मंडीः हिमाचल प्रदेश को देवी-देवताओं की भूमि कहा जाता है. छोटी काशी मंडी में भी देवी-देवताओं का अपना अलग इतिहास रहा है. देव समागम मंडी शिवरात्रि के अंतरराष्ट्रीय महोत्सव में सदियों पुरानी परंपरा को आज भी निभाया जा रहा है. मंडी में नरोल की 6 देवियों राजा के बेड़े में ही विराजमान रहकर घूंघट में रहती हैं.
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रानियों की सखियां थीं यह देवियां
माना जाता है कि यह 6 देवियां रानियों की सखियां हुआ करती थीं और जब सभी लोग मेले में जाते थे, तो यह सखियां रानी के साथ महल में ही रहा करते थीं. तब से इन देवियों को नरोल की देवियां कहा जाता है. देवी बगलामुखी, बूढ़ी भैरवा, कुक्लाह की कश्मीरी, धूमावती, बुशाई और रूपेश्वरी देवी, यह 6 देवियां हैं जो न ही जलेब में शामिल होती हैं और न ही पड्डल मैदान में मेले में विराजमान होती हैं. रियासत काल के समय से ही इन 6 देवियों को नरोल की देवियां माना जाता है.
रूपेश्वरी बेहड़े में ही रहती हैं विराजमान
देवी बगलामुखी के पुजारी गिरधारी कटवाल का कहना है कि अब राजाओं की रियासतें नहीं रही, लेकिन यह देवियां आज भी शिवरात्रि महोत्सव में छोटी काशी मंडी में आती हैं, लेकिन मेले में शिरकत करने की बजाय रूपेश्वरी बेहड़े में घुंघट में ही विराजमान रहती हैं और यहीं से वापस अपने मूल स्थान को लौट जाती हैं.
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