कुल्लू: देश के बेहतरीन इंजीनियर्स और मजदूरों की दस साल की कड़ी मेहनत के बाद रोहतांग अटल टनल अब उद्घाटन के लिए तैयार है. इस सुरंग को बनाने का विचार करीब 160 साल पुराना है जो अब साल 2020 में मूर्त रूप लेने जा रहा है.
मनाली से लेह को जोड़ने वाली दुनिया की सबसे लंबी अटल सुरंग आखिरकार 10 साल में बनकर तैयार हो गई. पहले इसे 6 साल में बनाकर तैयार किया जाना था, लेकिन बाद में 4 साल और अधिक टाइम बढ़ गया.
देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 3 अक्टूबर को स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेयी के नाम पर बनाई गई इस टनल का उद्घाटन करेंगे. पिछले साल पीएम मोदी ने पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की 95वीं जयंती पर घोषणा की थी कि हिमाचल प्रदेश में रोहतांग के पास जो टनल बनाई जा रही है उसे अटल टनल के नाम से जाना जाएगा.
सुरंग का डिजाइन तैयार करने वाली ऑस्ट्रेलियाई कंपनी स्नोई माउंटेन इंजीनियरिंग कंपनी (एसएमईसी) की वेबसाइट के मुताबिक रोहतांग दर्रे पर सुरंग बनाने का पहला विचार 1860 में मोरावियन मिशन ने रखा था.
समुद्र तल से 3,000 मीटर की ऊंचाई पर करीब 3200 करोड़ रुपये की लगात से बनी दुनिया की यह सबसे लंबी सुरंग लद्दाख के हिस्से को साल भर संपर्क सुविधा प्रदान करेगी.
ये हैं खूबियां
- अटल सुरंग 10,000 फीट ऊंचाई पर बनी दुनिया की सबसे लंबी टनल है. इससे मनाली और लेह के बीच के सफर की 46 किमी दूरी घटेगी.
- मनाली से लेह को जोड़ने वाली यह अटल टनल दुनिया की सबसे लंबी हाइवे टनल है. इसमें हर 60 मीटर की दूरी पर CCTV कैमरे लगाए गए हैं. इतना ही नहीं सुरंग के भीतर हर 500 मीटर की दूरी पर इमरजेंसी एग्जिट भी बनाए गए हैं.
- इस सुरंग की बदौलत मनाली से लेह के बीच की दूरी 46 किमी तक कम हो जाएगी जिससे आवाजाही 4 घंटे के समय की बचत होगी.
- किसी भी प्रकार की अनहोनी से बचने के लिए फाइटर हाइड्रेंट लगाए गए हैं. इसकी चौड़ाई 10.5 मीटर है. इसमें दोनों ओर 1-1 मीटर के फुटपाथ भी बनाए गए हैं.
- इस टनल को बनाने में कई तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ा है. इसमें केवल एक छोर से काम कर रहे थे, दूसरा छोर रोहतांग के पास उत्तर में था. एक साल में सिर्फ 5 महीने ही काम किया जा सकता था.
- अटल टनल प्रोजेक्ट की लागत 2010 में 1,700 रुपये से बढ़कर सितंबर 2020 तक 3,200 करोड़ रुपये हो गई.
- इस सुंरग की कुल लंबाई 9.2 किलोमीटर है. मूल रूप से इसे 8.8 किमी लंबी सुरंग के रूप में तैयार किया गया था. काम पूरा होने के बाद बीआरओ द्वारा की गई ताजा जीपीएस अध्ययन से यह पता चला है कि यह सुरंग नौ किलोमीटर लंबी है.
- इस एकल सुरंग में डबल लेन होगी. समुद्र तल से 10,000 फुट या 3,000 मीटर की ऊंचाई पर बनी दुनिया की सबसे लंबी सुरंग है.
- यह देश की पहली ऐसी सुरंग होगी जिसमें मुख्य सुरंग के भीतर ही बचाव सुरंग बनायी गयी है. सामान्यत: दुनियाभर में बचाव सुरंग को मुख्य सुरंग के साथ-साथ बनाया जाता है.
पहले थी रोप-वे बनाने का योजना
हालांकि, देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू के कार्यकाल में भी रोहतांग दर्रे पर रोप-वे बनाने का प्रस्ताव आया था. बाद में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की सरकार में मनाली और लेह के बीच सालभर कनेक्टिविटी देने वाली सड़क के निर्माण की परियोजना बनी, लेकिन इस परियोजना को मूर्त रूप प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में मिला.
घट गईं दूरियां
पूर्वी पीर पंजाल की पर्वत श्रृंखला में बनी यह 9.02 किलोमीटर लंबी सुरंग लेह- मनाली राजमार्ग पर है. यह करीब 10.5 मीटर चौड़ी और 5.52 मीटर ऊंची है. सुरंग के भीतर किसी कार की अधिकतम रफ्तार 80 किलोमीटर प्रतिघंटा हो सकती है.
यह सुरंग मनाली को लाहौल और स्पीति घाटी से जोड़ेगी. इससे मनाली-रोहतांग दर्रा-सरचू-लेह राजमार्ग पर 46 किलोमीटर की दूरी घटेगी और यात्रा समय भी चार से पांच घंटा कम हो जाएगा.
वहीं, मनाली वैली से लाहौल और स्पीति वैली तक पहुंचने में करीब 5 घंटे का वक्त लगता है, अब यह करीब 10 मिनट में पूरा हो जाएगा. साथ ही यह लाहौल और स्पीति वैली के लोगों के लिए किसी वरदान से कम नहीं है, जो भारी बर्फबारी के दौरान हर साल सर्दी में करीब छह महीने के लिए देश के शेष हिस्से से कट जाता था.
टनल बनाने में मुश्किलें
यह पहली ऐसी सुरंग है जिसमें रोवा फ्लायर प्रौद्योगिकी का उपयोग किया गया है. यह प्रौद्योगिकी विपरीत स्तर पर इंजीनियरों को काम करने में सक्षम बनाती है. उन्होंने कहा कि इस सुरंग को बनने में हुई देरी की मुख्य वजह 410 मीटर लंबा सेरी नाला है.
यह नाला हर सेकेंड 125 लीटर से अधिक पानी निकालता है जिससे यहां काम करना बहुत मुश्किल था. इस टनल के निर्माण में लगे बीआरओ के अधिकारियों का कहना है कि यह उनके पूरे इंजीनियरिंग के करियर में यह सबसे कठिन काम था. इस 410 मीटर नाले के साथ 410 मीटर खुदाई में हमें तीन साल से अधिक का वक्त लगा.
सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण
सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण यह सुरंग लद्दाख क्षेत्र में सैन्य आवाजाही के लिए सालभर उपयोग करने लायक रास्ता उपलब्ध कराएगी. घोड़े के नाल के आकार की इस सुरंग ने देश के इंजीनियरिंग के इतिहास में कई कीर्तिमान रचे हैं और बहुत से ऐसे काम है जिन्हें पहली बार इस परियोजना में अंजाम दिया गया. इस एकल सुरंग में डबल लेन होगी.
अटल रोहतांग टनल का पूरे देश को बेसब्री से इंतजार है. अटल रोहतांग टनल होकर चीन और पाकिस्तान से स्टे सीमावर्ती क्षेत्रों को सेना और रसद पहुंचाने में अहम भूमिका निभाएगी. टनल पर्यटन की दृष्टि से भी अहम होगी और प्रदेश सरकार भी टनल को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने की तैयारी में है.