सोलन: जिला की शान कहे जाने वाले मॉल रोड पर 1959 में स्थापित हिमाचल का पहला पुस्तकालय जहां संविधान से लेकर हाथों से लिखे वेद-पुराण आज भी मौजूद हैं. इस लाइब्रेरी में करीब 1 लाख 20 हजार पुस्तकों का भंडार है और लाइब्रेरी को केंद्रीय राज्य पुस्तकालय के नाम से भी जाना जाता है.
आजादी से पहले देश में शिक्षा के बहुत कम साधन थे. बघाट रियासत का एकमात्र माध्यमिक स्तर का वरनेकुलर स्कूल था. उच्च शिक्षा के लिए अमीर परिवारों और राजपरिवार के युवक पढ़ने के लिए लाहौर जाते थे, क्योंकि उस पंजाब विश्विविद्यालय लाहौर में था. देश का विभाजन हो जाने पर पंजाब विश्वविद्यालय की स्थापना सोलन में की गई.
आधुनिक मॉल रोड के ऊपर बागरियन-हाउस में पंजाब विश्वविद्यालय का रिकॉर्ड रखा गया. कुछ समय बाद नया चंडीगढ़ बनने पर विश्वविद्यालय को चंडीगढ़ स्थानांतरित किया गया. इसी बीच डॉ. यशवंत सिंह परमार तत्कालीन मुख्यमंत्री थे और उनको पुस्तकों से बड़ा लगाव था. ऐसे में तत्कालीन मुख्यमंत्री डॉ. यशवंत सिंह परमार ने पुराने पंजाब विश्वविद्यालय से तीन सौ गज की दूरी पर शिवदयाल नवनिर्मित भवन के ऊपरी मंजिल में सेंट्रल स्टेट लाइब्रेरी की स्थापना करवा दी. इस कार्य में पूरा योगदान राजा दुर्गा सिंह ने भी दिया था.
इस वजह से सोलन में स्थापित हुई थी सेंट्रल स्टेट लाइब्रेरी....
सोलन में सेंट्रल स्टेट लाइब्रेरी इसलिए स्थापित की गयी थी, क्योंकि इस स्थान पर न तो अधिक सर्दी पड़ती है और ना ही गर्मी. जिससे छात्रों को यहां पढ़ने के लिए समय ज्यादा मिलता था. हालांकि कई बार इस लाइब्रेरी को शिमला स्थानांतरित करने की मुहिम उठती रही, लेकिन किन्हीं कारणों से स्थानांतरित नहीं किया गया. ये पुस्तकालय शिक्षा विभाग हिमाचल प्रदेश के अधीन कार्य कर रहा है और नियंत्रण मुख्य पुस्तकालय अध्यक्ष चीफ लाइब्रेरियन के हाथों में हैं.
पुस्तकालय में करीब 1 लाख 20 हजार पुस्तकों का भंडार है. साथ ही शिक्षा कारोबार, कला, इतिहास, साहित्य, संगीत, विज्ञान, इंजीनियरिंग और प्रतियोगिताओं से संबंधी पुस्तकें लाइब्रेरी में उपलब्ध है. इसके अलावा पंजाब स्टेट गजिटियर्स, शिमला हिलन्स गजिटियर्स, सिरमौर स्टेट गजिटियर्स और हिमाचल सरकार द्वारा जारी राजपत्र आज भी उपलब्ध है.
पुस्तकें पाने के तीन मुख्य स्त्रोत
शिक्षा विभाग, राजा राममोहन राय ट्रस्ट कलकत्ता व श्रद्धालु विद्वानों द्वारा दान पुस्तकें. राजा राम मोहन राय ट्रस्ट की ओर से हर साल लाखों रुपये की अति उपयोगी व नई प्रकाशित पुस्तकें दान की जाती हैं. इसके अलावा ऐतिहासिक धरोहरों में शिमला- द पास्ट एंड प्रेजेंट 1925, फाइव मार्क्स इन हिमालया -1909, कमेंट्री ऑफ मशोबरा 1882, हिमाचल डिस्ट्रिक्स गैजेटियर- 1961, द हार्ट ऑफ नेपाल -1962, हस्तलिखित प्रतिलिपियां सी अंग्रेजी, रूसी ,फ्रांसीसी व जर्मन विद्वानों द्वारा रचित अनुवादित पुस्तकें शामिल हैं.
हैरानी की बात ये है कि जब से ये पुस्तकालय स्थापित हुआ है तब से लेकर एक निजी बिल्डिंग में चल रहा है. पुराने हो चुके भवन के के जीर्णोद्धार की कोई व्यवस्था नहीं की गई है. सरकारी अनुदान से इसकी मरम्मत के लिए अनुदान मिलता है, लेकिन वित्तीय नियमों के अनुसार प्राइवेट भवन पर खर्च नहीं किया जाता है.
सरकारी ग्रांट हर साल कम हो रहा है, जिससे पुस्तकों का भंडार नए भवन की प्रतीक्षा कर रहा है. ऐसे में सोलन के साहित्यकारों ने भी केंद्र और प्रदेश सरकार से इसके लिए नए भवन की मांग की है, ताकि इस ऐतिहासिक धरोहर का अपना कोई वजूद हो सके.