शिमला: हिमाचल के स्कॉलरशिप स्कैम में ईडी के पास पुख्ता सबूत हैं. घोटालेबाजों ने छात्रों का हक मार कर अकूत संपत्ति बनाई थी. बताया जा रहा है कि छात्रवृति घोटाले में शामिल लोगों ने अपने आलीशान घरों में कई लाख रुपए की सीलिंग का काम करवाया है. ईडी के पास पूरी मनी ट्रेल मौजूद है. इस मामले में हाईकोर्ट ने भी सीबीआई को जल्द से जल्द जांच पूरी करने के आदेश दिए हैं. आखिरकार 2.38 लाख छात्रों के हक का 250 करोड़ रुपए से अधिक का पैसा घोटालेबाजों ने कैसे हड़प लिया, इसकी पूरी कहानी जानना दिलचस्प होगा.
छात्रवृति घोटोले में ₹266 करोड़ का फर्जीवाड़ा: इस घोटाले में दलालों ने कागजों में हेराफेरी कर 2.38 लाख छात्रों का हक हड़प लिया गया था. दलाल होटलों में बैठकर सैटिंग करते थे. शातिरों को अपने ऊपर इतना भरोसा था कि उन्होंने 19,915 छात्रों को सिर्फ चार मोबाइल नंबर्स से जुड़े बैंक खातों में राशि जारी कर दी. ये सब मोबाइल नंबर्स फर्जी थे और 19 हजार से अधिक छात्रों के हक की सारी रकम दलाल हड़प गए थे. कुल फर्जीवाड़ा ₹266 करोड़ रुपए का है. इसमें से 256 करोड़ रुपए निजी संस्थानों को जारी किए गए और 10 करोड़ रुपए सरकारी संस्थानों को दिए गए थे.
क्या है स्कॉलरशिप की प्रक्रिया: पूरी कहानी समझने से पहले स्कॉलरशिप प्रक्रिया को जानना जरूरी है. केंद्र व राज्य सरकार मेधावी छात्रों को पोस्ट मैट्रिक स्कॉलरशिप देती है. ये स्कॉलरशिप एससी, एसटी, ओबीसी, माइनॉरिटी वर्ग के छात्र-छात्राओं के लिए होती है. ये स्कॉलरशिप की रकम छात्रों को सीधे तौर पर नहीं दी जाती, बल्कि पात्र छात्र जिन सरकारी अथवा निजी संस्थानों में विभिन्न कोर्स की पढ़ाई करने जाते हैं, उस संस्थान के खाते में ये रकम जाती है. फिर वो संस्थान छात्र अथवा छात्रा को कोर्स विशेष की पढ़ाई करवाता है. उदाहरण के लिए हिमाचल सरकार की मेधा प्रोत्साहन योजना को लेते हैं.
राज्य सरकार छात्रों की पढ़ाई के लिए देती है पैसा: इस योजना में राज्य सरकार निजी कोचिंग संस्थानों को प्रति छात्र एक लाख रुपए देती है. ये पैसा छात्र को नहीं मिलता, बल्कि संस्थान के खाते में जाता है और संस्थान उस पैसे से छात्र को प्रतियोगी परीक्षाओं जैसे यूपीएससी आदि की कोचिंग प्रदान करता है. राज्य सरकार इसके लिए संस्थानों की सूची जारी करती है. शर्तें पूरी करने वाले संस्थानों को कोचिंग के लिए अधिकृत किया जाता है. इसी तरह केंद्र व राज्य सरकार की विभिन्न वर्ग के छात्रों के लिए पोस्ट मैट्रिक स्कॉलरशिप देती है. इसकी रकम अलग-अलग कोर्स के लिए अलग-अलग होती है. पोस्ट मैट्रिक स्कॉलरशिप के तहत छात्र हिमाचल के अलावा देश के किसी भी अधिकृत शैक्षणिक संस्थान में मनपसंद कोर्स की पढ़ाई कर सकते हैं.
कब शुरू हुआ फर्जीवाड़ा और कैसे पकड़ में आया: हिमाचल में स्कॉलरशिप स्कैम 2013 से चल रहा है. वैसे आशंका तो ये भी है कि फर्जीवाड़ा इससे भी पहले 2009 से चल रहा था, लेकिन इसका पता 2013 में चला. हुआ यूं कि आईएएस अफसर अरुण शर्मा जब शिक्षा सचिव थे तो उन्होंने घोटाला सामने आने के बाद पुलिस में मामला दर्ज करवाया. शिक्षा विभाग की संबंधित ब्रांच के एक अफसर को शक हुआ कि स्कॉलरशिप में गड़बड़ी हो रही है. उन्होंने इस बारे में शिक्षा सचिव अरुण शर्मा से बात की. उन्होंने अपने स्तर पर जांच की और पाया कि सच में फर्जीवाड़ा हो रहा है. शिक्षा विभाग के कुछ अफसर व कर्मचारी संस्थानों के दलालों से मिलकर कागजों में ही रकम हड़प रहे हैं. पहले मामला पुलिस के पास गया और फिर जयराम सरकार ने 2019 में सीबीआई जांच की सिफारिश की. सीबीआई के साथ ही ईडी ने भी अपने स्तर पर जांच शुरू कर दी, क्योंकि जहां भी एक निश्चित रकम से अधिक का मामला हो, ईडी स्वत जांच शुरू कर सकती है. अब ईडी ने इस मामले में चार लोगों को गिरफ्तार किया है.
बेखौफ होकर फर्जीवाड़ा कर रहे थे दलाल: कैग ने अपनी 2014 की रिपोर्ट में संकेत किया था कि स्कॉलरशिप में फर्जीवाड़ा हुआ है, लेकिन किसी के कान पर जूं नहीं रेंगी. दरअसल, पहले ऑनलाइन ट्रांजेक्शन नहीं होती थी तो दलाल फर्जी विदड्राल फार्म साइन करवा कर रकम हड़प लेते थे. बैंक में पात्र छात्र-छात्राओं के नाम पर फर्जी खाते खोलकर स्कॉलरशिप हड़पी गई. 38 हजार से अधिक छात्रों के फर्जी खाते खोले गए थे.
छात्रवृत्ति की राशि निजी शिक्षण संस्थानों ने डकार लिए: रिकॉर्ड के अनुसार 2016-2017 के शैक्षणिक सत्र तक कुल 924 निजी संस्थानों में कोर्स की पढ़ाई कर रहे छात्रों को 210.05 करोड़ रुपये और 1868 सरकारी संस्थानों के छात्रों को महज 56.35 करोड़ रुपये बतौर स्कॉलरशिप दिए गए. इससे पता चलता है कि घोटाला 266 करोड़ रुपए से अधिक का था. हैरत की बात है कि हिमाचल के ट्राइबल एरिया के छात्रों को तो इसका लाभ मिला ही नहीं. उनके हिस्से की छात्रवृत्ति तो फर्जी खातों के जरिए निजी शिक्षण संस्थान ही डकार गए. इस तरह घोटाले का जाल हिमाचल सहित देश के अन्य राज्यों तक फैला था.
होटलों में मीटिंग, दलाल बनाते थे योजना: फर्जीवाड़े के इस खेल में दलाल होटल में इकट्ठा होते थे और स्कॉलरशिप जारी कराने की एवज में निजी संस्थान शिक्षा विभाग के अफसरों को कमीशन का पैसा देते थे. मान लीजिए किसी संस्थान में फर्जी तरीके से 20 छात्र दाखिल कर दिए जाते थे. उनकी स्कॉलरशिप की 20 लाख रुपए की रकम संस्थानों के खाते में ट्रांजेक्ट कर दी जाती थी. उस 20 लाख रुपए में से अफसर अपनी कमीशन लेते थे. कमीशन कितने लोगों में बंटता था, सीबीआई ने इसकी जांच भी की है. निजी शिक्षण संस्थानों के प्रबंधकों से पूछताछ में भी सामने आया कि वो शिक्षा विभाग के अफसरों को कमीशन देते थे. कमीशन की ये रकम 10 फीसदी तय थी. यानी यदि किसी संस्थान को एक करोड़ रुपए ट्रांजेक्ट किए गए तो अफसरों की रिश्वत दस लाख होती थी.
शिक्षा विभाग के अधिकारी-कर्मचारी करते थे फर्जीवाड़ा: इसके बाद ही शिक्षा विभाग के अधीक्षक अरविंद राज्टा सीबीआई की रडार पर आए थे और उन्हें गिरफ्तार किया गया था. बाद में उन्हें जमानत मिली, लेकिन अभी ईडी ने उन्हें फिर से पकड़ लिया है. सीबीआई की जांच में यह भी पता चला है कि स्कॉलरशिप की स्वीकृति से संबंधित फाइलों को शिक्षा विभाग के टॉप मोस्ट अफसरों तक पहुंचने नहीं दिया जाता था. निचले स्तर के अधिकारी-कर्मचारी फाइलों को अपने स्तर पर ही मार्क कर देते थे. जांच में यह भी पता चला कि नियमों के खिलाफ निजी ई-मेल आईडी से फर्जीवाड़े को अंजाम दिया जाता था. सीबीआई ने अपनी जांच में जिन संस्थानों पर शिकंजा कसा, उनमें निम्न संस्थान शामिल हैं.
सीबीआई जांच में इन संस्थानों पर शिकंजा
1. आईटीएफटी शिक्षा समूह इको सिटी, फेज 2 सेक्टर 11, कुराली चंडीगढ़
2. हिमालयन ग्रुप ऑफ प्रोफेशनल इंस्टीट्यूट काला अंब सिरमौर
3. विद्या ज्योति ग्रुप ऑफ इंस्टीट्यूट सेक्टर 20-डी चंडीगढ़
4. केसी ग्रुप ऑफ इंस्टीट्यूट, पंडोगा ऊना (इसके चेयरमैन हितेश गांधी गिरफ्तार हुए थे)
5. केसी ग्रुप ऑफ इंस्टीट्यूट, नवांशहर पंजाब
6. सुखजिंदर ग्रुप ऑफ इंस्टीट्यूट, दुनेड़ा पंजाब
7. एएसएएमएस एजुकेशन ग्रुप, नाहन जिला सिरमौर
8. एपीजी यूनिवर्सिटी शिमला
9. कौशल विकास समिति चंबा
10. एएसएएम शिक्षा समूह फतेहपुर, जिला कांगड़ा
11. आईसीएल ग्रुप ऑफ कॉलेज हरियाणा
12. अपेक्स इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट टेक्निकल एंड पॉलिटेक्निक इंडस्ट्रीज हरियाणा
13. एसडीएस एजुकेशन ग्रुप ऊना
14. अर्नी यूनिवर्सिटी पालमपुर
15. नाइलेट केंद्र नूरपुर, कांगड़ा
16. देवभूमि ग्रुप ऑफ इंस्ट्रीट्यूट, चांदपुर ऊना
17. नाइलेट केंद्र ऊना
18. बाहरा यूनिवर्सिटी, वाकनाघाट सोलन
19. नाइलेट केंद्र नाहन, सिरमौर
20. इंडस इंटरनेशनल विश्वविद्यालय, ऊना
21. चंडीगढ़ विश्वविद्यालय पंजाब
22. शिवा इंस्टीट्यूट ऑफ इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी बिलासपुर
23. सुखजिंदर ग्रुप ऑफ इंस्टीट्यूट गुरदासपुर, पंजाब
24. आइईसी यूनिवर्सिटी, बद्दी सोलन
25. दोआबा खालसा ट्रस्ट मोहाली, पंजाब
26. स्किल डवलपमेंट सोसायटी प्राइवेट आइटीआइ बडूखर, कांगड़ा
27. इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी के राष्ट्रीय संस्थान (नाइलेट) के नाम से चंबा, ऊना, नाहन और कांगड़ा में फर्जी संस्थान चलाए जाने का आरोप है.
सीबीआई जांच के अनुसार 2013 से 2017 में मेधावी विद्यार्थियों के लिए 266 करोड़ रुपये स्कालरशिप के लिए आवंटित किए गए थे. इनमें से 16 करोड़ रुपये प्री मैट्रिक और 250 करोड़ पोस्ट मैट्रिक छात्रवृत्ति थी. इनमें से सरकारी संस्थानों को केवल 10 करोड़ रुपये आवंटित किए गए थे. शिक्षा विभाग के कुछ अफसरों व कर्मचारियों की मिलीभगत से 26 बड़े निजी संस्थानों ने आवंटित राशि का 90 फीसदी से ज्यादा पैसा फर्जीवाड़े से हड़प लिया. इनमें शिक्षा विभाग के तत्कालीन सीनियर असिस्टेंट और बाद में अधीक्षक बने अरविद राजटा मुख्य आरोपित है. फर्जीवाड़े में उसकी पत्नी भी शामिल थी.
हाईकोर्ट लगा चुका है सीबीआई को फटकार: मामला हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट की निगरानी में भी है. हाईकोर्ट समय-समय पर सीबीआई से सील्ड कवर रिपोर्ट तलब कर चुका है. सीबीआई को धीमी जांच के लिए हाईकोर्ट से कई बार फटकार भी लग चुकी है. अप्रैल 2022 में अदालत ने सीबीआई को लताड़ लगाई तो जांच एजेंसी ने अगले ही दिन सात लोगों को गिरफ्तार किया था. सीबीआई ने 8 अप्रैल 2022 को तीन निजी शिक्षण संस्थानों के प्रबंधकों और दो रजिस्ट्रार समेत सात लोगों को गिरफ्तार किया था. जांच एजेंसी ने सिरमौर जिले के कालाअंब के हिमालयन ग्रुप ऑफ प्रोफेशनल इंस्टीट्यूट के प्रबंधक रजनीश बंसल और विकास बंसल के अलावा इसी संस्थान के एक रजिस्ट्रार पन्ना लाल और शिवेंद्र सिंह को गिरफ्तार किया. गिरफ्तार किए गए अन्य आरोपियों में आईटीएफटी शिक्षा समूह न्यू चंडीगढ़ के गुलशन शर्मा, आईसीएल ग्रुप ऑफ कॉलेज हरियाणा संस्थान के संजीव प्रभाकर और इसी संस्थान के रजिस्ट्रार जोगिंद्र सिंह शामिल थे.
सरकारें रही सुस्त, दलाल थे चुस्त: शिक्षा विभाग के दलालों और निजी संस्थानों के लालची प्रबंधकों की मौज लगी थी. घोटाले में दस्तावेजों की जांच के बिना ही पैसा बांटा गया. वित्तीय वर्ष 2013-14 में स्कॉलरशिप का ऑनलाइन पोर्टल तैयार हुआ. उससे पहले तो पैसा खाना और भी आसान था. पहले हुई विभागीय जांच से सामने आया था कि स्कालरशिप की दो सौ करोड़ की रकम निजी शिक्षण संस्थानों के खाते में डाल दी गई. हैरानी की बात है कि कुल 56 करोड़ की राशि ही सरकारी संस्थानों में अध्ययन करने वाले बच्चों के खाते में जमा हुई. अरसे से कई छात्र शिक्षा विभाग में शिकायत कर रहे थे कि उन्हें स्कॉलरशिप का पैसा नहीं मिल रहा है, लेकिन किसी ने भी इन शिकायतों पर कान नहीं धरा.
शिक्षा विभाग के अनुसार केंद्रीय प्रायोजित छात्रवृत्ति योजनाओं के तहत विभाग छात्रवृत्ति में पहले अपने हिस्से की रकम डाल कर देता है. इसके बाद इस राशि का उपयोगिता प्रमाण (यूसी) पत्र केंद्र को भेजा जाता है. केंद्र सरकार इसके बाद अपने हिस्से की रकम जारी करती है. शिक्षा विभाग के जिम्मेदार अधिकारियों ने उपयोगिता प्रमाण पत्र भेजने में भी दस्तावेजों की हेराफेरी की. स्कॉलरशिप की रकम किस संस्थान में पढ़ रहे किस छात्र को दी गई, इसकी कोई जानकारी ही नहीं है. जब कोई रोकटोक नहीं हुई तो दलाल बेखौफ होकर जुट गए. हिमाचल के जनजातीय जिलों के स्टूडेंट्स के नाम पर भी करीब 50 करोड़ की रकम जमा हुई, लेकिन लाहौल स्पीति से शिकायतें आई कि छात्रों को स्कॉलरशिप का भुगतान ही नहीं हुआ है.
वर्ष 2016 में कैग ने छात्रवृत्ति की 8 करोड़ की रकम गैर यूजीसी मान्यता हासिल संस्थानों को बांटने का मामला उजागर किया. शिक्षा विभाग ने कैग की रिपोर्ट पर जवाब दिया कि छात्रवृत्ति की राशि आवंटन में यह नहीं लिखा गया है कि सिर्फ यूजीसी की तरफ से मान्यता हासिल संस्थानों में पढ़ रहे छात्र-छात्राओं को ही इस राशि का भुगतान किया जा सकता है. शुरू में विभागीय जांच में अनुसूचित जाति, जनजाति तथा ओबीसी वर्ग के छात्र-छात्राओं को दसवीं से पहले और उसके बाद मिलने वाली स्कॉलरशिप के मामले को ही अभी तक खंगाला गया था.
मैट्रिक की परीक्षा पास करने के बाद केंद्र व प्रदेश सरकार की 20 से अधिक योजनाओं के तहत स्कॉलरशिप दी जाती है. स्कॉलरशिप योजना 2013 से पहले ऑनलाइन नहीं थी, लिहाजा इससे पहले के घोटाले को पकड़ पाना खासा मुश्किल है, लेकिन सारी प्रक्रिया ऑनलाइन होने के बाद से ही गैर मान्यता प्राप्त व मान्यता प्राप्त शिक्षण संस्थानों में छात्रों के फर्जी बैंक एकाउंट खोल कर एक ही संपर्क नंबर बताते हुए घोटाला किया गया. एक ही संस्थान में सिर्फ एक साल में अनुसूचित जाति के छात्र-छात्राओं के नाम पर करोड़ों का भुगतान फर्जी तरीके से हुआ. संस्थानों में प्रवेश लेने वाले सभी छात्रों के बैंक खाते भी एक ही बैंक में दिखाए गए.
बिलासपुर जिला के एक छात्र को 77 हजार रुपए का वजीफा जारी हुआ, लेकिन वो उस तक पहुंचा ही नहीं. ये रकम पड़ोसी राज्य हरियाणा के एक बैंक की शाखा में चला गया और वहां से किसी ने इस पैसे को निकाल लिया. इसी तरह की शिकायत सिरमौर जिला के पांवटा साहिब की एक छात्रा समीना ने भी दर्ज करवाई. समीना ने शिकायत की थी कि उसके हिस्से के 30 हजार रुपए किसी अन्य राज्य में भेज दिए गए. फिर 2016 की कैग रिपोर्ट में स्कॉलरशिप के 22 लाख रुपये की गड़बड़ी पकड़ी गई. फिलहाल, दस साल पहले शुरू हुए फर्जीवाड़े के दलालों को सजा का इंतजार है.
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