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Vultures in Himachal Pradesh: हिमाचल में सफल हो रहा गिद्ध बचाओ अभियान, सैटेलाइट टैगिंग से हो रही स्टडी - हिमाचल प्रदेश में गिद्धों की संख्या

हिमाचल के वन्य प्राणी विंग (wildlife wing Himachal Pradesh) की अनूठी सूझबूझ से गिद्ध बचाओ प्रोजेक्ट को सफलता के शिखर पर पहुंचाते हुए केवल कांगड़ा जिले में गिद्धों की संख्या 1100 से अधिक हो गई है. प्रदेश में गिद्धों की सही संख्या का आकलन नहीं हो पाया है, लेकिन उम्मीद (Vulture save campaign in Himachal) जताई जा रही है कि यह संख्या पहले से कहीं अधिक है. डीएफओ वाइल्डलाइफ हमीरपुर के अनुसार प्रदेश में गिद्धों के घोंसलों की गणना का कार्य जारी है. इनकी संख्या में लगातार बढ़ोतरी (vulture counting himachal) हो रही है. पिछले वर्ष की बात करें तो कांगड़ा जिले में 400 से अधिक घोंसलों की गणना की गई है. इसके अलावा गिद्धों के बच्चों को की संख्या की गणना भी की जाती है. इनकी संख्या में भी उत्साहवर्धक वृद्धि हुई है.

Vultures in Himachal Pradesh
प्रतीकात्मक तस्वीर.
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Published : Jan 5, 2022, 5:07 PM IST

Updated : Jan 5, 2022, 8:44 PM IST

शिमला: पर्यावरण संरक्षण के लिहाज से बेहद अहम समझे जाने वाले गिद्धों की घटती संख्या पूरे एशिया के लिए चिंता का विषय बन कर उभरी है, लेकिन हिमाचल के वन्य प्राणी विंग की अनूठी सूझबूझ से गिद्ध बचाओ प्रोजेक्ट को सफलता के शिखर पर पहुंचाते हुए केवल कांगड़ा जिले में गिद्धों की संख्या 1100 से अधिक हो गई है.

प्रदेश में गिद्धों की सही संख्या का आकलन नहीं हो पाया है, लेकिन उम्मीद (Vulture save campaign in Himachal) जताई जा रही है कि यह संख्या पहले से कहीं अधिक है. इसके अलावा मिनिस्ट्री और एंडोमेंट एंड फॉरेस्ट न्यू दिल्ली के सहयोग से (Vultures in Himachal Pradesh) वाइल्डलाइफ इंस्टीट्यूट देहरादून के प्रोजेक्ट के तहत गिद्धों की सेटेलाइट पैकिंग का काम जारी है. वाइल्ड लाइफ विंग हमीरपुर के तहत चार गिद्धों की सेटेलाइट टैगिंग की गई है इससे इनके व्यवहार और दिनचर्या के बारे में जानकारी जुटाई जा रही है यह प्रोजेक्ट 1 साल तक कार्य करने के बाद अंतिम रिपोर्ट सौंपेगा.

डीएफओ वाइल्डलाइफ हमीरपुर के अनुसार प्रदेश में गिद्धों के घोंसलों की गणना का कार्य जारी है. इनकी संख्या में लगातार बढ़ोतरी हो रही है. पिछले वर्ष की बात करें तो कांगड़ा जिले में 400 से अधिक घोंसलों की गणना की गई है. इसके अलावा गिद्धों के बच्चों को की संख्या की गणना भी की जाती है. इनकी संख्या में भी उत्साहवर्धक वृद्धि हुई है.

ये भी पढ़ें- ध्यान न देने पर मसूड़ों की बीमारी बढ़ा सकती है ह्रदयरोग तथा मनोविकारों का खतरा

एनिमल हसबेंडरी विभाग में डॉक्टर मनीष बता के अनुसार कुछ वर्ष पहले पशुओं को कई बीमारियोंमें डेक्लोफिनेक दवाई के इंजेक्शन दिए जाते थे. ऐसे पशुओं के मरने पर गिद्ध उन्हें खाते और डेक्लोफिनेक दवाई के असर से उनकी उम्र घटती जाती थी. धीरे-धीरे पूरे दक्षिण एशिया में गिद्धों की संख्या कम होती गई. गिद्धों का भोजन मृत पशु होते हैं. गिद्ध मृत पशुओं की देह चट कर जाते हैं. इससे पर्यावरण में संतुलन बना रहता है.

ऐसे में पर्यावरण संरक्षण के लिए गिद्धों की पर्याप्त संख्या होना बेहद अहम है. गिद्धों की घटती संख्या से चिंतित सार्क देशों ने गिद्ध बचाओ प्रोजेक्ट शुरू किया था. हिमाचल में इसके लिए कांगड़ा जिले को चुना गया था. दस साल के बाद वन्य प्राणी विंग अपनी सफलता पर पीठ थपथपाने का हकदार है.

ये भी पढ़ें- Snowfall in Manali: नए साल की पहली बर्फबारी, पर्यटकों की खुशी का नहीं रहा ठिकाना

पहले दक्षिण एशिया में चार करोड़ गिद्ध थे, जो महज चालीस हजार रह गए थे. दस साल पहले शुरू हुए प्रोजेक्ट में कांगड़ा जिले को चुना गया था. उस समय जिले में गिद्धों के महज 26 घोंसले थे और उनमे 23 चूजे मौजूद थे. प्रति घोंसला एक जोड़ा गिद्ध के हिसाब से ये संख्या 75 थी, लेकिन अब कांगड़ा जिले में ही गिद्धों की 44 से अधिक कालोनियां हैं. इनमें इस समय 400 से अधिक घोंसले हैं.

कांगड़ा जिले के ज्वाली स्थित गुगलाडा और नगरोटा सूरियां (wildlife wing Himachal Pradesh) के सुगलाडा में वन्य प्राणी विंग ने दो विशेष गिद्ध भोजन केंद्र भी स्थापित किए हैं. स्थानीय चर्मकारों की मदद से इन केंद्रों में गिद्धों को मृत पशुओं का भोजन उपलब्ध करवाया जाता है. विंग इसके बाद चार और भोजन केंद्र स्थापित करेगा. जिले के पौंग स्थित रेंज अफसर वीरेंद्र के मुताबिक गिद्ध ऊंचे पेड़ों पर ही प्रजनन क्रिया संपन्न करता है.

इसके बाद इलाके में ऊंचे पेड़ चिन्हित कर उनके कटान पर प्रतिबंध लगाया गया. सफलता (vultures increased in himachal) से उत्साहित वन्य प्राणी विंग अब इस प्रोजेक्ट को हिमाचल के सिरमौर व हमीरपुर जिले में भी शुरू कर दिया है. इसके साथ ही वन्य प्राणी विंग गिद्धों (Causes of death of Indian Vulture) के व्यवहार का अध्ययन करने के लिए घौंसलों के आसपास सीसीटीवी कैमरे भी लगाएगा.

बता दें कि कांगड़ा जिले में किए गए सर्वे में वाइल्ड लाइफ को 2018 में 387 व्हाइट रंप्ड वल्चर के घोंसले मिले. इन घोंसलों में 359 बच्चे थे. वर्ष 2017-18 में गिद्धों के घोंसलों की संख्या 356 थी तथा इनमें 313 बच्चे मिले थे. वर्ष 2016-17 के सर्वे में गिद्धों के 337 घोंसले मिले तथा इनमें 294 नवजात पक्षी पाए गए. वर्ष 2015-16 में 307 घोंसले मिले तथा बच्चों की संख्या 280 थी. वर्ष 2014-15 में घोंसलों की संख्या 288 तथा बच्चों की संख्या 269 थी.

गिद्धों के सर्वे के दौरान टीम को इजीप्शन (मिस्र का गिद्ध भी मिला). यह गिद्ध भी पर्यावरण को सुरक्षित रखने में अपनी अहम भूमिका अदा करता है. पूरी तरह से मांसाहारी गिद्ध मृत जीवों को अपना भोजना बनाता है. इस तरह से पर्यावरण को दूषित होने से बचाने में इसका भी अहम रोल मिलता है. कांगड़ा जिले में सर्वे के दौरान इसकी प्रजाति भी मिली है.

गिद्धों की आबादी कम होने की बड़ी वजह?: गिद्धों की आबादी में कमी के बारे में जानकारी 90 के दशक के मध्य में काफी चर्चा रही. यह ये पक्षी जिन शवों को खाते हैं अब वहीं, इनकी मौत की वजह बन रहा है. साल 2004 में इनकी संख्या में गिरावट का कारण डाइक्लोफेनेक (Diclofenac) को बताया गया. एक्सपर्ट का मानना है कि जानवरों के लिए प्रयोग की जाने वाली इस दवा का जहरीला प्रभाव गिद्धों की मौत की वजह बन रहा है. ऐसे में पशुओं के इलाज में प्रयोग की जाने वाली इस दवा पर 2006 में प्रतिबंध लगा दिया गया था. इसका प्रयोग मुख्यत: पशुओं में बुखार, सूजन और दर्द की समस्या से निपटने में किया जाता था.ये भी पढ़ें- Losar fair in Kinnaur: किन्नौर के कानम गांव में लोसर मेले की धूम, बर्फबारी में भी कम नहीं ग्रामीणों का उत्साह

शिमला: पर्यावरण संरक्षण के लिहाज से बेहद अहम समझे जाने वाले गिद्धों की घटती संख्या पूरे एशिया के लिए चिंता का विषय बन कर उभरी है, लेकिन हिमाचल के वन्य प्राणी विंग की अनूठी सूझबूझ से गिद्ध बचाओ प्रोजेक्ट को सफलता के शिखर पर पहुंचाते हुए केवल कांगड़ा जिले में गिद्धों की संख्या 1100 से अधिक हो गई है.

प्रदेश में गिद्धों की सही संख्या का आकलन नहीं हो पाया है, लेकिन उम्मीद (Vulture save campaign in Himachal) जताई जा रही है कि यह संख्या पहले से कहीं अधिक है. इसके अलावा मिनिस्ट्री और एंडोमेंट एंड फॉरेस्ट न्यू दिल्ली के सहयोग से (Vultures in Himachal Pradesh) वाइल्डलाइफ इंस्टीट्यूट देहरादून के प्रोजेक्ट के तहत गिद्धों की सेटेलाइट पैकिंग का काम जारी है. वाइल्ड लाइफ विंग हमीरपुर के तहत चार गिद्धों की सेटेलाइट टैगिंग की गई है इससे इनके व्यवहार और दिनचर्या के बारे में जानकारी जुटाई जा रही है यह प्रोजेक्ट 1 साल तक कार्य करने के बाद अंतिम रिपोर्ट सौंपेगा.

डीएफओ वाइल्डलाइफ हमीरपुर के अनुसार प्रदेश में गिद्धों के घोंसलों की गणना का कार्य जारी है. इनकी संख्या में लगातार बढ़ोतरी हो रही है. पिछले वर्ष की बात करें तो कांगड़ा जिले में 400 से अधिक घोंसलों की गणना की गई है. इसके अलावा गिद्धों के बच्चों को की संख्या की गणना भी की जाती है. इनकी संख्या में भी उत्साहवर्धक वृद्धि हुई है.

ये भी पढ़ें- ध्यान न देने पर मसूड़ों की बीमारी बढ़ा सकती है ह्रदयरोग तथा मनोविकारों का खतरा

एनिमल हसबेंडरी विभाग में डॉक्टर मनीष बता के अनुसार कुछ वर्ष पहले पशुओं को कई बीमारियोंमें डेक्लोफिनेक दवाई के इंजेक्शन दिए जाते थे. ऐसे पशुओं के मरने पर गिद्ध उन्हें खाते और डेक्लोफिनेक दवाई के असर से उनकी उम्र घटती जाती थी. धीरे-धीरे पूरे दक्षिण एशिया में गिद्धों की संख्या कम होती गई. गिद्धों का भोजन मृत पशु होते हैं. गिद्ध मृत पशुओं की देह चट कर जाते हैं. इससे पर्यावरण में संतुलन बना रहता है.

ऐसे में पर्यावरण संरक्षण के लिए गिद्धों की पर्याप्त संख्या होना बेहद अहम है. गिद्धों की घटती संख्या से चिंतित सार्क देशों ने गिद्ध बचाओ प्रोजेक्ट शुरू किया था. हिमाचल में इसके लिए कांगड़ा जिले को चुना गया था. दस साल के बाद वन्य प्राणी विंग अपनी सफलता पर पीठ थपथपाने का हकदार है.

ये भी पढ़ें- Snowfall in Manali: नए साल की पहली बर्फबारी, पर्यटकों की खुशी का नहीं रहा ठिकाना

पहले दक्षिण एशिया में चार करोड़ गिद्ध थे, जो महज चालीस हजार रह गए थे. दस साल पहले शुरू हुए प्रोजेक्ट में कांगड़ा जिले को चुना गया था. उस समय जिले में गिद्धों के महज 26 घोंसले थे और उनमे 23 चूजे मौजूद थे. प्रति घोंसला एक जोड़ा गिद्ध के हिसाब से ये संख्या 75 थी, लेकिन अब कांगड़ा जिले में ही गिद्धों की 44 से अधिक कालोनियां हैं. इनमें इस समय 400 से अधिक घोंसले हैं.

कांगड़ा जिले के ज्वाली स्थित गुगलाडा और नगरोटा सूरियां (wildlife wing Himachal Pradesh) के सुगलाडा में वन्य प्राणी विंग ने दो विशेष गिद्ध भोजन केंद्र भी स्थापित किए हैं. स्थानीय चर्मकारों की मदद से इन केंद्रों में गिद्धों को मृत पशुओं का भोजन उपलब्ध करवाया जाता है. विंग इसके बाद चार और भोजन केंद्र स्थापित करेगा. जिले के पौंग स्थित रेंज अफसर वीरेंद्र के मुताबिक गिद्ध ऊंचे पेड़ों पर ही प्रजनन क्रिया संपन्न करता है.

इसके बाद इलाके में ऊंचे पेड़ चिन्हित कर उनके कटान पर प्रतिबंध लगाया गया. सफलता (vultures increased in himachal) से उत्साहित वन्य प्राणी विंग अब इस प्रोजेक्ट को हिमाचल के सिरमौर व हमीरपुर जिले में भी शुरू कर दिया है. इसके साथ ही वन्य प्राणी विंग गिद्धों (Causes of death of Indian Vulture) के व्यवहार का अध्ययन करने के लिए घौंसलों के आसपास सीसीटीवी कैमरे भी लगाएगा.

बता दें कि कांगड़ा जिले में किए गए सर्वे में वाइल्ड लाइफ को 2018 में 387 व्हाइट रंप्ड वल्चर के घोंसले मिले. इन घोंसलों में 359 बच्चे थे. वर्ष 2017-18 में गिद्धों के घोंसलों की संख्या 356 थी तथा इनमें 313 बच्चे मिले थे. वर्ष 2016-17 के सर्वे में गिद्धों के 337 घोंसले मिले तथा इनमें 294 नवजात पक्षी पाए गए. वर्ष 2015-16 में 307 घोंसले मिले तथा बच्चों की संख्या 280 थी. वर्ष 2014-15 में घोंसलों की संख्या 288 तथा बच्चों की संख्या 269 थी.

गिद्धों के सर्वे के दौरान टीम को इजीप्शन (मिस्र का गिद्ध भी मिला). यह गिद्ध भी पर्यावरण को सुरक्षित रखने में अपनी अहम भूमिका अदा करता है. पूरी तरह से मांसाहारी गिद्ध मृत जीवों को अपना भोजना बनाता है. इस तरह से पर्यावरण को दूषित होने से बचाने में इसका भी अहम रोल मिलता है. कांगड़ा जिले में सर्वे के दौरान इसकी प्रजाति भी मिली है.

गिद्धों की आबादी कम होने की बड़ी वजह?: गिद्धों की आबादी में कमी के बारे में जानकारी 90 के दशक के मध्य में काफी चर्चा रही. यह ये पक्षी जिन शवों को खाते हैं अब वहीं, इनकी मौत की वजह बन रहा है. साल 2004 में इनकी संख्या में गिरावट का कारण डाइक्लोफेनेक (Diclofenac) को बताया गया. एक्सपर्ट का मानना है कि जानवरों के लिए प्रयोग की जाने वाली इस दवा का जहरीला प्रभाव गिद्धों की मौत की वजह बन रहा है. ऐसे में पशुओं के इलाज में प्रयोग की जाने वाली इस दवा पर 2006 में प्रतिबंध लगा दिया गया था. इसका प्रयोग मुख्यत: पशुओं में बुखार, सूजन और दर्द की समस्या से निपटने में किया जाता था.ये भी पढ़ें- Losar fair in Kinnaur: किन्नौर के कानम गांव में लोसर मेले की धूम, बर्फबारी में भी कम नहीं ग्रामीणों का उत्साह

Last Updated : Jan 5, 2022, 8:44 PM IST
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