शिमला: देवभूमि कहे जाने वाले हिमाचल की युवी पीढ़ी नशे के दलदल में फंसती जा रही है. प्रदेश के कई हिस्सों में चरस, चिट्टा, अफीम की बरामदगी सुखद संकेत नहीं देती. बीते कुछ सालों से नशा हिमाचल के युवाओं को दीमक की तरह खोखला बना रहा है. 26 जून को पूरी दुनिया में 'अंतरराष्ट्रीय नशा निरोधक दिवस' के तौर पर मनाया जाता है. इस दिन को मनाने का मकसद यह है कि लोगों को नशा और नशीले पदार्थों की तस्करी के खिलाफ जागरूक किया जा सके.
'अंतरराष्ट्रीय नशा निरोधक दिवस' के मौके पर ईटीवी भारत की टीम ने नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो के जोनल डायरेक्टर ज्ञानेंद्र कुमार सिंह से खास बातचीत की. ज्ञानेंद्र कुमार हरियाणा, पंजाब, हिमाचल प्रदेश और चंडीगढ़ राज्य में नशा संबंधित गतिविधियों पर नजर रखते हैं और उन पर रोकथाम के लिए डायरेक्शन देते हैं.
हिमाचल में 3.2% लोग नशे की जद में
ज्ञानेंद्र कुमार सिंह ने बताया कि देश की कुल जनसंख्या के 1.2% लोग नशे से प्रभावित है. वहीं हिमाचल की कुल आबादी के 3.2% लोग नशे के आदि हैं. हिमाचल में चरस और गांजे का सेवन करने वाले लोगों की संख्या पंजाब और हरियाणा से ज्यादा है. बता दें कि पंजाब की कुल आबादी के 1.3% लोग नशे की जद में हैं, जबकि हरियाणा की कुल आबादी के 2.9 % चरस और गांजा की जद में हैं.
उन्होंने कहा की सरकार और नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो की ओर से कई तरह की जागरूकता अभियान चलाए जा रहे हैं ताकि युवाओं को नशे से बचाया जा सके. इस बार यूनाइटेड नेशन ने 'इंटरनेशनल डे अगेंस्ट ड्रग एब्यूज' के लिए एक थीम रखी है जिसका नाम है 'बैटर नॉलेज बैटर केयर'. इसका मतलब है कि वही व्यक्ति विभिन्न तरह के मादक पदार्थों से बच सकता है जिसे इसके बारे में सही जानकारी होगी.
सोने से भी मंहगा चिट्टा
हिमाचल के युवाओं को अगर सबसे ज्यादा किसी नशे ने बर्बाद किया है, तो वो चिट्टा है. सफेद रंग के पाउडर सा दिखने वाला यह नशा एक तरह का सिंथेटिक ड्रग्स है. हेरोइन के साथ कुछ केमिकल्स मिलाकर ये ड्रग्स तैयार किया जाता है. हाल ही में हिमाचल के अलग-अलग जगहों से गिरफ़्तार हुए नशे के सौदागरों से ये बात सामने आई है कि कैसे वो युवाओं और बच्चों को अपने जाल में फंसाते हैं.
नशा छुड़वाने के लिए विभाग चलाता है कैंपेन
इस बार कोविड-19 की वजह से जागरूकता अभियानों में बदलाव किया गया है. इस बार हम पहले की तरह जागरूकता अभियान नहीं चला सकते, इसलिए हम इन अभियानों को ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर लेकर आए हैं. इस ऑनलाइन अभियान में हर वर्ग के लोग बढ़-चढ़कर भाग ले रहे हैं. इसके अलावा सेलिब्रिटीज से भी नशों के खिलाफ वीडियो मैसेज रिकॉर्ड करवाए गए हैं, जिनकों संदेश के रूप में लोगों तक पहुंचाया जा रहा है.
अच्छी बात यह है कि इन जागरूकता अभियानों का लोगों पर काफी ज्यादा प्रभाव पड़ रहा है. इनकी वजह से हम बहुत से युवाओं को नशे की गिरफ्त में आने से बचा पाए हैं और जो लोग नशा कर रहे थे. अब वे लोग भी नशा छोड़ना चाहते हैं .इसके लिए भी खुद ड्रग डी-एडिक्शन सेंटर में संपर्क कर रहे हैं और वहां आकर नशा छोड़ रहे हैं.
'युवा अनुभव करने की जिज्ञासा से नशेड़ी बन रहे हैं'
उन्होंने कहा कि ऐसी कई वजहें होती हैं जिन में आकर लोग नशे करना शुरू कर देते हैं. जैसे युवाओं की प्रवृत्ति काफी जिज्ञासु होती है. वह बहुत सी चीजों का इस्तेमाल करना चाहते हैं और इसकी गिरफ्त में आ जाते हैं. कई मामले ऐसे भी आए हैं जब जो लोग पहले से नशा करते हैं वह अपने पास दूसरे लोगों को भी नशा करने के लिए मजबूर करते हैं. जिससे कई बार दूसरे लोग भी नशे के जाल में फंस जाते हैं. इसके अलावा कई पारिवारिक समस्याएं भी होती है और कई तरह के दबाव भी होते हैं, जिन से बचने के लिए कई लोग नशा करना शुरू कर देते.
ईटीवी भारत की अपील
नशा, एक ऐसी बीमारी है जो कि युवा पीढ़ी को लगातार अपनी चपेट में लेकर उसे कई तरह से बीमार कर रही है. शराब, सिगरेट, तम्बाकू एवं ड्रग्स जैसे जहरीले पदार्थों का सेवन कर युवा वर्ग का एक बड़ा हिस्सा नशे का शिकार हो रहा है. आज फुटपाथ और रेलवे प्लेटफार्म पर रहने वाले बच्चे भी नशे की चपेट में आ चुके हैं.
बच्चों और युवाओं को नशे से दूर करने के लिए पूरे समाज की जिम्मेदारी बनती है, ना सिर्फ बच्चों के माता-पिता बल्कि उनके टीचर, उनके संपर्क में आने वाले सभी लोग उन्हें इस बारे में जागरूक करें कि नशा करने से उनकी जिंदगी को कितना बड़ा नुकसान पहुंच सकता है. ये भी समझना जरूरी है कि नशा ना सिर्फ कुछ जिंदगियां बर्बाद कर रहा है, बल्कि देश के भविष्य को खोखला कर रहा है. इसलिए नशों से हमेशा दूर रहें.
ये भी पढ़ें-444 व्यक्तियों को विदेश से हिमाचल प्रदेश लाया गया, वंदे भारत मिशन के तहत 39 देशों से हुई वापसी