शिमला: हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट ने राज्य के शिक्षा मंत्री द्वारा एक निजी इंस्टीट्यूट को एनओसी न देने के फैसले पर कड़ी टिप्पणी दर्ज की है. हाई कोर्ट ने कहा कि मंत्री के फैसले की समीक्षा करना हाई कोर्ट के क्षेत्राधिकार में आता है. अदालत ने कड़ी टिप्पणी करते हुए कहा कि सरकार के नीतिगत निर्णय संयुक्त तौर पर लिए जाते हैं. अचानक से किसी ऊंची पोस्ट पर बैठे व्यक्ति के मन में आया विचार सरकार की नीति नहीं बन जाता. इससे भी बढ़कर सख्त शब्दों में हाई कोर्ट ने कहा कि सरकारी नीति किसी ऊंचे पद पर आसीन हुए व्यक्ति की सनक या कल्पना नहीं हो सकती.
सोमवार 11 बजे से पहले-पहले एनओसी जारी करने के आदेश: हाई कोर्ट के न्यायाधीश न्यायमूर्ति विवेक सिंह ठाकुर ने शिक्षा मंत्री के शिवा इंस्टीट्यूट को एम.फार्मेसी कोर्स के लिए एनओसी जारी न करने से संबंधित फैसले को रद्द करते हुए संवैधानिक स्थिति स्पष्ट की. साथ ही राज्य सरकार को आदेश दिए कि वह सोमवार पूर्वाह्न 11 बजे से पहले-पहले एनओसी जारी करे. मामले के अनुसार, बिलासपुर में स्थित संस्थान ने हाई कोर्ट में याचिका दाखिल कर गुहार लगाई थी कि उसे एनओसी जारी होनी चाहिए. मामले की सुनवाई के दौरान हाई कोर्ट ने पाया कि प्रार्थी संस्थान को अनापत्ति प्रमाण पत्र यानी एनओसी जारी करने के लिए शिक्षा सचिव स्तर तक के सभी अधिकारियों ने अनुमोदन किया था. फिर ये हुआ कि संबंधित विभाग के मंत्री ने यह कहकर एनओसी जारी करने से इंकार कर दिया कि एम.फार्मेसी के कोर्स की सीटें खाली रह रही हैं.
कोर्ट ने एनओसी जारी न करने के फैसले को किया खारिज: दरअसल, सरकार की दलील थी कि शिक्षा में गुणवत्ता लाने के लिए ऐसे कोर्स चलाने की अनुमति नहीं दी जा सकती, जिसमें अधिकतर सीटें खाली ही रहे. इस पर हाई कोर्ट ने कहा कि राज्य सरकार की ऐसी कोई भी नीति लिखित में नहीं है कि शैक्षणिक संस्थानों में पाठ्यक्रमों में प्रवेश न होने की स्थिति में उन्हें बंद कर दिया जाएगा, या शुरू करने की अनुमति ही नहीं दी जाएगी. सुनवाई के दौरान हाई कोर्ट को बताया गया कि प्रार्थी संस्थान 7 अगस्त 2015 से बी.फार्मेसी का कोर्स चला रहा है. शैक्षणिक सत्र 2023-24 से एम.फार्मेसी का कोर्स शुरू करने के लिए संस्थान ने 16 सितंबर 2022 को राज्य सरकार के पास अनापत्ति प्रमाणपत्र जारी करने के लिए आवेदन किया था. तकनीकी शिक्षा के निदेशक ने संस्थान की जांच करने के लिए कमेटी गठित की थी.
जांच के बाद निदेशक ने संस्थान को अनापत्ति प्रमाणपत्र जारी करने के लिए अनुमोदन किया था. इसके अतिरिक्त प्रार्थी संस्थान को तकनीकी विश्वविद्यालय ने एम.फार्मेसी कोर्स शुरू करने के लिए अनापत्ति प्रमाण पत्र जारी कर दिया था. यही नहीं, भारतीय फार्मेसी परिषद ने भी संस्थान को एम.फार्मेसी कोर्स शुरू करने की अनुमति दे दी थी, लेकिन राज्य सरकार ने संस्थान को अनुमति देने से इंकार कर दिया था. इस पर कोर्ट ने सरकार के एनओसी जारी न करने के फैसले को खारिज कर दिया और सुनवाई के दौरान उपरोक्त सख्त टिप्पणियां दर्ज कीं.
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