शिमला: छोटा पहाड़ी राज्य हिमाचल प्रदेश कर्ज के बोझ तले दबकर कराह रहा है. प्रदेश पर साठ हजार करोड़ रुपये का कर्ज है. देवभूमि के पास खुद के आर्थिक संसाधन बहुत कम हैं. प्रदेश सरकार आर्थिक सहारे के लिए केंद्रीय परियोजनाओं, बाह्य वित्त पोषित परियोजनाओं पर निर्भर रहती है. हिमाचल प्रदेश के बजट का बड़ा हिस्सा सरकारी कर्मियों के वेतन और पेंशन पर खर्च होता है. विकास के लिए सौ रुपये में से केवल 43.94 पैसे ही बचते हैं.
अब पंजाब ने नया वेतन आयोग लागू कर दिया है. वेतन आयोग के लिए हिमाचल पंजाब पैटर्न को फॉलो करता है. नए वेतन आयोग की सिफारिशों को लागू करने, डीए व अंतरिम राहत आदि के लिए हिमाचल को सालाना 5000 करोड़ रुपये और खर्च करने पड़ेंगे. इससे कर्ज का बोझ और बढ़ेगा. हिमाचल प्रदेश चाह कर भी कर्ज के बोझ को कम नहीं कर पा रहा है. सरकारी सेक्टर में नियमित नियुक्तियों की बजाए कई जगह आउटसोर्स (Outsource) का सहारा लिया जा रहा है, लेकिन खर्च पर नियंत्रण नहीं हो पा रहा है.
इस बार हिमाचल सरकार ने 50192 करोड़ रुपये का बजट पेश किया है. पहली बार हिमाचल ने बजट में पचास हजार करोड़ रुपये का आंकड़ा पार किया है. यदि इस बजट में सौ रुपये को मानक रखा जाए तो इसका अधिकांश हिस्सा सरकारी कर्मियों के वेतन और पेंशन पर ही खर्च होगा.
इस सौ रुपये में सरकारी कर्मियों के वेतन पर 25.31 रुपये खर्च होंगे. इसी तरह पेंशन पर 14.11 रुपये खर्च होंगे. इसके अलावा हिमाचल को ब्याज की अदायगी पर 10 रुपये, लोन की अदायगी पर 6.64 रुपये चुकाने होंगे. इन सारे खर्चों के बाद सरकार के पास विकास कार्यों के लिए महज 43.94 रुपये ही बचेंगे.
हिमाचल का राजकोषीय घाटा (Fiscal deficit) 7789 करोड़ रुपये अनुमानित है. यह घाटा हिमाचल के सकल घरेलू उत्पाद का 4.52 प्रतिशत है. ये स्थिति चिंताजनक है. हिमाचल प्रदेश पर कर्ज का बोझ 60544 करोड़ रुपये है. पिछले साल यानी 2020 में मार्च महीने तक ये आंकड़ा 56107 करोड़ रुपये था. यदि 2013-14 की बात करें तो कर्ज का ये बोझ 31442 करोड़ रुपये था. यानी आठ साल में ही ये दुगना होने के करीब है.
हिमाचल सरकार ने पिछले साल के अंतिम महीने यानी दिसंबर 2020 में एक हजार करोड़ रुपये का लोन लिया था. फिर नए साल के पहले ही महीने यानी जनवरी 2021 में और एक हजार करोड़ रुपये का लोन लिया.
पिछले वित्तीय वर्ष में हिमाचल सरकार की लोन लिमिट एक साल के लिए 6500 करोड़ रुपये थी. इस बार लोन लिमिट बढ़ाई गई है. इसके लिए मार्च महीने में बजट सत्र में विधेयक लाया गया था. इसके अनुसार सकल राज्य घरेलू उत्पाद के तीन फीसदी की बजाय पांच फीसदी लोन लिमिट प्रस्तावित थी. दिलचस्प तथ्य ये है कि हिमाचल में सरकार किसी भी दल की हो, लोन लेने में कोई पीछे नहीं है. कर्ज के बोझ के लिए हर सरकार विपक्षी को ही कसूरवार मानती है.
इस बार भी बजट सत्र में लोन लिमिट संबंधी विधेयक लाने के दौरान भाजपा सरकार के कैबिनेट मंत्री सुरेश भारद्वाज ने कहा था कि प्रेम कुमार धूमल के नेतृत्व वाली सरकार ने 2012 में जब सत्ता छोड़ी थी तो हिमाचल पर 28760 करोड़ रुपये का कर्ज था. बाद में कांग्रेस सरकार के समय यह कर्ज 47906 करोड़ रुपये हो गया.
कर्ज पर आरोप-प्रत्यारोप का दौर चलता है. मौजूदा सरकार के आंकड़ों के अनुसार हिमाचल सरकार 2018-19 में 5737 करोड़ रुपये मार्केट लोन ले सकती थी, लेकिन सरकार ने कुल 4120 करोड़ रुपये ही लोन लिया. वित्तीय वर्ष 2020-21 में सरकार की मार्केट लोन की सीमा 9187 करोड़ रुपये थी और लोन केवल 6000 करोड़ रुपये ही लिया गया. भाजपा का कहना है कि जयराम सरकार ने तीन साल में पूर्व की कांग्रेस सरकार के समय लिए गए 19199 करोड़ रुपये के कर्ज में से 19486 करोड़ रुपये वापस भी लौटाए हैं.
फिलहाल, हिमाचल प्रदेश (Himachal Pradesh) पर साठ हजार करोड़ रुपये से अधिक का कर्ज है. ये कर्ज और बढ़ने वाला है. नया वेतन आयोग लागू होने के बाद सरकारी कर्मियों की देनदारी 5000 करोड़ रुपये तक और बढ़ेगी. उसे देने के लिए सरकार को और कर्ज लेना पड़ेगा.
हर बार कैग हिमाचल सरकार को कर्ज के जाल के प्रति चेताती है. वरिष्ठ मीडिया कर्मी राजेश मंढोत्रा के अनुसार हिमाचल को कर्ज से राहत पाने के लिए आय के नए संसाधन तलाश करने होंगे. वित्तायोग भी हिमाचल को सलाह दे चुका है कि पर्यटन में विकास के जरिए हिमाचल की आर्थिक स्थिति सुधर सकती है.
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