शिमला: हिमाचल में नई शिक्षा नीति लागू होगी. राज्यपाल बंडारू दत्तात्रेय ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 को मंजूरी दे दी है. जयराम सरकार ने नई शिक्षा नीति को तुरंत प्रभाव से लागू करने पर सहमति जताई थी. अगस्त में ही केंद्र की मोदी सरकार ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 जारी की थी.
नई शिक्षा नीति-2020 में शिक्षा पर सकल घरेलू उत्पाद का 6% खर्च किया जायेगा जो कि अभी 4.43% है. अब पांचवी कक्षा तक की शिक्षा मातृ भाषा में होगी. लॉ और मेडिकल एजुकेशन को छोड़कर समस्त उच्च शिक्षा के लिए एक एकल निकाय के रूप में भारत उच्च शिक्षा आयोग (HECI) का गठन किया जाएगा.
इसका मतलब अब उच्च शिक्षा के लिए एक सिंगल रेगुलेटर रहेगा. उच्च शिक्षा में 3.5 करोड़ नई सीटें जोड़ी जाएंगी. छठी क्लास से वोकेशनल कोर्स शुरू किए जाएंगे. इसके लिए इच्छुक छात्रों को 6वीं कक्षा के बाद से ही इंटर्नशिप करवाई जाएगी. म्यूज़िक और आर्ट्स को पाठयक्रम में शामिल कर बढ़ावा दिया जायेगा. ई-पाठ्यक्रम को बढ़ावा देने के लिए एक राष्ट्रीय शैक्षिक टेक्नोलॉजी फोरम (NETF) बनाया जा रहा है जिसके लिए वर्चुअल लैब विकसित की जा रहीं हैं.
नई शिक्षा नीति-2020 का सबसे महत्वपूर्ण पॉइंट है मल्टीपल एंट्री और एग्ज़िट सिस्टम लागू होना. अभी यदि कोई छात्र तीन साल इंजीनियरिंग पढ़ने या छह सेमेस्टर पढ़ने के बाद किसी कारण से आगे की पढाई नहीं कर पाता है तो उसको कुछ भी हासिल नहीं होता है. लेकिन अब मल्टीपल एंट्री और एग्ज़िट सिस्टम में एक साल के बाद पढाई छोड़ने पर सर्टिफ़िकेट, दो साल के बाद डिप्लोमा और तीन-चार साल के बाद पढाई छोड़ने के बाद डिग्री मिल जाएगी.
इससे देश में ड्राप आउट रेश्यो कम होगा. अगर कोई छात्र किसी कोर्स बीच में छोड़कर दूसरे कोर्स में एडमिशन लेना चाहें तो वो पहले कोर्स से एक ख़ास निश्चित समय तक ब्रेक ले सकता है और दूसरा कोर्स ज्वाइन कर सकता है और इसे पूरा करने के बाद फिर से पहले वाले कोर्स को जारी रख सकता है.
बीए, बीएससी जैसे ग्रेजुएशन कोर्स तीन साल के होते हैं. अब नई वाली पॉलिसी में तो तरह के विकल्प होंगे. जो नौकरी के लिहाज से पढ़ रहे हैं, उनके लिए 3 साल का ग्रेजुएशन. और जो रिसर्च में जाना चाहते हैं, उनके लिए 4 साल का ग्रेजुएशन, फिर एक साल पोस्ट ग्रेजुएशन और 4 साल का पीएचडी. एमफिल की जरूरत भी नहीं रहेगी. एम फिल का कोर्स भी खत्म कर दिया गया है.
अब कोई स्ट्रीम नहीं होगी. कोई भी मनचाहे सब्जेक्ट चुन सकता है. यानी अगर कोई फिजिक्स में ग्रेजुएशन कर रहा है और उसकी म्यूजिक में रुचि है, तो म्यूजिक भी साथ में पढ़ सकता है. आर्ट्स और साइंस वाला मामला अलग अलग नहीं रखा जाएगा. हालांकि इसमें मेजर और माइनर सब्जेक्ट की व्यवस्था होगी.
कॉलेजों को ग्रेडेड ऑटोनॉमी होगी. अभी एक यूनिवर्सिटी से एफिलिएटेड कई कॉलेज होते हैं, जिनकी परीक्षाएं यूनिवर्सिटी कराती हैं. अब कॉलेज को भी स्वायत्ता दी जा सकेगी.
देशभर की हर यूनिवर्सिटी के लिए शिक्षा के मानक एक समान होंगे. यानी सेंट्रल यूनिवर्सिटी हो या स्टेट यूनिवर्सिटी हो या डीम्ड यूनिवर्सिटी. सबका स्टैंडर्ड एक जैसा होगा. ऐसा नहीं होगा कि बिहार के किसी यूनिवर्सिटी में अलग तरह की पढ़ाई हो रही है और डीयू के कॉलेज में कुछ अलग पढ़ाया जा रहा है. और कोई प्राइवेट कॉलेज भी कितनी अधिकतम फीस ले सकता है, इसके लिए फी कैप तय होगी.
अभी हमारा स्कूली सिस्टम 10+2 है. यानी 10वीं तक सारे सब्जेक्ट और 11वीं में स्ट्रीम तय करनी होती है. नए सिस्टम को 5+3+3+4 बताया गया है. इसमें स्कूल के आखिर चार साल यानी 9वीं से लेकर 12वीं तक एकसमान माना गया है, जिसमें सब्जेक्ट गहराई में पढ़ाए जाएंगे, लेकिन स्ट्रीम चुनने की जरूरत नहीं होगी मल्टी स्ट्रीम पढ़ाई होगी.
फिजिक्स वाला चाहे तो हिस्ट्री भी पढ़ पाएगा. या कोई एक्ट्रा करिक्यूलम एक्टिविटी, जैसे म्यूजिक या कोई गेम है, तो उसे भी एक सब्जेक्ट की तरह ही शामिल कर लिया जाएगा. ऐसी रुचि वाले विषयों को एक्स्ट्रा नहीं माना जाएगा. सभी बच्चे 3, 5 और 8 की स्कूली परीक्षा देंगे. ग्रेड 10 और 12 के लिए बोर्ड परीक्षा जारी रखी जाएंगी, लेकिन इन्हें नया स्वरूप दिया जाएगा. एक नया राष्ट्रीय आकलन केंद्र ‘परख’ स्थापित किया जाएगा.
3 से 6 साल के बच्चों को अलग पाठ्यक्रम तय होगा, जिसमें उन्हें खेल के तरीखों से सिखाया जाएगा. इसके लिए टीचर्स की भी अलग ट्रेनिंग होगी. कक्षा एक से तीन तक के बच्चों को यानी 6 से 9 साल के बच्चों को लिखना पढ़ना आ जाए, इस पर खास ज़ोर दिया जाएगा. इसके लिए नेशनल मिशन शुरू किया जाएगा.
कक्षा 6 से ही बच्चों को वोकेशनल कोर्स पढ़ाए जाएंगे, यानी जिसमें बच्चे कोई स्किल सीख पाए. बाकायदा बच्चों की इंटर्नशिप भी होगी, जिसमें वो किसी कारपेंटर के यहां हो सकती है या लॉन्ड्री की हो सकती है. इसके अलावा छठी क्लास से ही बच्चों की प्रोजेक्ट बेस्ड लर्निंग होगी. कोडिंग सिखाई जाएगी. स्कूलों के सिलेबस में बदलाव किया जाएगा.
नए सिरे से पाठ्यक्रम तैयार किए जाएंगे और वो पूरे देश में एक जैसे होंगे. जोर इस पर दिया जाएगा कि कम से कम पांचवीं क्लास तक बच्चों को उनकी मातृभाषा या क्षेत्रीय भाषा में पढ़ाया जा सके. किसी भी विद्यार्थी पर कोई भी भाषा नहीं थोपी जाएगी. भारतीय पारंपरिक भाषाएं और साहित्य भी विकल्प के रूप में उपलब्ध होंगे. स्कूल में आने की उम्र से पहले भी बच्चों को क्या सिखाया जाए, ये भी पैरेंट्स को बताया जाएगा.
प्री-स्कूल से माध्यमिक स्तर तक सबके लिए एकसमान पहुंच सुनिश्चित करने पर जोर दिया जाएगा. स्कूल छोड़ चुके बच्चों को फिर से मुख्य धारा में शामिल करने के लिए स्कूल के इन्फ्रॉस्ट्रक्चर का विकास किया जाएगा. साथ ही नए शिक्षा केंद्रों की स्थापना की जाएगी.
नई शिक्षा नीति-2020 के तहत स्कूल से दूर रह रहे लगभग 2 करोड़ बच्चों को मुख्य धारा में वापस लाने का लक्ष्य है. बोर्ड की परीक्षाओं का अहमियत घटाने की बात है. साल में दो बार बोर्ड की परीक्षाएं कराई जा सकती हैं. बोर्ड की परीक्षाओं में ऑब्जेक्टिव टाइप क्वेशन पेपर भी हो सकते हैं.
एनसीईआरटी की सलाह से, एनसीटीई टीचर्स ट्रेनिंग के लिए एक नया सिलेबस NCFTE 2021 तैयार करेगा. 2030 तक, शिक्षण कार्य करने के लिए कम से कम योग्यता 4 वर्षीय इंटीग्रेटेड बीएड डिग्री हो जाएगी.