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बदहाली के आंसू बहा रहा ऐसा पुस्तकालय जहां रखे हैं हास्तलिखित संविधान और वेद पुराण - सेंट्रल स्टेट लाइब्रेरी

सोलन जिला के मॉल रोड पर 1959 में स्थापित हिमाचल का पहला पुस्तकालय जहां संविधान से लेकर हाथों से लिखे वेद-पुराण आज भी मौजूद हैं. इस  लाइब्रेरी में करीब 1 लाख 20 हजार पुस्तकों का भंडार है. पुस्तकालय में शिक्षा कारोबार, कला, इतिहास, साहित्य, संगीत, विज्ञान, इंजीनियरिंग और प्रतियोगिताओं से संबंधी पुस्तकें लाइब्रेरी में उपलब्ध है.

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Published : Nov 26, 2019, 9:21 PM IST

सोलन: जिला की शान कहे जाने वाले मॉल रोड पर 1959 में स्थापित हिमाचल का पहला पुस्तकालय जहां संविधान से लेकर हाथों से लिखे वेद-पुराण आज भी मौजूद हैं. इस लाइब्रेरी में करीब 1 लाख 20 हजार पुस्तकों का भंडार है और लाइब्रेरी को केंद्रीय राज्य पुस्तकालय के नाम से भी जाना जाता है.

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सेंट्रल स्टेट लाइब्रेरी

आजादी से पहले देश में शिक्षा के बहुत कम साधन थे. बघाट रियासत का एकमात्र माध्यमिक स्तर का वरनेकुलर स्कूल था. उच्च शिक्षा के लिए अमीर परिवारों और राजपरिवार के युवक पढ़ने के लिए लाहौर जाते थे, क्योंकि उस पंजाब विश्विविद्यालय लाहौर में था. देश का विभाजन हो जाने पर पंजाब विश्वविद्यालय की स्थापना सोलन में की गई.

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सेंट्रल स्टेट लाइब्रेरी

आधुनिक मॉल रोड के ऊपर बागरियन-हाउस में पंजाब विश्वविद्यालय का रिकॉर्ड रखा गया. कुछ समय बाद नया चंडीगढ़ बनने पर विश्वविद्यालय को चंडीगढ़ स्थानांतरित किया गया. इसी बीच डॉ. यशवंत सिंह परमार तत्कालीन मुख्यमंत्री थे और उनको पुस्तकों से बड़ा लगाव था. ऐसे में तत्कालीन मुख्यमंत्री डॉ. यशवंत सिंह परमार ने पुराने पंजाब विश्वविद्यालय से तीन सौ गज की दूरी पर शिवदयाल नवनिर्मित भवन के ऊपरी मंजिल में सेंट्रल स्टेट लाइब्रेरी की स्थापना करवा दी. इस कार्य में पूरा योगदान राजा दुर्गा सिंह ने भी दिया था.

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हस्तलिखित पुस्तकें

इस वजह से सोलन में स्थापित हुई थी सेंट्रल स्टेट लाइब्रेरी....
सोलन में सेंट्रल स्टेट लाइब्रेरी इसलिए स्थापित की गयी थी, क्योंकि इस स्थान पर न तो अधिक सर्दी पड़ती है और ना ही गर्मी. जिससे छात्रों को यहां पढ़ने के लिए समय ज्यादा मिलता था. हालांकि कई बार इस लाइब्रेरी को शिमला स्थानांतरित करने की मुहिम उठती रही, लेकिन किन्हीं कारणों से स्थानांतरित नहीं किया गया. ये पुस्तकालय शिक्षा विभाग हिमाचल प्रदेश के अधीन कार्य कर रहा है और नियंत्रण मुख्य पुस्तकालय अध्यक्ष चीफ लाइब्रेरियन के हाथों में हैं.

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हस्तलिखित पुस्तकें

पुस्तकालय में करीब 1 लाख 20 हजार पुस्तकों का भंडार है. साथ ही शिक्षा कारोबार, कला, इतिहास, साहित्य, संगीत, विज्ञान, इंजीनियरिंग और प्रतियोगिताओं से संबंधी पुस्तकें लाइब्रेरी में उपलब्ध है. इसके अलावा पंजाब स्टेट गजिटियर्स, शिमला हिलन्स गजिटियर्स, सिरमौर स्टेट गजिटियर्स और हिमाचल सरकार द्वारा जारी राजपत्र आज भी उपलब्ध है.

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संविधान की किताब

पुस्तकें पाने के तीन मुख्य स्त्रोत
शिक्षा विभाग, राजा राममोहन राय ट्रस्ट कलकत्ता व श्रद्धालु विद्वानों द्वारा दान पुस्तकें. राजा राम मोहन राय ट्रस्ट की ओर से हर साल लाखों रुपये की अति उपयोगी व नई प्रकाशित पुस्तकें दान की जाती हैं. इसके अलावा ऐतिहासिक धरोहरों में शिमला- द पास्ट एंड प्रेजेंट 1925, फाइव मार्क्स इन हिमालया -1909, कमेंट्री ऑफ मशोबरा 1882, हिमाचल डिस्ट्रिक्स गैजेटियर- 1961, द हार्ट ऑफ नेपाल -1962, हस्तलिखित प्रतिलिपियां सी अंग्रेजी, रूसी ,फ्रांसीसी व जर्मन विद्वानों द्वारा रचित अनुवादित पुस्तकें शामिल हैं.

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हस्तलिखित किताब

हैरानी की बात ये है कि जब से ये पुस्तकालय स्थापित हुआ है तब से लेकर एक निजी बिल्डिंग में चल रहा है. पुराने हो चुके भवन के के जीर्णोद्धार की कोई व्यवस्था नहीं की गई है. सरकारी अनुदान से इसकी मरम्मत के लिए अनुदान मिलता है, लेकिन वित्तीय नियमों के अनुसार प्राइवेट भवन पर खर्च नहीं किया जाता है.

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संविधान की किताबें

सरकारी ग्रांट हर साल कम हो रहा है, जिससे पुस्तकों का भंडार नए भवन की प्रतीक्षा कर रहा है. ऐसे में सोलन के साहित्यकारों ने भी केंद्र और प्रदेश सरकार से इसके लिए नए भवन की मांग की है, ताकि इस ऐतिहासिक धरोहर का अपना कोई वजूद हो सके.

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सोलन: जिला की शान कहे जाने वाले मॉल रोड पर 1959 में स्थापित हिमाचल का पहला पुस्तकालय जहां संविधान से लेकर हाथों से लिखे वेद-पुराण आज भी मौजूद हैं. इस लाइब्रेरी में करीब 1 लाख 20 हजार पुस्तकों का भंडार है और लाइब्रेरी को केंद्रीय राज्य पुस्तकालय के नाम से भी जाना जाता है.

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सेंट्रल स्टेट लाइब्रेरी

आजादी से पहले देश में शिक्षा के बहुत कम साधन थे. बघाट रियासत का एकमात्र माध्यमिक स्तर का वरनेकुलर स्कूल था. उच्च शिक्षा के लिए अमीर परिवारों और राजपरिवार के युवक पढ़ने के लिए लाहौर जाते थे, क्योंकि उस पंजाब विश्विविद्यालय लाहौर में था. देश का विभाजन हो जाने पर पंजाब विश्वविद्यालय की स्थापना सोलन में की गई.

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सेंट्रल स्टेट लाइब्रेरी

आधुनिक मॉल रोड के ऊपर बागरियन-हाउस में पंजाब विश्वविद्यालय का रिकॉर्ड रखा गया. कुछ समय बाद नया चंडीगढ़ बनने पर विश्वविद्यालय को चंडीगढ़ स्थानांतरित किया गया. इसी बीच डॉ. यशवंत सिंह परमार तत्कालीन मुख्यमंत्री थे और उनको पुस्तकों से बड़ा लगाव था. ऐसे में तत्कालीन मुख्यमंत्री डॉ. यशवंत सिंह परमार ने पुराने पंजाब विश्वविद्यालय से तीन सौ गज की दूरी पर शिवदयाल नवनिर्मित भवन के ऊपरी मंजिल में सेंट्रल स्टेट लाइब्रेरी की स्थापना करवा दी. इस कार्य में पूरा योगदान राजा दुर्गा सिंह ने भी दिया था.

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हस्तलिखित पुस्तकें

इस वजह से सोलन में स्थापित हुई थी सेंट्रल स्टेट लाइब्रेरी....
सोलन में सेंट्रल स्टेट लाइब्रेरी इसलिए स्थापित की गयी थी, क्योंकि इस स्थान पर न तो अधिक सर्दी पड़ती है और ना ही गर्मी. जिससे छात्रों को यहां पढ़ने के लिए समय ज्यादा मिलता था. हालांकि कई बार इस लाइब्रेरी को शिमला स्थानांतरित करने की मुहिम उठती रही, लेकिन किन्हीं कारणों से स्थानांतरित नहीं किया गया. ये पुस्तकालय शिक्षा विभाग हिमाचल प्रदेश के अधीन कार्य कर रहा है और नियंत्रण मुख्य पुस्तकालय अध्यक्ष चीफ लाइब्रेरियन के हाथों में हैं.

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हस्तलिखित पुस्तकें

पुस्तकालय में करीब 1 लाख 20 हजार पुस्तकों का भंडार है. साथ ही शिक्षा कारोबार, कला, इतिहास, साहित्य, संगीत, विज्ञान, इंजीनियरिंग और प्रतियोगिताओं से संबंधी पुस्तकें लाइब्रेरी में उपलब्ध है. इसके अलावा पंजाब स्टेट गजिटियर्स, शिमला हिलन्स गजिटियर्स, सिरमौर स्टेट गजिटियर्स और हिमाचल सरकार द्वारा जारी राजपत्र आज भी उपलब्ध है.

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संविधान की किताब

पुस्तकें पाने के तीन मुख्य स्त्रोत
शिक्षा विभाग, राजा राममोहन राय ट्रस्ट कलकत्ता व श्रद्धालु विद्वानों द्वारा दान पुस्तकें. राजा राम मोहन राय ट्रस्ट की ओर से हर साल लाखों रुपये की अति उपयोगी व नई प्रकाशित पुस्तकें दान की जाती हैं. इसके अलावा ऐतिहासिक धरोहरों में शिमला- द पास्ट एंड प्रेजेंट 1925, फाइव मार्क्स इन हिमालया -1909, कमेंट्री ऑफ मशोबरा 1882, हिमाचल डिस्ट्रिक्स गैजेटियर- 1961, द हार्ट ऑफ नेपाल -1962, हस्तलिखित प्रतिलिपियां सी अंग्रेजी, रूसी ,फ्रांसीसी व जर्मन विद्वानों द्वारा रचित अनुवादित पुस्तकें शामिल हैं.

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हस्तलिखित किताब

हैरानी की बात ये है कि जब से ये पुस्तकालय स्थापित हुआ है तब से लेकर एक निजी बिल्डिंग में चल रहा है. पुराने हो चुके भवन के के जीर्णोद्धार की कोई व्यवस्था नहीं की गई है. सरकारी अनुदान से इसकी मरम्मत के लिए अनुदान मिलता है, लेकिन वित्तीय नियमों के अनुसार प्राइवेट भवन पर खर्च नहीं किया जाता है.

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संविधान की किताबें

सरकारी ग्रांट हर साल कम हो रहा है, जिससे पुस्तकों का भंडार नए भवन की प्रतीक्षा कर रहा है. ऐसे में सोलन के साहित्यकारों ने भी केंद्र और प्रदेश सरकार से इसके लिए नए भवन की मांग की है, ताकि इस ऐतिहासिक धरोहर का अपना कोई वजूद हो सके.

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Solan
सविंधान दिवस स्पेशल


सोलन की इस लाइब्रेरी में आज भी मौजूद हैं हस्तलिखित वेद पुराण और संविधान.....लेकिन 60 सालों से तलाश कर रहा अपना निजी भवन

:- हिमाचल की पहली लाइब्रेरी जिसे 1959 में मिला था सैंट्रल स्टेट लाइब्रेरी का दर्जा
:- 1 लाख 20 हज़ार पुस्तकें आज भी है मौजूद।

हिमाचल का पहला पुस्तकालय जहां संविधान से लेकर हाथों से लिखा वेद पुराण आज भी मौजूद है। 1959 में खुली ये लाइब्रेरी आज भी अनेकों मानवता का इतिहास संजोये है। इस लाइब्रेरी में करीब 1 लाख 20 हज़ार पुस्तकों का भंडार है। जिला सोलन की शान कहा जाने वाले मॉल रोड़ पर 1959 में स्थापित हुई इस लाइब्रेरी को आज केंद्रीय राज्य पुस्तकालय के नाम से जाना जाता है। इस लाइब्रेरी में आज भी हाथों से लिखा वेद पुराण और सविंधान मौजूद है।


Body:केंद्रीय राज्य पुस्तकालय सोलन..ऐतिहासिक धरोहर.....

भारत की स्वतंत्रता के पूर्व शिक्षा की कोई व्यवस्था नहीं थी। बघाट रियासत में मात्र एक माध्यमिक स्तर का वरनेकुलर स्कूल था। जहां बहुत अमीर परिवारों तथा राजपरिवार के युवक लाहौर जाते थे। स्वतंत्रता के समय पंजाब विश्वविद्यालय लाहौर में होता था। देश का विभाजन हो जाने पर पंजाब विश्वविद्यालय की स्थापना सोलन में की गई। आधुनिक मॉल रोड के ऊपर बागरियन-हाउस में विश्वविद्यालय का रिकॉर्ड रखा गया। कुछ समय पश्चात नया चंडीगढ़ बन जाने पर इसे चंडीगढ़ स्थानांतरित कर दिया गया । इस बीच डॉ यशवंत सिंह परमार तत्कालीन हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री, जो एक स्थापित विद्वान थे। और जिन्हें पुस्तकों से बड़ा लगाव था, उन्होंने केंद्रीय राज्य पुस्तकालय सोलन में खोलने की व्यवस्था की।

पुराने पंजाब विश्विद्यालय से तीन सौ गज की दूरी पर शिवदयाल नवनिर्मित भवन के ऊपरी मंजिल में सेंट्रल स्टेट लाइब्रेरी खोल दी गई, इस कार्य में पूरा योगदान राजा दुर्गा सिंह ने भी दिया था।

इसलिये सोलन में स्थापित हुई थी सेंट्रल स्टेट लाइब्रेरी....
सोलन में इसलिए सेंट्रल स्टेट लाइब्रेरी स्थापित कि गयी थी क्योंकी इस स्थान पर न तो अधिक सर्दी पड़ती है और ना ही गर्मी ,जिस कारण यहाँ पढ़ने के लिए समय ज्यादा मिलता था ,इसके विपरीत राज्य की राजधानी शिमला में सबसे अधिक ठंड पड़ती है तथा धुंध छाई रहती है। कई बार इस लाइब्रेरी को शिमला ही स्थानांतरित करने की मुहिम उठती रही किंतु इन्हीं कारणों से नहीं बदला गया। शिक्षा विभाग हिमाचल प्रदेश के अधिन यह पुस्तकालय कार्य करता है इसका नियंत्रण मुख्य पुस्तकालय अध्यक्ष चीफ लाइब्रेरियन के हाथों में है।

आज भी एक लाख बीस हज़ार पुस्तकें इस लाइब्रेरी में मौजूद.......
इस पुस्तकालय में करीब 1,20000 पुस्तकों का भंडार है तो अपने में मानवता का इतिहास संजोये है। शिक्षा कारोबार, कला, इतिहास, साहित्य, संगीत,विज्ञान, इंजीनियरिंग,तथा प्रतियोगिता संबंधी पुस्तकें यहां उपलब्ध है। इके अतिरिक्त पंजाब स्टेट गजिटियर्स ,शिमला हिलन्स गजिटियर्स, सिरमौर स्टेट गजिटियर्स तथा हिमाचल सरकार द्वारा जारी राजपत्र तथा भारत सरकार द्वारा जारी राज्पत्र आज भी उपलब्ध है।

पुस्तकें उपलब्धि के तीन मुख्य स्त्रोत है- शिक्षा विभाग, राजा राममोहन राय ट्रस्ट कलकत्ता तथा श्रद्धालु विद्वानों द्वारा दान पुस्तकें। राजा राम मोहन राय ट्रस्ट द्वारा हर वर्ष लाखों रुपए की अति उपयोगि तथा नई प्रकाशित पुस्तकें दान की जाती है।


ऐतिहासिक धरोहरों में शिमला- द पास्ट एंड प्रेजेंट 1925, फाइव मार्क्स इन हिमालया -1909, कमेंट्री ऑफ मशोबरा 1882, हिमाचल डिस्ट्रिक्स गैजेटियर- 1961, द हार्ट ऑफ नेपाल -1962। इसके अतिरिक्त हस्तलिखित प्रतिलिपियाँ बहुत सी अंग्रेजी, रूसी ,फ्रांसीसी तथा जर्मन विद्वानों द्वारा रचिततथा अनुवादित है।


Conclusion:




लेकिन हैरानी की बात यह है कि आज भी यह पुस्तकालय जब से स्थापित हुई है तब से लेकर एक निजी बिल्डिंग में चल रहा है। पुराना हो जाने के कारण इसके जीर्णोद्धार की कोई व्यवस्था नहीं की गई है, सरकारी अनुदान से इसकी मरम्मत के लिए अनुदान मिलता है, किंतु वित्तीय नियमों के अनुसार प्राइवेट भवन पर खर्च नहीं किया जाता है इसके लिए हर बार नए भवन की दरकार की गई किंतु पुराने भवन में पुस्तक भंडार असुरक्षित है, सरकारी ग्रांट हर वर्ष लुप्त हो रहा है जिस कारण पुस्तकों का भंडार नए भवन की प्रतीक्षा कर रहा है,वहीं इसके लिए सोलन के साहित्यकारों ने भी केंद्र और प्रदेश सरकार से इसके लिए नए भवन की मांग की है ताकि इस ऐतिहासिक धरोहर का अपना कोई वजूद हो सके।


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