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कुल्लू दशहरे में धूमन नाग संभालते हैं रथयात्रा में ट्रैफिक व्यवस्था, इन दो देवताओं पर रहता है पुलिस का पहरा

अंतरराष्ट्रीय दशहरा उत्सव कुल्लू में आज भी विधिवत निभाई जा रही हैं तीन शताब्दियों से भी ज्यादा पुरानी परंपराएं. देवताओं के महामिलन, जलेब,सुखपाल और देवता बालूनाग और ऋृंगा ऋषि में धुर विवाद जैसी परंपराएं आकर्षण का केंद्र रहती हैं.

international kullu dushehra festival
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Published : Oct 9, 2019, 10:33 AM IST

Updated : Oct 9, 2019, 11:31 AM IST

कुल्लूः अंतरराष्ट्रीय दशहरा उत्सव कुल्लू अपने आप में सैकड़ों सालों का इतिहास समेटे हुए है. तीन शताब्दियों से भी ज्यादा चली आ रही परंपराएं आज भी इस मेले में कायम हैं. 8 अक्तूबर से कुल्लू दशहरा की शुरुआत हो चुकी है. ये उत्सव 14 अक्टूबर तक चलेगा. दशहरा शुरू होते ही कुल्लू का ढालपुर मैदान कई देवी-देवताओं के आपसी मिलन का गवाह बना.

माता हिडिंबा की मंजूरी और देवी भेखली के इशारे के बाद से कुल्लू दशहरा शुरू होता है. कुल्लू जिले में 2000 से अधिक छोटे बड़े देवता हैं, लेकिन कुल्लू घाटी का आराधय देव रघुनाथ को माना जाता है. पिछले वर्ष 260 देवता इस दशहरा में आए थे, लेकिन इस बार 331 देवताओं को निमंत्रण दिया गया है. दशहरे के अवसर पर में कुल्लू घाटी के देवता 200 किलोमीटर दूर तक से भगवान रघुनाथ के मंदिर में हाजिरी लगाने के लिए आते हैं.

वीडियो.

इस दौरान भगवान रघुनाथ अपने स्थायी शिविर से छोटे रथ पर निकलने के बाद बड़े रथ पर विराजमान होते हैं और उसके बाद निकलने वाली रथयात्रा के साथ ही अंतरराष्ट्रीय दशहरा उत्सव का आगाज होता है. भगवार रघुनाथ के रथ को कोई भी व्यक्ति खींच सकता है. इस रथयात्रा में ट्रैफिक व्यवस्था का जिम्मा पुलिस की जगह देवता ही संभालते हैं. उझी घाटी के देवता धूमन नाग रथ के आगे चलकर भगवान के रथ के लिए रास्ता बनाते हैं.

सदियों से चल रही इस परंपरा को आज भी जस का तस पालन किया जाता है. इसी तरह भगवान की शोभायात्रा के साथ चलने के लिए देवता बालूनाग और ऋृंगा ऋषि में विवाद होता है. इनके विवाद को धुर विवाद कहा जाता है. जिस कारण इन दोनों देवताओं को पुलिस के पहरे में रखा जाता है.

वहीं, कुल्लू दशहरे में प्रतिदिन शाम को राजा की शोभायात्रा निकलती है. जिसे स्थानीय भाषा में जलेब कहा जाता है. यह राजा के अस्थाई शिविर से निकलती है और मैदान का चक्कर लगाकर वापिस शिविर में लौटती है. जलेब में राजा को पालकी में बिठाया जाता है, जिसे सुखपाल कहते हैं. इस जलेब में आगे नारसिंह की घोड़ी चलाई जाती है.

दशहरा उत्सव के हर दिन अलग-अलग घाटियों के देवी देवता अपने वाद्य यंत्रों सहित इस जलेब में भाग लेते हैं. दशहरे के छठे दिन को मुहल्ला कहते हैं. इस दिन सभी देवताओं का महामिलन होता है. सभी देवी देवता रघुनाथ जी के शिविर में पहुंचते हैं और आपस में बड़े हर्षोउल्लास से मिलते हैं. देवताओं के महामिलन के बाद एक एकन करके देवताओं के रथ राजा के शिविर में जाकर अपनी लिखित उपस्थिति दर्ज करवाते हैं.

वहीं, अंतरराष्ट्रीय कुल्लू दशहरा के अलावा मणिकर्ण, ठाउगा, वशिष्ठ और हरिपुर में भी दशहरे का आयोजन होता है. यहां पर भी सात दिनों तक महोत्सव का आयोजन किया जाता है. मणिकर्ण में बाकायदा रथ भी बनाया जाता है. जिसमें भगवार रघुनाथ को रखा जाता है. यहां पर हालांकि देवता बड़ी संख्या में नहीं होते, लेकिन पारंपरिक परंपराओं का पालन पूरी तरह से किया जाता है.

कुल्लूः अंतरराष्ट्रीय दशहरा उत्सव कुल्लू अपने आप में सैकड़ों सालों का इतिहास समेटे हुए है. तीन शताब्दियों से भी ज्यादा चली आ रही परंपराएं आज भी इस मेले में कायम हैं. 8 अक्तूबर से कुल्लू दशहरा की शुरुआत हो चुकी है. ये उत्सव 14 अक्टूबर तक चलेगा. दशहरा शुरू होते ही कुल्लू का ढालपुर मैदान कई देवी-देवताओं के आपसी मिलन का गवाह बना.

माता हिडिंबा की मंजूरी और देवी भेखली के इशारे के बाद से कुल्लू दशहरा शुरू होता है. कुल्लू जिले में 2000 से अधिक छोटे बड़े देवता हैं, लेकिन कुल्लू घाटी का आराधय देव रघुनाथ को माना जाता है. पिछले वर्ष 260 देवता इस दशहरा में आए थे, लेकिन इस बार 331 देवताओं को निमंत्रण दिया गया है. दशहरे के अवसर पर में कुल्लू घाटी के देवता 200 किलोमीटर दूर तक से भगवान रघुनाथ के मंदिर में हाजिरी लगाने के लिए आते हैं.

वीडियो.

इस दौरान भगवान रघुनाथ अपने स्थायी शिविर से छोटे रथ पर निकलने के बाद बड़े रथ पर विराजमान होते हैं और उसके बाद निकलने वाली रथयात्रा के साथ ही अंतरराष्ट्रीय दशहरा उत्सव का आगाज होता है. भगवार रघुनाथ के रथ को कोई भी व्यक्ति खींच सकता है. इस रथयात्रा में ट्रैफिक व्यवस्था का जिम्मा पुलिस की जगह देवता ही संभालते हैं. उझी घाटी के देवता धूमन नाग रथ के आगे चलकर भगवान के रथ के लिए रास्ता बनाते हैं.

सदियों से चल रही इस परंपरा को आज भी जस का तस पालन किया जाता है. इसी तरह भगवान की शोभायात्रा के साथ चलने के लिए देवता बालूनाग और ऋृंगा ऋषि में विवाद होता है. इनके विवाद को धुर विवाद कहा जाता है. जिस कारण इन दोनों देवताओं को पुलिस के पहरे में रखा जाता है.

वहीं, कुल्लू दशहरे में प्रतिदिन शाम को राजा की शोभायात्रा निकलती है. जिसे स्थानीय भाषा में जलेब कहा जाता है. यह राजा के अस्थाई शिविर से निकलती है और मैदान का चक्कर लगाकर वापिस शिविर में लौटती है. जलेब में राजा को पालकी में बिठाया जाता है, जिसे सुखपाल कहते हैं. इस जलेब में आगे नारसिंह की घोड़ी चलाई जाती है.

दशहरा उत्सव के हर दिन अलग-अलग घाटियों के देवी देवता अपने वाद्य यंत्रों सहित इस जलेब में भाग लेते हैं. दशहरे के छठे दिन को मुहल्ला कहते हैं. इस दिन सभी देवताओं का महामिलन होता है. सभी देवी देवता रघुनाथ जी के शिविर में पहुंचते हैं और आपस में बड़े हर्षोउल्लास से मिलते हैं. देवताओं के महामिलन के बाद एक एकन करके देवताओं के रथ राजा के शिविर में जाकर अपनी लिखित उपस्थिति दर्ज करवाते हैं.

वहीं, अंतरराष्ट्रीय कुल्लू दशहरा के अलावा मणिकर्ण, ठाउगा, वशिष्ठ और हरिपुर में भी दशहरे का आयोजन होता है. यहां पर भी सात दिनों तक महोत्सव का आयोजन किया जाता है. मणिकर्ण में बाकायदा रथ भी बनाया जाता है. जिसमें भगवार रघुनाथ को रखा जाता है. यहां पर हालांकि देवता बड़ी संख्या में नहीं होते, लेकिन पारंपरिक परंपराओं का पालन पूरी तरह से किया जाता है.

Intro:देवी देवताओं के भव्य मिलन का नजारा है दशहरा उत्सवBody:देवी देवताओं के भव्य मिलन का नजारा है दशहरा उत्सव

अंतरराष्ट्रीय दशहरा उत्सव कुल्लू अपने आप में सैंकड़ो सालों का इतिहास समेटे है। तीन शताब्दियों से यहां पर परंपराएं आज भी कायम हैं। इस बार दशहरा 8 से 14 अक्टूबर तक चलेगा और पूरा कुल्लू शहर देवताओं के आगमन और भव्य मिलन का गवाह बनेगा। कुल्लू जिले में 2000 से अधिक छोटे बड़े देवता हैं, लेकिन घाटी के देवता भगवान रघुनाथ हैं। माता हिडिंबा की मंजूरी और देवी भेखली के इशारे के बाद से कुल्लू दशहरा का आगाज होता है। पिछले वर्ष 260 देवता इस दशहरा में आए थे, लेकिन इस बार 331 देवताओं को निमंत्रण दिया गया है। भगवान रघुनाथ अपने स्थायी शिविर से छोटे रथ से निकलने के बाद बड़े रथ पर विराजमान होते हैं और उसके बाद निकलने वाली शोभायात्रा के साथ यहां अंतरराष्ट्रीय दशहरा का आगाज होता है। भगवार रघुनाथ के रथ को कोई भी व्यक्ति खींच सकता है। दशहरे में घाटी के देवता 200 किलोमीटर दूर तक से आते हैं। वही, कुल्लू दशहरे में प्रतिदिन शाम को राजा की शोभायात्रा निकलती है। इसे जलेब कहते हैं । यह राजा के अस्थाई शिविर से निकलती है और मैदान का चक्कर लगाकर वापिस शिविर में लौटती है। जलेब में राजा को पालकी में बिठाया जाता है जिसे सुखपाल कहते हैं। इस जलेब में आगे नारसिंह की घोड़ी चलाई जाती है। अलग-अलग दिन अलग-अलग घाटियों के देवी देवता अपने वाद्य यंत्रों सहित इस जलेब में भाग लेते हैं । दशहरे के छठे दिन को मुहल्ला कहते हैं। इस दिन सभी देवताओं का महामिलन होता है। सभी देवी देवता रघुनाथ जी के शिविर में पहुंचते हैं और आपस में बड़े हर्षोउल्लास से मिलते हैं। उसके बाद एक एकनकरके देवताओं के रथ राजा के शिविर में जाकर अपनी लिखित उपस्थिति दर्ज करवाते है। दशहरे में आयोजित रथयात्रा में भगवार रघुनाथ के रथ निकलने पर ट्रैफिक व्यवस्था का जिम्मा पुलिस की जगह देवता ही संभालते हैं। उझी घाटी के देवता धूमल नाग रथ के आगे चलकर भगवान के रथ के लिए रास्ता बनाते हैं। सदियों से चल रही इस परंपरा को आज भी जस का तस पालन किया जाता है। इसी तरह भगवान की शोभायात्रा के साथ चलने के लिए देवता बालूनाग और ऋृंगा ऋषि में विवाद होता है और इस कारण इन दोनों देवताओं को पुलिस के पहरे में रखा जाता है। इनके विवाद को धुर विवाद कहा जाता है। वही, अंतरराष्ट्रीय कुल्लू दशहरा के अलावा मणिकर्ण, ठाउगा, वशिष्ठ और हरिपुर में भी दशहरे का आयोजन होता है। यहां पर भी सात दिनों तक महोत्सव चलता है। Conclusion:मणिकर्ण में बाकायदा रथ भी बनाया जाता है जिसमें भगवार रघुनाथ को रखा जाता है। यहां पर हालांकि देवता बड़ी संख्या में नहीं होते लेकिन परंपराओं का पालन पूरी तरह से किया जाता है।
Last Updated : Oct 9, 2019, 11:31 AM IST
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