शिमला: अमूमन शांति वादियों के लिए पहचान रखने वाला हिमाचल एक दशक से नशे के क्रूर पंजों का शिकार हो रहा है. हाईकोर्ट ने भी नशे की बढ़ती प्रवृति पर चिंता जताई है और सरकार सहित पुलिस को कई निर्देश दिए हैं. आलम ये है कि एक दशक के भीतर हिमाचल में नारकोटिक्स क्राइम को 6221 मामले दर्ज हुए हैं.
हिमाचल ने अपने पड़ोसी राज्यों के साथ मिलकर नशे के खिलाफ संयुक्त अभियान की बात कही है. राज्य सरकार अपने स्तर पर भी नशे की रोकथाम के लिए अभियान चला रही है. इसी कड़ी में भांग की खेती पर नजर रखने के लिए ड्रोन कैमरे के खरीद की जा रही है.
चूंकि हिमाचल एक दुर्गम पहाड़ी राज्य है और दूरस्थ इलाकों में भांग की खेती पर पूरी तरह से रोक लगाना मुश्किल की बात है, लिहाजा ड्रोम कैमरे की मदद लेने पर विचार किया गया. राज्य सरकार के आग्रह पर केंद्रीय गृह मंत्रालय ने हिमाचल के लिए तीन खास ड्रोन कैमरों की खरीद को मंजूरी दी है.
अब ड्रोन कैमरों के जरिए कुल्लू, मंडी आदि जिलों के उन इलाकों पर नजर रखी जा सकेगी, जहां नशे का कारोबार अधिक होता है.
केंद्रीय गृह मंत्रालय को आग्रह पत्र भेजने के बाद राज्य सरकार लगातार केंद्र के संपर्क में रही और इसी का नतीजा है कि हाल ही में नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो के डिप्टी डॉयरेक्टर (हैडक्वार्टर) की तरफ से राज्य सरकार को मंजूरी पत्र मिला है.
यदि एक दशक के मामलों की बात करें तो नशे से जुड़े 6221 मामले सामने आए. एक दशक में नशीले पदार्थों की तस्करी के आरोप में 6175 भारतीय और 124 विदेशी नागरिक दबोचे गए. कुल मामलों में से 5563 केस अदालतों के समक्ष लाए गए.
अभी तक एक दशक में 744 केसिज में आरोपितों को सजा सुनाई गई. ये भी दिलचस्प है कि 1762 केस अदालत में साबित नहीं हो पाए. एनडीपीएस एक्ट से जुड़े आंकड़ों पर गौर करें तो 2008 में सजा की दर 32.6 फीस रही. फिर वर्ष 2009 में 31.3 प्रतिशत, 2010 में 26.1, 2011 में 25.2, 2012 में 30.5, 2013 में 24.4, 2014 में 26.4, 2015 में 42.1, 2016 में 58.3, 2017 में सजा दर 60 प्रतिशत रही.
प्रदेश में आए दिन चिट्टे व अन्य नशीले पदार्थों को पकड़ा जा रहा है. स्थिति भयावह है और हाईकोर्ट ने भी चिंता जताई है. पुलिस प्रशासन के ऊपर भी काफी दबाव है. जीडीपी एसआर मरडी का कहना है कि पुलिस सक्रियता के साथ नशे के खिलाफ अभियान चला रही है.