शिमला: हिमाचल प्रदेश के किसान और बागवान सालाना फसलों-फलों का पांच सौ करोड़ रुपए का नुकसान झेलते हैं. किसानों-बागवानों के दबाव में राजनीतिक दल इसे चुनाव में मुद्द बनाते हैं, लेकिन समस्या का स्थाई समाधान अब तक नहीं हुआ है. सरकारों ने जो इंतजाम किए भी हैं, वो नाकाफी साबित हो रहे हैं. जैसे सोलर फेंसिंग व जंगली जानवरों को वर्मिन घोषित करना, परंतु फसलों और फलों के नुकसान को कम नहीं किया जा सका है.
कई इलाकों में तो किसानों ने बंदरों और जंगली जानवरों के आतंक से फसलें बोना छोड़ दी है. केंद्र सरकार ने वर्ष 1972 में बंदरों के निर्यात पर प्रतिबंध लगाया था. हिमाचल किसान सभा के राज्य अध्यक्ष डॉ. कुलदीप सिंह तंवर, जो खुद इंडियन फॉरेस्ट सर्विसेज के ऑफिसर रहे हैं, का कहना है कि बंदरों के निर्यात से प्रतिबंध हटना चाहिए. इससे हिमाचल में बंदरों व लंगूरों की संख्या नियंत्रित होगी तथा खेती-बागवानी का नुकसान भी रुकेगा.
हिमाचल में बदरों से किसान परेशान: हाल ही में संपन्न हिमाचल विधानसभा के बजट सत्र में भी (monkey in himachal) बंदरों व बेसहारा जानवरों द्वारा फसलों-फलों को पहुंचाए जाने वाले नुकसान का मुद्दा गूंजा था. कृषि मंत्री वीरेंद्र कंवर ने विधानसभा में पूछे गए सवाल के जवाब में बताया था कि बंदर और बेसहारा जानवर फसलों को सालाना पांच सौ करोड़ रुपए का नुकसान पहुंचाते हैं. सरकार ने इस बारे में एक सर्वे किया था.
सोलर फेंसिंग पर सब्सिडी: वीरेंद्र कंवर ने सदन में बताया था कि जानवरों और बंदरों से फसलों को बचाने के लिए इंटरलिंक चेन फेंसिंग और इंटरलिंक सोलर चेन फेंसिंग का सहारा लिया जा रहा है. हिमाचल प्रदेश में 19 हजार हेक्टेयर से अधिक भूमि पर फसलों को बंदरों और जंगली जानवरों ने नुकसान पहुंचाया है. ये भूमि बंदरों व जानवरों के आतंक से बुरी तरह प्रभावित हुई है. फिलहाल सरकार ने सोलर फेंसिंग आदि के माध्यम से 4927 हेक्टेयर जमीन को फिर से खेती के लायक बनाया है. सरकार सोलर फेंसिंग आदि पर किसानों को भारी अनुदान दे रही है.
उल्लेखनीय है कि हिमाचल प्रदेश की नब्बे फीसदी आबादी ग्रामीण इलाकों में रहती है. प्रदेश में नौ लाख से अधिक किसान व बागवान हैं. यहां सालाना पांच सौ करोड़ रुपए के फल व फसलें बंदर और जंगली जानवर बर्बाद कर देते हैं. किसानों ने इस समस्या के समाधान के लिए आंदोलन भी किए. विधानसभा का घेराव भी किया. किसानों के दबाव में कांग्रेस व भाजपा ने अपने घोषणा पत्र में इस समस्या से निजात दिलाने के लिए वादा किया था.
हिमाचल की कई पंचायतों में बंदरों वर्मिन घोषित: फिलहाल, राज्य सरकार के आग्रह पर हिमाचल की कई (Monkey problem in Himachal) पंचायतों में बंदरों को वर्मिन घोषित किया गया है. फल व फसलों के लिए नुकसानकारी साबित होने वाले बंदरों को मारने की अनुमति केंद्र से मिली है, लेकिन राज्य सरकार ने बंदरों को मारने से हाथ खींच लिए. वन्य प्राणी विभाग चाहता है कि किसान खुद बंदरों को मारें, लेकिन अन्नदाता अपने हाथ में बंदूक नहीं पकड़ना चाहता है.
ऐसे में हिमाचल प्रदेश में बंदरों को वर्मिन घोषित करने के बाद भी करीब बंदर भी नहीं मारे गए हैं. इस तरह किसानों की समस्या एक प्रकार से जस की तस है. हिमाचल प्रदेश की दो तिहाई पंचायतें बंदरों व जंगली जानवरों द्वारा फसलों को पहुंचाए जाने वाले नुकसान से प्रभावित है. केंद्र सरकार ने राज्य सरकार की मांग पर बंदरों को वर्मिन तो घोषित किया गया है, लेकिन प्रदेश के दस जिलों में सर्वाधिक समस्या प्रभावित 38 पंचायतों व नगर निगम शिमला में पिछले एक साल में आधिकारिक तौर पर केवल पांच बंदर मारे गए हैं.
चार बंदर रेणुका और एक बंदर सोलन के धर्मपुर में मारा गया. राज्य सरकार के अनुरोध पर केंद्र सरकार ने चंबा जिला की चार, कांगड़ा की सात, ऊना की पांच, बिलासपुर की चार, शिमला की तीन, सिरमौर की पांच, कुल्लू की तीन, हमीरपुर की दो, सोलन की चार, मंडी की एक तहसील सहित नगर निगम शिमला क्षेत्र में बंदरों को वर्मिन घोषित किया था.
इन क्षेत्रों में डलहौजी, भटियात, सिंहुता, चंबा, नूरपुर, इंदौरा, फतेहपुर, ज्वाली, कांगड़ा, पालमपुर, बड़ोह, भरवाईं, अंब, ऊना, रोली, बंगाणा, घुमारवीं, नयनादेवी, बिलासपुर, नम्होल, शिमला ग्रामीण, रामपुर, नेरवा, पच्छाद, राजगढ़, रेणुका, शिलाई, कमरऊ, मनाली, कुल्लू, सैंज, बड़सर, बिजहारी, नालागढ़, कसौली, सोलन, दाड़लाघाट व सुंदरनगर क्षेत्र शामिल थे.
हिमाचल प्रदेश में बंदरों की संख्या: आंकड़ों की तरफ नजर दौड़ाएं तो हिमाचल प्रदेश में वर्ष 2013 में बंदरों की संख्या 226086 थी. वर्ष 2015 में ये संख्या 207614 रिकॉर्ड की गई. हालांकि किसान सभा इन आंकड़ों से इत्तेफाक नहीं रखती. हिमाचल प्रदेश में वर्ष 2006 से बंदरों की नसबंदी हो रही है. वन्य प्राणी विभाग के अनुसार अब तक डेढ़ लाख से अधिक बंदरों की नसबंदी की गई. इस पर 30 करोड़ रुपये खर्च हुए हैं.
सरकार ने बंदरों के लिए वनों में फलदार पौधे लगाने की योजना भी लागू की है. वानर वाटिका में बंदरों को रखने का प्लान भी लागू है. इसके अलावा बंदर पकड़ने पर प्रति बंदर पांच सौ रुपए इनाम भी रखा गया है. सरकार ने इस पर भी करोड़ों रुपए खर्च किए, लेकिन समस्या का समाधान पूरी तरह से नहीं हुआ है.
बंदरों के लिए जंगलों में फलदार पौधे लगाने पर जोर: हिमाचल किसान सभा के राज्य अध्यक्ष डॉ. केएस तंवर का कहना है कि बंदरों के निर्यात पर लगाया गया प्रतिबंध हटना चाहिए. शोध के लिए पहले बंदरों का निर्यात होता था. इससे देश को विदेशी मुद्रा भी मिलती थी. इसके अलावा फसलों को बर्बाद करने वाले बंदरों की साइंटिफिक कलिंग (सीयूएलएलआईएनजी) की जानी चाहिए. जंगलों में बंदरों के लिए फलदार पौधे लगाने चाहिए. साथ ही सरकार को फसलों की बर्बादी पर किसानों को उचित मुआवजा प्रदान करना चाहिए.
कृषि मंत्री वीरेंद्र कंवर का कहना है कि राज्य सरकार फसलों व फलों को बचाने के लिए किसान-बागवानों का सहयोग कर रही है. सोलर फेंसिंग पर अनुदान दिया जा रहा है और किसान इसका लाभ उठा रहे हैं. उन्होंने कहा कि अधिक से अधिक प्रभावित भूमि को फिर से खेती लायक बनाया जा रहा है.
ये भी पढ़ें- बुरा न मानो होली है: मंडी में धूमधाम से मनाया गया होली उत्सव, डीजे की धुन पर जमकर लगे ठुमके