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Himachal High Court: कृषि विभाग सर्वेयर्स को मिलेगा उद्योग विभाग के Surveyors के बराबर वेतनमान, हाई कोर्ट में खारिज हुई सरकारी अपील

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By ETV Bharat Himachal Pradesh Team

Published : Oct 17, 2023, 8:32 PM IST

हिमाचल हाई कोर्ट कृषि विभाग के सर्वेयर्स को उद्योग विभाग के सर्वेयर्स के बराबर वेतनमान देने का आदेश जारी किया है. वहीं, सरकार की अपील को खारिज कर दिया है. पढ़ें पूरी खबर... (Himachal Pradesh High Court News).

Himachal High Court
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शिमला: हिमाचल प्रदेश कृषि विभाग के सर्वेक्षकों यानी सर्वेयर्स के लिए हाई कोर्ट से एक अहम फैसला आया है. हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट ने सरकार की अपील को खारिज करते हुए कृषि विभाग के सर्वेयर्स को उद्योग विभाग के सर्वेयर्स के बराबर वेतनमान देने का आदेश जारी किया है. अदालत ने कृषि विभाग के सर्वेयर्स को पहली अप्रैल 1984 से उद्योग विभाग के सर्वेक्षकों के बराबर का समय-समय पर संशोधित वेतनमान नोशनल यानी काल्पनिक तौर पर देने का आदेश जारी किया है. साथ ही अदालत ने याचिका दाखिल करने से तीन साल पहले की अवधि से एक्चुअल यानी वास्तविक वेतनमान का लाभ देने के भी आदेश पारित किए हैं. नोशनल यानी काल्पनिक लाभ वे लाभ होते हैं, जो पिछली तारीख से दिए जाते हैं, किंतु उनका वित्तीय लाभ वास्तविक कार्य ग्रहण की तारीख से मिलता है.

मामले के अनुसार कृषि विभाग के सर्वेयर्स के संघ ने वर्ष 1998 में तत्कालीन दौर में सक्रिय हिमाचल प्रदेश प्रशासनिक ट्रिब्यूनल में याचिका दायर की थी. अब हाई कोर्ट के फैसले के अनुसार उन्हें याचिका दाखिल करने के वर्ष से तीन साल पहले से लाभ मिलेंगे. यानी प्रार्थी संघ को बढ़े हुए वेतनमान का वास्तविक लाभ वर्ष 1995 से मिलेगा. इस मामले में हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति एमएस रामचंद्र राव व न्यायमूर्ति ज्योत्सना रिवाल दुआ की खंडपीठ ने कृषि विभाग सर्वेक्षक संघ की दलीलों से सहमति जताई और राज्य सरकार की अपील को खारिज कर दिया. इससे पूर्व हाई कोर्ट की एकल पीठ ने भी सर्वेक्षक संघ के हक में फैसला दिया था. राज्य सरकार ने एकल पीठ के फैसले को डबल बैंच में चुनौती दी थी. अब राज्य सरकार की अपील डबल बैंच में भी खारिज हो गई. अपने फैसले में मुख्य न्यायाधीश की अगुवाई वाली खंडपीठ ने कृषि विभाग के सर्वेक्षकों को उद्योग विभाग के सर्वेक्षकों से कम वेतनमान देने को भेदभावपूर्ण ठहराया.

प्रार्थी संघ की दलील थी कि उनका भर्ती का तरीका, भर्ती की प्रक्रिया, न्यूनतम योग्यता, कार्य की प्रकृति एवं दायित्व और नियोक्ता की सैलेरी भुगतान करने की क्षमता एक जैसी ही है. अदालत में सरकार ने भी प्रार्थी संघ की तरफ से बताए गए उपरोक्त वास्तविक तथ्यों से सहमति जताई, जिस पर खंडपीठ ने कहा कि ऐसे में प्रार्थियों का बराबर वेतनमान का दावा सही है. कोर्ट ने पाया कि कृषि विभाग के सर्वेक्षकों का वेतनमान उद्योग विभाग के सर्वेक्षकों के वेतनमान से कम है.

इसी मामले में हाई कोर्ट की एकल पीठ ने सरकार को आदेश दिए थे कि वह कृषि विभाग के सर्वेक्षकों को 570-1080 का समय-समय पर संशोधित वेतनमान काल्पनिक तौर पर 1 अप्रैल 1984 से जारी करे. वहीं, वास्तविक लाभ याचिका दायर करने से तीन साल पहले तक प्रतिबंधित कर देने के आदेश भी दिए गए थे. सरकार ने इन आदेशों को अपील के माध्यम से खंडपीठ के समक्ष चुनौती दी थी. यहां से भी फैसला सर्वेक्षक संघ के पक्ष में आया है.

ये भी पढे़ं- पूर्व सरकार के समय जनमंच 'लंच मंच' बनकर रह गया, लोगों की समस्याओं का निराकरण नहीं किया- जगत सिंह नेगी

शिमला: हिमाचल प्रदेश कृषि विभाग के सर्वेक्षकों यानी सर्वेयर्स के लिए हाई कोर्ट से एक अहम फैसला आया है. हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट ने सरकार की अपील को खारिज करते हुए कृषि विभाग के सर्वेयर्स को उद्योग विभाग के सर्वेयर्स के बराबर वेतनमान देने का आदेश जारी किया है. अदालत ने कृषि विभाग के सर्वेयर्स को पहली अप्रैल 1984 से उद्योग विभाग के सर्वेक्षकों के बराबर का समय-समय पर संशोधित वेतनमान नोशनल यानी काल्पनिक तौर पर देने का आदेश जारी किया है. साथ ही अदालत ने याचिका दाखिल करने से तीन साल पहले की अवधि से एक्चुअल यानी वास्तविक वेतनमान का लाभ देने के भी आदेश पारित किए हैं. नोशनल यानी काल्पनिक लाभ वे लाभ होते हैं, जो पिछली तारीख से दिए जाते हैं, किंतु उनका वित्तीय लाभ वास्तविक कार्य ग्रहण की तारीख से मिलता है.

मामले के अनुसार कृषि विभाग के सर्वेयर्स के संघ ने वर्ष 1998 में तत्कालीन दौर में सक्रिय हिमाचल प्रदेश प्रशासनिक ट्रिब्यूनल में याचिका दायर की थी. अब हाई कोर्ट के फैसले के अनुसार उन्हें याचिका दाखिल करने के वर्ष से तीन साल पहले से लाभ मिलेंगे. यानी प्रार्थी संघ को बढ़े हुए वेतनमान का वास्तविक लाभ वर्ष 1995 से मिलेगा. इस मामले में हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति एमएस रामचंद्र राव व न्यायमूर्ति ज्योत्सना रिवाल दुआ की खंडपीठ ने कृषि विभाग सर्वेक्षक संघ की दलीलों से सहमति जताई और राज्य सरकार की अपील को खारिज कर दिया. इससे पूर्व हाई कोर्ट की एकल पीठ ने भी सर्वेक्षक संघ के हक में फैसला दिया था. राज्य सरकार ने एकल पीठ के फैसले को डबल बैंच में चुनौती दी थी. अब राज्य सरकार की अपील डबल बैंच में भी खारिज हो गई. अपने फैसले में मुख्य न्यायाधीश की अगुवाई वाली खंडपीठ ने कृषि विभाग के सर्वेक्षकों को उद्योग विभाग के सर्वेक्षकों से कम वेतनमान देने को भेदभावपूर्ण ठहराया.

प्रार्थी संघ की दलील थी कि उनका भर्ती का तरीका, भर्ती की प्रक्रिया, न्यूनतम योग्यता, कार्य की प्रकृति एवं दायित्व और नियोक्ता की सैलेरी भुगतान करने की क्षमता एक जैसी ही है. अदालत में सरकार ने भी प्रार्थी संघ की तरफ से बताए गए उपरोक्त वास्तविक तथ्यों से सहमति जताई, जिस पर खंडपीठ ने कहा कि ऐसे में प्रार्थियों का बराबर वेतनमान का दावा सही है. कोर्ट ने पाया कि कृषि विभाग के सर्वेक्षकों का वेतनमान उद्योग विभाग के सर्वेक्षकों के वेतनमान से कम है.

इसी मामले में हाई कोर्ट की एकल पीठ ने सरकार को आदेश दिए थे कि वह कृषि विभाग के सर्वेक्षकों को 570-1080 का समय-समय पर संशोधित वेतनमान काल्पनिक तौर पर 1 अप्रैल 1984 से जारी करे. वहीं, वास्तविक लाभ याचिका दायर करने से तीन साल पहले तक प्रतिबंधित कर देने के आदेश भी दिए गए थे. सरकार ने इन आदेशों को अपील के माध्यम से खंडपीठ के समक्ष चुनौती दी थी. यहां से भी फैसला सर्वेक्षक संघ के पक्ष में आया है.

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