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हिमाचल में हर साल 500 करोड़ की फसल उजाड़ने वाले बंदर इस बार क्यों नहीं हैं चुनावी मुद्दा ? - Monkeys and Himachal Election 2022

कहा जाता है कि बंदर अदरक का स्वाद नहीं जानता, लेकिन हिमाचल प्रदेश के चालाक बंदर न केवल अदरक का स्वाद जानते हैं, बल्कि किसानों की फसल भी जमकर बर्बाद करते हैं. बंदर व जंगली जानवर हर साल फलों और फसलों को 500 करोड़ रुपए का नुकसान पहुंचाते हैं. प्रदेश में ग्रामीणों का इतना भारी नुकसान होने के बावजूद किसान एक दशक से चुनावी मुद्दा नहीं बन रहे हैं. (monkey politics in Himachal) (Monkey politics closed in Himachal)

monkey politics in Himachal
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Published : Oct 8, 2022, 2:33 PM IST

शिमला: हिमाचल में कभी भी चुनाव की तारीखों का ऐलान हो सकता है. इस बीच सियासी दल अपने-अपने मुद्दों की पोटली लेकर जनता के बीच पहुंच रहे हैं. लेकिन मुद्दों की गूंज में वो मुद्दा इस बार गायब है जिससे प्रदेश की सबसे बड़ी आबादी हर साल बड़ा नुकसान झेलती है. ये समस्या है हिमाचल में बंदरों की समस्या, प्रदेश में बंदर और अन्य जंगली जीव हर साल फलों और फसलों को 500 करोड़ रुपए का नुकसान पहुंचाते हैं. हर साल होने वाला ये नुकसान इन बंदरों को हिमाचल में चुनावी मुद्दा बनाता रहा है. लेकिन पिछले चुनाव की तरह इस बार भी ये बंदर चुनावी मुद्दों की भीड़ में कहीं गुम हैं. दूसरी नजर से देखें तो कहा जा सकता है कि चुनावी साल में हिमाचल की सबसे बड़ी जनसंख्या यानी किसान-बागवान और उनकी समस्या किसी भी राजनीतिक दल की चुनावी चिंता में शामिल नहीं हैं. (monkey politics in Himachal) (monkey in Himachal) (Himachal election 2022)

2300 पंचायतों में किसान-बागवान परेशान: हिमाचल में कुल 3615 पंचायतें हैं. इनमें से एक 2300 पंचायतों में किसान बंदरों और जंगली जानवरों द्वारा फसल उजाड़े जाने से परेशान हैं. हाल ही में वन्य प्राणी विभाग ने दावा किया कि बंदरों की संख्या में कमी आई है, लेकिन किसानों का कहना है कि समस्या ज्यों की त्यों है. हिमाचल प्रदेश में वर्ष 2007 व 2012 में किसान संगठन इस मसले को चुनावी मुद्दा बनाने में कामयाब तो जरूर हुए थे, लेकिन सरकारों ने इसके समाधान के लिए कोई प्रयास नहीं किया. भाजपा सरकार ने सोलर फेंसिंग के लिए किसानों को अनुदान दिया है. सोलर बाड़ लगाने से कई इलाकों में बंदरों व जंगली जानवरों की तरफ से फसलों को हो रहे नुकसान में कुछ कमी आई है. (2300 panchayats troubled by monkeys in Himachal)

हिमाचल में 6 लाख से ज्यादा बंदर का दावा: हिमाचल की 90% आबादी ग्रामीण इलाकों में रहती है, जो ज्यादातर खेती और बागवानी पर निर्भर है. पूर्व के सरकारी आंकड़े के अनुसार हिमाचल में 2.60 लाख बंदर थे. पूर्व की वीरभद्र सिंह सरकार के समय दावा किया गया था कि इनमें से 90 हजार की नसबंदी का जा चुकी है. वहीं, किसान सभा का दावा है कि हिमाचल में 6 लाख से अधिक बंदर व लंगूर हैं. हिमाचल किसान सभा के राज्य अध्यक्ष डॉ. कुलदीप सिंह तंवर का कहना है कि पूर्व में भी किसान संगठनों के दबाव में किसानों की यह समस्या चुनावी मुद्दा बनी थी. सरकार को बंदरों की साइंटिफिक कलिंग पर ध्यान देना होगा. वनों में फलदार पौधे लगाने की जरूरत है. इसके अलावा बंदरों के निर्यात पर लगाया गया प्रतिबंध हटना चाहिए. (6 lakh monkeys in Himachal)

कितनी बड़ी समस्या है बंदर ?- हिमाचल में बंदरों की समस्या का असल सामना किसान और बागवान करते हैं. जिनकी फसल बंदर और अन्य जंगली जानवर उजाड़ देते हैं. बदरों की समस्या इतनी बड़ी है कि कई परिवार किसान परिवार खेती छोड़ चुके हैं. ऐसा नहीं है कि हिमाचल की सरकारें इस बात से अंजान रही है. समय-समय पर बंदरों को वर्मिन घोषित किया जाता है. जिसके तहत उन जानवरों को मारने की अनुमति होती है जो इंसान या उसकी संपत्ति के लिए नुकसान दायक साबित हो रहे हैं. हिमाचल सरकार भी कई बार ऐसा कर चुकी है, बंदरों को मारने पर बकायदा सरकार पैसे भी देती है. इसी तरह देश में साल 1972 में बंदरों के निर्यात पर प्रतिबंध लगाया गया था. निर्यात पर प्रतिबंध से पहले रिसर्च के लिए भारत विदेशों को हर साल 60 हजार बंदर निर्यात करता था. इससे विदेशी मुद्रा भी मिलती थी और बंदरों की संख्या भी नियंत्रित रहती थी. पशु प्रेमी संगठनों के हस्तक्षेप से बंदरों के निर्यात पर प्रतिबंध लगाया गया. कई किसान संगठन इस प्रतिबंध को हटाने की मांग उठाते आए हैं. (monkeys in Himachal)

हर साल 500 करोड़ का नुकसान: हिमाचल में करीब 10 लाख किसान परिवार हैं, जिनके लिए बंदर और जंगली जानवर सबसे बड़ी परेशानी है. एक अनुमान के अनुसार बंदर व अन्य जंगली जानवर एक साल में किसानों तथा बागवानों को 500 करोड़ रुपए का नुकसान पहुंचाते हैं. हिमाचल की एक तिहाई पंचायतों में बंदर सबसे बड़ी समस्या है. यही वजह है कि बंदरों की समस्या एक चुनाव पहले तक विधानसभा से लेकर पंचायत चुनाव तक में मुद्दा थी. लेकिन इस बार अब तक ये मुद्दा चुनावी मंचों और नेताओं की जुबान से गायब है. (monkeys do crop loss of 500 crores in Himachal)

2017 में भाजपा मौन थी: साल 2017 के चुुनाव के दौरान भाजपा ने हाईटेक तरीके से अपना विजन डॉक्यूमेंट जारी किया था. भाजपा ने इसे स्वर्णिम दृष्टिपत्र का नाम दिया था, लेकिन तब भी पार्टी विद ए डिफरेंस कहलाने वाली भाजपा की नजर किसानों और बागवानों की दुखती रग पर नहीं पड़ी थी. भाजपा के विजन डॉक्यूमेंट में किसानों की फसलों को उजाड़ रहे बंदरों तथा जंगली जानवरों के प्रबंधन को लेकर कोई जिक्र नहीं था. इस बार भी अभी तक की चुनावी चकल्लस में किसी भी राजनीतिक दल को बंदरों व जंगली जानवरों द्वारा उजाड़ी जा रही फसल के मुद्दे पर मुखर होते नहीं देखा गया है. (BJP on monkeys in Himachal) (Monkeys and Himachal Election 2022)

भाजपा के 28 पन्नों के घोषणा पत्र में 2022 तक किसानों और बागवानों की आय को दोगुना करने, हिमाचल को एप्पल स्टेट के अलावा फ्लावर स्टेट बनाने का वादा किया था. विजन डॉक्यूमेंट में कहा गया था कि भाजपा ने सौर बाड़ के लिए 90 फीसदी अनुदान देगी और मौजूदा वाइल्ड लाइफ सेंचुरी में सौर बाड़ लगाई जाएगी. हिमाचल के लिए राजनीतिक रूप से ये अद्भुत बात रही है कि एक दशक पहले यहां पंचायत से लेकर विधानसभा चुनाव में बंदरों व जंगली जानवरों द्वारा फसल की बर्बाद का मुद्दा चुनाव में प्रमुख था, लेकिन आज ये मुद्दा कहीं नहीं है. (BJP and Congress silent on monkeys) (Monkey in Himachal Politics)

अब मुद्दा क्यों नहीं हैं बंदर : 2007 और 2012 विधानसभा चुनाव के साथ-साथ पंचायत चुनावों का मुद्दा रहे बंदर अब सिर्फ किसानों और बागवानों की समस्या है लेकिन चुनावी समर में मुद्दा नहीं हैं. 2017 के बाद इस बार भी ये मुद्दा कहीं नहीं है. दरअसल सरकार के मुताबिक हिमाचल में बंदरों की संख्या में लगभग 50 फीसदी की कमी आई है और पिछले 7 सालों में इनकी संख्या 3 लाख से घटकर 1.36 लाख रह गई है. बंदरों के झुंडों के अलावा उनके घनत्व हॉट स्पॉट भी 263 से घटकर 226 रह गई है. तमिलनाडु के कोयंबटूर स्थित सलीम अली सेंटर फॉर ऑर्निथोलॉजी एंड नेचुरल हिस्ट्री द्वारा साल 2020 में की गई बंदरों की गणना में यह बात सामने आई है. वन विभाग के मुताबिक बंदरों की नसबंदी और उन्हें वर्मिन घोषित करने का असर उनकी आबादी पर दिख रहा है. (number of monkeys in himachal) (Monkeys are not a political issue in HP election)

सरकार का दावा सोलर फेंसिंग से हुआ फायदा: राज्य सरकार के कृषि मंत्री वीरेंद्र कंवर का कहना है कि सरकार ने सोलर फेंसिंग के लिए किसानों को अनुदान दिया है. कृषि मंत्री का कहना है कि राज्य में मुख्यमंत्री खेत संरक्षण योजना के तहत 175.38 करोड़ रुपये खर्च किए जा चुके हैं. सोलर फेंसिंग पर सरकार ने किसानों को मदद की और इससे 4,669 हेक्टेयर खेती योग्य भूमि की बेसहारा पशुओं, जंगली जानवरों और बंदरों से सुरक्षा हुई है. राज्य के लगभग 5,535 किसान इस योजना का लाभ उठा चुके हैं. योजना के तहत किसानों को सौर ऊर्जा वाली बाड़ लगाने के लिए 80 प्रतिशत तथा समूह आधारित बाड़बंदी के लिए 85 प्रतिशत अनुदान दिया जाता है. फिलहाल, ये देखना है कि इस बार भाजपा व कांग्रेस के चुनावी घोषणा पत्र में बंदर तथा जंगली जानवरों द्वारा फसलों की बर्बादी मुद्दा बनती है या नहीं. (Benefits of Solar Fencing in Himachal) (Monkey politics closed in Himachal) (Himachal Govt on Monkey issue)

बंदर समस्या थे और अभी भी हैं- सरकार और सरकारी आंकड़े कुछ भी दावा कर लें लेकिन किसानों के मुताबिक बंदरों की समस्या पहले भी थी और आज भी बरकरार है. IFS अधिकारी रहे हिमाचल किसान सभा के राज्य अध्यक्ष डॉ. कुलदीप सिंह तंवर कहते हैं कि 10 लाख से अधिक किसान बागवान परिवार बंदरों की समस्या से जूझ रहे हैं. इनमें से अब तक गिने चुने किसानों को ही सोलर फेंसिंग जैसी सरकारी योजनाओं का लाभ हुआ है. इसलिये बंदरों की समस्या जस की तस है, सोलर फेंसिंग, बंदरों को वर्मिन घोषित करने और उनकी नसबंदी के अलावा डॉ. कुलदीप सिंह तंवर जंगलों में फलदार पौधे लगाने की सलाह भी देते हैं ताकि बंदरों को जंगलों में ही खाना मिल जाए और शहर या गांवों की तरफ ना आएं. इसके अलावा वो बंदरों के निर्यात पर लगे बैन को हटाने और बंदरों की समस्या को साइंटिफिक तरीके से हल करने के भी पक्षधर हैं. (Monkeys are a menace in Himachal) (Monkeys are Big Problem in Himachal)

ये भी पढ़ें : हिमाचल के राजनेता भी पकड़ते हैं धार्मिक डेरों की राह, चुनावी साल में वोट के लिए गुपचुप फैलाते हैं झोली

शिमला: हिमाचल में कभी भी चुनाव की तारीखों का ऐलान हो सकता है. इस बीच सियासी दल अपने-अपने मुद्दों की पोटली लेकर जनता के बीच पहुंच रहे हैं. लेकिन मुद्दों की गूंज में वो मुद्दा इस बार गायब है जिससे प्रदेश की सबसे बड़ी आबादी हर साल बड़ा नुकसान झेलती है. ये समस्या है हिमाचल में बंदरों की समस्या, प्रदेश में बंदर और अन्य जंगली जीव हर साल फलों और फसलों को 500 करोड़ रुपए का नुकसान पहुंचाते हैं. हर साल होने वाला ये नुकसान इन बंदरों को हिमाचल में चुनावी मुद्दा बनाता रहा है. लेकिन पिछले चुनाव की तरह इस बार भी ये बंदर चुनावी मुद्दों की भीड़ में कहीं गुम हैं. दूसरी नजर से देखें तो कहा जा सकता है कि चुनावी साल में हिमाचल की सबसे बड़ी जनसंख्या यानी किसान-बागवान और उनकी समस्या किसी भी राजनीतिक दल की चुनावी चिंता में शामिल नहीं हैं. (monkey politics in Himachal) (monkey in Himachal) (Himachal election 2022)

2300 पंचायतों में किसान-बागवान परेशान: हिमाचल में कुल 3615 पंचायतें हैं. इनमें से एक 2300 पंचायतों में किसान बंदरों और जंगली जानवरों द्वारा फसल उजाड़े जाने से परेशान हैं. हाल ही में वन्य प्राणी विभाग ने दावा किया कि बंदरों की संख्या में कमी आई है, लेकिन किसानों का कहना है कि समस्या ज्यों की त्यों है. हिमाचल प्रदेश में वर्ष 2007 व 2012 में किसान संगठन इस मसले को चुनावी मुद्दा बनाने में कामयाब तो जरूर हुए थे, लेकिन सरकारों ने इसके समाधान के लिए कोई प्रयास नहीं किया. भाजपा सरकार ने सोलर फेंसिंग के लिए किसानों को अनुदान दिया है. सोलर बाड़ लगाने से कई इलाकों में बंदरों व जंगली जानवरों की तरफ से फसलों को हो रहे नुकसान में कुछ कमी आई है. (2300 panchayats troubled by monkeys in Himachal)

हिमाचल में 6 लाख से ज्यादा बंदर का दावा: हिमाचल की 90% आबादी ग्रामीण इलाकों में रहती है, जो ज्यादातर खेती और बागवानी पर निर्भर है. पूर्व के सरकारी आंकड़े के अनुसार हिमाचल में 2.60 लाख बंदर थे. पूर्व की वीरभद्र सिंह सरकार के समय दावा किया गया था कि इनमें से 90 हजार की नसबंदी का जा चुकी है. वहीं, किसान सभा का दावा है कि हिमाचल में 6 लाख से अधिक बंदर व लंगूर हैं. हिमाचल किसान सभा के राज्य अध्यक्ष डॉ. कुलदीप सिंह तंवर का कहना है कि पूर्व में भी किसान संगठनों के दबाव में किसानों की यह समस्या चुनावी मुद्दा बनी थी. सरकार को बंदरों की साइंटिफिक कलिंग पर ध्यान देना होगा. वनों में फलदार पौधे लगाने की जरूरत है. इसके अलावा बंदरों के निर्यात पर लगाया गया प्रतिबंध हटना चाहिए. (6 lakh monkeys in Himachal)

कितनी बड़ी समस्या है बंदर ?- हिमाचल में बंदरों की समस्या का असल सामना किसान और बागवान करते हैं. जिनकी फसल बंदर और अन्य जंगली जानवर उजाड़ देते हैं. बदरों की समस्या इतनी बड़ी है कि कई परिवार किसान परिवार खेती छोड़ चुके हैं. ऐसा नहीं है कि हिमाचल की सरकारें इस बात से अंजान रही है. समय-समय पर बंदरों को वर्मिन घोषित किया जाता है. जिसके तहत उन जानवरों को मारने की अनुमति होती है जो इंसान या उसकी संपत्ति के लिए नुकसान दायक साबित हो रहे हैं. हिमाचल सरकार भी कई बार ऐसा कर चुकी है, बंदरों को मारने पर बकायदा सरकार पैसे भी देती है. इसी तरह देश में साल 1972 में बंदरों के निर्यात पर प्रतिबंध लगाया गया था. निर्यात पर प्रतिबंध से पहले रिसर्च के लिए भारत विदेशों को हर साल 60 हजार बंदर निर्यात करता था. इससे विदेशी मुद्रा भी मिलती थी और बंदरों की संख्या भी नियंत्रित रहती थी. पशु प्रेमी संगठनों के हस्तक्षेप से बंदरों के निर्यात पर प्रतिबंध लगाया गया. कई किसान संगठन इस प्रतिबंध को हटाने की मांग उठाते आए हैं. (monkeys in Himachal)

हर साल 500 करोड़ का नुकसान: हिमाचल में करीब 10 लाख किसान परिवार हैं, जिनके लिए बंदर और जंगली जानवर सबसे बड़ी परेशानी है. एक अनुमान के अनुसार बंदर व अन्य जंगली जानवर एक साल में किसानों तथा बागवानों को 500 करोड़ रुपए का नुकसान पहुंचाते हैं. हिमाचल की एक तिहाई पंचायतों में बंदर सबसे बड़ी समस्या है. यही वजह है कि बंदरों की समस्या एक चुनाव पहले तक विधानसभा से लेकर पंचायत चुनाव तक में मुद्दा थी. लेकिन इस बार अब तक ये मुद्दा चुनावी मंचों और नेताओं की जुबान से गायब है. (monkeys do crop loss of 500 crores in Himachal)

2017 में भाजपा मौन थी: साल 2017 के चुुनाव के दौरान भाजपा ने हाईटेक तरीके से अपना विजन डॉक्यूमेंट जारी किया था. भाजपा ने इसे स्वर्णिम दृष्टिपत्र का नाम दिया था, लेकिन तब भी पार्टी विद ए डिफरेंस कहलाने वाली भाजपा की नजर किसानों और बागवानों की दुखती रग पर नहीं पड़ी थी. भाजपा के विजन डॉक्यूमेंट में किसानों की फसलों को उजाड़ रहे बंदरों तथा जंगली जानवरों के प्रबंधन को लेकर कोई जिक्र नहीं था. इस बार भी अभी तक की चुनावी चकल्लस में किसी भी राजनीतिक दल को बंदरों व जंगली जानवरों द्वारा उजाड़ी जा रही फसल के मुद्दे पर मुखर होते नहीं देखा गया है. (BJP on monkeys in Himachal) (Monkeys and Himachal Election 2022)

भाजपा के 28 पन्नों के घोषणा पत्र में 2022 तक किसानों और बागवानों की आय को दोगुना करने, हिमाचल को एप्पल स्टेट के अलावा फ्लावर स्टेट बनाने का वादा किया था. विजन डॉक्यूमेंट में कहा गया था कि भाजपा ने सौर बाड़ के लिए 90 फीसदी अनुदान देगी और मौजूदा वाइल्ड लाइफ सेंचुरी में सौर बाड़ लगाई जाएगी. हिमाचल के लिए राजनीतिक रूप से ये अद्भुत बात रही है कि एक दशक पहले यहां पंचायत से लेकर विधानसभा चुनाव में बंदरों व जंगली जानवरों द्वारा फसल की बर्बाद का मुद्दा चुनाव में प्रमुख था, लेकिन आज ये मुद्दा कहीं नहीं है. (BJP and Congress silent on monkeys) (Monkey in Himachal Politics)

अब मुद्दा क्यों नहीं हैं बंदर : 2007 और 2012 विधानसभा चुनाव के साथ-साथ पंचायत चुनावों का मुद्दा रहे बंदर अब सिर्फ किसानों और बागवानों की समस्या है लेकिन चुनावी समर में मुद्दा नहीं हैं. 2017 के बाद इस बार भी ये मुद्दा कहीं नहीं है. दरअसल सरकार के मुताबिक हिमाचल में बंदरों की संख्या में लगभग 50 फीसदी की कमी आई है और पिछले 7 सालों में इनकी संख्या 3 लाख से घटकर 1.36 लाख रह गई है. बंदरों के झुंडों के अलावा उनके घनत्व हॉट स्पॉट भी 263 से घटकर 226 रह गई है. तमिलनाडु के कोयंबटूर स्थित सलीम अली सेंटर फॉर ऑर्निथोलॉजी एंड नेचुरल हिस्ट्री द्वारा साल 2020 में की गई बंदरों की गणना में यह बात सामने आई है. वन विभाग के मुताबिक बंदरों की नसबंदी और उन्हें वर्मिन घोषित करने का असर उनकी आबादी पर दिख रहा है. (number of monkeys in himachal) (Monkeys are not a political issue in HP election)

सरकार का दावा सोलर फेंसिंग से हुआ फायदा: राज्य सरकार के कृषि मंत्री वीरेंद्र कंवर का कहना है कि सरकार ने सोलर फेंसिंग के लिए किसानों को अनुदान दिया है. कृषि मंत्री का कहना है कि राज्य में मुख्यमंत्री खेत संरक्षण योजना के तहत 175.38 करोड़ रुपये खर्च किए जा चुके हैं. सोलर फेंसिंग पर सरकार ने किसानों को मदद की और इससे 4,669 हेक्टेयर खेती योग्य भूमि की बेसहारा पशुओं, जंगली जानवरों और बंदरों से सुरक्षा हुई है. राज्य के लगभग 5,535 किसान इस योजना का लाभ उठा चुके हैं. योजना के तहत किसानों को सौर ऊर्जा वाली बाड़ लगाने के लिए 80 प्रतिशत तथा समूह आधारित बाड़बंदी के लिए 85 प्रतिशत अनुदान दिया जाता है. फिलहाल, ये देखना है कि इस बार भाजपा व कांग्रेस के चुनावी घोषणा पत्र में बंदर तथा जंगली जानवरों द्वारा फसलों की बर्बादी मुद्दा बनती है या नहीं. (Benefits of Solar Fencing in Himachal) (Monkey politics closed in Himachal) (Himachal Govt on Monkey issue)

बंदर समस्या थे और अभी भी हैं- सरकार और सरकारी आंकड़े कुछ भी दावा कर लें लेकिन किसानों के मुताबिक बंदरों की समस्या पहले भी थी और आज भी बरकरार है. IFS अधिकारी रहे हिमाचल किसान सभा के राज्य अध्यक्ष डॉ. कुलदीप सिंह तंवर कहते हैं कि 10 लाख से अधिक किसान बागवान परिवार बंदरों की समस्या से जूझ रहे हैं. इनमें से अब तक गिने चुने किसानों को ही सोलर फेंसिंग जैसी सरकारी योजनाओं का लाभ हुआ है. इसलिये बंदरों की समस्या जस की तस है, सोलर फेंसिंग, बंदरों को वर्मिन घोषित करने और उनकी नसबंदी के अलावा डॉ. कुलदीप सिंह तंवर जंगलों में फलदार पौधे लगाने की सलाह भी देते हैं ताकि बंदरों को जंगलों में ही खाना मिल जाए और शहर या गांवों की तरफ ना आएं. इसके अलावा वो बंदरों के निर्यात पर लगे बैन को हटाने और बंदरों की समस्या को साइंटिफिक तरीके से हल करने के भी पक्षधर हैं. (Monkeys are a menace in Himachal) (Monkeys are Big Problem in Himachal)

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