शिमलाः हिमाचल प्रदेश में कोरोना काल के दौरान निजी स्कूलों द्वारा फीस वसूली का मामला चर्चित रहा है. इस मामले में प्रदेश हाईकोर्ट से लेकर प्रदेश सरकार के हस्तक्षेप के बावजूद निजी स्कूल मनमर्जी से फीस वसूल रहे हैं. निजी स्कूलों द्वारा नियमों को धत्ता बताते हुए विद्यार्थियों पर फीस जमा कराने का दबाव बनाया जा रहा है.
कोरोना से संकट काल में अभिभावक परेशान
निजी स्कूलों की ओर से मनमर्जी की फीस वसूली के खिलाफ हिमाचल प्रदेश में एक बड़ा आंदोलन खड़ा हुआ. कोरोना की वजह से विद्यार्थियों के अभिभावकों को बुरी तरह प्रभावित किया.
स्कूल में पढ़ने वाले विद्यार्थियों के अभिभावकों का रोजगार तक चला गया. ऐसे संकट के समय निजी स्कूलों ने फीस वसूली का काम बंद नहीं किया. छात्र अभिभावक मंच के बैनर तले अभिभावकों ने निजी शिक्षण स्कूलों के खिलाफ प्रदर्शन किया. इस प्रदर्शन में लगातार फीस माफ करने की मांग की जा रही थी.
निजी स्कूलों को केवल ट्यूशन फीस लेने के हैं निर्देश
प्रदेश भर में लगातार चल रहे आंदोलन के बीच हिमाचल प्रदेश सरकार ने 27 मई, 2020 को एक अधिसूचना जारी की. इस अधिसूचना में केवल ट्यूशन फीस वसूलने की बात कही गई. इसके बाद 24 अगस्त, 2020 को हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय ने निजी स्कूलों को आदेश जारी किए कि निजी स्कूल केवल अभिभावकों से ट्यूशन फीस ही लें.
उच्च न्यायालय ने भी केवल ट्यूशन फीस लेने के आदेश किए हैं जारी
हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय और प्रदेश सरकार के आदेशों के बावजूद निजी स्कूल होने फीस वसूली को बंद नहीं किया और विद्यार्थियों व उनके अभिभावकों पर फीस जमा कराने का दबाव जारी रखा. निजी स्कूलों की तरफ से न केवल फीस का दबाव बनाया गया बल्कि कोरोना के बीच फीस में बढ़ोतरी भी की गई.
इसके बाद छात्र अभिभावक मंच ने 5 दिसंबर, 2020 को शिक्षा निदेशालय की ओर से जारी अधिसूचना का हवाला देते हुए कहा कि इस अधिसूचना में जनरल हाउस के बिना फीस बढ़ोतरी नहीं की जा सकती.
फीस बढ़ोतरी के लिए जनरल हाउस में दो तिहाई बहुमत से फीस बढ़ोतरी के प्रस्ताव का पारित होना जरूरी है, लेकिन बावजूद इसके निजी शिक्षण स्कूलों की ओर से नियमों को ताक पर रखते रखकर फीस बढ़ोतरी की गई.
'विद्यार्थियों को प्रताड़ित कर रहे निजी स्कूल'
लंबे समय से छात्र और उनके अभिभावकों के आंदोलन की लड़ाई लड़ रहे छात्र अभिभावक मंच के संयोजक विजेंद्र मेहरा का कहना है कि सरकार उच्च न्यायालय और सरकार के आदेशों के बावजूद निजी स्कूल अपनी मनमानी करते हैं.
विद्यार्थियों से जबरदस्ती फीस वसूलने का धंधा जारी है. निजी स्कूलों की ओर से शिक्षा का व्यापारीकरण किया जा रहा है. पहले स्कूल प्रशासन की ओर से संदेश भेज कर फीस की मांग की जाती थी, लेकिन मैसेज से अभिभावकों के पास स्कूल के खिलाफ सबूत आ जाता था.
इसके बाद निजी स्कूल प्रशासन ने ऑनलाइन क्लास के दौरान ही विद्यार्थियों को प्रताड़ित करना शुरू कर दिया. ऑनलाइन क्लास के दौरान ही विद्यार्थियों से फीस मांगी जाती है. विजेंद्र मेहरा ने कहा कि वर्चुअल क्लास के बीच विद्यार्थियों को मानसिक रूप से प्रताड़ित किया जा रहा है.
निजी स्कूलों के लिए विनियामक आयोग के गठन की मांग
छात्र अभिभावक मंच के संयोजक विजेंद्र मेहरा का कहना है कि सरकार यदि चाहे तो इन निजी स्कूलों की निरंकुशता पर अंकुश लगा सकती है, लेकिन सरकार ऐसा नहीं करना चाहती.
उन्होंने प्रदेश सरकार से मांग की है कि निजी कॉलेजों के लिए विनियामक आयोग की तर्ज पर निजी स्कूलों के लिए भी विनियामक आयोग का विनियामक आयोग का गठन किया जाए, ताकि निजी स्कूलों पर भी लगाम लगाई जा सके.
उन्होंने कहा कि लंबे समय से छात्र अभिभावक मंच इस मांग को उठा रहा है, लेकिन अब तक यह मांग पूरी नहीं हुई है. जब तक निजी शिक्षण स्कूलों के लिए आयोग का गठन नहीं होगा, तब तक निजी स्कूल इसी तरह अपनी मनमानी करते रहेंगे.
रजिस्ट्रेशन ऑफ सोसाइटी एक्ट, 1861 का उल्लंघन
छात्र अभिभावक मंच के संयोजक विजेंद्र मेहरा ने कहा कि हिमाचल प्रदेश में सभी निजी स्कूल रजिस्ट्रेशन ऑफ सोसाइटी एक्ट, 1807 के तहत रजिस्टर हुए हैं. इस एक्ट के अनुसार कोई भी निजी शिक्षण संस्थान स्कूल कमाई के मंच से स्कूल नहीं चला सकता, लेकिन देश भर के निजी स्कूलों में शिक्षा के नाम पर छात्रों और उनके अभिभावकों से कमाई की जा रही है.
निजी स्कूलों के खिलाफ कोरोना काल के पहले से चल रहा आंदोलन
16 मई, 2019 को छात्र अभिभावक मंच के बैनर तले शिमला स्थित उच्च शिक्षा निदेशालय के बाहर अभिभावकों ने धरना प्रदर्शन किया. इस प्रदर्शन में निजी स्कूलों के द्वारा वसूली जा रही मनमानी फीस, किताब और स्कूल ड्रेस पर कमीशन, स्कूल में होने वाले फंक्शन और पिकनिक के नाम पर लूट के आरोपों को लेकर प्रदर्शन हुआ.
इस प्रदर्शन के तुरंत बाद शिक्षा निदेशालय एक्शन में नजर आया. 18 मार्च, 2019 को एक उच्चस्तरीय बैठक हुई. इस बैठक में शिक्षा निदेशालय के उच्च अधिकारियों ने भाग लिया. इसमें अभिभावकों की शिकायत पर चर्चा हुई, लेकिन इस बैठक के बाद कोई ठोस फैसला नहीं लिया गया.
'जबरदस्ती पिकनिक पर जाने का दबाव नहीं बनाया जा सकता'
कुछ दिन बाद शिमला शहर के उपमंडलाधिकारी की ओर से एक अधिसूचना जारी की गई. इस अधिसूचना में निजी स्कूलों कोई आदेश दिए गए कि किसी भी विद्यार्थी पर जबरदस्ती पिकनिक पर जाने का दबाव नहीं बनाया जा सकता. यह विद्यार्थी और उनके अभिभावकों की निजी पसंद है.
8 अप्रैल 2019 को छात्र अभिभावक मंच ने महापड़ाव के नाम से एक अभियान शुरू किया महापड़ाव में शिक्षा निदेशालय का एक बार फिर घेराव किया गया इसके बाद शिक्षा निदेशालय ने सभी निजी स्कूलों को पत्र लिखें और फीस के बारे में उनसे सवाल किए लेकिन निजी स्कूलों ने शिक्षा निदेशालय के इस पत्र का कोई जवाब नहीं दिया.
इसके बाद 4 मई, 2019 को फिर धरना-प्रदर्शन हुआ. इस प्रदर्शन के बाद शिक्षा निदेशालय ने सभी निजी स्कूलों को एक्सप्लेनेशन मांगी. इसके बाद शिक्षा विभाग ने 72 टीमों का गठन किया. इन टीमों ने देशभर के निजी शिक्षण संस्थानों में जाकर चेकिंग की.
स्कूल में किताब बेचने पर भी लगी थी रोक
छात्र अभिभावक मंच के आंदोलन के दौरान अभिभावकों ने यह बात रखी कि निजी स्कूलों में किताबें बेची जाती हैं. इन किताबों के जरिए निजी स्कूल कमीशनखोरी का काम करते हैं. इसके बाद शिक्षा निदेशालय ने आदेश जारी किए कि निजी शिक्षण स्कूल खुद किताब नहीं बेच सकेंगे. इसके अलावा निजी स्कूलों में अन्य कमीशन वाले काम को भी बंद करने के आदेश जारी किए गए थे.
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