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शिमला में बना था भारत का पहला इलेक्ट्रॉनिक टेलीफोन एक्सचेंज, लंदन के लिए लगा था पहला कॉल

भारत ने जब आधुनिक उपकरणों की ओर इस देश ने अपना पहला कदम बढ़ाया, तो शिमला की इस इमारत में भारत का पहला इलेक्ट्रॉनिक टेलीफोन एक्सचेंज कार्यालय स्थापित किया गया था. जिसके बाद भारत को पहली बार फोन लाईन के जरिए इंग्लैंड से जोड़ा गया और इस टेलीफोन एक्सचेंज से फोन पर बात करने वाले तत्कालीन वायसरॉय पहले व्यक्ति बने.

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Published : Mar 27, 2021, 7:39 PM IST

Updated : Mar 27, 2021, 10:00 PM IST

शिमला: अंग्रेजी शासन काल में समर कैपिटल कही जाने वाली हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला ऐतिहासिक धरोहरों की दृष्टि से काफी महत्व रखती है. शिमला में कई ऐसी ऐतेहासिक इमारतें हैं जो अपने आप में कई भारतीय इतिहास से जुड़ी कहानियों को संजोए हुए हैं.

रोजाना हजारों सैलानी और स्थानीय लोग शिमला माल रोड पर स्थित बीएसएनएल कार्यालय के बाहर से गुजरते हैं, लेकिन इसके इतिहास से शायद कम ही लोग वाकिफ होंगे. सीटीओ नाम से प्रसिद्ध इस बुहमंजिला इमारत से 19वीं सदी के बदलते भारत की दूर संचार की क्रांति का एक किस्सा जुड़ा हुआ है.

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भारत की पहला इलेक्ट्रॉनिक टेलीफोन एक्सचेंज

सीटीओ का मतलब है सैंट्रल ट्रंक ऑफिस. भारत ने जब आधुनिक उपकरणों की ओर इस देश ने अपना पहला कदम बढ़ाया, तो शिमला की इस इमारत में भारत का पहला इलेक्ट्रॉनिक टेलीफोन एक्सचेंज कार्यालय स्थापित किया गया था. जिसके बाद भारत को पहली बार फोन लाईन के जरिए इंग्लैंड से जोड़ा गया और इस टेलीफोन एक्सचेंज से फोन पर बात करने वाले तत्कालीन वायसरॉय पहले व्यक्ति बने. सीटीओ से पहले ठीक इसी जगह पर 1870 में 'कोनी कोट' नाम की इमारत थी, जिसमें स्टेशन लाइब्रेरी को चलाई जाती थी. जिसे करीब बाद में 1920 के आसपास तोड़ कर सीटीओ की इमारत बनाई गई और 1922 में भारत की सबसे पहली इलेक्ट्रॉनिक टेलीफोन एक्सचेंज को शुरू किया गया.

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ग्रे ऐशेलर पत्थर का इस्तेमाल

उस समय इस बिल्डिंग को पीएंडटी यानी 'पोस्ट एंड टेलीग्राफ' से भी जाना जाता था. स्कोटिश आर्किटेक्चर में बनी इस इमारत के कुछ हिेस्से में ग्रे ऐशेलर पत्थर का इस्तेमाल किया गया है. जो इसे शहर की बाकी इमारतों से अलग करता है. सीटीओ में लगे 'ग्रे ऐशेलर पत्थर' से ही पूरी इमारत को बनाया जाना था, लेकिन इमारत का बजट कम पड़ने के कारण सीटीओ के पहली मंजिल तक ही 'ग्रे ऐशेलर पत्थर' का इस्तेमाल किया गया और बाकी हिस्से में ईंटो का इस्तेमाल करना पड़ा.

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बिल्डिंग पर लगा खास बजर

वहीं, इस इमारत के मेन गेट के ऊपर लगी ब्रिटिशकाल के समय लगी 90 किलो वजनी ऐतिहासिक घड़ी इस भवन की भव्यता और ऐतिहासिकता का प्रमाण है. इस ऐतिहासिक घड़ी के साथ-साथ सीटीओ में ब्रिटिशकाल में एक बजर भी लगाया गया था. आज भी इस बजर के बजने के साथ ही शिमला शहर में खासकर सरकारी दफ्तरों का कामकाज सुबह 10 बजे शुरू होता है और शाम के 5 बजे खत्म होता है. इस बजर का इस्तेमाल शहर के लोगों को आपातकालीन स्थिती में सचेत करने के लिए भी किया जाता है.

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घड़ी को बदलने का लोगों ने किया था विरोध

90 के दशक में इस ऐतिहासिक घड़ी के खराब हो जाने के बाद यहां डिजिटल क्लॉक भी लगाई गई, लेकिन शिमला के लोगों ने इसका विरोध जताया. जिसके बाद सरकार ने फिर से पुरानी घड़ी को ठीक करवा कर सीटीओ भवन पर लगवा दिया. सीटीओ के एक कोने में आज भी लेटिन भाषा में एक शिलालेख नजर आता है. जिसके मुताबिक इस भवन में पहले टेलीफोन एक्सचेंज, फिर टेलीग्राफ विभाग और भारत मौसम विज्ञान विभाग का कार्यालय भी कुछ समय तक चलाया गया था और अब वर्तमान में इस भवन में बीएसएनएल ऑफिस चल रहा है.

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रोजाना हजारों सैलानी और स्थानीय लोग शिमला माल रोड पर स्थित बीएसएनएल कार्यालय के बाहर से गुजरते हैं, लेकिन इसके इतिहास से शायद कम ही लोग वाकिफ होंगे. सीटीओ नाम से प्रसिद्ध इस बुहमंजिला इमारत से 19वीं सदी के बदलते भारत की दूर संचार की क्रांति का एक किस्सा जुड़ा हुआ है.

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भारत की पहला इलेक्ट्रॉनिक टेलीफोन एक्सचेंज

सीटीओ का मतलब है सैंट्रल ट्रंक ऑफिस. भारत ने जब आधुनिक उपकरणों की ओर इस देश ने अपना पहला कदम बढ़ाया, तो शिमला की इस इमारत में भारत का पहला इलेक्ट्रॉनिक टेलीफोन एक्सचेंज कार्यालय स्थापित किया गया था. जिसके बाद भारत को पहली बार फोन लाईन के जरिए इंग्लैंड से जोड़ा गया और इस टेलीफोन एक्सचेंज से फोन पर बात करने वाले तत्कालीन वायसरॉय पहले व्यक्ति बने. सीटीओ से पहले ठीक इसी जगह पर 1870 में 'कोनी कोट' नाम की इमारत थी, जिसमें स्टेशन लाइब्रेरी को चलाई जाती थी. जिसे करीब बाद में 1920 के आसपास तोड़ कर सीटीओ की इमारत बनाई गई और 1922 में भारत की सबसे पहली इलेक्ट्रॉनिक टेलीफोन एक्सचेंज को शुरू किया गया.

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ग्रे ऐशेलर पत्थर का इस्तेमाल

उस समय इस बिल्डिंग को पीएंडटी यानी 'पोस्ट एंड टेलीग्राफ' से भी जाना जाता था. स्कोटिश आर्किटेक्चर में बनी इस इमारत के कुछ हिेस्से में ग्रे ऐशेलर पत्थर का इस्तेमाल किया गया है. जो इसे शहर की बाकी इमारतों से अलग करता है. सीटीओ में लगे 'ग्रे ऐशेलर पत्थर' से ही पूरी इमारत को बनाया जाना था, लेकिन इमारत का बजट कम पड़ने के कारण सीटीओ के पहली मंजिल तक ही 'ग्रे ऐशेलर पत्थर' का इस्तेमाल किया गया और बाकी हिस्से में ईंटो का इस्तेमाल करना पड़ा.

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बिल्डिंग पर लगा खास बजर

वहीं, इस इमारत के मेन गेट के ऊपर लगी ब्रिटिशकाल के समय लगी 90 किलो वजनी ऐतिहासिक घड़ी इस भवन की भव्यता और ऐतिहासिकता का प्रमाण है. इस ऐतिहासिक घड़ी के साथ-साथ सीटीओ में ब्रिटिशकाल में एक बजर भी लगाया गया था. आज भी इस बजर के बजने के साथ ही शिमला शहर में खासकर सरकारी दफ्तरों का कामकाज सुबह 10 बजे शुरू होता है और शाम के 5 बजे खत्म होता है. इस बजर का इस्तेमाल शहर के लोगों को आपातकालीन स्थिती में सचेत करने के लिए भी किया जाता है.

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घड़ी को बदलने का लोगों ने किया था विरोध

90 के दशक में इस ऐतिहासिक घड़ी के खराब हो जाने के बाद यहां डिजिटल क्लॉक भी लगाई गई, लेकिन शिमला के लोगों ने इसका विरोध जताया. जिसके बाद सरकार ने फिर से पुरानी घड़ी को ठीक करवा कर सीटीओ भवन पर लगवा दिया. सीटीओ के एक कोने में आज भी लेटिन भाषा में एक शिलालेख नजर आता है. जिसके मुताबिक इस भवन में पहले टेलीफोन एक्सचेंज, फिर टेलीग्राफ विभाग और भारत मौसम विज्ञान विभाग का कार्यालय भी कुछ समय तक चलाया गया था और अब वर्तमान में इस भवन में बीएसएनएल ऑफिस चल रहा है.

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Last Updated : Mar 27, 2021, 10:00 PM IST
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