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मिटता जा रहा है मशहूर चंबा चप्पल का वजूद, एक समय में राजा और महारानियों के पैरों की बढ़ाती थी शान!

चंबा जिले की ऐतिहासिक चप्पल सरकार की बेरुखी और चमड़े की बढ़ती कीमतों के कारण अपना वजूद खोती जा रही है. इसके चलते युवाओं का इस कला की ओर रुझान भी धीरे धीरे खत्म होता जा रहा है.

chamba chappals
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Published : Sep 24, 2019, 12:05 AM IST

चंबा: हिमाचल अपनी हसीन वादियों के लिए दुनियाभर में मशहूर है. यहां कुछ ऐसी चीजें भी हैं जो देश ही नहीं बल्कि पूरे विश्व में अपनी अलग पहचान रखती है. आज हम बात करेंगे चंबा जिले के ऐतिहासिक चप्पल की जो एक समय में राजा महाराजाओं के पैरों की शोभा बढ़ाती थी.

chamba chappal
चंबा चप्पल

कहते हैं कि इन चप्पलों को बनाने बाले कारीगर राजा के दहेज में मिले थे और उनके वंशज आज भी इस कला को आगे बढ़ा रहे हैं. 15वीं शताब्दी से चली आ रही इस परंपरा को आज भी एक विशेष समुदाय के लोग चंबा में संभाले हुए हैं और उनका जीवन यापन इसी पर निर्भर है. सरकार की बेरुखी और चमड़े की बढ़ती कीमतों के चलते युवाओं का इस कला की ओर रुझान धीरे धीरे खत्म होता जा रहा है.

chamba chappal
चंबा चप्पल

हाथ से क्रोशिये के जरिये तिल्लेदार कढ़ाई के बाद ये चप्पल जहां राजघराने में राजा और महारानियों के पैरों की शान बढ़ाती थी. वहीं आज भी न सिर्फ भारत देश में बल्कि विदेशों में भी इसकी काफी मांग है और चंबा घूमने आने वाले विदेशी पर्यटक अवश्य इस चप्पल को खरीदते हैं. लाखों पर्यटकों के दिलों में अपनी छाप छोड़ने वाली चंबा चप्पल को तैयार करने में हालांकि काफी समय लग जाता है, लेकिन जब ये किसी के पैरों में पड़ती है तो उसकी शान दोगुनी कर देती है.

chamba chappal
चंबा चप्पल

समय में आए बदलाव के चलते हालांकि तिल्लेदार कढ़ाई करने वाली महिलाओं का आंकड़ा बहुत कम हो गया है, लेकिन बावजूद इसके आज की युवा पीढ़ी भी इस काम में रूचि दिखाकर इसमें रोजगार तलाश रही है. अब तिल्लेदार कढ़ाई के साथ-साथ मशीनों के माध्यम से भी चंबा चप्पल तैयार की जा रही है. मांग के अनुसार इसे आकर्षक रूप देकर पेश किया जा रहा है ताकि इसके चाहने वालों की संख्या में कमी न आए.

chamba chappal
चंबा चप्पल

ये भी पढ़ें - 22 घाटों से मिलकर बना बघाट, इस रियासत के सभी राजाओं की गाथा सुनाता है यह किला

चंबा: हिमाचल अपनी हसीन वादियों के लिए दुनियाभर में मशहूर है. यहां कुछ ऐसी चीजें भी हैं जो देश ही नहीं बल्कि पूरे विश्व में अपनी अलग पहचान रखती है. आज हम बात करेंगे चंबा जिले के ऐतिहासिक चप्पल की जो एक समय में राजा महाराजाओं के पैरों की शोभा बढ़ाती थी.

chamba chappal
चंबा चप्पल

कहते हैं कि इन चप्पलों को बनाने बाले कारीगर राजा के दहेज में मिले थे और उनके वंशज आज भी इस कला को आगे बढ़ा रहे हैं. 15वीं शताब्दी से चली आ रही इस परंपरा को आज भी एक विशेष समुदाय के लोग चंबा में संभाले हुए हैं और उनका जीवन यापन इसी पर निर्भर है. सरकार की बेरुखी और चमड़े की बढ़ती कीमतों के चलते युवाओं का इस कला की ओर रुझान धीरे धीरे खत्म होता जा रहा है.

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चंबा चप्पल

हाथ से क्रोशिये के जरिये तिल्लेदार कढ़ाई के बाद ये चप्पल जहां राजघराने में राजा और महारानियों के पैरों की शान बढ़ाती थी. वहीं आज भी न सिर्फ भारत देश में बल्कि विदेशों में भी इसकी काफी मांग है और चंबा घूमने आने वाले विदेशी पर्यटक अवश्य इस चप्पल को खरीदते हैं. लाखों पर्यटकों के दिलों में अपनी छाप छोड़ने वाली चंबा चप्पल को तैयार करने में हालांकि काफी समय लग जाता है, लेकिन जब ये किसी के पैरों में पड़ती है तो उसकी शान दोगुनी कर देती है.

chamba chappal
चंबा चप्पल

समय में आए बदलाव के चलते हालांकि तिल्लेदार कढ़ाई करने वाली महिलाओं का आंकड़ा बहुत कम हो गया है, लेकिन बावजूद इसके आज की युवा पीढ़ी भी इस काम में रूचि दिखाकर इसमें रोजगार तलाश रही है. अब तिल्लेदार कढ़ाई के साथ-साथ मशीनों के माध्यम से भी चंबा चप्पल तैयार की जा रही है. मांग के अनुसार इसे आकर्षक रूप देकर पेश किया जा रहा है ताकि इसके चाहने वालों की संख्या में कमी न आए.

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चंबा चप्पल

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Intro:15 वी शताब्दी के ज़माने में शुरू हुई थी चंबा चप्पल की पहल , पूरी दुनिया भर में मशहूर है चंबा चप्पल , आज भी इस व्यवसाय से जुड़े लोग बड़ी मुश्किल से सजला रहे अपने परिवारों को ,\

स्पेशल रिपोर्ट

ऐतिहासिक चम्बा चप्पल जिसे चम्बा के राजा महाराजा बडी ही शान से अपने पैरो में पहनते थे जिसका अस्तित्व धीरे धीरे समाप्त होता जा रहा है। कहते हैं की इन चप्पलो को बनाने बाले कारीगर राजा के दहेज मे आये थे और उनके वंशज आज भी इस कला को आगे बढ़ा रहे है। सरकार की बेरुखी और चमड़े की बढ़ती कीमतों के चलते युवाओ का इस कला की और रुझान धीरे धीरे खत्म होता जा रहा ही।

चंबा जिला को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ख्याति दिलाने वाली चंबा चप्पल जहां हर किसी को अपनी तरफ आकर्षित कर लेती है वहीं इस कला से जुड़े दस्तकार राजाआें के समय से इस चप्पल को बनाने की कला संजोये हुए है। 15वीं शताब्दी से चली आ रही इस परम्परा को आज भी एक विशेष समुदाय के लोग चंबा में संभाले हुए है तथा उनका जीवन यापन इसी पर निर्भर है। हाथ से क्रोशिये के जरिये तिल्लेदार कढ़ाई के बाद यह चप्पल जहां राजघराने में राजा व महारानियों के पैरों की शान बढ़ाती थी वहीं आज भी न सिर्फ भारत देश में बल्कि विदेशों में भी इसकी काफी मांग है तथा चंबा घूमने आने वाले विदेशी पर्यटक अवश्य इस चप्पल को खरीदते हैं। लाखों पर्यटकं के दिलों में अपनी अमिट छाप छोड़ने वाली चंबा चप्पल को तैयार करने में हालांकि काफी समय लग जाता है लेकिन जब यह किसी के पैरों में पड़ती है तो उसकी शान दोगुणी कर देती है। समय में आए बदलाव के चलते हालांकि तिल्लेदार कढ़ाई करने वाली महिलाआ का आंकड़ा बहुत कम हो गया है लेकिन बावजूद इसके आज की युवा पीढ़ी भी इस काम में रूचि दिखाकर इसमें रोजगार तलाश रही है। अब तिल्लेदार कढ़ाई के साथ-साथ मशीनों के माध्यम से भी चंबा चप्पल तैयार की जा रही है। मांग के अनुसार इसे आकर्षक रूप देकर पेश किया जा रहा है ताकि इसके चाहने वालों की संख्या में कमी न आए।Body:स्थानीय लोगों के मुताविक इस ऐतिहासिक चम्बा चप्पल का इतिहास राजस्वी काल से जुड़ा हुआ है। लोगो ने भी इस बात को माना है की प्रदेश सरकार की अनदेखी के चलते चम्बा चप्पल का काम धीरे धीरे खत्म होता जा रहा है और युवाओ का भी रुझान इस कला से हटता चला जा रहा है सरकार को इस कला को जीवित रखने के लिए कोई योजना बनानी चाहिए ताकि युवा वर्ग भी इस व्यवसाय से जुड़ें।Conclusion:पिछले करीब 20 सालों से चंबा चप्पल बनाने के कार्य में जुटे दस्तकार अनिल कुमार के अनुसार यह उनका पैतृक काम है तथा 15वीं शताब्दी में यह काम चंबा में आया था। राजकाल के समय से उनके घराने ने इस परम्परा को संजोये रखा है। उनके अनुसार इसमें पहले चप्पल बनाने का काम रेशम के धागों के प्रयोग से तिल्ले की कढ़ाई से किया जाता था लेकिन अब यह काम कम हो गया है तथा अब मशीन के जरिये भी इस चंबा चप्पल को तैयार किया जा रहा है। यह चप्पल हाथ से बनती है तथा सिर्फ मशीन से इसे स्टिच किया जाता है। उनके अनुसार बाहरी राज्यों से ही नहीं बल्कि विदेशों से आने वाले पर्यटक भी इस चंबा चप्पल को काफी पसंद करते हैं तथा इसकी खरीददारी करते है। उन्होंने बताया की सरकार की बेरुखी और चमड़े की बढ़ती कीमतों के चलते युवाओ का इस कला की और रुझान धीरे धीरे खत्म होता जा रहा ही। । उन्होंने सरकार से आग्रह किया की इस ऐतिहासिक चम्बा चप्पल को जल्द से जल्द पेटेंट करें ताकि इसके स्वरूप को भी बचाया जा सके साथ ही सरकार पुरे हिमाचल में इसके प्रचार प्रसार की कोई योजना बनाये ताकि इस व्यवसाय से जुड़े लोगो को लाभ मिल पाए और जायद से जायद युवा इस व्यवसाय से जुड़ें।

युवा कारीगर अनिल के साथ वान टू वान

वहीँ दूसरी और हरियाणा से घूमने आये पर्यटकों का कहना है की चम्बा चप्पल के बारे में सुना था आज देख भी लिया काफी अछि होती हैं पहनने में और दो तीन साल तक चलती हैं ,

वहीँ दूसरी और इस व्यवसाय को छोड़ चुके युवाओं का कहना है की सरकार की बेरुखी के चलते आज चंबा चप्पल से हमें अपना रास्ता बदलना पड़ा अगर सर्कार इस और ध्यान देगी तो फिर इस व्यवसाय के बारे में सोचेंगे ,
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