सोलन: हिमाचल प्रदेश में तीन विधानसभा और एक लोकसभा सीट पर 30 अक्टूबर को वोटिंग होगी और मतों की गणना 2 नवंबर को होगी. अर्की विधानसभा सीट से भाजपा ने पूर्व प्रत्याशी रतन पाल सिंह पर भरोसा जताया है. रतन पाल सिंह 2017 के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस के दिग्गज नेता और पूर्व मुख्यमंत्री स्व.वीरभद्र सिंह से सात हजार से भी कम वोटों से हारे थे. वहीं, कांग्रेस ने संजय अवस्थी पर भरोसा जताया है.
अर्की विधानसभा क्षेत्र में इस बार 92 हजार 555 मतदाता अपने मताधिकार का प्रयोग करेंगे. जिनमें 47 हजार 163 पुरुष और 45 हजार 392 महिला मतदाता शामिल हैं. इस विधानसभा क्षेत्र में 2556 मतदाताओं की उम्र 18 से 19 वर्ष है, जो पहली बार अपने मताधिकार का प्रयोग करेंगे. अर्की विधानसभा क्षेत्र में चुनाव प्रक्रिया पूरी करवाने के लिए 154 पोलिंग पार्टियां पुलिस सुरक्षा के बीच 31 बसों में चुनाव सामग्री के साथ पोलिंग बूथों पर पहुंच गई है.
अर्की विधानसभा क्षेत्र में पांच अतिसंवेदनशील पोलिंग बूथों की सुरक्षा बढ़ा दी गई है. यहां पैरामिलिट्री फोर्स तैनात की गई है. उपचुनाव के लिए इस बार दो महिला बूथ बनाए गए हैं, जो कि बूथ नंबर-62 और 63 है. इनमें बॉयज स्कूल और गर्ल्स स्कूल अर्की है. इन दोनों ही बूथों पर महिला कर्मचारियों को तैनात किया गया है. निर्वाचन विभाग की तरफ से यहां एक रिटर्निंग ऑफिसर और 32 सहायक रिटर्निंग ऑफिसर तैनात किए गए हैं.
अर्की के चुनावी मुद्दे विधानसभा क्षेत्र की अधिकांश जनता कृषि और बागवानी से जुड़ी हुई है. यहां कैश क्रॉप के रूप में टमाटर और फूलों की खेती की जाती है. इसके अलावा सब्जियों का भी अच्छा कारोबार इस क्षेत्र में किया जाता है. इन उपचुनावों में कृषि से जुड़े मुद्दे भी अर्की के चुनाव प्रचार में छाए रहे. शुरुआत में टमाटर के अच्छे दाम नहीं मिलने से अधिकांश किसानों की दिक्कतें झेलनी पड़ी है. लेकिन बाद में मार्केट ठीक होने के बाद अब टमाटर के अच्छे दाम मिल रहे हैं.
वहीं, कोरोना काल में फूल कारोबारियों का पूरा धंधा चौपट हो गया था. हालांकि उस वक्त सरकार ने उनकी कुछ सहायता भी की थी. इसके अलावा विधानसभा क्षेत्र में स्कूलों की खस्ताहालत, सड़कों की खराब स्थिति, ग्रामीण क्षेत्रों में बसों की कमी और फोन नेटवर्क की दिक्कत लोगों की बड़ी समस्याएं हैं. इस बार चुनावों में यह समस्या लोगों ने राजनीतिक दलों के सामने रखी भी है. इसके अलावा महंगाई भी इन चुनावों में बड़ा मुद्दा बनकर सामने आ सकता है. पेट्रोल-डीजल के बढ़ते दामों के साथ-साथ लोगों को महंगाई के कारण घर चलाना मुश्किल हो चुका है.
अर्की निर्वाचन क्षेत्र की सियासत बेहद रोचक रही है. इतिहास पर नजर डालें तो यहां कांग्रेस-भाजपा दोनों में बराबर की टक्कर रही है. वर्ष 1980 में भाजपा की स्थापना हुई थी और उसके बाद से अब तक हुए 9 विधानसभा चुनाव हुए हैं. इनमें कांग्रेस पांच बार तो भाजपा ने चार बार जीत हासिल की है. पहले करीब ढाई दशक तक अर्की की सियासत हीरा सिंह पाल और नगीन चंद्र पाल के बीच घूमती रही. 1993 में कांग्रेस नेता धर्मपाल ठाकुर के विधायक बनने के बाद अर्की वालों ने उन पर लगातार तीन बार भरोसा जताया.
अर्की के राजनीति समीकरणों पर एक नजर... | ||
वर्ष | विजयी प्रत्याशी | राजनीतिक दल |
1998-2003 | धर्मपाल ठाकुर | कांग्रेस |
2003-2007 | धर्मपाल ठाकुर | कांग्रेस |
2007-2012 | गोविंद राम शर्मा | भाजपा |
2012-2017 | गोविंद राम शर्मा | भाजपा |
2017-2021 | वीरभद्र सिंह | कांग्रेस |
फिर कर्मचारी राजनीति से सियासत में कदम रखने वाले गोविंद राम शर्मा दो बार जीते. पर 2017 के विधानसभा चुनाव में खुद सूबे के उस समय के मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ने अर्की से मैदान में उतरने का निर्णय लिया और विधायक बने. अब उनके निधन के बाद उपचुनाव होने जा रहा है, पर असंतोष और अंदरूनी खींचतान की आग दोनों ही राजनीतिक दलों को झुलसा सकती है.
वर्तमान की बात करें तो भाजपा बाहरी तौर पर अर्की में सशक्त और संगठित दिख रही है. इस बार भाजपा के रतन सिंह पाल और कांग्रेस के संजय अवस्थी के बीच टक्कर होनी है. जिसके कारण कांग्रेस की सियासत फिर दिलचस्प हो गई है. पिछले कई चुनावों की तरह इस बार फिर पार्टी में विद्रोह-भीतरघात की स्थिति है.
नतीजन जो कांग्रेस कुछ दिन पहले मजबूत लग रही थी, उसे राजेंद्र ठाकुर और उनके गुट द्वारा खुले विद्रोह और कांग्रेस पार्टी से त्यागपत्र के बाद कुछ कमजोर बना दिया है. वहीं, भाजपा को भीतरघात से जूझना पड़ सकता है. पूर्व विधायक गोविंद राम शर्मा ने खुले तौर पर भाजपा प्रत्याशी के समर्थन में प्रचार करने से मना कर दिया है. ऐसे में अर्की का संग्राम रोचक होना तय है.
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