हमीरपुर: सनातन संस्कृति में मूर्ति पूजा का अहम महत्व है. शास्त्रों में शालीग्राम शिला यानी पाषाण (नीले पत्थर) से बनी मूर्तियों को पूजन के लिये श्रेष्ठ माना गया है. बदलते दौर के साथ पाषाण की मूर्तियों की जगह संगमरमर यानी मार्बल से बनी मूर्तियों ने ले ली है. हिमाचल प्रदेश के हमीरपुर जिले में नीले पत्थर यानी पाषाण से मूर्तिकला की परंपरा को एक कर्मयोगी संजोए हुए हैं. दुर्लभ नीले पत्थर पर अपने कला के रंगों को बिखेरने वाले हमीरपुर के शुक्कर खड्ड निवासी रामपाल शर्मा सालों से इस कार्य को कर रहे हैं.
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रामपाल शर्मा अपनी इस कला के जरिए परिवार का पालन पोषण तो कर ही रहे हैं, लेकिन वह इसे रोजगार से बढ़कर अध्यात्म की रास्ता मानते हैं. रामपाल शर्मा की बनाई गई मूर्तियां हिमाचल की नहीं बल्कि देश के कई राज्यों के लोगों ने खरीदी हैं. उनकी बनाई मूर्तियों को देखकर हर कोई मंत्रमुग्ध हो जाता है. शुक्कर खड्ड के राम पाल पिछले 14 वर्षों से मूर्ति बनाने का कार्य रहे हैं. रामपाल के द्वारा बनाई गई मूर्तियों की उत्तरी भारत सहित अन्य राज्यों में भी मूर्तियों की मांग रहती है. रामपाल की मानें तो बाजारों में इन मूर्तियों की कीमत 5 हजार रुपये से लेकर लाखों रुपये तक होती है. रामपाल शर्मा को मूर्तिकला के साथ वास्तुकला और शिल्पकला में भी महारत हासिल है. वह मूर्ति निर्माण के साथ ही वास्तुकला और शिल्पकला पर भी पकड़ रखते हैं.
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शालिग्राम शिला से बन रही रामलला की मूर्ति, हिमाचल में भी पाई जाते हैं यह दुर्लभ नीले पत्थर: अयोध्या में भव्य राम मंदिर का निर्माण इन दिनों चल रहा है. यहां पर रामलला की मूर्ति को शालिग्राम शिला से बनाया जा रहा है, जोकि नेपाल से लाई गई है. आपको यह जानकर हैरानी होगी कि हिमाचल में भी कुछ जगहों पर यह दुर्लभ शालिग्राम शिला पाई जाती है जिसे पाषाण अथवा नीले पत्थर के रूप में जाना जाता है. रामपाल शर्मा को इस नीले पत्थर पर मूर्ति कला में महारत हासिल है.
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माना जाता है कि संगमरमर के मुकाबले इस पत्थर पर मूर्ति कला करना बेहद कठिन होता है. यह पाषाण पत्थर जिला हमीरपुर के 40 किलो मीटर की दूरी पर बछरेटु और कल्खर में पाए जाते हैं. वर्तमान समय में पाषाण पत्थर पर कलाकृतियां बनाने वाले बेहद शिल्पकार भी कम हैं. मार्बल पत्थर पर कलाकृति बनाने की तुलना में पाषाण पत्थर पर कलाकृति बनाना कठिन है.
ये मूर्तियां बनाई, कैलाश मंदिर से मिली प्रेरणा: मूर्तिकार रामपाल शर्मा को मूर्तिकला के प्रेरणा कैलाश मंदिर से मिली है. महाराष्ट्र के अजंता अलोरा में चट्टान काटकर शिव की मूर्ति बनाई है. जिसको कैलाश मंदिर का नाम दिया है. रामपाल शर्मा कहते हैं कि कैलाश मंदिर को देख कर प्रेरणा मिली है. वह भी एक ही पत्थर को काटकर ऊपर नीचे तक कैलाश मंदिर एक बार बनाना चाहते हैं. वह अभी तक कई मूर्तियां बना चुके हैं. उनकी मानें तो 1 साल में 4 से 5000 मूर्तियां बनाकर वह बेचते हैं. बाबा बालक नाथ, शिव, हनुमान, विष्णु, काली माता, नंदी, दुर्गा माता व माता-पिता की मूर्तियां बनाई गई हैं, जबकि अभी पांच मुखी भोलेनाथ की मूर्ति कार्य चला हुआ है वो भी कुछ ही दिनों में पूरा कर दिया जाएगा.
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सरकार की अनदेखी का मलाल: रामपाल शर्मा को यह मलाल है कि अभी तक किसी भी सरकार में कला के इस क्षेत्र की और कोई ध्यान नहीं दिया. इस कला से जुड़े हुए कलाकारों को सरकार की तरफ से प्रोत्साहन ना मिलने का मलाल उनके दिल में है. शिल्पकार जनता के द्वारा चुने गए प्रतिनिधियों व पंचायत के प्रतिनिधियों से नाखुश हैं. रामपाल शर्मा का कहना है कि हिमाचल में भी शिल्पकारों के लिए एक स्थान होना चाहिए. सरकार से आग्रह किया है हिमाचल में भी शिल्पकारों के अलग दर्जा प्रदान किया जाए, ताकि वे अपने हुनर को अच्छे से निखार सके.
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