हमीरपुर: एनआईटी हमीरपुर में अब चीड़ की पत्तियों से बिजली तैयार कर उर्जा अध्ययन केंद्र को संचालित किया जाएगा. एनआईटी हमीरपुर के ऊर्जा अध्ययन केंद्र के विशेषज्ञों ने इस विषय पर पूरा खाका तैयार कर लिया है. प्रारंभिक चरण में 10 किलो वाट बिजली की क्षमता वाला संयंत्र स्थापित करने का मॉडल तैयार किया गया है. इस मॉडल को तैयार करने के साथ ही एनआईटी हमीरपुर के उर्जा अध्ययन केंद्र ने नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय को विस्तृत प्रपोजल भेजी गई है. केंद्रीय मंत्रालय से यदि यह मॉडल विकसित करने के लिए एनआईटी हमीरपुर के उर्जा अध्ययन केंद्र को मंजूरी मिलती है तो कार्बन उत्सर्जन को कम करने में संस्था के तौर पर यह बड़ी सफलता साबित होगा.
ऊर्जा अध्ययन केंद्र ने तैयार किया मॉडल: हिमाचल के जंगलों का एक बड़ा हिस्सा चीड़ के जंगलों से घिरा हुआ है ऐसे में अगर चीड़ की इन सूखी पत्तियों से बिजली तैयार की जाती है तो जंगलों में आगजनी की घटनाओं में भी कमी आएगी. एनआईटी हमीरपुर प्रबंधन के निर्देशों के बाद ही उर्जा अध्ययन केंद्र के विषय विशेषज्ञों ने यह विस्तृत प्रपोजल तैयार कर केंद्रीय मंत्रालय को भेजी है ताकि एनआईटी हमीरपुर को एक मॉडल के रूप में विकसित कर दुनिया के सामने पेश किया जाए. माइक्रो लेवल पर चीड़ की पत्तियों से बिजली तैयार करने का प्रोजेक्ट स्थापित की मंजूरी मिलती है तो यह ग्रामीण स्तर पर भी लोगों के आर्थिकी को मजबूत करेगा. ऊर्जा अध्ययन केंद्र के विशेषज्ञों द्वारा विकसित इस मॉडल में इस बात का खास ध्यान रखा गया है कि यह कार्य माइक्रो लेवल पर हो और इसमें स्थानीय लोगों की भागीदारी भी सुनिश्चित हो. पर्यावरण संरक्षण के लक्ष्य को केंद्रित करते हुए विशेषज्ञों ने मॉडल कुछ इस तरह से विकसित किया है कि चीड़ के जंगलों से घिरे क्षेत्रों इमें लोगों को रोजगार भी मिले और आग लगने की घटनाओं पर भी नियंत्रण पाया जा सके. एनआईटी हमीरपुर के उर्जा अध्ययन केंद्र के पूर्व एचओडी प्रोफेसर एनएस ठाकुर ठाकुर के नेतृत्व में यह मॉडल विकसित किया गया है.
डेढ़ किलो चीड़ की पत्तियों से तैयार होगी 1 यूनिट बिजली: गैसीफिकेशन यानी गैसीकरण प्रक्रिया के तहत चीड़ की पत्तियों को चेंबर में डालकर नियंत्रित तरीके से इस तरह से सुलगाया जाएगा कि ऑक्सीजन की बेहद कम मात्रा की मौजूदगी में यह गैस में तब्दील हो जाए. इस प्रक्रिया में गैस के उच्च ताप की कूलिंग और डस्ट पार्टिकल की क्लीनिंग की जाएगी. इसके बाद इस गैस को इंजन में प्रवेश करवाया जाएगा और एनर्जी में तब्दील किया जाएगा. एनर्जी से जनरेटर के जरिए बिजली पैदा की जा सकेगी. तैयार की गई बिजली को ग्रिड में फीड करने अथवा इस्तेमाल करने का विकल्प मौजूद रहेगा. एक से डेढ़ किलो सीड की सूखी पत्तियों से लगभग एक यूनिट बिजली तैयार की जा सकती है. एक 10 किलो वाट का संयंत्र प्रति घंटे में लगभग 15 किलो चीड़ की सूखी पत्तियों से 9 से 10 यूनिट बिजली तैयार करेगा. 1 हेक्टेयर एरिया में उपलब्ध चीड़ की पत्तियों से 6000 यूनिट बिजली के उत्पादन की संभावना है.
भारत में 8.9 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में चीड़ के जंगल: भारत में 8.9 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में चीड़ के जंगल फैले हुए हैं. हिमाचल में लगभग 400000 हेक्टेयर और उत्तराखंड में 3.9 लाख हेक्टेयर में चीड़ के जंगल फैले हुए हैं. भारत के इन दोनों राज्यों में ही चीर के अधिकतर जंगल पाए जाते हैं. समुद्र तल से 400 मीटर से 2300 मीटर की ऊंचाई तक सब ट्रॉपिकल पाइन फॉरेस्ट पाए जाते हैं. हिमाचल, उत्तराखंड के अलावा जम्मू कश्मीर, मणिपुर और मेघालय में भी चीड़ के जंगल हैं. एक हेक्टेयर चीड़ के जंगल में लगभग छह टन चीड़ की पत्तियों का उत्पादन हर साल होता है जोकि सूखने के बाद गर्मियों के मौसम में जंगलों में गिरकर आगजनी की घटनाओं में बारूद का काम करती है.
1 साल में 10% होती है खत्म, जमीन की उर्वरता भी करती हैं प्रभावित: चीड़ की पत्तियां सूखने के बाद हर साल जमीन पर गिरती तो है लेकिन प्राकृतिक तरीके से डिग्रेड नहीं होती है. मतलब जमीन पर गिरी पत्तियों का 100 में से महज 10% हिस्सा ही रीसायकल होकर मिट्टी में तब्दील होता है लेकिन बचा हुआ 90% हिस्सा बाद में आगजनी की घटनाओं में बारूद का काम करता है. हर साल यह परत दर परत जमीन पर जमा होता रहता है और आग लगने पर जंगलों को राख कर देता है. जमीन में इन पतियों का 10% हिस्सा उर्वरता को भी काफी प्रभावित करता है जो कृषि की दृष्टि से अनुकूल नहीं है. यही वजह है कि खेती लायक जमीन के इर्द-गिर्द किसान चीड़ के पेड़ों को उगाने से परहेज ही करते हैं जबकि जंगलों में आग लगाए जाने की भी यह बड़ी वजह है. पशुओं के चारे के लिए जंगलों पर निर्भर लोग इन सूखी पत्तियों को जलाने के लिए अक्सर आग लगा देते हैं जिससे पशु पक्षी और अन्य वनस्पतियां भी जलकर राख हो जाती हैं.
उत्तराखंड में कार्य कर रहे इस तरह के 10 प्रोजेक्ट, सरकार ने बनाई है पॉलिसी: डॉ अरविंद सिंह बिष्ट एनआईटी हमीरपुर के ऊर्जा अध्ययन केंद्र में सेवारत है. एनआईटी हमीरपुर में अपनी पीएचडी के दौरान वह इस विषय पर शोध कर रहे हैं. चीड़ की पत्तियों से किस तरह से बिजली तैयार करने की पॉलिसी को लागू कर पर्यावरण संरक्षण और लोगों की आर्थिकी को मजबूत किया जा सकता है यही उनका विषय रहा है. डॉ अरविंद सिंह बिष्ट उत्तराखंड में भी कम्युनिटी लेवल पर इस कार्य को कर चुके हैं. उत्तराखंड में सरकार ने बाकायदा चीड़ की पत्तियों के इस्तेमाल के लिए एक पॉलिसी बनाई है जिसके तहत इस तरह के 10 प्रोजेक्ट वहां पर कार्य कर रहे हैं. हिमाचल में उत्तराखंड से अधिक चीड़ के जंगल हैं ऐसे में यहां पर ग्रीन एनर्जी पर अधिक कार्य किया जा सकता है. वर्तमान में प्रदेश सरकार इलेक्ट्रिकल गाड़ियों को बढ़ावा दे रही है. ऐसे में यदि बिजली उत्पादन को नहीं बढ़ाया जाता है तो इलेक्ट्रिकल गाड़ियों को चार्ज करने के लिए बिजली की जरूरत को पूरा करना भी मुश्किल होगा. विषय विशेषज्ञ डॉक्टर अरविंद सिंह बिष्ट कहते हैं कि सरकार यदि इस विषय पर पॉलिसी बनाती है तो यह कार्बन उत्सर्जन को कम करने में बड़ा कदम साबित होगा.
हर साल आगजनी से लाखों-करोड़ों की वन संपदा होती है राख: चीड़ के जंगलों में आग लगने पर इस पर काबू पाना बेहद मुश्किल होता है. हर साल लाखों और करोड़ों की वन संपदा राख होती है. सरकार की तरफ से करोडो का फायर फाइटिंग फंड खर्च किया जाता है. आग पर काबू पाने के लिए कई दफा अग्निशमन विभाग तथा अन्य गठित फोर्स के जवानों को अपनी जान से भी हाथ धोना पड़ता है. माइक्रो लेवल पर यदि इस तरह से प्रोजेक्ट स्थापित किए जाएंगे तो लोगों को रोजगार के साथ ही पर्यावरण संरक्षण को भी बढ़ावा मिलेगा.
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