चंबा: हिमाचल अपनी हसीन वादियों के लिए दुनियाभर में मशहूर है. यहां कुछ ऐसी चीजें भी हैं जो देश ही नहीं बल्कि पूरे विश्व में अपनी अलग पहचान रखती है. आज हम बात करेंगे चंबा जिले के ऐतिहासिक चप्पल की जो एक समय में राजा महाराजाओं के पैरों की शोभा बढ़ाती थी.
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कहते हैं कि इन चप्पलों को बनाने बाले कारीगर राजा के दहेज में मिले थे और उनके वंशज आज भी इस कला को आगे बढ़ा रहे हैं. 15वीं शताब्दी से चली आ रही इस परंपरा को आज भी एक विशेष समुदाय के लोग चंबा में संभाले हुए हैं और उनका जीवन यापन इसी पर निर्भर है. सरकार की बेरुखी और चमड़े की बढ़ती कीमतों के चलते युवाओं का इस कला की ओर रुझान धीरे धीरे खत्म होता जा रहा है.
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हाथ से क्रोशिये के जरिये तिल्लेदार कढ़ाई के बाद ये चप्पल जहां राजघराने में राजा और महारानियों के पैरों की शान बढ़ाती थी. वहीं आज भी न सिर्फ भारत देश में बल्कि विदेशों में भी इसकी काफी मांग है और चंबा घूमने आने वाले विदेशी पर्यटक अवश्य इस चप्पल को खरीदते हैं. लाखों पर्यटकों के दिलों में अपनी छाप छोड़ने वाली चंबा चप्पल को तैयार करने में हालांकि काफी समय लग जाता है, लेकिन जब ये किसी के पैरों में पड़ती है तो उसकी शान दोगुनी कर देती है.
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समय में आए बदलाव के चलते हालांकि तिल्लेदार कढ़ाई करने वाली महिलाओं का आंकड़ा बहुत कम हो गया है, लेकिन बावजूद इसके आज की युवा पीढ़ी भी इस काम में रूचि दिखाकर इसमें रोजगार तलाश रही है. अब तिल्लेदार कढ़ाई के साथ-साथ मशीनों के माध्यम से भी चंबा चप्पल तैयार की जा रही है. मांग के अनुसार इसे आकर्षक रूप देकर पेश किया जा रहा है ताकि इसके चाहने वालों की संख्या में कमी न आए.
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