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हजारों बीघा सरकारी जमीन पर बना लिए बगीचे, कोर्ट को मिली चिट्ठी से खुली लोगों की पोल

सरकारी जमीन पर कब्जा करने के मामले अकसर पेश आते रहते हैं. देश में यह समस्या मैदानी राज्यों में अलग तरह की है लेकिन पहाड़ी प्रदेशों में इसका अलग ही रूप है. हिमाचल छोटा पहाड़ी राज्य है और यहां सरकारी वन भूमि काफी अधिक है. ऐसे में हिमाचल में सरकारी जमीन पर अवैध कब्जों के सबसे अधिक केस वन भूमि से ही आते हैं. हिमाचल में जमीन पर अवैध कब्जों से जुड़ा सबसे चर्चित मामले का खुलासा एक चिट्ठी से हुआ था.

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Published : Mar 29, 2021, 3:48 PM IST

Updated : Mar 30, 2021, 8:07 PM IST

शिमलाः हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के नाम आई चिट्ठी में दावा किया गया कि ऊपरी शिमला के जंगलों में दबंग लोगों ने सरकारी जंगलों से पेड़ काट कर सेब के बागीचे स्थापित कर दिए हैं. मामला सात साल पहले का है. ऊपरी शिमला के जुब्बल निवासी कृष्णचंद्र सारटा ने हाईकोर्ट के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश के नाम एक चिट्ठी लिखी. पत्र में खुलासा किया गया था कि ऊपरी शिमला में कई प्रभावशाली लोगों ने अवैध तरीके से सरकारी वन भूमि पर कब्जा किया हुआ है.

  • हाईकोर्ट भी रह गया हैरान

सारटा ने अपने पत्र में कुछ प्रभावशाली लोगों के नाम और पते दिए थे. पत्र मिलने के बाद हाईकोर्ट भी हैरान रह गया. हाईकोर्ट ने चिट्ठी को जनहित याचिका के तौर पर स्वीकार कर सरकार को आदेश दिए कि एक-एक इंच सरकारी वन भूमि से कब्जा हटाया जाए. हाईकोर्ट के आदेश के बाद सरकार के महकमों ने कब्जा छुड़ाने की मुहिम शुरू की लेकिन सरकारी अमला प्रभावी कार्रवाई से हाईकोर्ट को संतुष्ट नहीं कर पाया. कारण यह रहा कि सरकारी मशीनरी ने छोटे कब्जाधारियों के खिलाफ तो सख्ती से एक्शन लिया लेकिन बड़ी मछलियों को छूने से परहेज करती रही. बाद में सामने आया कि कुछ प्रभावशाली परिवारों ने 2800 बीघा जमीन कब्जाई हुई है. यही नहीं वहां पक्के निर्माण भी किए गए थे और बिजली-पानी के कनेक्शन भी ऐसे कब्जाधारियों ने सरकारी मशीनरी को लोभ देकर हासिल किए हैं.

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  • अदालत ने जाहिर की नाराजगी

हाईकोर्ट ने एक साथ राजस्व विभाग, वन विभाग, पुलिस, जिला प्रशासन और अन्य संबंधित विभागों को कार्रवाई के लिए कहा था. जब बड़ी मछलियों पर कार्रवाई नहीं हुई तो चिट्ठी ने कमाल किया. हाईकोर्ट के आदेश पर कब्जे हटाने की कार्रवाई शुरू हुई लेकिन बड़ी मछलियों पर शिकंजा नहीं कसा गया. ऐसे में लोगों ने हाईकोर्ट की तरफ से नियुक्त कोर्ट मित्र को पत्र लिखकर बताना शुरू किया कि कुछ जगहों पर कब्जों को अभी भी नहीं छुड़वाया गया.

हाईकोर्ट के तत्कालीन कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश की अगुवाई वाली खंडपीठ ने सेना की इको टास्क फोर्स को कब्जा छुड़वाने की जिम्मेदारी सौंपी. एमिक्स क्यूरी को मिली चिट्ठी में ही खुलासा हुआ कि दो परिवारों ने अवैध बागीचों से करोड़ों रुपए कमाए और कई जगह संपत्तियां खड़ी कर लीं. बता दें कि सरकारी वन भूमि पर अवैध कब्जे करने के मामले में जिला शिमला पहले नंबर पर और कुल्लू जिला दूसरे नंबर पर था.

  • कब्जे को लेकर 2526 एफआईआर दर्ज

साल 2014 के बाद समय-समय पर हाईकोर्ट में पेश सरकारी स्टेट्स रिपोर्ट के मुताबिक अवैध तौर पर सेब के बागीचे विकसित करने के मामलों में दस बीघा से अधिक भूमि पर कब्जा करने को लेकर 2,526 एफआईआर दर्ज की गई थीं. इसके अलावा 2,522 मामले न्यायिक दंडाधिकारियों के समक्ष पेश किए गए. कुल मामलों में से 1,811 मामले विभिन्न वन मंडलाधिकारियों के समक्ष दाखिल किए गए. इनमें से 1,416 मामलों में बेदखली आदेश पारित किए गए हैं. स्टेट्स रिपोर्ट के मुताबिक 933 मामलों में 867 हेक्टेयर से अधिक भूमि से कब्जा हटाया गया था.

शिमला जिले में अवैध कब्जों के 3,280 मामले सामने आए. कुल्लू में 2392, कांगड़ा में 1757, मंडी में 1218 मामले सामने आए. इनमें लोगों ने 10 बीघा से कम भूमि पर अतिक्रमण किया हुआ है. बड़ी मछलियों पर दिखावे का एक्शन हिमाचल में सबसे अधिक शिमला में पैदा होता है. यहां दूरस्थ इलाकों में प्रभावशाली लोगों ने अपनी जमीन के साथ लगती वन भूमि से पहले पेड़ काटे और फिर उस जमीन पर कब्जा कर सेब के बागीचे तैयार किए. यह सब प्रशासन की नाक के नीचे होता रहा.

  • अवैध कब्जों के 17 हजार से अधिक केस

हिमाचल में इस समय सरकारी जमीन पर अवैध कब्जों के 17 हजार से अधिक केस हैं. पिछले साल विधानसभा में भी इस संदर्भ में सवाल लगा था. तब सदन में ये बताया गया था कि हिमाचल में सरकारी जमीन पर अवैध कब्जे के 17,490 केस हैं. इससे पहले साल 2018 में यह आंकड़ा 19,334 था. उल्लेखनीय है कि हिमाचल प्रदेश में साल 2002 में तत्कालीन सरकार ने यह प्रस्ताव रखा था कि जिन लोगों ने सरकारी जमीन पर कब्जा किया है उसे नियमित करवाया जा सकता है. इसके लिए कुछ नियम तय किए गए हैं. इसे लेकर पॉलिसी की भी बात हुई थी. छोटे कब्जों को नियमित किया जाना था. इससे उन लोगों को लाभ होना था जिन्होंने रोजी-रोटी के लिए सरकारी जमीन पर कब्जा किया था और खेती आदि कर रहे थे.

  • हिमाचल की 24 हजार 980 हेक्टेयर भूमि पर अवैध कब्जे

साल 2002 में राज्य सरकार के आह्वान के बाद आम जनता ने खुद एक लाख 67 हजार 223 छोटे-बड़े अवैध कब्जों का दावा पेश किया था. तत्कालीन सरकार ने अवैध कब्जों को नियमित करने के लिए लोगों से आवेदन मांगे थे. तब यह तथ्य सामने आया था कि हिमाचल की 24 हजार 980 हेक्टेयर भूमि पर अवैध कब्जे हुए हैं. साल 2018 में हाईकोर्ट के आदेश के बाद वन और राजस्व विभाग ने जो आंकड़ा पेश किया था उसके अनुसार हिमाचल की 419 हेक्टेयर जमीन पर अवैध कब्जे हुए हैं. इनमें 12 हजार 499 अवैध कब्जों की सुनवाई डीएफओ कोर्ट में पहुंची है. न्यायिक दंडाधिकारी की अदालत में पहुंचे 2,516 अवैध कब्जों में से 471 पर फैसला हो चुका है. इसी तरह राजस्व विभाग की जमीन पर 4,319 अवैध कब्जे दर्ज हो चुके हैं.

  • एचपी लैंड रेवेन्यू एक्ट 1954 की धारा-163

हिमाचल हाईकोर्ट ने अक्टूबर 2018 को एक अहम आदेश देते हुए पांच बीघा जमीन पर कब्जे को नियमित करने का आदेश दिया था. सरकारी वन भूमि पर पांच बीघा जमीन पर अवैध कब्जे को नियमित करने के लिए राज्य सरकार ने नीति बनाई थी. हाईकोर्ट ने राज्य सरकार की उसी नीति को ध्यान में रखते हुए उस समय यह आदेश जारी कर कहा था कि यदि प्रार्थियों ने नीति के अनुसार अपने अवैध कब्जों को नियमित करने के लिए आवेदन दाखिल नहीं किया है तो वह दो हफ्ते के भीतर उपयुक्त अथॉरिटी के समक्ष आवेदन करें. साथ ही अदालत ने अथॉरिटी को 4 महीनों में उक्त आवेदनों पर निर्णय लेने के आदेश भी दिए थे. हिमाचल प्रदेश भूमि राजस्व अधिनियम 1954 और राज्य सरकार द्वारा बनाई गई नीति के मुताबिक वह अवैध कब्जों के तौर पर 5-5 बीघा सरकारी वन भूमि को नियमित करवाने का हक रखते हैं.

जब हाईकोर्ट की निगरानी में वन भूमि पर अवैध कब्जा कर लगाए गए सेब के बागीचे हटाए जा रहे थे. सरकारी मशीनरी बड़ी मछलियों पर सिर्फ दिखावे का एक्शन कर रही थी. जनता ने एमिक्स क्यूरी को पत्र लिखकर इसका खुलासा किया तो हाईकोर्ट ने नाराजगी जताई और सेना को कब्जे हटाने का आदेश दिया. तब हाईकोर्ट ने अदालत के रजिस्ट्रार जनरल को आदेश दिए कि वह इस मामले में तुरंत भारतीय सेना की कुफरी स्थित इको टास्क फोर्स के कमांडिंग ऑफिसर्स से संपर्क करे और कब्जे हटाने में सेना की मदद ली जाए.

  • कमांडिंग ऑफिसर से संपर्क करने के थे आदेश

हाईकोर्ट ने भारतीय सेना की कुफरी में स्थित 133 बटालियन के कमांडिंग ऑफिसर से संपर्क करने को कहा. हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि सेना की इको टास्क फोर्स के जवान अदालत द्वारा पहले से गठित टीम के सदस्यों के साथ मिलकर आदेश की अनुपालना करें. अदालत ने डीसी शिमला को आदेश दिए थे कि वह विशेष टीम और इको टास्क फोर्स के सदस्यों के लिए कुशल, प्रभावी और तकनीकी कर्मियों का स्टाफ मुहैया करवाए. हाईकोर्ट ने विशेष टीम और आर्मी जवानों को आदेश दिए कि वह तुरंत प्रभाव से किसी भी तरह के अवैध कब्जे हटाना सुनिश्चित करे. जब पीसीसीएफ को निलंबित करने की बात कही हाईकोर्ट ने जयराम सरकार को सत्ता में आए अभी कुछ ही समय हुआ था कि हाईकोर्ट ने एक सख्त आदेश पारित किया. सरकारी वन भूमि से अवैध कब्जे हटाने में बड़ी मछलियों को दी जा रही छूट पर हाईकोर्ट ने 24 घंटे के अंदर सारे कब्जों की सूची मांगी थी. साथ ही यह कहा था कि बड़ी मछलियों पर एक्शन न हुआ तो वन विभाग के सबसे बड़े अफसर यानी पीसीसीएफ को निलंबित कर दिया जाएगा.

  • कांगड़ा में डमटाल मंदिर की जमीन पर भी कब्जा

कांगड़ा जिले के डमटाल स्थित सैंकड़ों साल पुराने रामगोपाल मंदिर की जमीनों पर लोगों ने अवैध कब्जा किया हुआ है. मौजूदा सरकार के समय में कब्जों को हटाने का अभियान चला था. मंदिर के पास हिमाचल और पंजाब में हजारों हैक्टेयर जमीन है. आलम यह है कि इस जमीन पर कई लोगों ने अवैध तौर पर कब्जा कर मकान, दुकान, कारखाने और कॉलोनियां बनाई हैं. साल 2018 के बजट सत्र में ये मामला उठा था. तब बीजेपी नेता राकेश पठानिया और अब खुद प्नदेश के वन मंत्री ने इस मंदिर की बेशकीमती जमीन पर अवैध कब्जों का मामला उठाया था. जवाब में मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने बताया था कि हिमाचल के कांगड़ा जिले के शाहपुर, डमटाल आदि में मंदिर की 650 हैक्टेयर जमीन है.

  • अवैध रूप से विकसित की गईं तीन कॉलोनियां

इसके अलावा पंजाब में 550 कनाल भूमि है. यह मंदिर विक्रमी संवत 1550 में बना था. हिमाचल सरकार ने इस मंदिर का अधिग्रहण जनवरी 1996 में किया था. सीएम ने माना था कि मंदिर की जमीन को लेकर पूरी केल्कुलेशन नहीं हुई है कि मंदिर के पास कितनी जमीन है. कब्जाधारियों ने पठानकोट एयरपोर्ट निर्माण में जमीन आने का मुआवजा भी करोड़ों रुपए ले लिया. यहां तक कि यहां अवैध तौर पर तीन कॉलोनियां भी विकसित कर ली गई. तब यह दिलचस्प तथ्य सामने आया था कि एक कॉलोनी यूं ही धक्केशाही में बना दी गई. यहां तक कि लोगों ने इनका नाम भी धक्का कॉलोनी रखा है.

  • अवैध कब्जा कर मंदिर की जमीन पर चलाए जा रहे 12 क्रशर

मंदिर जमीन पर ही अवैध कब्जा कर 12 क्रशर चलाए जा रहे हैं और पूर्व सरकार ने महज तीन-तीन लाख रुपए वसूल कर उन्हें नियमित किया. पठानिया ने कहा कि तिलकराज नामक एक आदमी ने तो गैर मौरूसी की एंट्री नायब तहसीलदार से करवा ली जबकि नायब तहसीलदार इसके लिए अधिकृत नहीं है. पठानिया ने कहा कि यह लोग पंजाब में आतंकवाद के दौर में यहां पलायन कर आए थे. मुख्यमंत्री ने बताया था कि मंदिर की जमीन पर 883 लोगों का कब्जा है जिनमें से 419 लोगों से किराया वसूला जा रहा है. कुल 96 लोगों ने मंदिर की जमीन पर कब्जा किया हुआ है. इनमें से 93 के एविक्शन के आदेश जारी हुए हैं.

ये भी पढ़े: पूर्व विधायक बलदेव शर्मा ने लगवाई कोरोना वैक्सीन, बोले- संजीवनी की तरह काम करेगी वैक्सीन

शिमलाः हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के नाम आई चिट्ठी में दावा किया गया कि ऊपरी शिमला के जंगलों में दबंग लोगों ने सरकारी जंगलों से पेड़ काट कर सेब के बागीचे स्थापित कर दिए हैं. मामला सात साल पहले का है. ऊपरी शिमला के जुब्बल निवासी कृष्णचंद्र सारटा ने हाईकोर्ट के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश के नाम एक चिट्ठी लिखी. पत्र में खुलासा किया गया था कि ऊपरी शिमला में कई प्रभावशाली लोगों ने अवैध तरीके से सरकारी वन भूमि पर कब्जा किया हुआ है.

  • हाईकोर्ट भी रह गया हैरान

सारटा ने अपने पत्र में कुछ प्रभावशाली लोगों के नाम और पते दिए थे. पत्र मिलने के बाद हाईकोर्ट भी हैरान रह गया. हाईकोर्ट ने चिट्ठी को जनहित याचिका के तौर पर स्वीकार कर सरकार को आदेश दिए कि एक-एक इंच सरकारी वन भूमि से कब्जा हटाया जाए. हाईकोर्ट के आदेश के बाद सरकार के महकमों ने कब्जा छुड़ाने की मुहिम शुरू की लेकिन सरकारी अमला प्रभावी कार्रवाई से हाईकोर्ट को संतुष्ट नहीं कर पाया. कारण यह रहा कि सरकारी मशीनरी ने छोटे कब्जाधारियों के खिलाफ तो सख्ती से एक्शन लिया लेकिन बड़ी मछलियों को छूने से परहेज करती रही. बाद में सामने आया कि कुछ प्रभावशाली परिवारों ने 2800 बीघा जमीन कब्जाई हुई है. यही नहीं वहां पक्के निर्माण भी किए गए थे और बिजली-पानी के कनेक्शन भी ऐसे कब्जाधारियों ने सरकारी मशीनरी को लोभ देकर हासिल किए हैं.

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  • अदालत ने जाहिर की नाराजगी

हाईकोर्ट ने एक साथ राजस्व विभाग, वन विभाग, पुलिस, जिला प्रशासन और अन्य संबंधित विभागों को कार्रवाई के लिए कहा था. जब बड़ी मछलियों पर कार्रवाई नहीं हुई तो चिट्ठी ने कमाल किया. हाईकोर्ट के आदेश पर कब्जे हटाने की कार्रवाई शुरू हुई लेकिन बड़ी मछलियों पर शिकंजा नहीं कसा गया. ऐसे में लोगों ने हाईकोर्ट की तरफ से नियुक्त कोर्ट मित्र को पत्र लिखकर बताना शुरू किया कि कुछ जगहों पर कब्जों को अभी भी नहीं छुड़वाया गया.

हाईकोर्ट के तत्कालीन कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश की अगुवाई वाली खंडपीठ ने सेना की इको टास्क फोर्स को कब्जा छुड़वाने की जिम्मेदारी सौंपी. एमिक्स क्यूरी को मिली चिट्ठी में ही खुलासा हुआ कि दो परिवारों ने अवैध बागीचों से करोड़ों रुपए कमाए और कई जगह संपत्तियां खड़ी कर लीं. बता दें कि सरकारी वन भूमि पर अवैध कब्जे करने के मामले में जिला शिमला पहले नंबर पर और कुल्लू जिला दूसरे नंबर पर था.

  • कब्जे को लेकर 2526 एफआईआर दर्ज

साल 2014 के बाद समय-समय पर हाईकोर्ट में पेश सरकारी स्टेट्स रिपोर्ट के मुताबिक अवैध तौर पर सेब के बागीचे विकसित करने के मामलों में दस बीघा से अधिक भूमि पर कब्जा करने को लेकर 2,526 एफआईआर दर्ज की गई थीं. इसके अलावा 2,522 मामले न्यायिक दंडाधिकारियों के समक्ष पेश किए गए. कुल मामलों में से 1,811 मामले विभिन्न वन मंडलाधिकारियों के समक्ष दाखिल किए गए. इनमें से 1,416 मामलों में बेदखली आदेश पारित किए गए हैं. स्टेट्स रिपोर्ट के मुताबिक 933 मामलों में 867 हेक्टेयर से अधिक भूमि से कब्जा हटाया गया था.

शिमला जिले में अवैध कब्जों के 3,280 मामले सामने आए. कुल्लू में 2392, कांगड़ा में 1757, मंडी में 1218 मामले सामने आए. इनमें लोगों ने 10 बीघा से कम भूमि पर अतिक्रमण किया हुआ है. बड़ी मछलियों पर दिखावे का एक्शन हिमाचल में सबसे अधिक शिमला में पैदा होता है. यहां दूरस्थ इलाकों में प्रभावशाली लोगों ने अपनी जमीन के साथ लगती वन भूमि से पहले पेड़ काटे और फिर उस जमीन पर कब्जा कर सेब के बागीचे तैयार किए. यह सब प्रशासन की नाक के नीचे होता रहा.

  • अवैध कब्जों के 17 हजार से अधिक केस

हिमाचल में इस समय सरकारी जमीन पर अवैध कब्जों के 17 हजार से अधिक केस हैं. पिछले साल विधानसभा में भी इस संदर्भ में सवाल लगा था. तब सदन में ये बताया गया था कि हिमाचल में सरकारी जमीन पर अवैध कब्जे के 17,490 केस हैं. इससे पहले साल 2018 में यह आंकड़ा 19,334 था. उल्लेखनीय है कि हिमाचल प्रदेश में साल 2002 में तत्कालीन सरकार ने यह प्रस्ताव रखा था कि जिन लोगों ने सरकारी जमीन पर कब्जा किया है उसे नियमित करवाया जा सकता है. इसके लिए कुछ नियम तय किए गए हैं. इसे लेकर पॉलिसी की भी बात हुई थी. छोटे कब्जों को नियमित किया जाना था. इससे उन लोगों को लाभ होना था जिन्होंने रोजी-रोटी के लिए सरकारी जमीन पर कब्जा किया था और खेती आदि कर रहे थे.

  • हिमाचल की 24 हजार 980 हेक्टेयर भूमि पर अवैध कब्जे

साल 2002 में राज्य सरकार के आह्वान के बाद आम जनता ने खुद एक लाख 67 हजार 223 छोटे-बड़े अवैध कब्जों का दावा पेश किया था. तत्कालीन सरकार ने अवैध कब्जों को नियमित करने के लिए लोगों से आवेदन मांगे थे. तब यह तथ्य सामने आया था कि हिमाचल की 24 हजार 980 हेक्टेयर भूमि पर अवैध कब्जे हुए हैं. साल 2018 में हाईकोर्ट के आदेश के बाद वन और राजस्व विभाग ने जो आंकड़ा पेश किया था उसके अनुसार हिमाचल की 419 हेक्टेयर जमीन पर अवैध कब्जे हुए हैं. इनमें 12 हजार 499 अवैध कब्जों की सुनवाई डीएफओ कोर्ट में पहुंची है. न्यायिक दंडाधिकारी की अदालत में पहुंचे 2,516 अवैध कब्जों में से 471 पर फैसला हो चुका है. इसी तरह राजस्व विभाग की जमीन पर 4,319 अवैध कब्जे दर्ज हो चुके हैं.

  • एचपी लैंड रेवेन्यू एक्ट 1954 की धारा-163

हिमाचल हाईकोर्ट ने अक्टूबर 2018 को एक अहम आदेश देते हुए पांच बीघा जमीन पर कब्जे को नियमित करने का आदेश दिया था. सरकारी वन भूमि पर पांच बीघा जमीन पर अवैध कब्जे को नियमित करने के लिए राज्य सरकार ने नीति बनाई थी. हाईकोर्ट ने राज्य सरकार की उसी नीति को ध्यान में रखते हुए उस समय यह आदेश जारी कर कहा था कि यदि प्रार्थियों ने नीति के अनुसार अपने अवैध कब्जों को नियमित करने के लिए आवेदन दाखिल नहीं किया है तो वह दो हफ्ते के भीतर उपयुक्त अथॉरिटी के समक्ष आवेदन करें. साथ ही अदालत ने अथॉरिटी को 4 महीनों में उक्त आवेदनों पर निर्णय लेने के आदेश भी दिए थे. हिमाचल प्रदेश भूमि राजस्व अधिनियम 1954 और राज्य सरकार द्वारा बनाई गई नीति के मुताबिक वह अवैध कब्जों के तौर पर 5-5 बीघा सरकारी वन भूमि को नियमित करवाने का हक रखते हैं.

जब हाईकोर्ट की निगरानी में वन भूमि पर अवैध कब्जा कर लगाए गए सेब के बागीचे हटाए जा रहे थे. सरकारी मशीनरी बड़ी मछलियों पर सिर्फ दिखावे का एक्शन कर रही थी. जनता ने एमिक्स क्यूरी को पत्र लिखकर इसका खुलासा किया तो हाईकोर्ट ने नाराजगी जताई और सेना को कब्जे हटाने का आदेश दिया. तब हाईकोर्ट ने अदालत के रजिस्ट्रार जनरल को आदेश दिए कि वह इस मामले में तुरंत भारतीय सेना की कुफरी स्थित इको टास्क फोर्स के कमांडिंग ऑफिसर्स से संपर्क करे और कब्जे हटाने में सेना की मदद ली जाए.

  • कमांडिंग ऑफिसर से संपर्क करने के थे आदेश

हाईकोर्ट ने भारतीय सेना की कुफरी में स्थित 133 बटालियन के कमांडिंग ऑफिसर से संपर्क करने को कहा. हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि सेना की इको टास्क फोर्स के जवान अदालत द्वारा पहले से गठित टीम के सदस्यों के साथ मिलकर आदेश की अनुपालना करें. अदालत ने डीसी शिमला को आदेश दिए थे कि वह विशेष टीम और इको टास्क फोर्स के सदस्यों के लिए कुशल, प्रभावी और तकनीकी कर्मियों का स्टाफ मुहैया करवाए. हाईकोर्ट ने विशेष टीम और आर्मी जवानों को आदेश दिए कि वह तुरंत प्रभाव से किसी भी तरह के अवैध कब्जे हटाना सुनिश्चित करे. जब पीसीसीएफ को निलंबित करने की बात कही हाईकोर्ट ने जयराम सरकार को सत्ता में आए अभी कुछ ही समय हुआ था कि हाईकोर्ट ने एक सख्त आदेश पारित किया. सरकारी वन भूमि से अवैध कब्जे हटाने में बड़ी मछलियों को दी जा रही छूट पर हाईकोर्ट ने 24 घंटे के अंदर सारे कब्जों की सूची मांगी थी. साथ ही यह कहा था कि बड़ी मछलियों पर एक्शन न हुआ तो वन विभाग के सबसे बड़े अफसर यानी पीसीसीएफ को निलंबित कर दिया जाएगा.

  • कांगड़ा में डमटाल मंदिर की जमीन पर भी कब्जा

कांगड़ा जिले के डमटाल स्थित सैंकड़ों साल पुराने रामगोपाल मंदिर की जमीनों पर लोगों ने अवैध कब्जा किया हुआ है. मौजूदा सरकार के समय में कब्जों को हटाने का अभियान चला था. मंदिर के पास हिमाचल और पंजाब में हजारों हैक्टेयर जमीन है. आलम यह है कि इस जमीन पर कई लोगों ने अवैध तौर पर कब्जा कर मकान, दुकान, कारखाने और कॉलोनियां बनाई हैं. साल 2018 के बजट सत्र में ये मामला उठा था. तब बीजेपी नेता राकेश पठानिया और अब खुद प्नदेश के वन मंत्री ने इस मंदिर की बेशकीमती जमीन पर अवैध कब्जों का मामला उठाया था. जवाब में मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने बताया था कि हिमाचल के कांगड़ा जिले के शाहपुर, डमटाल आदि में मंदिर की 650 हैक्टेयर जमीन है.

  • अवैध रूप से विकसित की गईं तीन कॉलोनियां

इसके अलावा पंजाब में 550 कनाल भूमि है. यह मंदिर विक्रमी संवत 1550 में बना था. हिमाचल सरकार ने इस मंदिर का अधिग्रहण जनवरी 1996 में किया था. सीएम ने माना था कि मंदिर की जमीन को लेकर पूरी केल्कुलेशन नहीं हुई है कि मंदिर के पास कितनी जमीन है. कब्जाधारियों ने पठानकोट एयरपोर्ट निर्माण में जमीन आने का मुआवजा भी करोड़ों रुपए ले लिया. यहां तक कि यहां अवैध तौर पर तीन कॉलोनियां भी विकसित कर ली गई. तब यह दिलचस्प तथ्य सामने आया था कि एक कॉलोनी यूं ही धक्केशाही में बना दी गई. यहां तक कि लोगों ने इनका नाम भी धक्का कॉलोनी रखा है.

  • अवैध कब्जा कर मंदिर की जमीन पर चलाए जा रहे 12 क्रशर

मंदिर जमीन पर ही अवैध कब्जा कर 12 क्रशर चलाए जा रहे हैं और पूर्व सरकार ने महज तीन-तीन लाख रुपए वसूल कर उन्हें नियमित किया. पठानिया ने कहा कि तिलकराज नामक एक आदमी ने तो गैर मौरूसी की एंट्री नायब तहसीलदार से करवा ली जबकि नायब तहसीलदार इसके लिए अधिकृत नहीं है. पठानिया ने कहा कि यह लोग पंजाब में आतंकवाद के दौर में यहां पलायन कर आए थे. मुख्यमंत्री ने बताया था कि मंदिर की जमीन पर 883 लोगों का कब्जा है जिनमें से 419 लोगों से किराया वसूला जा रहा है. कुल 96 लोगों ने मंदिर की जमीन पर कब्जा किया हुआ है. इनमें से 93 के एविक्शन के आदेश जारी हुए हैं.

ये भी पढ़े: पूर्व विधायक बलदेव शर्मा ने लगवाई कोरोना वैक्सीन, बोले- संजीवनी की तरह काम करेगी वैक्सीन

Last Updated : Mar 30, 2021, 8:07 PM IST
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