कुल्लू: प्रदेश के कई इलाकों में सेब के बगीचों में कई बिमारियों ने हमला बोल दिया है. सेब में स्केल, वूली एफिड, स्कैब रोग लग गया है. सेब बागवानों को अब सेब समेत अन्य फसलों की चिंता सता रही है.
लोगों का कहना है कि साल 1980-90 की तरह स्कैब रोग लगा तो बागबानों को पेड़ों को काटना पड़ेगा. बागबानों का कहना है कि बीमारी के लिए दवाइयों का छिड़काव किया गया था, लेकिन स्कैब में किसी प्रकार का फर्क नहीं पाया गया.
घाटी के बागबान खुशाल ठाकुर, राम सिंह का कहना है कि पहले ओले और तूफान से बागबानों को नुकसान पहुंचाया था. अब इन बीमारियों ने बागबानों को परेशानी में डाल दिया है. दवाइयों के छिड़काव के बावजूद स्कैब और वूली एफिड बगीचों में कम नहीं हो रही है. सेब का साइज अखरोट के बराबर हो गया है.
अगस्त से सेब सीजन शुरू हो जाएगा, लेकिन स्कैब, स्केल वाले सेब की मंडियों में डिमांड कम होने से बागवानों को इसके दाम अधिक नहीं मिलते. इससे बागवानों को साल भर मेहनत के बाद नुकसान उठाना पड़ता है. दूसरी ओर उद्यान विभाग भी शिविर लगाकर बागवानों को जागरूक कर रहा है.
उद्यान विभाग के विशेषज्ञ डॉ. उत्तम पराशर ने कहा कि वूली एफिड व स्केल में जल्द नियंत्रण पाया जा सकता है. जिसके लिए विभाग की टीम फील्ड पर काम कर रही है, लेकिन स्कैब भयानक बीमारी है, जो महामारी की तरह फसल को बर्बाद कर देती है. उन्होंने बागवानों को सलाह दी कि इस महामारी से बचने के लिए सभी बागबान उद्यान विभाग से दवाइयां खरीद कर बगीचों में स्प्रे करें. अगर कोई बगीचा स्प्रे के बिना रहता है तो इससे इस बीमारी का प्रकोप दोबारा बढ़ने की क्षमता रहती है.
क्या है स्कैब के लक्षण
- सेब के पेड़ की पतियों में काले धब्बे पड़ना
- सेब के फल का निचला हिस्सा काला पड़ जाना
- फल में काले धब्बे पड़ना
- सेब की पत्तियों का भूरा पड़ जाना
कैसे करें बचाव
- नियमित रूप से विभाग द्वारा दिये शेड्यूल पर करें स्प्रे
- डोडिन ओर कंटाप+मेनकोजेब का करें छिड़काव
- 200 लीटर पानी 150 ml का करें प्रयोग
- बिना विभागीय परामर्श के न करें कोई अतिरिक्त स्प्रे