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हिमाचल की 14वीं विधानसभा में नेता पुत्रों का बोलबाला संभव, वंशवाद पर एकमत हैं राजनीतिक दल - virbhadra singh family in himachal politics

8 दिसंबर को मतगणना के दिन पता चल जाएगा कि हिमाचल में किस पार्टी की सरकार बन रही है और किस विधानसभा सीट पर किस प्रत्याशी की जीत होगी. वहीं, मतगणना से पहले सूबे की राजनीतिक गलियारों में चर्चा है कि हिमाचल की 14वीं विधानसभा में इस बार नेताओं के पुत्रों का बड़ा बोलबाला संभव है. हालांकि 13वीं विधानसभा में वीरभद्र सिंह और विक्रमादित्य सिंह के रूप में पिता-पुत्र की जोड़ी मौजूद थी. पढ़ें पूरी खबर... (Familyism in Himachal politics) (14th Legislative Assembly of Himachal)

Familyism in Himachal politics
हिमाचल की राजनीति में वंशवाद
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Published : Nov 30, 2022, 5:27 PM IST

शिमला: राजनीति में वंशवाद पर सभी दल एक-दूसरे को कोसते हैं, लेकिन टिकट वितरण के दौरान सारे उपदेश धरे के धरे रह जाते हैं. छोटे पहाड़ी राज्य हिमाचल प्रदेश में इस बार नेताओं के पुत्रों का बड़ा बोलबाला संभव है. तेरहवीं विधानसभा में वीरभद्र सिंह व विक्रमादित्य सिंह के रूप में पिता-पुत्र की जोड़ी मौजूद थी. वीरभद्र सिंह ने अर्की और विक्रमादित्य सिंह ने शिमला ग्रामीण विधानसभा सीट से चुनाव जीता था. इससे पहले वीरभद्र सिंह शिमला ग्रामीण से विधायक थे. वर्ष 2017 में चुनाव से पहले उन्होंने अपने समर्थकों से इच्छा जाहिर की थी कि वे शिमला ग्रामीण से विक्रमादित्य सिंह को चुनाव लड़वाना चाहते हैं. समर्थकों के पुरजोर समर्थन के बाद वीरभद्र सिंह ने विक्रमादित्य सिंह को शिमला ग्रामीण से चुनाव मैदान में उतारा और खुद के लिए अर्की सीट चुनी. दोनों ही चुनाव जीत गए और विधानसभा में पिता-पुत्र की जोड़ी ने प्रवेश किया. (Familyism in Himachal politics) (14th Legislative Assembly of Himachal) (virbhadra singh family in himachal politics)

इस बार मंडी जिले में एक ऐसा ही संयोग संभव हो सकता है. द्रंग विधानसभा सीट से कांग्रेस के कद्दावर नेता कौल सिंह ठाकुर चुनाव मैदान में हैं और मंडी सदर से उनकी बेटी चंपा ठाकुर ने अनिल शर्मा को फिर से टक्कर दी है. वर्ष 2017 में ये दोनों ही चुनाव हार गए थे. यदि कौल सिंह ठाकुर व चंपा ठाकुर 2017 में जीत जाते तो विधानसभा में एक दुर्लभ संयोग बन जाना था. वीरभद्र सिंह व विक्रमादित्य सिंह के साथ-साथ पिता-पुत्री के रूप में कौल सिंह व चंपा ठाकुर भी मौजूद होते. ये देखना दिलचस्प होगा कि क्या इस बार ऐसा संयोग होगा? (Himachal Pradesh Election 2022) (Politics in Himachal)

Familyism in Himachal politics
स्व. वीरभद्र सिंह के बेटे विक्रमादित्य सिंह और कौल सिंह ठाकुर की बेटी चंपा ठाकुर चुनावी मैदान में.

हिमाचल की राजनीति में परिवारवाद: हिमाचल की राजनीति में परिवारवाद को लेकर निरंतर चर्चा होती रही है. यहां हम इस चुनाव में मैदान में उतरे नेता पुत्रों की बात करेंगे. भाजपा के मजबूत नेता और चुनाव जीतने के अनूठे रिकॉर्ड के लिए चर्चित महेंद्र सिंह ठाकुर इस बार चुनाव मैदान में नहीं उतरे. उन्होंने अपने बेटे रजत ठाकुर को टिकट दिलवाई. हालांकि इससे उनकी बेटी वंदना नाराज थीं, लेकिन उसे बाद में महेंद्र सिंह ठाकुर ने मना लिया. ऊपरी शिमला में भाजपा को मजबूत करने वाले स्व. नरेंद्र बरागटा के बेटे चेतन बरागटा उपचुनाव में आजाद उम्मीदवार के रूप में लड़े थे. उपचुनाव में उन्हें पार्टी से टिकट नहीं दिया गया था, लेकिन अब उनकी वापसी हुई और वे भाजपा टिकट से चुनाव लड़े हैं. (Himachal Election 2022 Result)

Familyism in Himachal politics
इस साल चुनावी मैदान में महेंद्र सिंह ठाकुर के बेटे रजत ठाकुर और स्व. नरेंद्र बरागटा के बेटे चेतन बरागटा चुनावी मैदान में.

वहीं, कांग्रेस पर नजर डालें तो बीबीएल बुटेल (ब्रिज बिहारी लाल बुटेल, Brij Behari Lal Butail) ने अपनी सियासी विरासत बेटे आशीष बुटेल को सौंपी है. आशीष पिछली बार भी चुनाव जीते थे. इस बार फिर से विजयश्री उनके हाथ आई तो वे दूसरी बार विधायक बनेंगे. इस तरह पालमपुर की सीट पर पिता की विरासत बेटे के पास आई है. नगरोटा बगवां से कांग्रेस के बड़े नेता जीएस बाली के बेटे रघुवीर सिंह बाली चुनाव लड़ रहे हैं. जीएस बाली अब इस संसार में नहीं हैं. यदि रघुवीर बाली चुनाव जीतते हैं तो नगरोटा की विरासत जीएस बाली से होकर उनके बेटे तक पहुंच जाएगी. कांगड़ा के ही एक और बड़े नेता सुजान सिंह पठानिया के बेटे भवानी पठानिया उपचुनाव जीतकर विधायक बने. उनके पिता का देहांत होने के बाद पार्टी ने उपचुनाव में भवानी को टिकट दी थी. अब वे फिर से चुनाव मैदान में हैं. कौल सिंह की बेटी चंपा ठाकुर का जिक्र पहले ही हो गया है.

Familyism in Himachal politics
बीबीएल बुटेल के बेटे आशीष बुटेल और जीएस बाली के बेटे रघुवीर सिंह बाली चुनावी मैदान में.

अब इस कड़ी में उन नेताओं की बात करते हैं, जिनके पिता कभी विधानसभा में खूब सक्रिय थे. सिरमौर के दिग्गज कांग्रेस नेता ठाकुर गुमान सिंह के बेटे हर्षवर्धन चौहान अपने पिता की विरासत को संभाल रहे हैं. धर्मशाला से सुधीर शर्मा कांग्रेस के नेता के तौर पर अपने पिता दिग्गज नेता स्व. पंडित संतराम की विरासत संभाल रहे हैं. वहीं, सिरमौर के ही डॉ. प्रेम सिंह के बेटे विनय कुमार लगातार चुनाव जीत रहे हैं. हर्षवर्धन चौहान शिलाई से तो विनय कुमार श्री रेणुका जी विधानसभा सीट से चुनाव लड़ते हैं. सोलन के दून से चौधरी लज्जा राम भी कई बार चुनाव जीते. उनके बेटे रामकुमार यहां से चुनाव मैदान में हैं. वे पूर्व में भी विधायक रहे हैं. इस तरह चौधरी लज्जा राम की विरासत उनके बेटे रामकुमार संभाल रहे हैं. भाजपा में कुल्लू से कुंजलाल ठाकुर के बेटे गोविंद सिंह ठाकुर राजनीति में उनकी विरासत को आगे ले जा रहे हैं.

Familyism in Himachal politics
स्व. सुजान सिंह पठानिया के बेटे भवानी सिंह पठानिया चुनावी मैदान में.

हमीरपुर से स्व. जगदेव चंद ठाकुर भाजपा के बड़े नेता रहे हैं. उनके बेटे नरेंद्र ठाकुर विधायक हैं और इस बार भी चुनाव मैदान में हैं. इसी तरह शिमला जिले में पूर्व सीएम ठाकुर रामलाल के पोते रोहित ठाकुर दादा की राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ा रहे हैं. शिमला विधानसभा सीट से छह बार सांसद रहे स्व. केडी सुल्तानपुरी के बेटे विनोद सुल्तानपुरी ने पिछली बार भी चुनाव लड़े थे और इस बार भी मैदान में हैं. अब देखना है कि वे पहली बार विधायक बनते हैं या नहीं. (Himachal Pradesh Election news) (Himachal Pradesh elections Exit Polls)

क्या कहते हैं राजनीतिक विशेषज्ञ: वरिष्ठ मीडियाकर्मी धनंजय शर्मा का कहना है कि राजनीति में यदि पिता से विरासत सीधे पुत्र संभालता है तो उसे वंशवाद ही कहा जाएगा. हालांकि राजनेता तर्क देते हैं कि उनके परिवार के लोग अपने बूते जगह बना रहे हैं. फिलहाल, आने वाले समय में भी राजनीति से वंशवाद को अलग करना संभव नहीं दिखाई देता. इससे इतर, एक अलग पहलू को देखें तो हिमाचल में परिवार के एक से अधिक सदस्यों की बात करें तो वीरभद्र सिंह, प्रेम कुमार धूमल, पंडित सुखराम और शिमला जिले में कश्यप परिवार के सदस्य राजनीति में हैं. शिमला जिले में स्व. बालकराम कश्यप के परिजनों में वीरेंद्र कश्यप, डॉ. राजेश कश्यप, एचएन कश्यप जैसे नाम हैं. (prem kumar dhumal family in himachal politics) (Himachal Pradesh elections result 2022)

ये भी पढ़ें: हिमाचल में जनता तोड़ती रही है कद्दावर नेताओं का गुरूर, कैबिनेट मंत्री हैं तो गारंटी नहीं कि चुनाव जीतेंगे जरूर

शिमला: राजनीति में वंशवाद पर सभी दल एक-दूसरे को कोसते हैं, लेकिन टिकट वितरण के दौरान सारे उपदेश धरे के धरे रह जाते हैं. छोटे पहाड़ी राज्य हिमाचल प्रदेश में इस बार नेताओं के पुत्रों का बड़ा बोलबाला संभव है. तेरहवीं विधानसभा में वीरभद्र सिंह व विक्रमादित्य सिंह के रूप में पिता-पुत्र की जोड़ी मौजूद थी. वीरभद्र सिंह ने अर्की और विक्रमादित्य सिंह ने शिमला ग्रामीण विधानसभा सीट से चुनाव जीता था. इससे पहले वीरभद्र सिंह शिमला ग्रामीण से विधायक थे. वर्ष 2017 में चुनाव से पहले उन्होंने अपने समर्थकों से इच्छा जाहिर की थी कि वे शिमला ग्रामीण से विक्रमादित्य सिंह को चुनाव लड़वाना चाहते हैं. समर्थकों के पुरजोर समर्थन के बाद वीरभद्र सिंह ने विक्रमादित्य सिंह को शिमला ग्रामीण से चुनाव मैदान में उतारा और खुद के लिए अर्की सीट चुनी. दोनों ही चुनाव जीत गए और विधानसभा में पिता-पुत्र की जोड़ी ने प्रवेश किया. (Familyism in Himachal politics) (14th Legislative Assembly of Himachal) (virbhadra singh family in himachal politics)

इस बार मंडी जिले में एक ऐसा ही संयोग संभव हो सकता है. द्रंग विधानसभा सीट से कांग्रेस के कद्दावर नेता कौल सिंह ठाकुर चुनाव मैदान में हैं और मंडी सदर से उनकी बेटी चंपा ठाकुर ने अनिल शर्मा को फिर से टक्कर दी है. वर्ष 2017 में ये दोनों ही चुनाव हार गए थे. यदि कौल सिंह ठाकुर व चंपा ठाकुर 2017 में जीत जाते तो विधानसभा में एक दुर्लभ संयोग बन जाना था. वीरभद्र सिंह व विक्रमादित्य सिंह के साथ-साथ पिता-पुत्री के रूप में कौल सिंह व चंपा ठाकुर भी मौजूद होते. ये देखना दिलचस्प होगा कि क्या इस बार ऐसा संयोग होगा? (Himachal Pradesh Election 2022) (Politics in Himachal)

Familyism in Himachal politics
स्व. वीरभद्र सिंह के बेटे विक्रमादित्य सिंह और कौल सिंह ठाकुर की बेटी चंपा ठाकुर चुनावी मैदान में.

हिमाचल की राजनीति में परिवारवाद: हिमाचल की राजनीति में परिवारवाद को लेकर निरंतर चर्चा होती रही है. यहां हम इस चुनाव में मैदान में उतरे नेता पुत्रों की बात करेंगे. भाजपा के मजबूत नेता और चुनाव जीतने के अनूठे रिकॉर्ड के लिए चर्चित महेंद्र सिंह ठाकुर इस बार चुनाव मैदान में नहीं उतरे. उन्होंने अपने बेटे रजत ठाकुर को टिकट दिलवाई. हालांकि इससे उनकी बेटी वंदना नाराज थीं, लेकिन उसे बाद में महेंद्र सिंह ठाकुर ने मना लिया. ऊपरी शिमला में भाजपा को मजबूत करने वाले स्व. नरेंद्र बरागटा के बेटे चेतन बरागटा उपचुनाव में आजाद उम्मीदवार के रूप में लड़े थे. उपचुनाव में उन्हें पार्टी से टिकट नहीं दिया गया था, लेकिन अब उनकी वापसी हुई और वे भाजपा टिकट से चुनाव लड़े हैं. (Himachal Election 2022 Result)

Familyism in Himachal politics
इस साल चुनावी मैदान में महेंद्र सिंह ठाकुर के बेटे रजत ठाकुर और स्व. नरेंद्र बरागटा के बेटे चेतन बरागटा चुनावी मैदान में.

वहीं, कांग्रेस पर नजर डालें तो बीबीएल बुटेल (ब्रिज बिहारी लाल बुटेल, Brij Behari Lal Butail) ने अपनी सियासी विरासत बेटे आशीष बुटेल को सौंपी है. आशीष पिछली बार भी चुनाव जीते थे. इस बार फिर से विजयश्री उनके हाथ आई तो वे दूसरी बार विधायक बनेंगे. इस तरह पालमपुर की सीट पर पिता की विरासत बेटे के पास आई है. नगरोटा बगवां से कांग्रेस के बड़े नेता जीएस बाली के बेटे रघुवीर सिंह बाली चुनाव लड़ रहे हैं. जीएस बाली अब इस संसार में नहीं हैं. यदि रघुवीर बाली चुनाव जीतते हैं तो नगरोटा की विरासत जीएस बाली से होकर उनके बेटे तक पहुंच जाएगी. कांगड़ा के ही एक और बड़े नेता सुजान सिंह पठानिया के बेटे भवानी पठानिया उपचुनाव जीतकर विधायक बने. उनके पिता का देहांत होने के बाद पार्टी ने उपचुनाव में भवानी को टिकट दी थी. अब वे फिर से चुनाव मैदान में हैं. कौल सिंह की बेटी चंपा ठाकुर का जिक्र पहले ही हो गया है.

Familyism in Himachal politics
बीबीएल बुटेल के बेटे आशीष बुटेल और जीएस बाली के बेटे रघुवीर सिंह बाली चुनावी मैदान में.

अब इस कड़ी में उन नेताओं की बात करते हैं, जिनके पिता कभी विधानसभा में खूब सक्रिय थे. सिरमौर के दिग्गज कांग्रेस नेता ठाकुर गुमान सिंह के बेटे हर्षवर्धन चौहान अपने पिता की विरासत को संभाल रहे हैं. धर्मशाला से सुधीर शर्मा कांग्रेस के नेता के तौर पर अपने पिता दिग्गज नेता स्व. पंडित संतराम की विरासत संभाल रहे हैं. वहीं, सिरमौर के ही डॉ. प्रेम सिंह के बेटे विनय कुमार लगातार चुनाव जीत रहे हैं. हर्षवर्धन चौहान शिलाई से तो विनय कुमार श्री रेणुका जी विधानसभा सीट से चुनाव लड़ते हैं. सोलन के दून से चौधरी लज्जा राम भी कई बार चुनाव जीते. उनके बेटे रामकुमार यहां से चुनाव मैदान में हैं. वे पूर्व में भी विधायक रहे हैं. इस तरह चौधरी लज्जा राम की विरासत उनके बेटे रामकुमार संभाल रहे हैं. भाजपा में कुल्लू से कुंजलाल ठाकुर के बेटे गोविंद सिंह ठाकुर राजनीति में उनकी विरासत को आगे ले जा रहे हैं.

Familyism in Himachal politics
स्व. सुजान सिंह पठानिया के बेटे भवानी सिंह पठानिया चुनावी मैदान में.

हमीरपुर से स्व. जगदेव चंद ठाकुर भाजपा के बड़े नेता रहे हैं. उनके बेटे नरेंद्र ठाकुर विधायक हैं और इस बार भी चुनाव मैदान में हैं. इसी तरह शिमला जिले में पूर्व सीएम ठाकुर रामलाल के पोते रोहित ठाकुर दादा की राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ा रहे हैं. शिमला विधानसभा सीट से छह बार सांसद रहे स्व. केडी सुल्तानपुरी के बेटे विनोद सुल्तानपुरी ने पिछली बार भी चुनाव लड़े थे और इस बार भी मैदान में हैं. अब देखना है कि वे पहली बार विधायक बनते हैं या नहीं. (Himachal Pradesh Election news) (Himachal Pradesh elections Exit Polls)

क्या कहते हैं राजनीतिक विशेषज्ञ: वरिष्ठ मीडियाकर्मी धनंजय शर्मा का कहना है कि राजनीति में यदि पिता से विरासत सीधे पुत्र संभालता है तो उसे वंशवाद ही कहा जाएगा. हालांकि राजनेता तर्क देते हैं कि उनके परिवार के लोग अपने बूते जगह बना रहे हैं. फिलहाल, आने वाले समय में भी राजनीति से वंशवाद को अलग करना संभव नहीं दिखाई देता. इससे इतर, एक अलग पहलू को देखें तो हिमाचल में परिवार के एक से अधिक सदस्यों की बात करें तो वीरभद्र सिंह, प्रेम कुमार धूमल, पंडित सुखराम और शिमला जिले में कश्यप परिवार के सदस्य राजनीति में हैं. शिमला जिले में स्व. बालकराम कश्यप के परिजनों में वीरेंद्र कश्यप, डॉ. राजेश कश्यप, एचएन कश्यप जैसे नाम हैं. (prem kumar dhumal family in himachal politics) (Himachal Pradesh elections result 2022)

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