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चरणजीत सिंह: पाकिस्तान को धूल चटाकर ओलंपिक गोल्ड जीतने वाला भारतीय हॉकी का कप्तान

भारतीय हॉकी टीम के पूर्व कप्तान (former captain of indian hockey team) चरणजीत सिंह का 92 साल की उम्र में निधन (charanjit singh passes away) हो गया है. चरणजीत सिंह (charanjit singh) हिमाचल के ऊना जिले से ताल्लुक रखते थे. वे 1964 के टोक्यो ओलंपिक गोल्ड मेडल जीतने वाली भारतीय हॉकी टीम के कप्तान थे.

charanjit singh passes away
हॉकी के महान खिलाड़ी चरणजीत सिंह
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Published : Jan 27, 2022, 5:24 PM IST

Updated : Jan 27, 2022, 7:47 PM IST

ऊना: जब कभी हॉकी का जिक्र आता है तो मेजर ध्यानचंद से लेकर बलबीर सिंह सीनियर और अजीत पाल सिंह से लेकर धनराज पिल्ले, संदीप सिंह का नाम खुद-ब-खुद जहन में आ जाता है. लेकिन इस खेल ने कई ऐसे सितारे भी दिए जिनका नाम भले कईयों के लिए अनजान हो लेकिन इस खेल में उन्होंने अपनी अलग पहचान बनाई बल्कि खेल को बुलंदियों तक पहुंचाया. उन्हीं में से एक थे 1964 ओलंपिक स्वर्ण पदक विजेता कप्तान चरणजीत सिंह (charanjit singh), जिनका 92 साल की उम्र में गुरुवार को निधन हो गया. ये कहानी है भारतीय हॉकी के उस कप्तान की, जिसकी अगुवाई में टीम ने पाकिस्तान को धूल चटाकर ओलंपिक का गोल्ड जीता था.

पढ़ाई हो या खेल हर क्षेत्र में रहे अव्वल- चरणजीत सिंह का जन्म 3 फरवरी, साल 1931 को ऊना के मैड़ी गांव में हुआ था. जो तब संयुक्त पंजाब का हिस्सा था. गांव में प्राथमिक शिक्षा हासिल करने के बाद लायलपुर एग्रीकल्चर कॉलेज से आगे की पढ़ाई की. बीएससी कृषि की डिग्री हासिल की. लेकिन इस दौर में हॉकी को लेकर उनका प्यार दोस्तों से लेकर परिवार तक के बीच जाहिर हो चुका था. हॉकी से लगाव था लेकिन खेल को पढ़ाई के आड़े नहीं आने दिया. घरवालों और समाज को पढ़ाई से मतलब था और चरणजीत को हॉकी से, उन्होंने दोनों में ऐसा तालमेल बिठाया कि हर मोर्चे पर गोल करते रहे. पढ़ाई हो या खेल हर क्षेत्र में अव्वल रहने की ललक ने उन्हें एक सफल खिलाड़ी और युवाओं का रोल मॉडल बना दिया.

charanjit singh passes away
हॉकी के महान खिलाड़ी चरणजीत सिंह से जुड़े कुछ तथ्य.

14 साल पंजाब पुलिस में दी सेवा- पढ़ाई के बाद पंजाब पुलिस में एएसआई के रूप में भर्ती हुए और 14 साल की नौकरी के बाद डीएसपी के पद से रिटायरमेंट ले ली. इसके बाद लुधियाना कृषि विवि में उपनिदेशक स्टूडेंट वेलफेयर व हिसार कृषि विवि में 7 साल काम किया.

मैड़ी का वो मुंडा बना हॉकी का कप्तान- स्टूडेंट लाइफ में पढ़ाई में अव्वल रहने वाले चरणजीत सिंह का नाम देश के बेहतरीन खिलाड़ियों में शुमार किया जाता है.1949 में पहली बार यूनिवर्सिटी की तरफ से खेले और कुछ सालों बाद टीम इंडिया में जगह बना ली. उन्होंने 8 साल तक नेशनल टीम का किया प्रतिनिधित्व किया. 1958 से 1965 तक लगातार राष्ट्रीय हॉकी टीम के कप्तान रहे.

charanjit singh passes away
हॉकी के महान खिलाड़ी चरणजीत सिंह से जुड़े कुछ तथ्य.

लगातार 7वें ओलंपिक गोल्ड का टूटा सपना- साल 1960 में टीम इंडिया चरणजीत सिंह की अगुवाई में रोम ओलंपिक में हिस्सा लेने पहुंची. टीम इंडिया ने शानदार खेल दिखाते हुए फाइनल में प्रवेश किया लेकिन पाकिस्तान से हार गई और लगातार 7वीं बार ओलंपिक गोल्ड जीतने का टीम इंडिया का सपना टूट गया. इस फाइनल में चरणजीत चोट के कारण नहीं खेल पाए थे. टीम को सिल्वर मेडल से संतोष करना पड़ा.

भारत को जिताया ओलंपिक गोल्ड- ठीक चार साल बाद 1964 में ओलंपिक टोक्यो पहुंचा तो चरणजीत सिंह के मन में रोम में गोल्ड मेडल जीतते-जीतते हारने का मलाल था. टोक्यो में टीम ने शानदार प्रदर्शन कर ग्रुप बी में टॉप करते हुए फाइनल में जगह बनाई. इस बार भी सामने पाकिस्तान की टीम थी, जिसने रोम में हार का जख्म चरणजीत और टीम इंडिया को दिया था. पर इस बार चरणजीत मैदान पर थे और पाकिस्तान घुटनों पर, दिलचस्प मुकाबले में भारत ने पाकिस्तान को 1-0 से मात दे दी.

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1964 टोक्यो ओलंपिक में फाइनल में जीत हासिल करने के बाद गोल्ड मेडल हासिल करते हुए चरणजीत सिंह. (फोटो- ट्विटर)

1964 ओलंपिक का वो फाइनल- साल 1964 में टोक्यो ओलंपिक गेम (Tokyo Olympics 1964) में भारतीय हॉकी टीम का कप्तान चरणजीत सिंह को बनाया गया. इस टीम में उधम सिंह भी थे जो अपना चौथा ओलंपिक खेल रहे थे. भारत इन खेलों में रोम में आयोजित ओलंपिक फाइनल में पाकिस्तान से मिली हार की टीस लेकर उतरा था. 23 अक्टूबर को खेले गए फाइनल मैच में पहले हाफ में दोनों टीमों की ओर से कोई भी गोल नहीं हो सका. दूसरे हाफ में भारत को दो पेनल्टी कॉर्नर मिले, पहला पृथीपाल सिंह ने लिया. जिसमें गोल नहीं हो सका, दूसरा पेनल्टी स्ट्रोक मोहिंदर लाल को मिला जिसे उन्होंने उसे गोल में तब्दील कर दिया. भारत ने पाकिस्तान को 1-0 से हराकर हॉकी में ओलंपिक विजेता बना था.

1964 ओलंपिक पदक जीतने वाली भारतीय टीम- चरणजीत सिंह (कप्तान), शंकर लक्ष्मण, राजेंद्रन अबसोलेम क्रिस्टी, पृथीपाल सिंह, गुरबख्श सिंह, मोहिंदर लाल, जगजीत सिंह, राजिंदर सिंह, जोगिंदर सिंह, हरि पाल कौशिक, हरबिंदर सिंह, बंदू पाटिल, विक्टर जॉन पीटर, उधम सिंह कुल्लर, दर्शन सिंह, अली सैयद, बलबीर सिंह कुल्लर.

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भारतीय टीम जिसने 1964 टोक्यो ओलंपिक में चरणजीत सिंह के नेतृत्व में पाकिस्तान को दी थी मात. (फोटो- ट्विटर)

पिता के कहने पर लौटे हिमाचल-1972 में पिता के कहने पर अपने प्रदेश हिमाचल में नौकरी की शुरुआत प्रदेश विश्वविद्यालय शिमला में निदेशक फिजिकल एजूकेशन व यूथ प्रोग्राम के रूप में की. 1990 से 1992 तक प्रदेश के पहले प्रो-एमीरेटस के रूप में कार्य किया. चरणजीत सिंह 85 साल की आयु तक कभी बीमार तक नहीं हुए, लेकिन 85 बसंत देख लेने के बाद उन्हें अधरंग रोग का अटैक हुआ, जिसके चलते वह चलने फिरने में असमर्थ हो गए.

भारत का 'अर्जुन' और 'पद्मश्री'- खेल के मैदान में उनके प्रदर्शन को देखते हुए भारत सरकार ने उन्हें साल 1963 में अर्जुन अवार्ड से नवाजा. टोक्यो ओलंपिक में गोल्ड जीतने के बाद सरकार ने 1964 में उन्हें पद्मश्री सम्मान दिया. इसके अलावा भी उन्हें कई राज्य स्तरीय और अन्य सम्मान मिले.

रिटायरमेंट के बाद भी खत्म नहीं हुआ हॉकी से लगाव- रिटायरमेंट के बाद लगातार हर रोज इंदिरा स्टेडियम में खिलाड़ियों व कोच के साथ समय बिताना उनकी रूटीन बन गई थी, जबकि किसी भी खेलों से जुड़ा कोई कार्यक्रम तब तक पूरा नहीं माना जाता था, जब तक पदमश्री चरणजीत सिंह की शिरकत उसमे न हो, लेकिन अब इंदिरा स्टेडियम में युवा खिलाड़ियों को इस शानदार खिलाड़ी के मार्गदर्शन से महरूम होना पड़ेगा.

अलविदा हॉकी के 'कप्तान'- आज भारतीय हॉकी टीम का वो सितारा हमेशा के लिए बुझ गया. गुरुवार को भारतीय हॉकी टीम को ओलंपिक गोल्ड जिताने वाले पूर्व कप्तान चरणजीत सिंह का निधन हो गया. बताया जा रहा है कि वो लंबे वक्त से बीमार थे और 92 साल की उम्र में उन्होंने आखिरी सांस ली. कई खिलाड़ी उनके मार्गदर्शन से अब महरूम होंगे, लेकिन ओलंपिक गोल्ड जिताने वाले उस कप्तान की कहानी आने वाली कई पीढ़ियों को प्रेरित करती रहेगी.

ये भी पढ़ें: पूर्व भारतीय हॉकी टीम के कप्तान पद्मश्री चरणजीत सिंह का निधन, सीएम जयराम ने जताया शोक

ये भी पढ़ें: अनुराग ठाकुर ने पूर्व भारतीय हॉकी टीम के कप्तान चरणजीत सिंह के निधन पर जताया शोक

ऊना: जब कभी हॉकी का जिक्र आता है तो मेजर ध्यानचंद से लेकर बलबीर सिंह सीनियर और अजीत पाल सिंह से लेकर धनराज पिल्ले, संदीप सिंह का नाम खुद-ब-खुद जहन में आ जाता है. लेकिन इस खेल ने कई ऐसे सितारे भी दिए जिनका नाम भले कईयों के लिए अनजान हो लेकिन इस खेल में उन्होंने अपनी अलग पहचान बनाई बल्कि खेल को बुलंदियों तक पहुंचाया. उन्हीं में से एक थे 1964 ओलंपिक स्वर्ण पदक विजेता कप्तान चरणजीत सिंह (charanjit singh), जिनका 92 साल की उम्र में गुरुवार को निधन हो गया. ये कहानी है भारतीय हॉकी के उस कप्तान की, जिसकी अगुवाई में टीम ने पाकिस्तान को धूल चटाकर ओलंपिक का गोल्ड जीता था.

पढ़ाई हो या खेल हर क्षेत्र में रहे अव्वल- चरणजीत सिंह का जन्म 3 फरवरी, साल 1931 को ऊना के मैड़ी गांव में हुआ था. जो तब संयुक्त पंजाब का हिस्सा था. गांव में प्राथमिक शिक्षा हासिल करने के बाद लायलपुर एग्रीकल्चर कॉलेज से आगे की पढ़ाई की. बीएससी कृषि की डिग्री हासिल की. लेकिन इस दौर में हॉकी को लेकर उनका प्यार दोस्तों से लेकर परिवार तक के बीच जाहिर हो चुका था. हॉकी से लगाव था लेकिन खेल को पढ़ाई के आड़े नहीं आने दिया. घरवालों और समाज को पढ़ाई से मतलब था और चरणजीत को हॉकी से, उन्होंने दोनों में ऐसा तालमेल बिठाया कि हर मोर्चे पर गोल करते रहे. पढ़ाई हो या खेल हर क्षेत्र में अव्वल रहने की ललक ने उन्हें एक सफल खिलाड़ी और युवाओं का रोल मॉडल बना दिया.

charanjit singh passes away
हॉकी के महान खिलाड़ी चरणजीत सिंह से जुड़े कुछ तथ्य.

14 साल पंजाब पुलिस में दी सेवा- पढ़ाई के बाद पंजाब पुलिस में एएसआई के रूप में भर्ती हुए और 14 साल की नौकरी के बाद डीएसपी के पद से रिटायरमेंट ले ली. इसके बाद लुधियाना कृषि विवि में उपनिदेशक स्टूडेंट वेलफेयर व हिसार कृषि विवि में 7 साल काम किया.

मैड़ी का वो मुंडा बना हॉकी का कप्तान- स्टूडेंट लाइफ में पढ़ाई में अव्वल रहने वाले चरणजीत सिंह का नाम देश के बेहतरीन खिलाड़ियों में शुमार किया जाता है.1949 में पहली बार यूनिवर्सिटी की तरफ से खेले और कुछ सालों बाद टीम इंडिया में जगह बना ली. उन्होंने 8 साल तक नेशनल टीम का किया प्रतिनिधित्व किया. 1958 से 1965 तक लगातार राष्ट्रीय हॉकी टीम के कप्तान रहे.

charanjit singh passes away
हॉकी के महान खिलाड़ी चरणजीत सिंह से जुड़े कुछ तथ्य.

लगातार 7वें ओलंपिक गोल्ड का टूटा सपना- साल 1960 में टीम इंडिया चरणजीत सिंह की अगुवाई में रोम ओलंपिक में हिस्सा लेने पहुंची. टीम इंडिया ने शानदार खेल दिखाते हुए फाइनल में प्रवेश किया लेकिन पाकिस्तान से हार गई और लगातार 7वीं बार ओलंपिक गोल्ड जीतने का टीम इंडिया का सपना टूट गया. इस फाइनल में चरणजीत चोट के कारण नहीं खेल पाए थे. टीम को सिल्वर मेडल से संतोष करना पड़ा.

भारत को जिताया ओलंपिक गोल्ड- ठीक चार साल बाद 1964 में ओलंपिक टोक्यो पहुंचा तो चरणजीत सिंह के मन में रोम में गोल्ड मेडल जीतते-जीतते हारने का मलाल था. टोक्यो में टीम ने शानदार प्रदर्शन कर ग्रुप बी में टॉप करते हुए फाइनल में जगह बनाई. इस बार भी सामने पाकिस्तान की टीम थी, जिसने रोम में हार का जख्म चरणजीत और टीम इंडिया को दिया था. पर इस बार चरणजीत मैदान पर थे और पाकिस्तान घुटनों पर, दिलचस्प मुकाबले में भारत ने पाकिस्तान को 1-0 से मात दे दी.

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1964 टोक्यो ओलंपिक में फाइनल में जीत हासिल करने के बाद गोल्ड मेडल हासिल करते हुए चरणजीत सिंह. (फोटो- ट्विटर)

1964 ओलंपिक का वो फाइनल- साल 1964 में टोक्यो ओलंपिक गेम (Tokyo Olympics 1964) में भारतीय हॉकी टीम का कप्तान चरणजीत सिंह को बनाया गया. इस टीम में उधम सिंह भी थे जो अपना चौथा ओलंपिक खेल रहे थे. भारत इन खेलों में रोम में आयोजित ओलंपिक फाइनल में पाकिस्तान से मिली हार की टीस लेकर उतरा था. 23 अक्टूबर को खेले गए फाइनल मैच में पहले हाफ में दोनों टीमों की ओर से कोई भी गोल नहीं हो सका. दूसरे हाफ में भारत को दो पेनल्टी कॉर्नर मिले, पहला पृथीपाल सिंह ने लिया. जिसमें गोल नहीं हो सका, दूसरा पेनल्टी स्ट्रोक मोहिंदर लाल को मिला जिसे उन्होंने उसे गोल में तब्दील कर दिया. भारत ने पाकिस्तान को 1-0 से हराकर हॉकी में ओलंपिक विजेता बना था.

1964 ओलंपिक पदक जीतने वाली भारतीय टीम- चरणजीत सिंह (कप्तान), शंकर लक्ष्मण, राजेंद्रन अबसोलेम क्रिस्टी, पृथीपाल सिंह, गुरबख्श सिंह, मोहिंदर लाल, जगजीत सिंह, राजिंदर सिंह, जोगिंदर सिंह, हरि पाल कौशिक, हरबिंदर सिंह, बंदू पाटिल, विक्टर जॉन पीटर, उधम सिंह कुल्लर, दर्शन सिंह, अली सैयद, बलबीर सिंह कुल्लर.

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भारतीय टीम जिसने 1964 टोक्यो ओलंपिक में चरणजीत सिंह के नेतृत्व में पाकिस्तान को दी थी मात. (फोटो- ट्विटर)

पिता के कहने पर लौटे हिमाचल-1972 में पिता के कहने पर अपने प्रदेश हिमाचल में नौकरी की शुरुआत प्रदेश विश्वविद्यालय शिमला में निदेशक फिजिकल एजूकेशन व यूथ प्रोग्राम के रूप में की. 1990 से 1992 तक प्रदेश के पहले प्रो-एमीरेटस के रूप में कार्य किया. चरणजीत सिंह 85 साल की आयु तक कभी बीमार तक नहीं हुए, लेकिन 85 बसंत देख लेने के बाद उन्हें अधरंग रोग का अटैक हुआ, जिसके चलते वह चलने फिरने में असमर्थ हो गए.

भारत का 'अर्जुन' और 'पद्मश्री'- खेल के मैदान में उनके प्रदर्शन को देखते हुए भारत सरकार ने उन्हें साल 1963 में अर्जुन अवार्ड से नवाजा. टोक्यो ओलंपिक में गोल्ड जीतने के बाद सरकार ने 1964 में उन्हें पद्मश्री सम्मान दिया. इसके अलावा भी उन्हें कई राज्य स्तरीय और अन्य सम्मान मिले.

रिटायरमेंट के बाद भी खत्म नहीं हुआ हॉकी से लगाव- रिटायरमेंट के बाद लगातार हर रोज इंदिरा स्टेडियम में खिलाड़ियों व कोच के साथ समय बिताना उनकी रूटीन बन गई थी, जबकि किसी भी खेलों से जुड़ा कोई कार्यक्रम तब तक पूरा नहीं माना जाता था, जब तक पदमश्री चरणजीत सिंह की शिरकत उसमे न हो, लेकिन अब इंदिरा स्टेडियम में युवा खिलाड़ियों को इस शानदार खिलाड़ी के मार्गदर्शन से महरूम होना पड़ेगा.

अलविदा हॉकी के 'कप्तान'- आज भारतीय हॉकी टीम का वो सितारा हमेशा के लिए बुझ गया. गुरुवार को भारतीय हॉकी टीम को ओलंपिक गोल्ड जिताने वाले पूर्व कप्तान चरणजीत सिंह का निधन हो गया. बताया जा रहा है कि वो लंबे वक्त से बीमार थे और 92 साल की उम्र में उन्होंने आखिरी सांस ली. कई खिलाड़ी उनके मार्गदर्शन से अब महरूम होंगे, लेकिन ओलंपिक गोल्ड जिताने वाले उस कप्तान की कहानी आने वाली कई पीढ़ियों को प्रेरित करती रहेगी.

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Last Updated : Jan 27, 2022, 7:47 PM IST
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