शुरू हो गई थी। सत्ता परिवर्तन होते ही वीरभद्र सरकार ने धूमल सरकार का यह फैसला बदल दिया। नाहन के विधायक डॉ राजीव बिंदल ने भी फाउंडरी परिसर में क्राफ्ट उद्योग तक का सपना लोगों को दिखाया, लेकिन अब तक कुछ नहीं बना।

1988 में फाउंडरी की सांसें गई थी थम
हालांकि फाउंडरी की सांसे अक्टूबर 1988 में उस वक्त ही थम गई थी, जब परिसर में पीडब्ल्यूडी व आईपीएस की राज्य कार्यशाला को इसमें तब्दील कर दिया गया।

सारी उम्मीदें हो चुकी है धराशायी, जानिए क्या कहते हैं लोग
इस मुद्दे पर भाजपा व कांग्रेस दोनों ही दल लोगों से बड़े-बड़े वायदे करते रहे, लेकिन करीब 3 दशकों में फाउंडरी के उचित इस्तेमाल के लेकर कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया। शहरवासी तो अब यह बात समझ चुके हैं कि फाउंडरी का जीर्णोद्धार अब संभव नहीं है, मगर यह उम्मीद की जा रही है कि इस परिसर का इस्तेमाल उचित तरीके से होगा, मगर अब तक ऐसा कुछ नहीं हुआ।
लोगों का कहना है कि अब यह नाहन फाउंडरी नेताओं के लिए कोई मुद्दा नहीं रही है। किसी जमाने में यह हजारों लोगों को रोजगार देती थी लेकिन आज खंडहर में तब्दील हो रही है। अब नेता इसकी बात तक भी नहीं करते। यहां से लोहे का सामान कई बार चोरी तक भी हो चुका है। बड़े सपने दिखाए जाते हैं लेकिन अब तक कुछ नहीं बना। क्राफ्ट विलेज का वायदा भी केवल वादा ही बनकर रह गया है। लोगों का कहना है कि यदि इस परिसर में कोई उद्योग चलाया जाए तो निसंदेह यहां के युवाओं को रोजगार के अवसर भी खुलेंगे। इस परिसर का सही तरीके से इस्तेमाल किए जाने की आवश्यकता है।
बाइट : पंकज तन्हा, स्थानीय निवासी
बाइट : सुधीर रमौल, स्थानीय निवासी
बाइट : डॉ. सुरेश जोशी,स्थानीय निवासी

वहीं नाहन फाउंडरी में कार्य कर चुके वरिष्ठ पत्रकार एसपी जैरथ बताते हैं कि वह उस वक्त कर्मचारी यूनियन के महासचिव भी रहे थे। इस फाउंडरी में कई तरह का सामान तैयार होता था। यही नहीं यहां हजारों कर्मचारी कार्यरत थे, जिनकी रोजी रोटी का एकमात्र साधन नाहन फाउंडरी ही थी। मगर नेताओं की इस दिशा में लगातार अनदेखी ने इसे खंडहर में तब्दील होने के लिए छोड़ दिया है। यहां पर कोई उद्योग स्थापित हो तो निसंदेह यहां के लोगों को रोजगार मिलेगा।
बाइट : एसपी जैरथ, पूर्व कर्मचारी नाहन फाउंडरी एवं वरिष्ठ पत्रकार
कुल मिलाकर अब नाहन फाउंडरी नेताओं के लिए बीते जमाने की बातें हो चली है, लेकिन शहर वासी आज भी टकटकी लगाए बैठे हैं कि कोई तो महाराजा शमशेर प्रकाश बनकर आए, जो इसके जीर्णोद्धार की दिशा में काम करें।



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