कांगड़ा: प्रदेश में एक ऐसे स्वतंत्रता सेनानी का घर है जिसने बिना हथियार के अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ आवाज उठाई थी. प्रण लिया था कि जब तक देश आजाद नहीं हो जाता तब तक काले कपड़े पहनना नहीं छोड़ेंगे.
इस स्वतंत्रता सेनानी का नाम था बाबा काशी राम जिन्हें पहाड़ी गांधी के नाम से भी जाना जाता है. ये नाम उन्हें किसी और ने नहीं बल्कि देश के पहले प्रधानमंत्री रहे पंडित जवाहर लाल नेहरू ने दिया था. पहाड़ी गांधी बाबा कांशीराम स्वतंत्रता सेनानी होने के साथ-साथ क्रांतिकारी साहित्यकार भी थे. उन्होंने काव्य से सामाजिक, धार्मिक, राजनीतिक, आर्थिक और सांस्कृतिक शोषण के खिलाफ आवाज उठाई थी.
उनकी जयंती पर आज भाषा और संस्कृति विभाग द्वारा नगरोटा बगवां में एक कार्यक्रम भी आयोजित किया जा रहा है. बावजूद इसके बाबा को आज दिन तक वह स्थान नहीं मिल पाया, जिसके वे हकदार थे. आजादी के इतने साल बीतने के बाद भी प्रदेश में कोई भी सरकार रही हो, बाबा कांशी राम को उचित स्थान नहीं दिला पाई है.
सिर्फ घोषणाओं तक ही सीमित रही सरकारें
बाबा कांशी राम के पोते विनोद शर्मा का कहना है कि बाबा को उचित सम्मान के लिए कई नेताओं ने कई घोषणाएं की. वे सब घोषणाओं तक ही सीमित रह गईं. उन्होंने बताया कि साल 2007 में भाषा एवं संस्कृति विभाग के कर्मचारी उनके घर आए थे और उन्होंने बताया था कि विभाग बाबा के स्लेटपोश मकान का अधिग्रहण करना चाहता है.
परिवार वालों ने इसके लिए हामी भर दी, लेकिन उसके बाद कुछ नहीं हुआ. वहीं, प्रदेश सरकार की पिछली कांग्रेस सरकार ने पहाड़ी गांधी बाबा कांशी राम के पैतृक घर का अधिग्रहण कर इसे एक हेरिटेज मोन्यूमेंट में बदलने का फैसला लिया था, लेकिन आज तक इस पर कोई काम नहीं हो सका.
जीवन के नौ साल जेल में बिताए
बाबा कांशी राम का जन्म 11 जुलाई 1882 को डाडासीबा के गुरनबाड़ को हुआ था. उनके पिता का नाम लखनु राम और माता का नाम रेवती देवी था. उनके पिता लखनु राम का देहांत 1893 में ही हो गया था. जलियांवाला बाग हत्याकांड के बाद उन्होंने महात्मा गांधी के संदेश को कविताओं और गीतों के माध्यम से पहाड़ी भाषा में प्रसारित किया. उन्होंने प्रण लिया था कि जब तक भारत वर्ष आजाद नहीं हो जाता, तब तक वह काले कपड़े ही धारण करेंगे. पहाड़ी कविताओं और छंदों के माध्यम से ब्रिटिश राज के खिलाफ देशभक्ति का संदेश फैलाने के लिए उन्हें 11 बार गिरफ्तार किया गया. उन्होंने अपने जीवन के लगभग 9 साल विभिन्न जेलों में बिताए.
इंदिरा ने जारी किया था 'बाबा' का डाक टिकट
साल 1937 में गद्दीवाला (होशियारपुर) में संपन्न हुए सम्मेलन में नेहरू जी ने इनकी रचनाएं सुनकर और स्वतन्त्रता के प्रति इनका समर्पण देखकर इन्हें 'पहाड़ी गांधी' कहकर सम्बोधित किया. उसके बाद से इसी नाम से प्रसिद्ध हो गये. जीवन में बहुत सी मुसीबतों से जूझते हुए बाबा कांशीराम ने अपने देश, धर्म और समाज पर अपनी चुटीली रचनाओं द्वारा गहन टिप्पणियां कीं. इनमें कुणाले री कहाणी, बाबा बालकनाथ कनै फरियाद, पहाड़ेया कन्नै चुगहालियां आदि प्रमुख हैं. पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने भी साल 1984 में बाबा कांशी राम के नाम पर डाक टिकट जारी किया था.
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