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हिमाचल के दो युवा वैज्ञानिकों ने बनाया ईको-फ्रेंडली रेपर, 1 साल की कड़ी मेहनत के बाद मिली सफलता - ईको-फ्रेंडली रेपर

मुख्यमंत्री स्टार्टअप योजना के तहत घुमारवीं में केहलूर बायोसाइंस एंड रिसर्च सेंटर में एक साल की कड़ी मशक्कत के बाद दो युवा वैज्ञानिकों ने ईको-फ्रेंडली रेपर बनाया है, जिसका प्रयोग खाद्य उत्पादों की पैकेजिंग के लिए हो सकता है.

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Published : Jul 21, 2019, 4:54 PM IST

बिलासपुर: मुख्यमंत्री स्टार्टअप योजना के तहत बायो प्लास्टिक रेपर प्रोजेक्टस पर काम रहे दो शोधकर्ताओं को बड़ी कामयाबी मिली है. जिला के घुमारवीं में केहलूर बायोसाइंस एंड रिसर्च सेंटर में एक साल की कड़ी मशक्कत के बाद डॉक्टर अमित कुमार और विकेश भाटिया ने ईको-फ्रेंडली रेपर तैयार किया है.

हिमाचल के दो युवा वैज्ञानिकों ने बनाया ईको-फ्रेंडली रेपर

इस रेपर का प्रयोग खाद्य पदार्थों की पैकिंग में किया जाएगा. वर्तमान समय में खाद्य उत्पादों में इस्तेमाल किया जाने वाला प्लास्टिक रेपर जहां प्रदुषण का मुख्य कारण है. वहीं, पशुओं द्वारा इसे खाये जाने से उन्हें नुकसान भी पहुंचता है.

वहीं, दोनों शोधकर्ताओं द्वार बायो लैब में बनाया गया रेपर ईको-फ्रेंडली है जो पानी में घुलनशील है. इससे पर्यावरण को कोई नुकसान नहीं पहुंचेगा. वहीं, इसमें कैंसर कारक की संभावना भी शून्य के समान है. दोनों शोधकर्ताओं ने बताया कि रेपर की अहमियत आपदा प्रभावित इलाकों में ज्यादा देखने को मिलेगी, जहां प्रभावितों के लिए खाद्य सामग्री इस रेपर में पैकेजिंग कर भेजी जा सकती है. वहीं, स्पेस ट्रेवलर्स के लिए ये बायौ रेपर लाभदायाक सिद्ध होगा.

बिलासपुर: मुख्यमंत्री स्टार्टअप योजना के तहत बायो प्लास्टिक रेपर प्रोजेक्टस पर काम रहे दो शोधकर्ताओं को बड़ी कामयाबी मिली है. जिला के घुमारवीं में केहलूर बायोसाइंस एंड रिसर्च सेंटर में एक साल की कड़ी मशक्कत के बाद डॉक्टर अमित कुमार और विकेश भाटिया ने ईको-फ्रेंडली रेपर तैयार किया है.

हिमाचल के दो युवा वैज्ञानिकों ने बनाया ईको-फ्रेंडली रेपर

इस रेपर का प्रयोग खाद्य पदार्थों की पैकिंग में किया जाएगा. वर्तमान समय में खाद्य उत्पादों में इस्तेमाल किया जाने वाला प्लास्टिक रेपर जहां प्रदुषण का मुख्य कारण है. वहीं, पशुओं द्वारा इसे खाये जाने से उन्हें नुकसान भी पहुंचता है.

वहीं, दोनों शोधकर्ताओं द्वार बायो लैब में बनाया गया रेपर ईको-फ्रेंडली है जो पानी में घुलनशील है. इससे पर्यावरण को कोई नुकसान नहीं पहुंचेगा. वहीं, इसमें कैंसर कारक की संभावना भी शून्य के समान है. दोनों शोधकर्ताओं ने बताया कि रेपर की अहमियत आपदा प्रभावित इलाकों में ज्यादा देखने को मिलेगी, जहां प्रभावितों के लिए खाद्य सामग्री इस रेपर में पैकेजिंग कर भेजी जा सकती है. वहीं, स्पेस ट्रेवलर्स के लिए ये बायौ रेपर लाभदायाक सिद्ध होगा.

Intro:मुख्यमंत्री स्टार्टअप योजना के तहत बायो प्लास्टिक रैपर प्रोजेक्ट्स पर काम कर रहे दोनों ही शोधकर्ताओं ने एक साल की कड़ी मसकत के बाद इस रैपर को बनाने में कामयाबी हासिल की है. बायो प्रोजेक्ट मिलने के बाद जहाँ दोनों ही शोधकर्ताओं ने बिलासपुर के घुमारवीं में केहलूर Body:Byte viahulConclusion:स्लग - मुख्यमंत्री स्टार्टअप योजना के तहत बायो प्लास्टिक रैपर प्रोजेक्ट्स पर काम कर रहे दोनों ही शोधकर्ताओं ने एक साल की कड़ी मसकत के बाद इस रैपर को बनाने में कामयाबी हासिल की है. बायो प्रोजेक्ट मिलने के बाद जहाँ दोनों ही शोधकर्ताओं ने बिलासपुर के घुमारवीं में केहलूर बायोसाइंसेज एंड रिसर्च सेंटर के नाम से अपनी लैब बनाकर टमाटर और विभिन्न पौधों में पाए जाने वाले पोलीमर पर रिसर्च शुरू किया, जिसके फायदों को देखते हुए दोनों ही शोधकर्ताओं ने बायो प्लास्टिक रैपर का निर्माण किया जिसका खाद्य उत्पादों के रैपर के रूप में इस्तेमाल किया जा सकेगा। इस बात की जानकारी देते हुए डॉक्टर अमित कुमार और विकेश भाटिया ने बताया की वर्तमान समय में खाद्य उत्पादों में इस्तेमाल किया जाने वाला प्लास्टिक रैपर जहाँ प्रदुषण का मुख्य कारण है तो साथ ही पशुओं द्वारा इसे खाये जाने से उन्हें नुकसान भी पहुँचता है जिसके विपरीत बायो रैपर ईको फ्रेंडली होने के साथ-साथ पानी में घुलनशील भी है और आम इंसान के खाने लायक भी जिसमें कैंसर भी सम्भावना शून्य है. वहीँ इस रैपर की अहमियत आपदा प्रभावित इलाकों में ज्यादा देखने को मिलेगी जहाँ प्रभावितों के लिए खादय सामग्री के साथ इसे भेजा जा सकता है तो दूसरी ओर स्पेस ट्रेवलरस के लिए यह बायो रैपर लाभदायक सिद्ध होगा।

बाइट- डॉक्टर अमित कुमार, शोधकर्ता, बायो प्लास्टिक रैपर।
डॉक्टर विकेश भाटिया, शोधकर्ता, बायो प्लास्टिक रैपर।
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