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बीमार को स्वस्थ कर देता है किन्नौर की 'गंगा' का पानी! काशंग के पहाड़ों पर खूब मेहरबान है प्रकृति

ईटीवी भारत की खास सीरिज अनछुआ हिमाचल में आज हम आपको सैर करवाएंगे जनजातीय जिला किन्नौर के काशङ्ग या काशंग की. किन्नौर के मुख्यालय से 25 किलोमीटर आगे की तरफ बसा पांगी गांव का एक हिस्सा काशंग प्राकृतिक नजारों से सराबोर है. पांगी गांव के साथ सटे इस पहाड़ी इलाके की ऊंचाई करीब 4500 फीट है.

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Published : Oct 19, 2019, 4:22 PM IST

(डिजाइन फोटो).

किन्नौर: जनजातीय जिला किन्नौर के काशंग (काशङ्ग) की पहाड़ियां 12 महीने बर्फ से ढकी रहती हैं. यहां स्थित काशंग नदी में सालभर नीला पानी बहता रहता है जो यहां की खूबसूरती में चार चांद लगा देता है. इसके चारों तरफ देवदार व अखरोट के पेड़ पाए जाते हैं.

किन्नौरी बोली में काशंग का मतलब 'हम दोनों' होता है, कहा जाता है कि दो लोगों को इस स्थान पर जाना था और एक साथ जाने को काशंग कहा गया, जिसके बाद इस स्थान का नाम काशंग पड़ गया. काशंग ऑर्गेनिक कंडे के नाम से भी जाना जाता है, क्योंकि यहां पर किसान और बागवान अपनी फसल में रासायनिक छिड़काव नहीं करते हैं. यहां सेब, ओगला, फाफड़ा, राजमा, माश, मटर की मुख्य फसल होती है.

वीडियो.

यहां बहने वाली काशंग नदी को पांगी गांव के निवासी गंगा का रूप मानते हैं क्योंकि यह नदी पूरे गांव की सिंचाई व यहां के लोगों की प्यास बुझाती है. यहां पुहंचने वाले पर्यटक नदी के पानी को बोतलों में भरकर अपने साथ ले जाते हैं. मान्यताओं अनुसार इस पानी को पीने से शरीर के सभी रोग दूर हो जाते हैं.

दमे के रोगियों के लिए यहां की हवा अमृत
काशंग कण्डे को जड़ी-बूटियों का खजाना भी कहा जाता है. स्थानीय लोगों का कहना है कि दमे के रोग से ग्रस्त लोग काशंग कण्डे आते हैं और पारम्परिक मकानों में कई दिन रहने के बाद स्वस्थ होकर वापिस लौट जाते जाते हैं.

पर्यटकों के लिए आकर्षण
काशंग कंडा में पर्यटक शहरों के शोर-शराबे से दूर, सकून की तलाश में आते हैं. काशंग नदी पर काशंग परियोजना का बांध बना है. यहां पर सैकड़ों वर्ष पूराने मकान है, जो यहां पर रहने वाले भेड़ पालकों के रहन-सहन को दर्शाते हैं. यहां के जीवन में किन्नौर के पुराने तौर-तरीके और रिवाज देखने को मिलते हैं. यहां पर काशंग झील, पास्चर ट्रेक्स, पैराग्लाइडिंग, बर्फबारी में स्कीइंग पर्यटकों को आकर्षित करते हैं.

सैकड़ों पर्यटक इस स्थान से ट्रेकिंग कर आसरंग और युला गांव के लिए निकलते हैं. इस ट्रेकिंग में लगभग दो दिन का समय लगता है. इसके अलावा लाहौलस्पीति के बॉर्डर से लगते काशंग से स्पीति के लिए एक दिन का ट्रैकिंग रूट है.

काशंग में मूलभूत सुविधाओं का अभाव
काशंग कंडा में पर्यटन की आपार संभावनाएं हैं, लेकिन सरकार ने इस स्थान को मूलभूत सुविधाओं से वंचित रखा है. काशंग में आज भी सड़कें पक्की नहीं करवाई गई है. टूरिज्म कार्यालय में काशंग के नाम का पंजीकरण नहीं करवाया गया है. इस क्षेत्र में ट्रेकिंग प्वांइट्स ऑफिस न होने से पर्यटकों के यहां आने के बाद बैठने के लिए कोई स्थान नहीं उपलब्ध नहीं होता, जिसके चलते यहां के लोगों में खासी नाराजगी है.

किन्नौर: जनजातीय जिला किन्नौर के काशंग (काशङ्ग) की पहाड़ियां 12 महीने बर्फ से ढकी रहती हैं. यहां स्थित काशंग नदी में सालभर नीला पानी बहता रहता है जो यहां की खूबसूरती में चार चांद लगा देता है. इसके चारों तरफ देवदार व अखरोट के पेड़ पाए जाते हैं.

किन्नौरी बोली में काशंग का मतलब 'हम दोनों' होता है, कहा जाता है कि दो लोगों को इस स्थान पर जाना था और एक साथ जाने को काशंग कहा गया, जिसके बाद इस स्थान का नाम काशंग पड़ गया. काशंग ऑर्गेनिक कंडे के नाम से भी जाना जाता है, क्योंकि यहां पर किसान और बागवान अपनी फसल में रासायनिक छिड़काव नहीं करते हैं. यहां सेब, ओगला, फाफड़ा, राजमा, माश, मटर की मुख्य फसल होती है.

वीडियो.

यहां बहने वाली काशंग नदी को पांगी गांव के निवासी गंगा का रूप मानते हैं क्योंकि यह नदी पूरे गांव की सिंचाई व यहां के लोगों की प्यास बुझाती है. यहां पुहंचने वाले पर्यटक नदी के पानी को बोतलों में भरकर अपने साथ ले जाते हैं. मान्यताओं अनुसार इस पानी को पीने से शरीर के सभी रोग दूर हो जाते हैं.

दमे के रोगियों के लिए यहां की हवा अमृत
काशंग कण्डे को जड़ी-बूटियों का खजाना भी कहा जाता है. स्थानीय लोगों का कहना है कि दमे के रोग से ग्रस्त लोग काशंग कण्डे आते हैं और पारम्परिक मकानों में कई दिन रहने के बाद स्वस्थ होकर वापिस लौट जाते जाते हैं.

पर्यटकों के लिए आकर्षण
काशंग कंडा में पर्यटक शहरों के शोर-शराबे से दूर, सकून की तलाश में आते हैं. काशंग नदी पर काशंग परियोजना का बांध बना है. यहां पर सैकड़ों वर्ष पूराने मकान है, जो यहां पर रहने वाले भेड़ पालकों के रहन-सहन को दर्शाते हैं. यहां के जीवन में किन्नौर के पुराने तौर-तरीके और रिवाज देखने को मिलते हैं. यहां पर काशंग झील, पास्चर ट्रेक्स, पैराग्लाइडिंग, बर्फबारी में स्कीइंग पर्यटकों को आकर्षित करते हैं.

सैकड़ों पर्यटक इस स्थान से ट्रेकिंग कर आसरंग और युला गांव के लिए निकलते हैं. इस ट्रेकिंग में लगभग दो दिन का समय लगता है. इसके अलावा लाहौलस्पीति के बॉर्डर से लगते काशंग से स्पीति के लिए एक दिन का ट्रैकिंग रूट है.

काशंग में मूलभूत सुविधाओं का अभाव
काशंग कंडा में पर्यटन की आपार संभावनाएं हैं, लेकिन सरकार ने इस स्थान को मूलभूत सुविधाओं से वंचित रखा है. काशंग में आज भी सड़कें पक्की नहीं करवाई गई है. टूरिज्म कार्यालय में काशंग के नाम का पंजीकरण नहीं करवाया गया है. इस क्षेत्र में ट्रेकिंग प्वांइट्स ऑफिस न होने से पर्यटकों के यहां आने के बाद बैठने के लिए कोई स्थान नहीं उपलब्ध नहीं होता, जिसके चलते यहां के लोगों में खासी नाराजगी है.

Intro:किन्नौर का काशङ्ग है अपने ट्रेकिंग के लिए मशहूर,यहाँ पर्यटक आते है शांति के आभास के लिए,काशङ्ग से एक दिन में पहुँचा जा सकता है लाहौल स्पीति,पहाड़ो से बहती काशङ्ग नदी,सुविधाओं के अभाव के चलते सुंदर हरे भरे पहाड़ो को निहारने को तरसते है सेकड़ो पर्यटक,काशङ्ग में पुराने ज़माने के मकान व पहाड़ो में भेड़पालको के रहन सहन है यहां की अलग संस्कृति, सेकड़ो पर्यटक खूबसूरती के है कायल।



जनजातीय जिला किन्नौर के मुख्यालय से 25 किलोमीटर आगे की तरफ बसा पंगी गाँव का एक हिस्सा जिसका नाम काशङ्ग है काशङ्ग का मतलब किन्नौरी में हम दोनों है यानी जब किसी जमाने मे दो व्यक्तियों ने आपस मे मिलकर इस स्थान पर जाना था तो एक साथ जाने को काशङ्ग कहा था जिसके बाद इस स्थान का नाम काशङ्ग पड़ा।



ऊंचाई व भौगोलिक स्थिति-----काशङ्ग पंगी गाँव के साथ सटा एक पहाड़ी इलाका है जिसकी ऊंचाई करीब 45 सौ मीटर है और यहां चारो तरफ पहाड़िया बारह महीने बर्फ़ से ढकी रहती है।
काशङ्ग कंडा इसलिए पूरे किन्नौर में प्रसिद्ध है क्यों कि यहां पर बारह महीने ठंड रहती है और काशङ्ग के मध्य काशङ्ग नदी जो पूरी तरह नीली रंग का पानी है बहती रहती है इसके चारों तरफ देवदार व अखरोट के पेड़ पाए जाते है।

कण्डे में स्थानीय लोगो की मुख्य फसलें-----काशङ्ग अपने आप मे ऑर्गेनिक कण्डे के नाम से भी जाना जाता है जहां लोग अपनी फसल में रासायनिक छिटकाव नही करते है और यहां सेब,,ओगला,फाफड़ा,राजमाह,माश, मटर की मुख्य फसल होती है जो बड़े बड़े खेतो में गर्मियों में लहलहाते दिखते है जो पर्यटकों का मन मोह लेते है।


काशङ्ग नदी-----बताते चले कि काशङ्ग नदी को पंगी गाव के निवासी गंगा का रूप मानते है क्यों कि यह नदी पूरे गाँव की सिंचाई व यहां के लोगो की प्यास बुजाती है और यहां पर्यटक इस नदी के पानी को बोतलों में भरकर अपने साथ लेजाते मान्यताओं अनुसार इस पानी को पीने से शरीर के रोग दूर हो जाते है इस नदी व यहां के पवित्र पहाड़ो को निहारने के लिए आज भी गर्मियों में हज़ारो पर्यटक काशङ्ग आते है।

दमे के रोगियों के लिए यहां की हवाई अमृत------काशङ्ग कण्डे को झड़ीबूटियो का खजाना भी कहा जाता है लोगो का कहना है कि जिसको दमे की बीमारी है या जो पर्यटक दमे के रोग से ग्रस्त होता है वो काशङ्ग कण्डे आते है और कई दिन लोगो के पारम्परिक मकानों में रहते है और अपने आप को स्वस्थ कर वापिस चले जाते है।

पर्यटकों को देखने योग्य--------काशङ्ग कण्डे में पर्यटक शहरो के शोर शराबे से दूर और सकून के लिए आते है काशङ्ग नदी पर काशङ्ग परियोजना का बांध बना है काशङ्ग में पुराने ज़माने के सेकड़ो वर्षो के बने मकान है जो यहां पर रहने वाले भेड़पालको के रहनसहन दर्शाती है जिसमे पूरे किन्नौर के पुराने तौर तरीके देखने को मिलते है काशङ्ग झील,पास्चर,ट्रेक्स, ट्रेकिंग तो युला,आसरंग,प्रागलैडिंग के स्कोप,स्किंग बर्फबारी में,हेली स्कूटर चला सकते है ।




Body:बता दे कि सेकड़ो पर्यटक इस स्थान से ट्रेकिंग कर आसरंग गाँव, युला गाँव के लिए निकलते है इस ट्रेकिंग में लगभग दो दिन का समय लगता है और लाहौल स्पीति के बॉर्डर से लगता है काशङ्ग से स्पीति एक दिन का ट्रैक है।



समस्याएं--------काशङ्ग कंडा में इतने बड़े पर्यटन के आपार सम्भावनाएं है लेकिन यहाँ पर आज भी सरकार ने इस स्थान को मूलभूत सुविधाओं से दूर रखा है जैसे कच्ची सड़के,टूरिज़म कार्यालय में काशङ्ग का नाम पंजीकरण न करना, व इस क्षेत्र में ट्रेकिंग पॉइंट्स ऑफिस नही होना,पर्यटकों के यहां पर आने के बाद बैठने के लिए कोई स्थान नही है जिसके चलते यहां के लोगो मे खासी नाराज़गी है।





Conclusion:यदि सरकार काशङ्ग को टूरिज़म मेप व मूलभूत सुविधाएं दी तो यहा की खूबसूरती और शतानिय लोगो को रोजगार की आपार संभावनाएं भी बढ़ सकती है।




बाईट-----------1-------विजय नेगी ( निवासी पंगी )

बाईट-----------2--------प्रेम नेगी ( निवासी पंगी )






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