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अपराध की पुष्टि हो जाए तो खारिज नहीं हो सकते अभियोजन पक्ष के मामले, हाईकोर्ट का अहम फैसला

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Published : Jan 7, 2020, 8:46 PM IST

हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया है कि साक्ष्यों के आधार पर अपराध की पुष्टि हो जाए तो अभियोजन पक्ष के मामले को खारिज नहीं किया जा सकता. कोर्ट ने ये स्पष्ट किया कि किसी राज्य में केंद्र सरकार अथवा केंद्रीय संस्थानों के अफसरों तथा कर्मियों के खिलाफ जांच का क्षेत्राधिकार सीबीआई के पास होने का ये अर्थ नहीं कि ऐसे मामलों की जांच राज्य पुलिस न कर पाए?

himachal pradesh highcourt
हिमाचल हाईकोर्ट

शिमला: हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया है कि साक्ष्यों के आधार पर अपराध की पुष्टि हो जाए तो अभियोजन पक्ष के मामले को खारिज नहीं किया जा सकता. अदालत ने कहा कि केवल दोष पूर्ण जांच के कारण अभियोजन पक्ष के मामले को खारिज नहीं किया जा सकता, खासकर उस स्थिति में जब पर्याप्त साक्ष्यों के आधार पर अपराध की पुष्टि साफ प्रतीत हो रही हो.

हाईकोर्ट के न्यायाधीश न्यायमूर्ति विवेक सिंह ठाकुर ने प्रार्थी अमरीश जौली की तरफ से दाखिल याचिका की सुनवाई के बाद ये स्पष्ट किया कि किसी राज्य में केंद्र सरकार अथवा केंद्रीय संस्थानों के अफसरों तथा कर्मियों के खिलाफ जांच का क्षेत्राधिकार सीबीआई के पास होने का ये अर्थ नहीं कि ऐसे मामलों की जांच राज्य पुलिस न कर पाए?

दरअसल, हाईकोर्ट में याचिका दाखिल करने वाले प्रार्थी अमरीश जौली के खिलाफ सीबीआई ने भ्रष्टाचार का एक मामला दर्ज किया था. मामले के अनुसार 17 अप्रैल 2017 को वेदपाल नामक शख्स की तरफ से शिमला स्थित सीबीआई के एसपी कार्यालय में दी गई शिकायत में कहा गया कि अमरीश जौली सुबाथू कैंटोनमेंट बोर्ड में आवंटित कार्य की साइट की पहचान करने से पहले 10 फीसदी कमीशन की मांग कर रहा है. शिकायत को जांचने और उसे सत्यापित करने के लिए इंस्पेक्टर सीबीआई ने शिकायतकर्ता और प्रार्थी की बातचीत को रिकॉर्ड किया.

शिकायतकर्ता वेदपाल और प्रार्थी के बीच दो बार हुई बातचीत से यह निष्कर्ष निकाला गया कि प्रार्थी कमीशन की मांग कर रहा था. इस पर प्रार्थी के खिलाफ 19 अप्रैल 2017 को भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम के तहत मामला दर्ज किया गया. सक्षम पुलिस स्टेशन, सीबीआई और दो स्वतंत्र गवाहों को लेकर जांच एजेंसी सीबीआई ने जाल बिछाया और प्रार्थी को रंगे हाथ गिरफ्तार किया गया. जांच के बाद सीबीआई के विशेष न्यायाधीश के समक्ष चालान प्रस्तुत किया गया.

इस मामले में 21 नवंबर 2018 को प्रार्थी के खिलाफ सीबीआई की विशेष अदालत ने आरोप तय किए. बाद में मामला हाईकोर्ट पहुंचा और याचिका में यह दलील दी गई कि प्रार्थी कैंटोनमेंट बोर्ड सुबाथू में कनिष्ठ अभियंता के रुप में काम कर रहा है तथा वह केंद्र सरकार का कर्मचारी नहीं है. लिहाजा, सीबीआई के पास न तो उसके खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने की पावर है और न ही सीबीआई का ये अधिकार क्षेत्र था.

हालांकि प्रार्थी ने इससे पहले सीबीआई की विशेष अदालत के समक्ष भी यह दलील रखी थी, लेकिन सीबीआई की विशेष अदालत ने 21 नवंबर 2018 को उसकी दलीलों को खारिज कर दिया था. साथ ही प्रार्थी के खिलाफ आरोप तय करने का आदेश भी दिया. अब हाईकोर्ट ने भी सीबीआई की विशेष अदालत के फैसले से सहमति जताई और प्रार्थी की याचिका को खारिज कर दिया.

ये भी पढ़ें: SC/ST आरक्षण को 10 साल बढ़ाने के प्रस्ताव पर हिमाचल विधानसभा की भी मंजूरी, CM बोले समाजिक भेदभाव हो खत्म

शिमला: हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया है कि साक्ष्यों के आधार पर अपराध की पुष्टि हो जाए तो अभियोजन पक्ष के मामले को खारिज नहीं किया जा सकता. अदालत ने कहा कि केवल दोष पूर्ण जांच के कारण अभियोजन पक्ष के मामले को खारिज नहीं किया जा सकता, खासकर उस स्थिति में जब पर्याप्त साक्ष्यों के आधार पर अपराध की पुष्टि साफ प्रतीत हो रही हो.

हाईकोर्ट के न्यायाधीश न्यायमूर्ति विवेक सिंह ठाकुर ने प्रार्थी अमरीश जौली की तरफ से दाखिल याचिका की सुनवाई के बाद ये स्पष्ट किया कि किसी राज्य में केंद्र सरकार अथवा केंद्रीय संस्थानों के अफसरों तथा कर्मियों के खिलाफ जांच का क्षेत्राधिकार सीबीआई के पास होने का ये अर्थ नहीं कि ऐसे मामलों की जांच राज्य पुलिस न कर पाए?

दरअसल, हाईकोर्ट में याचिका दाखिल करने वाले प्रार्थी अमरीश जौली के खिलाफ सीबीआई ने भ्रष्टाचार का एक मामला दर्ज किया था. मामले के अनुसार 17 अप्रैल 2017 को वेदपाल नामक शख्स की तरफ से शिमला स्थित सीबीआई के एसपी कार्यालय में दी गई शिकायत में कहा गया कि अमरीश जौली सुबाथू कैंटोनमेंट बोर्ड में आवंटित कार्य की साइट की पहचान करने से पहले 10 फीसदी कमीशन की मांग कर रहा है. शिकायत को जांचने और उसे सत्यापित करने के लिए इंस्पेक्टर सीबीआई ने शिकायतकर्ता और प्रार्थी की बातचीत को रिकॉर्ड किया.

शिकायतकर्ता वेदपाल और प्रार्थी के बीच दो बार हुई बातचीत से यह निष्कर्ष निकाला गया कि प्रार्थी कमीशन की मांग कर रहा था. इस पर प्रार्थी के खिलाफ 19 अप्रैल 2017 को भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम के तहत मामला दर्ज किया गया. सक्षम पुलिस स्टेशन, सीबीआई और दो स्वतंत्र गवाहों को लेकर जांच एजेंसी सीबीआई ने जाल बिछाया और प्रार्थी को रंगे हाथ गिरफ्तार किया गया. जांच के बाद सीबीआई के विशेष न्यायाधीश के समक्ष चालान प्रस्तुत किया गया.

इस मामले में 21 नवंबर 2018 को प्रार्थी के खिलाफ सीबीआई की विशेष अदालत ने आरोप तय किए. बाद में मामला हाईकोर्ट पहुंचा और याचिका में यह दलील दी गई कि प्रार्थी कैंटोनमेंट बोर्ड सुबाथू में कनिष्ठ अभियंता के रुप में काम कर रहा है तथा वह केंद्र सरकार का कर्मचारी नहीं है. लिहाजा, सीबीआई के पास न तो उसके खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने की पावर है और न ही सीबीआई का ये अधिकार क्षेत्र था.

हालांकि प्रार्थी ने इससे पहले सीबीआई की विशेष अदालत के समक्ष भी यह दलील रखी थी, लेकिन सीबीआई की विशेष अदालत ने 21 नवंबर 2018 को उसकी दलीलों को खारिज कर दिया था. साथ ही प्रार्थी के खिलाफ आरोप तय करने का आदेश भी दिया. अब हाईकोर्ट ने भी सीबीआई की विशेष अदालत के फैसले से सहमति जताई और प्रार्थी की याचिका को खारिज कर दिया.

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अपराध की पुष्टि हो जाए तो खारिज नहीं हो सकते अभियोजन पक्ष के मामले, हाईकोर्ट का अहम फैसला
शिमला। हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया है कि साक्ष्यों के आधार पर अपराध की पुष्टि हो जाए तो अभियोजन पक्ष के मामले को खारिज नहीं किया जा सकता। अदालत ने कहा कि केवल दोषपूर्ण जांच के कारण अभियोजन पक्ष के मामले को खारिज नहीं किया जा सकता, खासकर उस स्थिति में जब पर्याप्त साक्ष्यों के आधार पर अपराध की पुष्टि साफ प्रतीत हो रही हो। हाईकोर्ट के न्यायाधीश न्यायमूर्ति विवेक सिंह ठाकुर ने प्रार्थी अमरीश जौली की तरफ से दाखिल याचिका की सुनवाई के बाद ये स्पष्ट किया कि किसी राज्य में केंद्र सरकार अथवा केंद्रीय संस्थानों के अफसरों तथा कर्मियों के खिलाफ जांच का क्षेत्राधिकार सीबीआई के पास होने का ये अर्थ नहीं कि ऐसे मामलों की जांच राज्य पुलिस न कर पाए? दरअसल, हाईकोर्ट में याचिका दाखिल करने वाले प्रार्थी अमरीश जौली के खिलाफ सीबीआई ने भ्रष्टाचार का एक मामला दर्ज किया था। मामले के अनुसार 17 अप्रैल 2017 को वेदपाल नामक शख्स की तरफ से शिमला स्थित सीबीआई के एसपी कार्यालय में दी गई शिकायत में कहा गया कि अमरीश जौली सुबाथू कैंटोनमेंट बोर्ड में आवंटित कार्य की साइट की पहचान करने से पहले 10 फीसदी कमीशन की मांग कर रहा है। शिकायत को जांचने और उसे सत्यापित करने के लिए इंस्पेक्टर सीबीआई ने शिकायतकर्ता और प्रार्थी की बातचीत को रिकॉर्ड किया। शिकायतकर्ता वेदपाल और प्रार्थी के बीच दो बार हुई बातचीत से यह निष्कर्ष निकाला गया कि प्रार्थी कमीशन की मांग कर रहा था। इस पर प्रार्थी के खिलाफ 19 अप्रैल 2017 को भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम के तहत मामला दर्ज किया गया। सक्षम पुलिस स्टेशन, सीबीआई और दो स्वतंत्र गवाहों को लेकर जांच एजेंसी सीबीआई ने जाल बिछाया और प्रार्थी को रंगे हाथ गिरफ्तार किया गया। जांच के बाद सीबीआई के विशेष न्यायाधीश के समक्ष चालान प्रस्तुत किया गया। इस मामले में 21 नवंबर 2018 को प्रार्थी के खिलाफ सीबीआई की विशेष अदालत ने आरोप तय किए। बाद में मामला हाईकोर्ट पहुंचा और याचिका में यह दलील दी गई कि प्रार्थी कैंटोनमेंट बोर्ड सुबाथू में कनिष्ठ अभियंता के रूप में काम कर रहा है तथा वह केंद्र सरकार का कर्मचारी नही है। लिहाजा, सीबीआई के पास न तो उसके खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने की पावर है और न ही सीबीआई का ये अधिकार क्षेत्र था। हालांकि प्रार्थी ने इससे पहले सीबीआई की विशेष अदालत के समक्ष भी यह दलील रखी थी, लेकिन सीबीआई की विशेष अदालत ने 21 नवंबर 2018 को उसकी दलीलों को खारिज कर दिया था। साथ ही प्रार्थी के खिलाफ आरोप तय करने का आदेश भी दिया। अब हाईकोर्ट ने भी सीबीआई की विशेष अदालत के फैसले से सहमति जताई और प्रार्थी की याचिका को खारिज कर दिया। 
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