शिमला: कोरोना संकट से जूझ रही हिमाचल सरकार के लिए इन दिनों नित्त नई मुसीबतें पेश आ रही हैं.कांग्रेस के नेता अकसर सरकार पर ये आरोप लगाते आ रहे हैं कि सरकार का ब्यूरोक्रेस पर कंट्रोल नहीं है, लेकिन इस समय स्थिति अलग है. हाल ही में कैबिनेट मीटिंग में एक मंत्री का राज्य के सबसे बड़े नौकरशाह से तल्ख संवाद चर्चा में रहा है.
एक के बाद एक ऐसी घटनाएं हो रही हैं, जिससे जयराम सरकार की छवि पर विपरीत असर पड़ा है. कुल्लू की घटना के तुरंत बाद धर्मशाला के विधायक की पत्नी का वीडियो आ गया. इसने सरकार को असहज कर दिया है. बेशक ये घरेलू मामला है, लेकिन एक जनप्रतिनिधि से जुड़ा होने के कारण इसका असर राजनीति और भाजपा पर भी पड़ेगा. ये सारे घटनाक्रम एक दूसरे के साथ जुड़े हैं, परंतु यहां चर्चा उस घटना की करेंगे, जिसने कांग्रेस को भी बैठे-बिठाए मुद्दा दे दिया है.
महेंद्र सिंह और सीएस के बीच बहस
दरअसल, कैबिनेट मीटिंग के दौरान मुख्य सचिव से सरकार के नंबर दो की पोजीशन वाले ताकतवर मंत्री महेंद्र सिंह ठाकुर की तीखी बहस हो गई. मामला स्टेट डिजास्टर रिलीफ फंड के आवंटन से जुड़ा था. यहां बता दें कि महेंद्र सिंह जयराम सरकार के सबसे पावरफुल मिनिस्टर हैं. वे अपने दबंग स्वभाव के लिए जाने जाते हैं. अफसरशाही के साथ वे हमेशा कड़ाई से पेश आते हैं.
कैबिनेट मीटिंग के दौरान एसडीआरएफ फंड के आवंटन से जुड़ा एक मामला था. राजस्व विभाग का कार्यभार देख रहे मंत्री महेंद्र सिंह इस बात से नाराज थे कि उनकी सहमति और पूछे बिना कुछ फैसले हो रहे हैं. मुख्य सचिव ने शालीनता से अपना पक्ष रखा, लेकिन मंत्री का गुस्सा कम नहीं हुआ. हालांकि ये तल्खी कैबिनेट से बाहर नहीं आई और मुख्य सचिव सहित मंत्री ने भी कोई प्रतिक्रिया नहीं दी.परंतु आग लगी तो धुआं भी उठ ही गया. ये धुआं सरकार के फेफड़ों को नुकसान पहुंचा सकता है.
कांग्रेस ने लपका मुद्दा
वहीं, कांग्रेस ने मुद्दा लपक लिया और मुख्य सचिव के पक्ष में खड़ी हो गई. ये भी दिलचस्प है कि विपक्ष में रहते हुए कांग्रेस सरकार के अहम हिस्से और मुख्य सचिव के पक्ष में खड़ी हुई. इससे पहले सरकार ने जब कुछ तबादले किए तो एक आईएएस अफसर ओंकार शर्मा ने अपना विभाग ही नहीं संभाला. ऐसा भी कई बार देखने में आया है कि तबादलों से जुड़ा आदेश होने से पहले ही अफसरशाही में चर्चा होने लगती है कि किसे क्या मिल रहा है और किसका विभाग बदल रहा है.
ये सरकार की विनम्रता नहीं, कमजोरी को दिखाता है. फिर सरकार के कोरोना काल में कुछ ऐसे फैसले भी हुए, जो अकसर बदल जाते रहे. चाहे बार्डर खोलने का मसला हो या पर्यटकों की आमद के नियमों का कोरोना काल में कोरोना की टैस्ट रिपोर्ट में देरी को लेकर कई शिकायतें आई तो सरकार के लिए स्थितियां असहज हो गई थीं.
वीरभद्र-धूमल का स्वभाव था कड़क
वरिष्ठ पत्रकार धनंजय शर्मा के अनुसार सरकार और सीएम का रुआब ऐसा होना चाहिए कि अफसरशाही कंट्रोल में रहे. यानी अफसर सरकार की नीतियों व कार्यक्रमों को लागू करने में सक्रियता दिखाएं. वीरभद्र सिंह व प्रेम कुमार धूमल का कार्यकाल इसका गवाह रहा है. जयराम ठाकुर सौम्य स्वभाव के नेता हैं और यही कारण है कि अफसरशाही को धमकाने में यकीन नहीं रखते, परंतु ये भी सत्य है कि सत्ता चलाने के लिए एक जरूरी सख्ती चाहिए होती है.
कुल्लू थप्पड़ कांड ने करवाई किरकिरी
इसी बीच, कुल्लू में वीवीआईपी मूवमेंट के दौरान एक ऐसी घटना हुई, जिसने सरकार की छवि और खराब की है. नितिन गडकरी के दौरे में एसपी कुल्लू व सीएम सिक्योरिटी इंचार्ज के बीच झड़प हो गई. थप्पड़ चल गया और बाद में एक पीएसओ ने एसपी कुल्लू को लात तक मार दी. इस घटना ने सरकार को सकते में डाल दिया.
हालांकि डीजीपी ने तुरंत एक्शन लेकर स्थिति संभाली और जांच बिठाई, लेकिन कांग्रेस को फिर मुद्दा मिल गया.उसके बाद धर्मशाला के विधायक विशाल नेहरिया की पत्नी का वीडियो वायरल हो गया, जिसमें उन्होंने पति पर घरेलू हिंसा के आरोप जड़े हैं. ये घटनाएं इसलिए भी होती हैं, जब सरकार और सरकार के मुखिया का डर कम हो. इस मुद्दे को कांग्रेस भुनाने की तैयारी में हैं.
ब्यूरोक्रेसी के साथ टकराव कोई भी सरकार नहीं चाहती. जयराम ठाकुर ने सत्ता संभालने के बाद कई बार रिव्यू मीटिंग में अफसरों से कहा है कि काम करें और सरकार की जन कल्याणकारी योजनाओं को जनता तक पहुंचाएं. उल्लेखनीय है कि जयराम सरकार की कई योजनाएं ऐसी हैं, जिनका जनता को काफी लाभ मिला है. पेंशन की आयु सीमा घटाना या फिर सहारा योजना, जनता ने इन्हें काफी सराहा है.
सरकारी योजनाएं तभी धरातल पर उतरती हैं, जब ब्यूरोक्रेसी सरकार के अनुसार काम करे. कांग्रेस का आरोप पहले ये था कि ब्यूरोक्रेसी जयराम सरकार के कंट्रोल में नहीं है और अब नए मामले में वो मुख्य सचिव के साथ खड़ी है. फिलहाल, सरकार को ऐसे-ऐसे सभी डैमेज को कंट्रोल करना होगा, ठीक ब्यूरोक्रेसी और अपने बीच के टकराव की तरह.
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