शिमला: हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने श्रमिक सेक्टर से जुड़ा एक अहम फैसला दिया है. हाईकोर्ट ने कंपनी प्रबंधन की तरफ से ट्रेड यूनियन का पंजीकरण रोकने के इरादे से कामगारों का तबादला करने को गैरकानूनी ठहराया है. इसके साथ ही अदालत ने जिला ऊना के औद्योगिक क्षेत्र गगरेट में काम कर रही ल्यूमिनस पावर टैक्नोलॉजी लिमिटेड की याचिका भी खारिज कर दी है. (Himachal High Court)
दरअसल, ल्यूमिनस कंपनी ने ट्रेड यूनियन का पंजीकरण रोकने के इरादे से ऊना की गगरेट यूनिट से कुछ श्रमिकों का तबादला दो हजार किलोमीटर दूर होसूर तमिलनाडु कर दिया था. मामला लेबर कोर्ट से होकर हाईकोर्ट तक पहुंचा. हिमाचल हाईकोर्ट के न्यायाधीश न्यायमूर्ति तरलोक सिंह चौहान व न्यायमूर्ति वीरेंद्र सिंह की खंडपीठ ने इस संदर्भ में ल्यूमिनस पावर टेक्नोलोजी गगरेट जिला ऊना की याचिका को खारिज करते हुए कहा कि ट्रेड यूनियन का गठन करने से रोकने के लिए प्रस्तावित यूनियन के पदाधिकारियों के तबादले 2000 किलोमीटर दूर करना अनुचित व्यापार व्यवहार है. (luminous power technologies pvt ltd gagret HP)
प्रार्थी कंपनी ने लेबर कोर्ट धर्मशाला के निर्णय को हाईकोर्ट में चुनौती दी थी. सुनवाई के बाद हाईकोर्ट ने कंपनी की याचिका को खारिज कर दिया. मामले के अनुसार ल्यूमिनस पावर टेक्नोलोजी गगरेट जिला ऊना ने 25 कामगारों का तबादला गगरेट से 2000 किलोमीटर दूर होसूर तमिलनाडु कर दिया था. कंपनी ने 25 मई 2018 को यह दलील देते हुए तबादले किए थे कि होसूर तमिलनाडु में उनकी यूनिट का विस्तार किया जा रहा है और उन्हें वहां के लिए अनुभवी कामगारों की आवश्यकता है. कंपनी ने यह तबादले 18 महीने के सीमित समय के लिए किए थे. 25 कामगारों में से 13 ने होसूर में तैनाती स्वीकार कर ली.
वहीं, अन्य 12 श्रमिकों ने तबादला आदेश मानने से इंकार कर दिया. कंपनी ने 12 कामगारों के तबादला आदेश न मानने को अनुशासनहीनता मानते हुए उन्हें गगरेट यूनिट में प्रवेश करने से रोक दिया था. इसके बाद ल्यूमिनस पावर टेक्नोलोजी वर्कर यूनियन के प्रधान मनोज कुमार ने डिमांड नोटिस देकर औद्योगिक विवाद उठाया. मामला लेबर कोर्ट पहुंचा. लेबर कोर्ट धर्मशाला ने फैसला कामगारों के हक में सुनाते हुए पाया कि कंपनी ने ट्रेड यूनियन को पंजीकृत होने से रोकने के लिए कामगारों के तबादले किए. कोर्ट ने कंपनी के इस व्यवहार को अनुचित पाया और होसूर में तैनाती न देने वाले कर्मचारियों की सेवाओं को लगातार मानते हुए उन्हें 18 महीनों का वेतन भी देने के आदेश दिए. हाईकोर्ट ने लेबर कोर्ट धर्मशाला के आदेशों को सही ठहराते हुए कंपनी की याचिका को खारिज कर दिया.
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