किन्नौर: जनजातीय जिला किन्नौर के काशंग (काशङ्ग) की पहाड़ियां 12 महीने बर्फ से ढकी रहती हैं. यहां स्थित काशंग नदी में सालभर नीला पानी बहता रहता है जो यहां की खूबसूरती में चार चांद लगा देता है. इसके चारों तरफ देवदार व अखरोट के पेड़ पाए जाते हैं.
किन्नौरी बोली में काशंग का मतलब 'हम दोनों' होता है, कहा जाता है कि दो लोगों को इस स्थान पर जाना था और एक साथ जाने को काशंग कहा गया, जिसके बाद इस स्थान का नाम काशंग पड़ गया. काशंग ऑर्गेनिक कंडे के नाम से भी जाना जाता है, क्योंकि यहां पर किसान और बागवान अपनी फसल में रासायनिक छिड़काव नहीं करते हैं. यहां सेब, ओगला, फाफड़ा, राजमा, माश, मटर की मुख्य फसल होती है.
यहां बहने वाली काशंग नदी को पांगी गांव के निवासी गंगा का रूप मानते हैं क्योंकि यह नदी पूरे गांव की सिंचाई व यहां के लोगों की प्यास बुझाती है. यहां पुहंचने वाले पर्यटक नदी के पानी को बोतलों में भरकर अपने साथ ले जाते हैं. मान्यताओं अनुसार इस पानी को पीने से शरीर के सभी रोग दूर हो जाते हैं.
दमे के रोगियों के लिए यहां की हवा अमृत
काशंग कण्डे को जड़ी-बूटियों का खजाना भी कहा जाता है. स्थानीय लोगों का कहना है कि दमे के रोग से ग्रस्त लोग काशंग कण्डे आते हैं और पारम्परिक मकानों में कई दिन रहने के बाद स्वस्थ होकर वापिस लौट जाते जाते हैं.
पर्यटकों के लिए आकर्षण
काशंग कंडा में पर्यटक शहरों के शोर-शराबे से दूर, सकून की तलाश में आते हैं. काशंग नदी पर काशंग परियोजना का बांध बना है. यहां पर सैकड़ों वर्ष पूराने मकान है, जो यहां पर रहने वाले भेड़ पालकों के रहन-सहन को दर्शाते हैं. यहां के जीवन में किन्नौर के पुराने तौर-तरीके और रिवाज देखने को मिलते हैं. यहां पर काशंग झील, पास्चर ट्रेक्स, पैराग्लाइडिंग, बर्फबारी में स्कीइंग पर्यटकों को आकर्षित करते हैं.
सैकड़ों पर्यटक इस स्थान से ट्रेकिंग कर आसरंग और युला गांव के लिए निकलते हैं. इस ट्रेकिंग में लगभग दो दिन का समय लगता है. इसके अलावा लाहौलस्पीति के बॉर्डर से लगते काशंग से स्पीति के लिए एक दिन का ट्रैकिंग रूट है.
काशंग में मूलभूत सुविधाओं का अभाव
काशंग कंडा में पर्यटन की आपार संभावनाएं हैं, लेकिन सरकार ने इस स्थान को मूलभूत सुविधाओं से वंचित रखा है. काशंग में आज भी सड़कें पक्की नहीं करवाई गई है. टूरिज्म कार्यालय में काशंग के नाम का पंजीकरण नहीं करवाया गया है. इस क्षेत्र में ट्रेकिंग प्वांइट्स ऑफिस न होने से पर्यटकों के यहां आने के बाद बैठने के लिए कोई स्थान नहीं उपलब्ध नहीं होता, जिसके चलते यहां के लोगों में खासी नाराजगी है.