ETV Bharat / state

IIT मंडी के शोधकर्ताओं ने किया कमाल, पानी से तेल और जैव रसायन प्रदूषक सोखने का किया सफल प्रयोग

हाल ही में पर्यावरण विज्ञान एवं प्रदूषण शोध नामक जर्नल में यह शोध प्रकाशित किया गया. ईंधन खपत कम करने और ऊर्जा ज्यादा देने में डीजल इंजन को अन्य इंटर्नल कम्बशन इंजनों से बेहतर माना जाता है, लेकिन डीजल इंजन से प्रदूषक कणों का ज्यादा उत्सर्जन होता है.

IIT मंडी के शोधकर्ता
author img

By

Published : Feb 6, 2019, 10:26 PM IST

मंडीः भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान मंडी के शोधकर्ताओं ने डीजल इंजन से उत्सर्जित कालिख का उपयोग करते हुए पानी से तेल और अन्य जैव रसायन प्रदूषक सोख लेने का सफल प्रयोग किया है. हाल ही में पर्यावरण विज्ञान एवं प्रदूषण शोध नामक जर्नल में यह शोध प्रकाशित किया गया. ईंधन खपत कम करने और ऊर्जा ज्यादा देने में डीजल इंजन को अन्य इंटर्नल कम्बशन इंजनों से बेहतर माना जाता है, लेकिन डीजल इंजन से प्रदूषक कणों का ज्यादा उत्सर्जन होता है.

भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान मंडी
IIT मंडी के शोधकर्ता
undefined

बता दें कि ये कण मुख्यत कालिख है और डीजल जेट के दहन के दौरान ज्यादा ईंधन वाले हिस्सों में पैदा होते हैं. इससे पर्यावरण संकट बढ़ता है, लिहाजा कालिख कम करने के लिए उत्सर्जन के कड़े मानक लागू करने होंगे. कालिख कम करने में कारगर पारंपरिक और गैरपारंपरिक साधनों का विकास करना होगा. इस विषय में किए गए अध्ययन इंजन की डिजाइन पर केंद्रित हैं और वाहन के उत्सर्जन वाले सिरे पर विशेष फिल्टर और ट्रीटमेंट यूनिट लगाने पर जोर देते हैं.

आईआईटी मंडी के स्कूल ऑफ इंजीनियरिंग में ऐसोसिएट प्रोफेसर डॉ. राहुल वैश और उनके शोध छात्र विश्वेंद्र प्रताप सिंह और मूलचंद शर्मा ने इस समस्या के समाधान का नया रुप पेश किया है. उनका तर्क है कि कालिख का उत्सर्जन शून्य कर देना असंभव हो सकता है, पर उस कालिख का सार्थक उपयोग करना मुमकिन है. कार्बन स्पीसीज जैसे कार्बन नैनोट्यूब्स, ग्रेफीन और मोमबत्ती की कालिख ने कई क्षेत्रों में इस संभावना का प्रदर्शन किया है. ऐसे में डॉ. वैश ने कहा कि फिर ऑटोमोबाइल की कालिख से यह क्यों नहीं हो सकता है. कार्बन स्पीसीज पानी में मौजूद विभिन्न जैव प्रदूषक तत्वों को सोख लेती हैं.

undefined
भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान मंडी
IIT मंडी के शोधकर्ता
undefined

इसलिए कार्बन मोनोट्यूब्स, फिल्टर पेपर, मेश फिल्म्स और ग्रैफीन का इस्तेमाल पानी से तेल अलग करने में होता है, चूंकि कालिख में आमतौर पर 90 से 98 प्रतिशत कार्बन की मात्रा होती है. इसलिए शोधकर्ता की इस टीम ने ऐडसॉर्बेंट के रूप में इस प्रदूषक तत्व की मदद से पानी से तेल और जैव प्रदूषकों को पृथक करने की संभावना पर काम किया.

शोधकर्ताओं ने हाल में प्रकाशित शोधपत्र में नए मटीरियल्स की जरूरत पर जोर देते हुए लिखा है कि पिछले दो दशकों में तेल के टैंकरों या जहाजों और औद्योगिक दुघर्टनाओं की वजह से तेल और रसायनों के रिसने की घटनाएं अधिक होने लगी हैं. तेल का उत्पादन एवं परिवहन बढ़ना भी इसकी बड़ी वजह है। नए मटीरियल्स पानी से तेल अलग कर लेने और पर्यावरण को इस हादसे से बचाने में काम आएंगे. इससे पूर्व एक अध्ययन में डॉ. वैश ने मोमबत्ती की कालिख से दो कैटयानिक डाई-रोडोमाइन बी और मिथायलीन ब्ल्यू को पानी से बाहर निकालने में सफलता दर्ज करते हुए कालिख की मदद से प्रदूषक रसायन से छुटकारा पाने की संभावना दिखाई.

undefined
भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान मंडी
IIT मंडी के शोधकर्ता
undefined

बता दें कि उनके पूर्व के कार्य का विस्तार करते हुए शोधकर्ताओं की इस टीम ने डीजल के धुएं की कालिख को पॉलीमर स्पांज में रख कर पानी से तेल और अन्य जैव तत्वों को सोखने की क्षमता का अध्ययन किया. इस हाइड्रोफोबिक स्पांज में विभिन्न तेलों को सोखने की बहुत अधिक क्षमता देखी गई और इसके लिए प्रीट्रीटमेंट की जटिल प्रक्रिया अपनाने की जरूरत भी नहीं पड़ी. शोधकर्ताओं ने देखा कि इंजन ऑयल के लिए तेल सोखने की सर्वाधिक क्षमता 39 जी/जी थी. एक दिलचस्प निष्कर्ष यह सामने आया कि ये स्पांज पुनर्चक्रण योग्य थे और 10 पुनर्चक्रण के बाद भी इनमें 95 प्रतिशत क्षमता बची थी.

भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान मंडी
IIT मंडी के शोधकर्ता
undefined

गौरतलब है कि डीजल की कालिख युक्त स्पांज पानी से कई अन्य प्रदूषक तत्वों को सोख सकता है जैसे मिथायलीन ब्ल्यू, सिप्रोफ्लोक्सासीन और डिटर्जेंट. इसलिए इसका व्यावहारिक लाभ लिया जा सकता है. पानी के प्रदूषण की वजह से तेल, जैव प्रदूषकों के रिसाव के अलावा डाई और डिटर्जेंट जैसे प्रदूषक भी हैं, जो उद्योगों और लोगों के घरों से निकल कर पानी में मिल जाते हैं. डॉ. वैश ने बताया कि ऐसे में कालिख युक्त स्पांज से हम सामान्य घरेलू और औद्योगिक कचरों को कम लागत पर प्रदूषक तत्वों से मुक्त कर सकते हैं. इससे एक अन्य लाभ यह होगा कि हम ऑटोमोबाइल के कचरे का भी सदुपयोग कर पाएंगे.

मंडीः भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान मंडी के शोधकर्ताओं ने डीजल इंजन से उत्सर्जित कालिख का उपयोग करते हुए पानी से तेल और अन्य जैव रसायन प्रदूषक सोख लेने का सफल प्रयोग किया है. हाल ही में पर्यावरण विज्ञान एवं प्रदूषण शोध नामक जर्नल में यह शोध प्रकाशित किया गया. ईंधन खपत कम करने और ऊर्जा ज्यादा देने में डीजल इंजन को अन्य इंटर्नल कम्बशन इंजनों से बेहतर माना जाता है, लेकिन डीजल इंजन से प्रदूषक कणों का ज्यादा उत्सर्जन होता है.

भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान मंडी
IIT मंडी के शोधकर्ता
undefined

बता दें कि ये कण मुख्यत कालिख है और डीजल जेट के दहन के दौरान ज्यादा ईंधन वाले हिस्सों में पैदा होते हैं. इससे पर्यावरण संकट बढ़ता है, लिहाजा कालिख कम करने के लिए उत्सर्जन के कड़े मानक लागू करने होंगे. कालिख कम करने में कारगर पारंपरिक और गैरपारंपरिक साधनों का विकास करना होगा. इस विषय में किए गए अध्ययन इंजन की डिजाइन पर केंद्रित हैं और वाहन के उत्सर्जन वाले सिरे पर विशेष फिल्टर और ट्रीटमेंट यूनिट लगाने पर जोर देते हैं.

आईआईटी मंडी के स्कूल ऑफ इंजीनियरिंग में ऐसोसिएट प्रोफेसर डॉ. राहुल वैश और उनके शोध छात्र विश्वेंद्र प्रताप सिंह और मूलचंद शर्मा ने इस समस्या के समाधान का नया रुप पेश किया है. उनका तर्क है कि कालिख का उत्सर्जन शून्य कर देना असंभव हो सकता है, पर उस कालिख का सार्थक उपयोग करना मुमकिन है. कार्बन स्पीसीज जैसे कार्बन नैनोट्यूब्स, ग्रेफीन और मोमबत्ती की कालिख ने कई क्षेत्रों में इस संभावना का प्रदर्शन किया है. ऐसे में डॉ. वैश ने कहा कि फिर ऑटोमोबाइल की कालिख से यह क्यों नहीं हो सकता है. कार्बन स्पीसीज पानी में मौजूद विभिन्न जैव प्रदूषक तत्वों को सोख लेती हैं.

undefined
भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान मंडी
IIT मंडी के शोधकर्ता
undefined

इसलिए कार्बन मोनोट्यूब्स, फिल्टर पेपर, मेश फिल्म्स और ग्रैफीन का इस्तेमाल पानी से तेल अलग करने में होता है, चूंकि कालिख में आमतौर पर 90 से 98 प्रतिशत कार्बन की मात्रा होती है. इसलिए शोधकर्ता की इस टीम ने ऐडसॉर्बेंट के रूप में इस प्रदूषक तत्व की मदद से पानी से तेल और जैव प्रदूषकों को पृथक करने की संभावना पर काम किया.

शोधकर्ताओं ने हाल में प्रकाशित शोधपत्र में नए मटीरियल्स की जरूरत पर जोर देते हुए लिखा है कि पिछले दो दशकों में तेल के टैंकरों या जहाजों और औद्योगिक दुघर्टनाओं की वजह से तेल और रसायनों के रिसने की घटनाएं अधिक होने लगी हैं. तेल का उत्पादन एवं परिवहन बढ़ना भी इसकी बड़ी वजह है। नए मटीरियल्स पानी से तेल अलग कर लेने और पर्यावरण को इस हादसे से बचाने में काम आएंगे. इससे पूर्व एक अध्ययन में डॉ. वैश ने मोमबत्ती की कालिख से दो कैटयानिक डाई-रोडोमाइन बी और मिथायलीन ब्ल्यू को पानी से बाहर निकालने में सफलता दर्ज करते हुए कालिख की मदद से प्रदूषक रसायन से छुटकारा पाने की संभावना दिखाई.

undefined
भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान मंडी
IIT मंडी के शोधकर्ता
undefined

बता दें कि उनके पूर्व के कार्य का विस्तार करते हुए शोधकर्ताओं की इस टीम ने डीजल के धुएं की कालिख को पॉलीमर स्पांज में रख कर पानी से तेल और अन्य जैव तत्वों को सोखने की क्षमता का अध्ययन किया. इस हाइड्रोफोबिक स्पांज में विभिन्न तेलों को सोखने की बहुत अधिक क्षमता देखी गई और इसके लिए प्रीट्रीटमेंट की जटिल प्रक्रिया अपनाने की जरूरत भी नहीं पड़ी. शोधकर्ताओं ने देखा कि इंजन ऑयल के लिए तेल सोखने की सर्वाधिक क्षमता 39 जी/जी थी. एक दिलचस्प निष्कर्ष यह सामने आया कि ये स्पांज पुनर्चक्रण योग्य थे और 10 पुनर्चक्रण के बाद भी इनमें 95 प्रतिशत क्षमता बची थी.

भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान मंडी
IIT मंडी के शोधकर्ता
undefined

गौरतलब है कि डीजल की कालिख युक्त स्पांज पानी से कई अन्य प्रदूषक तत्वों को सोख सकता है जैसे मिथायलीन ब्ल्यू, सिप्रोफ्लोक्सासीन और डिटर्जेंट. इसलिए इसका व्यावहारिक लाभ लिया जा सकता है. पानी के प्रदूषण की वजह से तेल, जैव प्रदूषकों के रिसाव के अलावा डाई और डिटर्जेंट जैसे प्रदूषक भी हैं, जो उद्योगों और लोगों के घरों से निकल कर पानी में मिल जाते हैं. डॉ. वैश ने बताया कि ऐसे में कालिख युक्त स्पांज से हम सामान्य घरेलू और औद्योगिक कचरों को कम लागत पर प्रदूषक तत्वों से मुक्त कर सकते हैं. इससे एक अन्य लाभ यह होगा कि हम ऑटोमोबाइल के कचरे का भी सदुपयोग कर पाएंगे.

डीजल की कालिख का उपयोग कर पानी से तेल व जैव रसायन प्रदूषक सोखने का सफल प्रयोग
आईआईटी मंडी के शोधकर्ताओं ने किया कमाल, पर्यावरण विज्ञान एवं प्रदूषण शोध नामक जर्नल में शोध हुआ प्रकाश्‍ाित

शिमला। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान मंडी के शोधकर्ताओं ने डीजल इंजन से उत्सर्जित कालिख का उपयोग करते हुए पानी से तेल और अन्य जैव रसायन प्रदूषक सोख लेने का सफल प्रयोग किया है। हाल ही में पर्यावरण विज्ञान एवं प्रदूषण शोध नामक जर्नल में यह शोध प्रकाशित किया गया।
ईंधन खपत कम करने और ऊर्जा ज़्यादा देने में डीजल इंजन को अन्य इंटर्नल कम्बशन इंजनों से बेहतर माना जाता है, लेकिन डीजल इंजन से प्रदूषक कणों का ज्यादा उत्सर्जन होता है। ये कण मुख्यतः कालिख है और डीजल जेट के दहन के दौरान ज़्यादा ईंधन वाले हिस्सों में पैदा होते हैं। इससे पर्यावरण संकट बढ़ता है, लिहाजा कालिख कम करने के लिए उत्सर्जन के कड़े मानक लागू करने होंगे। कालिख कम करने में कारगर पारंपरिक और गैरपारंपरिक साधनों का विकास करना होगा। इस विषय में किए गए अध्ययन इंजन की डिजाइन पर केंद्रित हैं और वाहन के उत्सर्जन वाले सिरे पर विशेष फिल्टर और ट्रीटमेंट यूनिट लगाने पर जोर देते हैं। आईआईटी मंडी के स्कूल ऑफ इंजीनियरिंग में ऐसोसिएट प्रोफेसर डा राहुल वैश और उनके शोध छात्र विश्वेंद्र प्रताप सिंह एवं मूलचंद शर्मा ने इस समस्या के समाधान का नया नजरिया पेश किया है। उनका तर्क है कि कालिख का उत्सर्जन शून्य कर देना असंभव हो सकता है पर उस कालिख का सार्थक उपयोग करना मुमकिन है। कार्बन स्पीसीज़ जैसे कार्बन नैनोट्यूब्स, ग्रेफीन और मोमबत्ती की कालिख ने कई क्षेत्रों में इस संभावना का प्रदर्शन किया है। ऐसे में डॉ. वैश ने कहा कि फिर ऑटोमोबाइल की कालिख से यह क्यों नहीं हो सकता है? कार्बन स्पीसीज़ पानी में मौजूद विभिन्न जैव प्रदूषक तत्वों को सोख लेती हैं। इसलिए कार्बन मोनोट्यूब्स, फिल्टर पेपर, मेश फिल्म्स और ग्रैफीन का इस्तेमाल पानी से तेल अलग करने में होता है। चूंकि कालिख में आम तौर पर 90 से 98 प्रतिशत कार्बन की मात्रा होती है इसलिए शोधकर्ता की इस टीम ने ऐडसॉर्बेंट के रूप में इस प्रदूषक तत्व की मदद से पानी से तेल और जैव प्रदूषकों को पृथक करने की संभावना पर काम किया।
---
शोधपत्र में नए मटीरियल्स की जरूरत पर दिया बल
शोधकर्ताओं ने हाल में प्रकाशित शोधपत्र में नए मटीरियल्स की जरूरत पर जोर देते हुए लिखा है कि पिछले दो दशकों में तेल के टैंकरों या जहाजों और औद्योगिक दुघर्टनाओं की वजह से तेल एवं रसायनों के रिसने की घटनाएं अधिक होने लगी हैं। तेल का उत्पादन एवं परिवहन बढ़ना भी इसकी बड़ी वजह है। नए मटीरियल्स पानी से तेल अलग कर लेने और पर्यावरण को इस हादसे से बचाने में काम आएंगे।
---
पहले भी दिखा चुके हैं कमाल
इससे पूर्व एक अध्ययन में डा. वैश ने मोमबत्ती की कालिख से दो कैटयानिक डाई - रोडोमाइन बी और मिथायलीन ब्ल्यू को पानी से बाहर निकालने में सफलता दर्ज करते हुए कालिख की मदद से प्रदूषक रसायन से छुटकारा पाने की संभावना दिखाई। उनके पूर्व के कार्य का विस्तार करते हुए शोधकर्ताओं की इस टीम ने डीज़ल के धुंएं की कालिख को पॉलीमर स्पांज़ में रख कर पानी से तेल और अन्य जैव तत्वों को सोखने की क्षमता का अध्ययन किया। इस हाइड्रोफोबिक स्पांज़ में विभिन्न तेलों को सोखने की बहुत अधिक क्षमता देखी गई और इसके लिए प्रीट्रीटमेंट की जटिल प्रक्रिया अपनाने की जरूरत भी नहीं पड़ी। शोधकर्ताआें ने देखा कि इंजन ऑयल के लिए तेल सोखने की सर्वाधिक क्षमता 39 जी/जी थी। एक दिलचस्प निष्कर्ष यह सामने आया कि ये स्पांज़ पुनर्चक्रण योग्य थे और 10 पुनर्चक्रण के बाद भी इनमें 95 प्रतिशत क्षमता बची थी। गौरतलब है कि डीज़ल की कालिख युक्त स्पांज़ पानी से कई अन्य प्रदूषक तत्वों को सोख सकता है जैसे मिथायलीन ब्ल्यू, सिप्रोफ्लोक्सासीन और डिटर्जेंट। इसलिए इसका व्यावहारिक लाभ लिया जा सकता है। पानी के प्रदूषण की वजह तेल, जैव प्रदूषकों के रिसाव के अलावा डाई और डिटर्जेंट जैसे प्रदूषक भी हैं जो उद्योगों और लोगों के घरों से निकल कर पानी में मिल जाते हैं। डॉ. वैश ने बताया कि ऐसे में कालिख युक्त स्पांज़ से हम सामान्य घरेलू और औद्योगिक कचरों को कम लागत पर प्रदूषक तत्वों से मुक्त कर सकते हैं। इससे एक अन्य लाभ यह होगा कि हम ऑटोमोबाइल के कचरे का भी सदुपयोग कर पाएंगे।

---
Regards & Thanks

Rakesh Kumar,
Reporter/Content Editor,
ETV Bharat, Location Mandi (H.P.)
Employee Id : 7205686
MOJO Kit No. : 1133
Mob. No. 70182-40610, 94189-30506
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.