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देव आस्था से ओतप्रोत 'खिला बढ़ाच' चढ़ा कोरोना की भेंट, फीकी रही पर्व की रौनक

चौपाल निर्वाचन क्षेत्र के अंतर्गत आने वाला देवता का बटेवडी गांव देव आस्था से जुड़ा एक अलग किस्म का धार्मिक उत्सव जिसे स्थानीय भाषा में खिला कहते हैं. इस वर्ष अदृश्य वैश्विक महामारी के कारण विशेष आकर्षण के इस पर्व की रौनक फीकी नजर आई. खिला का मुख्य आकर्षण यानी के देव कार्य में प्रयुक्त होने वाले भेखल की लकड़ी के टुकड़े को गालू द्वारा मंत्र उच्चारण के साथ प्राण प्रतिष्ठा कर पलकी के नीचे रखा जाता है और जब यहां के स्थानीय देव कुला महाराज की पालकी खिले के ऊपर से उठाई जाती है तो दो दलों में संघर्ष होता है.

khila badaach festival in rampur
डिजाइन फोटो.
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Published : Nov 17, 2020, 5:32 PM IST

रामपुर: हिमाचल प्रदेश विविधताओं के लिए खासी पहचान रखता है. इसी कड़ी में चौपाल निर्वाचन क्षेत्र के अंतर्गत आने वाला देवता का बटेवडी गांव देव आस्था से जुड़ा एक अलग किस्म का धार्मिक उत्सव जिसे स्थानीय भाषा में खिला कहते हैं.

इस वर्ष अदृश्य वैश्विक महामारी के कारण विशेष आकर्षण के इस पर्व की रौनक फीकी नजर आई. खिला का मुख्य आकर्षण यानी के देव कार्य में प्रयुक्त होने वाले भेखल की लकड़ी के टुकड़े को गालू द्वारा मंत्र उच्चारण के साथ प्राण प्रतिष्ठा कर पलकी के नीचे रखा जाता है और जब यहां के स्थानीय देव कुला महाराज की पालकी खिले के ऊपर से उठाई जाती है तो दो दलों में संघर्ष होता है.

एक दल में राजपूत क्षत्रिय बधान व दूसरे दल में ब्राह्मण क्षत्रिय चंदान के मध्य देव परंपरा से ओतप्रोत खिले को अपने पक्ष में काबिज करने की होड़ के चलते वर्चस्व की लड़ाई के लिए संघर्ष होता है. जिस पक्ष के दल के व्यक्तियों द्वारा खिला निकलने के उपरांत संघर्ष करते हुए आसमान की ओर उछाला जाता है. उस दल को विजय माना जाता है.

इस तरह की परंपरा सैकड़ों वर्षों से चली आ रही है. हालांकि इस तरह के संघर्ष विराम में यह खेल जोखिम भरा रहता है, क्योंकि कंटीले पथरीले रास्तों से कई बार किलोमीटर दूर जाकर यह खेल संपन्न होता है, लेकिन कुला महाराज की असीम अनुकंपा के चलते आज तक कोई अप्रिय घटना घटित नहीं हुई है. जिसे देवीय आस्था का प्रताप माना जाता है.

इससे पूर्व सभी ग्रामीणों के द्वारा सामूहिक पारंपरिक नृत्य किया जाता है. हिमाचल की संस्कृति में देवी-देवताओं का बहुत महत्व है. पुराने समय से यहां के हर समुदाय हरगांव का कुल देवता कुलदेवी होते हैं. मान्यताओं के अनुसार यह देवी देवता इनकी रक्षा करते हैं. इसी देव संस्कृति के कारण हिमाचल को देव भूमि कहा जाता है जोकि नाम को सही से चरितार्थ करता है.

रामपुर: हिमाचल प्रदेश विविधताओं के लिए खासी पहचान रखता है. इसी कड़ी में चौपाल निर्वाचन क्षेत्र के अंतर्गत आने वाला देवता का बटेवडी गांव देव आस्था से जुड़ा एक अलग किस्म का धार्मिक उत्सव जिसे स्थानीय भाषा में खिला कहते हैं.

इस वर्ष अदृश्य वैश्विक महामारी के कारण विशेष आकर्षण के इस पर्व की रौनक फीकी नजर आई. खिला का मुख्य आकर्षण यानी के देव कार्य में प्रयुक्त होने वाले भेखल की लकड़ी के टुकड़े को गालू द्वारा मंत्र उच्चारण के साथ प्राण प्रतिष्ठा कर पलकी के नीचे रखा जाता है और जब यहां के स्थानीय देव कुला महाराज की पालकी खिले के ऊपर से उठाई जाती है तो दो दलों में संघर्ष होता है.

एक दल में राजपूत क्षत्रिय बधान व दूसरे दल में ब्राह्मण क्षत्रिय चंदान के मध्य देव परंपरा से ओतप्रोत खिले को अपने पक्ष में काबिज करने की होड़ के चलते वर्चस्व की लड़ाई के लिए संघर्ष होता है. जिस पक्ष के दल के व्यक्तियों द्वारा खिला निकलने के उपरांत संघर्ष करते हुए आसमान की ओर उछाला जाता है. उस दल को विजय माना जाता है.

इस तरह की परंपरा सैकड़ों वर्षों से चली आ रही है. हालांकि इस तरह के संघर्ष विराम में यह खेल जोखिम भरा रहता है, क्योंकि कंटीले पथरीले रास्तों से कई बार किलोमीटर दूर जाकर यह खेल संपन्न होता है, लेकिन कुला महाराज की असीम अनुकंपा के चलते आज तक कोई अप्रिय घटना घटित नहीं हुई है. जिसे देवीय आस्था का प्रताप माना जाता है.

इससे पूर्व सभी ग्रामीणों के द्वारा सामूहिक पारंपरिक नृत्य किया जाता है. हिमाचल की संस्कृति में देवी-देवताओं का बहुत महत्व है. पुराने समय से यहां के हर समुदाय हरगांव का कुल देवता कुलदेवी होते हैं. मान्यताओं के अनुसार यह देवी देवता इनकी रक्षा करते हैं. इसी देव संस्कृति के कारण हिमाचल को देव भूमि कहा जाता है जोकि नाम को सही से चरितार्थ करता है.

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