शिमला: निजी स्कूलों की मनमानी और लूट से परेशान अभिभावक अब अपनी मांग को शिक्षा मंत्री के समक्ष रखेंगे. इस बार निजी स्कूलों के खिलाफ सड़कों पर उतरे अभिभावकों ने ठान ली है कि इस आंदोलन को तभी बंद किया जाएगा, जब इन स्कूलों की लूट बंद होगी.
छात्र अभिभावक मंच का एक प्रतिनिधिमंडल 16 मार्च को शिक्षा मंत्री सुरेश भारद्वाज से मिलेगा ओर उन्हें ज्ञापन सौंप कर प्राइवेट स्कूलों की मनमानी, लूट खसोट व भारी भरकम फीसों के खिलाफ उचित कार्रवाई की मांग करेगा. ये मंच शिक्षा मंत्री से इन स्कूलों की मनमानी को रोकने के लिए दखल व हस्तक्षेप देने की अपील भी करेगा.
बता दें छात्र अभिभावक मंच ने प्रदेश सरकार को चेताया है कि अगर उसने निजी स्कूलों को संचालित करने के लिए कोई ठोस कानून व पॉलिसी न बनाई गई और इन स्कूलों की मनमानी नहीं रोकी गई तो वे आंदोलन को और उग्र करेंगे.
छात्र अभिभावक मंच के संयोजक विजेंद्र मेहरा ने प्रदेश सरकार से मांग की है कि वे प्राइवेट स्कूलों की मनमानी पर नकेल कसने के लिए तुरंत शिक्षा का अधिकार कानून 2009 को लागू करें. उन्होंने कहा है कि शिक्षा का अधिकार कानून 2009 को बने 10 साल हो चुके हैं, लेकिन हिमाचल प्रदेश की सरकार ने प्राइवेट स्कूलों को इसके तहत संचालित करने की जहमत तक नहीं उठाई.
छात्र अभिभावक मंच का कहना है कि हिमाचल प्रदेश में बनी राज्य सलाहकार परिषद के अध्यक्ष खुद शिक्षा मंत्री सुरेश भारद्वाज हैं. नियमानुसार साल में इसकी चार बैठकें होनी चाहिए ताकि इस कानून की अनुपालना को मॉनिटर किया जा सके, लेकिन शायद ही कभी इस परिषद की कोई मीटिंग हुई हो. जिससे साफ है कि प्रदेश सरकार इस कानून को लागू करने के मामले में पूरी तरह संवेदनहीन है.
मंच ने कहा कि मानव संसाधन विकास मंत्रालय साल 2014 में अपनी अधिसूचना के जरिए स्पष्ट कर चुका है कि शिक्षा का अधिकार कानून प्राइवेट स्कूलों पर भी लागू होगा. मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने प्राइवेट स्कूलों में छात्रों की केपिटेशन फीस, सिक्योरिटी व सेफ्टी को मॉनिटर करने के लिए भी शिक्षा का अधिकार कानून में प्रावधान किया है. जिसके तहत छात्रों व अभिभावकों को बेहतर शैक्षणिक वातावरण देने के लिए निजी शैक्षणिक संस्थानों में लोकतांत्रिक प्रक्रिया को मजबूत करने की बात की गई है.
छात्र अभिभावक मंच का कहना है कि निजी शैक्षणिक संस्थानों में लोकतांत्रिक प्रक्रिया को मजबूत करने के लिए पेरेंट्स टीचर एसोसिएशन का गठन आवश्यक किया गया है ताकि छात्रों की फीस, सिक्योरिटी व अन्य मुद्दों पर स्कूल प्रबंधनों की तानाशाही न हो और संविधान के तहत शिक्षा के अधिकार व दिशा निर्देशक सिद्धान्तों की पालना हो.
पीटीए में 75 प्रतिशत सदस्य अभिभावक होने चाहिए. इसके इलावा प्रबंधन के केवल एक सदस्य, शिक्षक, स्थानीय अधिकारी आदि पीटीए की संरचना में शामिल हैं. पीटीए में चुने जाने वाले 75 प्रतिशत अभिभावक स्कूल प्रबंधन की पसंद पर नहीं चुने जाएंगे बल्कि निजी स्कूल के इर्द-गिर्द शिक्षा विभाग द्वारा नामित किसी सरकारी स्कूल के हेडमास्टर या प्रिंसिपल की देखरेख में पीटीए के लिए चुने जाने वाले 75 प्रतिशत अभिभावकों का लोकतांत्रिक तरीके से चुनाव होगा.
पीटीए स्कूल सत्र शुरू होने के एक महीने के भीतर गठित होनी चाहिए व इसकी जानकारी पीटीए का विवरण आवश्यक रूप से स्कूल वेबसाइट पर दर्ज होना चाहिए. स्कूल के निर्णयों में पीटीए की अहम भूमिका होनी चाहिए. इन सब कामों को मॉनिटर करने का जिम्मा राज्य सलाहकार परिषद के पास था, लेकिन उसकी बैठक न होने से प्राइवेट स्कूलों को खुली मनमानी करने का मौका लगातार मिलता रहा है. जिसके चलते ये बेहद जरूरी है कि राज्य सलाहकार परिषद की बैठक निरन्तर हो व इन स्कूलों की मनमानी पर अंकुश लगे.
मंच की सह संयोजक बिंदु जोशी ने भी आरोप लगाते हुए कहा है कि 15 अप्रैल 2018 को सुप्रीम कोर्ट ने निजी शिक्षण संस्थानों में छात्रों की सेफ्टी व सिक्योरिटी को सुनिश्चित करने के लिए निजी शैक्षणिक संस्थानों के प्रबंधनों को जवाबदेह बनाने के लिए दिशानिर्देश दिए थे. इसके तहत सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार व प्रदेश सरकारों को निर्देशित किया था कि 6 महीनों के भीतर इन संस्थानों को मॉनिटर करने के लिए नियम बनने चाहिए और ये लागू होने चाहिए. इसके बावजूद हिमाचल सरकार ने इस दिशा में कोई कार्य नहीं किया है, लेकिन अब सरकार को इस दिशा में काम करना होगा.