शिमला: आपने देश के में अलग-अलग मेलों के बारे में सुना होगा और इन मेलों को देखा भी होगा, लेकिन क्या कभी आपने ऐसा मेला देखा है जो एक-दूसरे पर पत्थर बरसाने के साथ शुरू होता है ओर खत्म होता है इंसान का रक्त बहने के बाद.
जी हां शिमला के धामी इलाके में इस तरह का ही एक मेला मनाया जाता है. इस मेले में लोग एक-दूसरे पर तब तक पत्थर मारते हैं जब तक किसी शख्स को चोट लगने के बाद उसका रक्त नहीं बहता. शिमला से करीब 25 किलोमीटर की दूरी पर धामी गांव है. ये मेला यहीं मनाया जाता है.
दिवाली के एक दिन बाद आयोजित होने वाले इस पत्थर मेले को सोमवार को धामी में बड़े धूमधाम से मनाया गया. यहां लोग एक-दूसरे पर पत्थर किसी प्रदर्शन या लड़ाई के दौरान नहीं मारते बल्कि सदियों से चली आ रही परंपरा का निर्वहन करने के लिए दो गुटों के बीच ये पत्थरबाजी होती है.
मेले से पहले राज परिवार ढोल-नगाड़ों के साथ जलूस निकालते हैं जो भीमा काली मंदिर तक जाता है. यहां माथा टेकने के बाद धामी के चबूतरे पर जहां रानी सत्ती हुई थी वहां तक पहुंचने के बाद पत्थर मेला शुरू होता है.
दोनों तरफ से दो गुट के लोग एक दूसरे पर पत्थर बरसाते हैं. सोमवार को भी यह खेल 13 मिनट तक लगातार चलता रहा. 13 मिनट तक पत्थरबाजी होने के बाद हर साल की परंपरा पूरी हुई और राजवंश की तरफ से मेले में शामिल हिमांशु को पत्थर लगने से खून निकला जिसके बाद मेला संपन्न हुआ.
इसके बाद इसी व्यक्ति के रक्त का तिलक मां भीमाकाली और रानी सती के चबूतरे पर चढ़ाया गया. मेले में आसपास के क्षेत्र के हजारों लोग शामिल हुए और इस मेले के प्रत्यक्षदर्शी बने. इस मेले में खुशहाली के लिए दो गुट एक दूसरे पर पत्थरों की बारिश करते हैं.
मेले की ये परंपरा पिछले सैकड़ों वर्षों से चली आ रही है. राज परिवार के जगदीप सिंह ने बताया कि परंपरा अनुसार पहले यहां मानव बलि होती थी. उसके बाद जब धामी रियासत के राजा की मृत्यु हुई तो रानी ने इस प्रथा को बंद करवाया जिसके बाद से यहां पत्थर मेले की शुरुआत हुई है और लोग वर्षों से इस परंपरा को निभाते आ रहे हैं.
रानी ने ही इस खेल के लिए खुन्दों को एकत्रित किया जिसमें राजवंश के साथ ही अन्य समुदाय के लोगों को शामिल किया गया. इस खेल को दुश्मनी के तौर पर न खेल कर बल्कि खेल की भावना से खेला जाता है और मान्यता है कि इससे क्षेत्र में खुशहाली आती है.
इस बार मेले में पत्थरबाजी के दौरान हिमांशु कश्यप को पत्थर लगा और वो जख्मी हुए. युवा हिमांशु कश्यप ने कहा कि इस वर्ष मुझे इस मेले में पत्थर लगा है और मेरे रक्त का तिलक मां भीमा काली को किया गया है. इससे ये यह परंपरा आगे बढ़ेगी.
उन्होंने कहा कि यहां के युवाओं की भी इस मेले से आस्था जुड़ी है और यही वजह है कि वह इस मेले में भाग लेते हैं. उन्होंने कहा कि भले उन्हें पत्थर लगा है, लेकिन उन्हें इसका दर्द महसूस नहीं हो रहा है. जबकि युवा को पत्थर लगने के बाद अस्पताल ले जाया गया. जहां उसे उपचार के बाद घर भेजा गया. खेल में शामिल अन्य लोगों को भी हल्की चोटें आई जिसमें से एक व्यक्ति के सर में चोट लगी ओर उनका भी उपचार किया गया.
लोगों की मान्यता ना चढ़े खून तो फैल सकती है महामारी
लोगों की मान्यता है कि अगर मां भीमा काली को मानव रक्त नहीं चढ़ाया जाएगा तो इलाके में महामारी फैल सकती है. कहा जाता है कि जब इस क्षेत्र में नर बलि को बंद कर दिया गया था तो उसके बाद यहां पशु बलि दी जाती थी, लेकिन मां भीमा काली ने इसे स्वीकार नहीं किया और इलाके में महामारी फैलने के चलते कई लोगों की मौत हो गई. उसके बाद से इस पत्थर मेले की परंपरा को शुरू कर मानव रक्त ही मां भीमा काली को चढ़ाया जाता है.
रानी हुई थी सती तब बना चबूतरा
जानकारी के तहत जिस स्थान पर चबूतरा बनाया गया है वहां रानी राजा की मृत्यु के बाद सती हुईं थी. रानी ने ही नर बली की प्रथा को बंद किया था तो वहां उनका चबूतरा बनाया गया है और आज भी पत्थर मेले में जब किसी को चोट लगती है तो उसका रक्त चबूतरे पर भी चढ़ाया जाता है.