कुल्लू: जिला कुल्लू जहां अपनी प्राकृतिक सुंदरता के लिए देश दुनिया में प्रसिद्ध है. तो वहीं अब यहां पर रिवर राफ्टिंग तथा पैराग्लाइडिंग का रोमांच लेने के लिए भी सैलानी हर साल हजारों की संख्या में पहुंचते हैं. ऐसे में साहसिक गतिविधियों का रोमांच कई बार पर्यटकों की जान पर भी भारी पड़ रहा है. हालांकि हादसे ना हो इसके लिए प्रशासन और पैराग्लाइडिंग व्यवसायी भी अपनी ओर से पूरी सतर्कता बरत रहे हैं. लेकिन ज्यादातर हादसों का कारण उड़ान के दौरान बरती गई लापरवाही ही सामने आ रही है. कुछ हादसों में पर्यटक तो कुछ में पायलट सीधे तौर पर जिम्मेदार हैं. लेकिन अगर आप पैराग्लाइडिंग करना चाहते हैं तो सावधानी और सजगता के साथ-साथ सेफ्टी गाइडलाइन का ध्यान रखें.
2018 से 2022 तक पैराग्लाइडर हादसे में 9 लोगों की मौत: जिला कुल्लू में पैराग्लाइडिंग के लिए मनाली में पहले सोलंगनाला साइट ही चिन्हित की गई थी. इस साइट की ऊंचाई कम है और यहां पर हादसे होने की संभावना भी काफी कम है. करीब 10 साल पहले यहां पर एक हादसा हुआ था. जिसमें एक पर्यटक की जान चली गई थी. इसके बाद सुरक्षा को लेकर प्रशासन व ऑपरेटरों ने कई कारगर कदम उठाए थे. डोभी की साइट सबसे ऊंची है और यहां पर अकसर हादसे भी पेश आ रहे हैं. साल 2022 में यहां पर 2 पर्यटकों की जान भी चली गई. दोनों हादसों में उड़ान भरने के बाद पर्यटक पैराग्लाइडर से छिटककर काफी ऊंचाई से नीचे गिरे हैं. जिला कुल्लू में साल 2018 से लेकर 24 दिसंबर 2022 तक पैराग्लाइडर हादसे में 9 लोगों की मौत हुई है. जबकि 6 पर्यटक इस दौरान हादसे में घायल हुए हैं. साल 2019 में डोभी साइट में दो पर्यटकों की मौत हुई थी.
लापरवाही ही है इन हादसों की वजह: पर्यटकों में पैराग्लाइडिंग के बढ़ते रोमांच को देखकर प्रशासन ने डोभी, नांगाबाग, गड़सा में साइट चिन्हित की. अब यहां पर मानसून के 2 माह जुलाई व अगस्त को छोड़कर पूरा साल पैराग्लाइडिंग हो रही है. वहीं, पैराग्लाइडिंग के दौरान होने वाले हादसों के पीछे ऑपरेटरों का तर्क है कि उड़ान भरने के बाद पर्यटक सुरक्षा की दृष्टि से बांधी गई बेल्ट की पकड़ को ढीली कर देते हैं. जिसके चलते यह हादसे पेश आ रहे हैं. हालांकि जब भी पर्यटक पैराग्लाइडिंग के लिए पहुंचते हैं तो यहां पर पैराग्लाइडर ऑपरेटर के द्वारा उनसे एक फॉर्म भी साइन करवाया जाता है. जिसमें पैराग्लाइडिंग के दौरान होने वाले खतरों से भी अवगत करवाया जाता है. पर्यटक फॉर्म में सभी निर्देशों को पढ़ने के बाद उस पर साइन करते हैं और उसके बाद हवा में रोमांच के लिए तैयार हो जाते हैं.
पैराग्लाइडिंग करने से पहले इन बातों का ध्यान रखें: पैराग्लाइडिंग पर जाने से पहले पर्यटक यह देख लें कि क्या मौसम साफ है. जब मौसम पैराग्लाइडिंग के लिए सुरक्षित हो तभी पैराग्लाइडिंग करने जाएं. वहीं, उड़ान भरने से पहले पायलट को अपना लाइसेंस दिखाने के लिए कहें और सुनिश्चित करें कि वह हिमाचल प्रदेश पर्यटन विभाग के साथ पंजीकृत है. वहीं, पर्यटक पायलट का नाम पता सब पूछ लें. जब ये सारी बातें क्लियर हो जाएं तो पैराग्लाइडिंग के दौरान किन किन बातों और नियमों का ध्यान रखना है उन सबके बारे में जानकारी ले लें. सेफ्टी गाइडलाइन का विशेष ध्यान रखें. फ्लाइट से पहले जो भी प्रश्न आपके मन में हैं वो सभी पायलट से जरूर पूछें.
कुल्लू जिले में कुल 442 पैराग्लाइडिंग पायलट: जिला कुल्लू में सोलंग नाला, मढ़ी, मझाच, डोभी, कोठी, गड़सा, नांगाबाग साइट पैराग्लाइडर के लिए चिन्हित की गई हैं. 7 साइट में पर्यटन विभाग की तकनीकी कमेटी जांच करती है और उसके बाद ही पैराग्लाइडर को उड़ाने की अनुमति दी जाती है. सोलंग नाला में 180 पायलट, डोभी में 196, मझाच में 4, नांगाबाग में 15, गड़ासा में 40 पायलट पंजीकृत है. कुल्लू जिले में कुल 442 पैराग्लाइडिंग पायलट हैं.
पैराग्लाइडर के पास लाइसेंस होना आवश्यक: यहां पर साल 2022 के मई माह में कर्नाटका के एक पर्यटक की मौत के बाद प्रदेश हाईकोर्ट ने पैराग्लाइडिंग पर रोक लगा दी थी. हाईकोर्ट ने पैराग्लाइडिंग के लिए नियमावली बनाने, पायलट को प्रशिक्षित करने व पैराग्लाइडर की जांच करने के निर्देश दिए थे. इसके बाद प्रशासन ने भी यहां पर अवैध रूप से हो रही पैराग्लाइडिंग पर अंकुश लगाया था. अब पंजीकृत ऑपरेटर, लाइसेंस शुदा पायलट को ही पैराग्लाइडर की अनुमति है. वहीं, पैराग्लाइडर को भी नियमों का पालन करते हुए ही पैराग्लाइडिंग करवानी चाहिए.
1 पायलट की एक दिन में सिर्फ 4 उड़ानें: नियमों के अनुसार साइट पर 1 पायलट 4 से अधिक उड़ानें एक दिन में नहीं भर सकेगा. लगातार हो रहे हादसों के बाद पर्यटन विभाग सजग हो गया है. वहीं, अगर पायलट बिना लाइसेंस कार्ड को गले में लटकाए साहसिक गतिविधियों को कराता पकड़ा गया तो उसका लाइसेंस रद्द भी किया जा सकता है. जिला पर्यटन विकास अधिकारी सुनैना शर्मा का कहना है कि पैराग्लाइडिंग मनोरंजन के साथ एक साहसिक खेल है. इसमें जोखिम तो रहता ही है. समय-समय पर विभाग के द्वारा पायलट व पैराग्लाइडर की भी जांच की जाती है. इसके अलावा विभाग के द्वारा समय-समय पर पायलटों को प्रशिक्षण भी दिया जाता है.
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